580 परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और परमेश्वर को संतुष्ट करना सबसे पहले आता है

1

आज, तुम लोगों से जो प्राप्त, करने की उम्मीद की जाती है,

वे अतिरिक्त मांगें नहीं है, बल्कि इंसान का कर्तव्य है,

जिसे हर किसी को पूरा करना चाहिए।

अगर तुम लोग नहीं अपना कर्तव्य, ठीक से पूरा कर सकते,

क्या तुम लोग नहीं दे रहे हो परेशानियों को आमंत्रण?

क्या तुम लोग नहीं दे रहे, मौत को दावत?

कैसे तुम लोग अभी भी भविष्य की कामना कर सकते?

परमेश्वर के काम में, इंसान को नहीं छोड़ना चाहिए कोई भी प्रयास,

परमेश्वर के काम में, इंसान को नहीं छोड़ना चाहिए कोई भी प्रयास।


2

परमेश्वर का काम है इंसानों के लिए।

इंसान का सहयोग किया जाता है परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए।

एक बार जब परमेश्वर कर लेता है अपना काम

इंसान को परिश्रमपूर्वक करना होता अभ्यास,

परमेश्वर के साथ करना होता सहयोग।

परमेश्वर के काम में, इंसान को नहीं छोड़ना चाहिए कोई भी प्रयास,

पेश करनी चाहिए अपनी वफ़ादारी,

धारणाओं में नहीं होना चाहिए लिप्त,

निष्क्रियता से नहीं करना चाहिए मौत का इंतज़ार।


3

क्यों नहीं हो सकता है परमेश्वर से इंसान वफ़ादार,

जिसने त्याग दिया ख़ुद को उनके लिए?

क्यों नहीं कर सकता है उस परमेश्वर से सहयोग इंसान,

जो उसके लिए है समर्पित अपने दिल और दिमाग़ से?

क्यों नहीं इंसान कर सकता है,

अपने कर्तव्य पूरे परमेश्वर के प्रबंधन के लिए,

जबकि परमेश्वर करता है अपना काम मानव जाति के लिए?

परमेश्वर का काम इतना आगे बढ़ चुका है,

तुम लोग देखते हो, फिर भी कार्य नहीं करते,

सुनते हो, फिर भी हिलते नहीं हो।

क्या ऐसे लोग विनाश की वस्तु नहीं हैं?

परमेश्वर ने इंसान को अपना, सब कुछ समर्पित कर दिया,

तो क्यों ईमानदारी से इंसान अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर सकता?

परमेश्वर का काम है, उसकी पहली प्राथमिकता,

उसका प्रबंधन कार्य है सबसे ज़्यादा ज़रूरी।

इंसान के लिए, उसकी पहली प्राथमिकता है

परमेश्वर के वचनों का अभ्यास,

परमेश्वर की आवश्यकताओं को पूरा करना।

यही है बात जो तुम सबको समझनी।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास से रूपांतरित

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