133  परमेश्वर में आस्था की राह, है राह उससे प्यार करने की

परमेश्वर में आस्था की राह है राह उससे प्यार करने की।

यदि तुम ईश्वर में आस्था रखते हो, तुम्हें उसके प्रति प्रेम रखना चाहिए।


1

ईश्वर से प्रेम का अर्थ नहीं है केवल उसके प्रेम को चुकाना,

ना ही है करना प्रेम विवेक द्वारा उससे, बल्कि ईश्वर के प्रति है रखना शुद्ध प्रेम।

विवेक नहीं जगायेगा ईश्वर के लिए प्रेम।

जब तुम महसूस करो उसकी सुंदरता,

तुम्हारी रूह को छूएगा परमेश्वर, तुम्हारा विवेक अपना कार्य करेगा।

ईश्वर के लिए सच्चा प्यार आता है दिल की गहराई से।

ये वो प्यार है जिसका आधार मानव का ईश्वर का सच्चा ज्ञान है।


2

जब ईश्वर प्रेरित करे मानव के रूह को, जब उनके दिलों में ज्ञान की प्राप्ति हो,

तब ईश्वर को वे विवेक से प्यार कर सकते हैं अनुभव की प्राप्ति के बाद।

अपने विवेक से ईश्वर से प्रेम करना ग़लत नहीं है, पर है कम प्यार,

ये करता है ईश्वर के अनुग्रह के साथ इन्साफ़,

पर मानव के प्रवेश को प्रेरित नहीं करता।

ईश्वर के लिए सच्चा प्यार आता है दिल की गहराई से।

ये वो प्यार है जिसका आधार मानव का ईश्वर का सच्चा ज्ञान है।


3

जब लोगों को प्राप्त हो पवित्रात्मा का कार्य,

जब वे देखें और चखें ईश्वर का प्यार,

जब पास हो उनके परमेश्वर का ज्ञान,

तब उससे सच में प्यार किया जा सकता है।

जब वे देखें कि परमेश्वर है योग्य, मानव के प्यार के इतने क़ाबिल,

वो कितना प्यारा है ये देखकर, वे ईश्वर से सच में प्यार कर सकते हैं।

ईश्वर के लिए सच्चा प्यार आता है दिल की गहराई से।

ये वो प्यार है जिसका आधार मानव का ईश्वर का सच्चा ज्ञान है।


4

जो परमेश्वर को समझते नहीं, वे सिर्फ़ ईश्वर को अपनी धारणा और

पसंद के आधार पर प्रेम करते हैं; वो प्यार दिल से नहीं, वो झूठा है।

परमेश्वर को जो समझ जाए एक दफ़ा,

दर्शाता है कि उसका दिल है ईश्वर की ओर।

उसके दिल में जो प्यार है, वो सच्चा, स्वाभाविक है।

केवल ऐसा ही व्यक्ति है जिसके दिल में परमेश्वर है।

ईश्वर के लिए सच्चा प्यार आता है दिल की गहराई से।

ये वो प्यार है जिसका आधार मानव का ईश्वर का सच्चा ज्ञान है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम स्वाभाविक है से रूपांतरित

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