618  परमेश्वर बचाना चाहता है जिस मानवजाति को, सर्वोपरि है वह उसके हृदय में

1  परमेश्वर अपने मानवजाति के प्रबंधन और उद्धार की इस घटना को किसी भी अन्य चीज से ज़्यादा महत्वपूर्ण समझता है। वह इन चीजों को केवल अपने मस्तिष्क से नहीं करता, केवल अपने वचनों से नहीं करता और निश्चित रूप से अनौपचारिक तरीके के साथ नहीं करता— वह इन चीजों को अपने इरादों से करता है और साथ ही उसके पास एक योजना होती है, एक लक्ष्य होता है और मानक होते हैं। यह देखा जा सकता है कि मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के कार्य की यह घटना परमेश्वर और मनुष्य दोनों के लिए बड़ा महत्व रखती है।

2  चाहे काम कितना भी कठिन हो, चाहे उसमें कितनी भी बड़ी अड़चनें हों, मनुष्य चाहे कितने भी दुर्बल हों या मानवजाति की विद्रोहशीलता चाहे कितनी भी गहन हो, इनमें से कुछ भी परमेश्वर के लिए कठिन नहीं हैं। परमेश्वर अपने आप को व्यस्त रखता है, अपने दिल का खून खपा रहा है और वह जिस कार्य को कार्यान्वित करना चाहता है उसका प्रबंधन कर रहा है; वह हर चीज की व्यवस्था भी कर रहा है जिन लोगों पर वह कार्य करना और जो कार्य करना चाहता है, उन सब पर संप्रभु है—यह सब कुछ अभूतपूर्व है। यह पहली बार है जब परमेश्वर ने मानवजाति का प्रबंधन करने और उसे बचाने के लिए इस प्रमुख परियोजना को पूरा करने की खातिर इन तरीकों का उपयोग किया है और इतनी बड़ी कीमत चुकाई है।

3  यह सारा कार्य करते समय परमेश्वर थोड़ा-थोड़ा करके बिना किसी लाग-लपेट के मानवजाति के लिए अपने दिल के खून को, जो उसके पास है और जो वह स्वयं है, अपनी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को और अपने स्वभाव के हर पहलू को व्यक्त और जारी कर रहा है। इन तरीकों की अभिव्यक्ति और विमोचन अभूतपूर्व है इसलिए पूरे ब्रह्मांड में, उन लोगों को छोड़कर जिन्हें प्रबंधित करना और बचाना परमेश्वर का लक्ष्य है, कभी कोई प्राणी परमेश्वर के इतने करीब नहीं रहा है, जिसका उसके साथ इतना अंतरंग संबंध हो।

4  परमेश्वर के हृदय में वह मानवजाति सर्वोपरि है, जिसका वह प्रबंधन करना और बचाना चाहता है, और वह इस मानवजाति को अन्य सभी से अधिक महत्व देता है। भले ही उसने इस मानवजाति के लिए एक बड़ी कीमत चुकाई है और भले ही यह उसे लगातार ठेस पहुँचाती है और उससे विद्रोह करती है, फिर भी उसे कोई शिकायत या पछतावा नहीं है, वह अभी भी उसे छोड़ता नहीं है या उस पर हार नहीं मानता है और वह बिना रुके अपना कार्य करना जारी रखता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह जानता है कि देर-सबेर लोग उसके वचनों की पुकार से जाग जाएँगे, उसके वचनों से द्रवित हो जाएँगे, पहचान जाएँगे कि वही सृष्टिकर्ता है और फिर उसकी ओर लौट आएँगे...।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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