207  केवल ईश्वर को जानकर ही इंसान ईश्वर से प्रेम कर सकता है

1

ज्ञान ईश्वर का हासिल होता है ईश-कार्य के समापन पर;

यही है अंतिम अपेक्षा जो ईश्वर रखता मानव से।

करता है वो ऐसा अपनी अंतिम गवाही के वास्ते।

ताकि तुम अंतत: उसकी ओर मुड़ो, करता है वो यह काम इसलिये।

सच्चा विश्वास रख सकते तुम बस जानकर ईश्वर को,

बस जानकर ही ईश्वर को मान सकते तुम, उसकी आज्ञा, उसका भय।

वो जो जानें नहीं ईश्वर को

वो रख नहीं सकते आदर और आज्ञाकारिता ईश्वर के प्रति।

ईश्वर से प्रेम कर सकता इंसान, ईश्वर को जान कर।

और पड़ता न कोई फर्क, वो क्या और कैसे पाना चाहे,

उसे ईश-ज्ञान पाने में सक्षम होना चाहिए।

इस तरह कर सकता इंसान, तृप्त ईश्वर के दिल को, ईश्वर के दिल को।


2

ईश्वर को जानने में शामिल है जानना उसका स्वभाव,

समझना ईश्वर की इच्छा और उसके अस्तित्व को।

जो भी पहलू जानोगे तुम, चुकानी होगी तुम्हें उसकी कीमत,

तुम में होनी चाहिए इच्छा आज्ञापालन की,

वरना अंत तक अनुसरण न कर पाओगे तुम।

ईश्वर के कार्य हैं इंसानी अवधारणाओ से परे।

मुश्किल है जानना इंसान के लिये ईश्वर क्या है क्या कहता और करता है।

चाहो ईश्वर का अनुसरण करना, पर करते ना उसकी आज्ञा का पालन,

कर पाओगे तुम ना हासिल फिर, कुछ भी।

ईश्वर से प्रेम कर सकता इंसान, ईश्वर को जान कर।

और पड़ता न कोई फर्क, वो क्या और कैसे पाना चाहे,

उसे ईश-ज्ञान पाने में सक्षम होना चाहिए।

इस तरह कर सकता इंसान, तृप्त ईश्वर के दिल को, ईश्वर के दिल को।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं से रूपांतरित

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