382  सफलता या विफलता मनुष्य की कोशिश पर निर्भर है

1

परमेश्वर का प्राणी होने के नाते, इंसान को अपना फ़र्ज़ निभाना चाहिए,

बिना किसी विकल्प के परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए,

क्योंकि परमेश्वर इंसान के प्रेम के लायक है।

जो परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं,

उन्हें अपना निजी फ़ायदा नहीं देखना चाहिए,

या निजी माँगें नहीं रखनी चाहिए, यही अनुसरण का सही तरीका है।

अगर तुम सत्य खोजते हो, अगर तुम सत्य पर अमल करते हो,

अगर तुम्हारे स्वभाव में बदलाव आता है,

तो जिस पर चल रहे हो तुम, वो रास्ता सही है।


तुम पूर्ण बनाए जाओगे या हटाए जाओगे, ये तुम्हारे अनुसरण पर निर्भर है।

तुम्हारी सफलता-असफलता, तुम्हारे मार्ग पर निर्भर है।


2

अगर तुम देह-सुख के आशीष चाहते हो,

अपनी धारणाओं के सत्य पर अमल करते हो,

अपना स्वभाव नहीं बदलते हो,

देहधारी परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं करते हो,

अभी भी तुम अस्पष्टता में रहते हो,

तो तुम्हारी खोज तुम्हें नरक में ले जाएगी,

क्योंकि जिस मार्ग तुम चल रहे हो, वो यकीनन नाकाम होगा।


तुम पूर्ण बनाए जाओगे या हटाए जाओगे, ये तुम्हारे अनुसरण पर निर्भर है।

तुम्हारी सफलता-असफलता, तुम्हारे मार्ग पर निर्भर है।

तुम्हारे मार्ग पर निर्भर है।

तुम पूर्ण बनाए जाओगे या हटाए जाओगे, ये तुम्हारे अनुसरण पर निर्भर है।

तुम्हारी सफलता-असफलता, तुम्हारे मार्ग पर निर्भर है।

तुम्हारे मार्ग पर निर्भर है। तुम्हारे मार्ग पर निर्भर है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है से रूपांतरित

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