82 मैं परमेश्वर को प्रेम करना चाहता हूँ
1
उन सभी सत्यों से जो तुमने अभिव्यक्त किए हैं,
मैंने देखा है कि ईश्वर प्रेम है।
तुम सदैव मेरे प्यारे प्रियतम हो,
मैं बहुत चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ रहूँ।
मैं सदैव तुम्हारी इच्छा की परवाह करना चाहता हूँ और तुम्हारा विश्वास-पात्र बनना चाहता हूँ।
हमारे बीच मैं कोई दूरी नहीं चाहता
और सदा तुम्हारे करीब आना चाहता हूँ।
2
जबसे पहली बार तुम्हारी आवाज़ सुनी है, मैं जीवन भर के लिए तुम्हें भूल न सकूँगा।
तुम्हारी आवाज़, ओह, कितनी अच्छी है और तुम्हारे वचन तेजस्वी और शक्तिशाली हैं।
हर वचन जिसे तुम कहते हो, सत्य है और मुझे जीवन में उन वचनों की ज़रुरत है।
तुम्हारे वचनों ने मेरे हृदय को आकर्षित किया है,
तुम्हारा अनुसरण करने को मैंने सब कुछ छोड़ दिया है।
तुम जो भी कहते या करते हो, वह प्रेम है, यह सब मुझे शुद्ध करने और बचाने के लिए है।
मैं तुम्हारे प्रेम की धूप का आनंद लेते हुए मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ, मैं तुमसे प्रेम करना चाहता हूँ, आगे निःसंकोच बढ़ता ही जाता हूँ।
तुम मनुष्य के प्रेम के बहुत हक़दार हो; तुम्हारा प्रेम इतना गहरा है कि मनुष्य इसे नाप नहीं पाता है।
मैं बहुत समीप से तुम्हारा अनुसरण करता हूँ, बस तेरे प्रेम की गवाही देने के लिए, तेरे प्रेम की गवाही देने के लिए।
3
मैं समझ गया हूँ कि तुम्हारे वचन ही सत्य हैं;
मैंने देखा है तुम्हारा स्वभाव बहुत आदरणीय है।
तुम्हारा पवित्र प्रेम प्रशंसा जगाता है; हम तुम्हारी धर्मिता के लिए तुम्हारी स्तुति करते हैं।
मैं भ्रष्टता से भरा हुआ हूँ और मैं तुमसे प्रेम करना चाहता हूँ, पर खुद पर मेरा वश नहीं है।
न्याय, परीक्षणों और शुद्धिकरण से होकर, मैंने तुम्हारे उदार इरादों को समझा है।
तुम जो भी कहते या करते हो, वह प्रेम है, यह सब मुझे शुद्ध करने और बचाने के लिए है।
मैं तुम्हारे प्रेम की धूप का आनंद लेते हुए मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ, मैं तुमसे प्रेम करना चाहता हूँ, आगे निःसंकोच बढ़ता ही जाता हूँ।
तुम मनुष्य के प्रेम के बहुत हक़दार हो; तुम्हारा प्रेम इतना गहरा है कि मनुष्य इसे नाप नहीं पाता है।
मैं बहुत समीप से तुम्हारा अनुसरण करता हूँ, बस तेरे प्रेम की गवाही देने के लिए, तेरे प्रेम की गवाही देने के लिए।
4
जब मैं कष्ट में होता हूँ तुम्हारे वचन मुझे आराम देते हैं;जब मैं असफल रहता हूँ और ठोकर खाता हूँ,
तुम मुझे उठाते हो।
तुम मुझे उठाते हो।
तुम मुझे उठाते हो।
तुमने मुझे कभी नहीं त्यागा है, तुम हमेशा मेरी परवाह और रक्षा करते रहे हो।
तुम मुझे उठाते हो।
तुम मुझे उठाते हो।
तुम मुझे उठाते हो।
तुम जो भी कहते या करते हो, वह प्रेम है, यह सब मुझे शुद्ध करने और बचाने के लिए है।
मैं तुम्हारे प्रेम की धूप का आनंद लेते हुए मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ, मैं तुमसे प्रेम करना चाहता हूँ, आगे निःसंकोच बढ़ता ही जाता हूँ।
तुम मनुष्य के प्रेम के बहुत हक़दार हो; तुम्हारा प्रेम इतना गहरा है कि मनुष्य इसे नाप नहीं पाता है।
मैं बहुत समीप से तुम्हारा अनुसरण करता हूँ, बस तेरे प्रेम की गवाही देने के लिए, तेरे प्रेम की गवाही देने के लिए।