205 बेड़ियाँ
1
मैं लोगों के दिल में अपने रुतबे की बड़ी परवाह करता हूँ।
मुझे यह पसंद है कि लोग मुझे सराहें, मेरा ख़ूब सम्मान करें।
मैं अपमान सहता हूँ, सिर्फ़ खुद को आगे बढ़ाने और दूसरों पर प्रभुत्व रखने के लिए कड़ी मेहनत करता हूँ।
यही बात मेरी बेड़ी बन गई है, मुझे हमेशा बंधन में रखती है।
2
मैं बरसों परमेश्वर में विश्वास रखा है, लेकिन फिर भी मैं दूसरों पर हावी होने का प्रयास करता हूँ और मुझे दिखावा करना पसंद है।
घमंड से भरकर, दूसरों को फँसाने और धोखा देने के लिए आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रचार करता हूँ।
मेरे जैसे पाखंडी ने बहुत पहले ही परमेश्वर के स्वभाव का अपमान कर दिया, परमेश्वर को मुझसे नफ़रत थी, उसने मुझे नकार दिया।
मैं अंधेरे में जा गिरा, मैंने शोहरत और किस्मत से बंधे होने के दर्द को गहराई से अनुभव किया।
3
परमेश्वर के वचन मेरे दिल में पैनी दुधारी तलवार की तरह चुभते हैं,
मेरी प्रकृति को उजागर करते हैं और मेरी कुरूप आत्मा को काटकर खोल देते हैं।
मुझे देख रहा हूँ कि अहंकार, आत्माभिमान, और सत्ता की लिप्सा, मेरी प्रकृति बन गए हैं।
पद-प्रतिष्ठा की ख़ातिर छीना-झपटी में मैंने अपना ज़मीर और विवेक गँवा दिया है।
4
मसीह सर्वोच्च और महान है, फिर भी वह विनम्र है, कभी दिखावा नहीं करता।
मैं धूल हूँ, नीच और नगण्य हूँ, फिर भी मैं इतना दंभी और आत्माभिमानी हूँ।
यह जानने के बाद कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक, पवित्र और मनोहर है, मुझे शर्म से मुँह छिपाने के लिए कहीं जगह नहीं है।
मैं बहुत शिद्दत से महसूस करता हूँ कि मैं कितना भ्रष्ट हूँ, मेरे अंदर ज़रा-सी भी इंसानियत नहीं।
5
परमेश्वर के वचनों के न्याय का अनुभव करते हुए, मैं परमेश्वर के सामने गिरता हूँ।
मैं उसे सेवा प्रदान करने, और अपना कर्तव्य निभाने को संकल्पित हूँ, मेरे पैर पृथ्वी पर मजबूती से गड़े हैं।
देह-सुख का त्याग और सत्य का अभ्यास करके, मेरा शैतानी स्वभाव शुद्ध हो रहा है।
परमेश्वर के न्याय और ताड़ना ने मुझे बचा लिया, मैं परमेश्वर को धन्यवद देता हूँ और उसकी स्तुति करता हूँ!