505  परमेश्वर उन्हीं की प्रशंसा करता है जो ईमानदारी से मसीह की सेवा करते हैं

1

ईश्वर तुम सबसे हर्षित हो, ये तुम चाहो,

फिर भी तुम लोग उससे दूर हो, ऐसा क्यों?

तुम लोग उसकी काट-छाँट को,

योजनाओं को नहीं, उसके वचन को स्वीकारते हो,

उसमें तुम्हारी पूरी आस्था नहीं, तो फिर यहाँ, मामला क्या है?

तुम्हारी आस्था ऐसा बीज है जो कभी उगेगा नहीं,

क्योंकि तुम्हारी आस्था ने न सत्य दिया, न जीवन तुम्हें,

बस दिया है झूठा पोषण और सपने तुम्हें।

तुम लोग स्वर्ग के ईश्वर को मानते हो, धरती के ईश्वर को नहीं,

मगर ईश्वर तुम्हारे इस विचार से सहमत नहीं।


ईश्वर तारीफ करता उनकी जो धरती के ईश्वर की सेवा करते,

उनकी नहीं जो धरती पर मसीह को नहीं स्वीकारते।

वे स्वर्ग के ईश्वर से कितनी भी वफ़ा करें,

जब ईश्वर दुष्टों को सज़ा देगा, तो वे बचेंगे नहीं।


2

तुम्हारी ईश्वर-आस्था का लक्ष्य आशा और पोषण है, सत्य और जीवन नहीं।

ईश्वर से अनुग्रह चाहे तुम्हारी निर्लज्ज आस्था,

इसे बिल्कुल न माना जा सके सच्ची आस्था।

तो कैसे देगी फल ऐसी आस्था?

तुम्हारी ईश्वर-आस्था का एक ही लक्ष्य है,

अपने मकसद के लिए ईश्वर का इस्तेमाल करना।

क्या ये ईश्वर के स्वभाव का अपमान नहीं?

तुम लोग स्वर्ग के ईश्वर को मानते हो, धरती के ईश्वर को नहीं,

मगर ईश्वर तुम्हारे इस विचार से सहमत नहीं।


ईश्वर तारीफ करता उनकी जो धरती के ईश्वर की सेवा करते,

उनकी नहीं जो धरती पर मसीह को नहीं स्वीकारते।

वे स्वर्ग के ईश्वर से कितनी भी वफ़ा करें,

जब ईश्वर दुष्टों को सज़ा देगा, तो वे बचेंगे नहीं।

ईश्वर-विरोधी हैं वे दुष्ट, हुक्म मानते नहीं मसीह का,

और वे भी, जो न जानते, न मानते मसीह को।


ईश्वर तारीफ करता उनकी जो धरती के ईश्वर की सेवा करते,

उनकी नहीं जो धरती पर मसीह को नहीं स्वीकारते।

वे स्वर्ग के ईश्वर से कितनी भी वफ़ा करें,

जब ईश्वर दुष्टों को सज़ा देगा, तो वे बचेंगे नहीं।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें से रूपांतरित

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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