एक अलग तरह का प्रेम
2011 में संयोग से, मैं चीन से ब्राजील आया था। मैं पहुँचा ही था कि मैं ताज़ा, नए अनुभवों से विह्वल हो गया और जिज्ञासा से भर उठा। भविष्य से मुझे बड़ी आशा थी। लेकिन कुछ समय के बाद, इस ताज़ा और नई भावना का स्थान तुरंत ही अकेलेपन और एक दूर-दराज़ परदेशी भूमि में होने की पीड़ा ने ले लिया। हर दिन मैं अकेले घर वापस आता, अकेले ही भोजन करता, अपनी चारदीवारी देखता रहता, कोई भी न था जिससे मैं बात कर सकता था। मैं बहुत तन्हा महसूस करता था, अक्सर अकेले में रोया करता था। जब मुझे पीड़ा और बेबसी का सबसे अधिक एहसास हो रहा था, तो प्रभु यीशु मुझे एक दोस्त के माध्यम से एक सभा में ले आया। प्रभु के वचन को पढ़ने, स्तुति-गीतों को गाने, और सभाओं में प्रार्थना करने के माध्यम से मेरे अकेले दिल ने प्रभु की सांत्वना पाई। मैंने बाइबल से सीखा कि स्वर्ग, पृथ्वी, और सब कुछ परमेश्वर द्वारा बनाया गया था, और मनुष्य भी परमेश्वर की रचना है। मुझे ये भी पता चला कि प्रभु यीशु को मानव जाति के छुटकारे की खातिर क्रूस पर चढ़ाया गया था, और यह प्रभु यीशु ही था जिसने हमें पाप से छुड़ाया था, और वह मानव जाति का एकमात्र मुक्तिदाता है। प्रभु के उद्धार के सामने आने से, जो कि अन्य सभी की तुलना में बढ़कर है, मैं गहराई से द्रवित हो गया और मैंने अपने बाक़ी के जीवन में प्रभु का अनुसरण करने का निश्चय किया। इसकी वजह से थैंक्सगिविंग के दिन मुझे बपतिस्मा मिला और मैं औपचारिक रूप से एक ईसाई बन गया। चूँकि मुझे स्तुतिगीत गाना पसंद था, विशेष रूप से वो गीत जो परमेश्वर की प्रशंसा में हों, इसलिए बपतिस्मा लेने के बाद मैं गाने-बजानेवालों के समूह में शामिल हो कर कलीसिया के कार्यों में सक्रियता से शामिल हो गया। परमेश्वर के मार्गदर्शन और आशीर्वाद से, मैं शांति और खुशी में रहता था। जब भी मैं एक सभा में जाता, या उपासना में परमेश्वर की प्रशंसा करता, तो मैं ऊर्जा से भरपूर महसूस किया करता था।
लेकिन अच्छी स्थिति हमेशा नहीं बनी रहती। जैसे-जैसे मैं कलीसिया की सेवा के पदों में प्रवेश करने लगा, मैंने धीरे-धीरे समझ आया कि बाहर से कलीसिया के भाइयों और बहनों को देखकर लगता है कि वे एक दूसरे की चिंता करते हैं और देखभाल करते हैं। ऐसा लगता था कि सभी की आपस में अच्छी बनती है, लेकिन उनका हर काम और हर शब्द उनके अपने हित के लिए होता था। कलीसिया की सेवा में काम करते समय वे कोई भी व्यक्तिगत नुकसान उठाना नहीं चाहते थे, और वे अक्सर दूसरों की पीठ पीछे बकवाद किया करते थे कि कौन अधिक काम कर रहा था और कौन कम। यहाँ तक कि पादरी भी अत्यंत दम्भी था। वह लोगों से उनके दान की राशि के आधार पर व्यवहार करता था, और प्रचार के समय हमेशा दान के बारे में विशेष रूप से बात करता था। हर बार जब भी पादरी किसी सभा में आता, तो वह सबसे ज़्यादा ज़ोर इस बात पर दिया करता था कि लोग दान दे रहे थे या नहीं, और उन्होंने कितना दिया था, वह भाई-बहनों के जीवन के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहता था। वह प्रेम की बातें किया करता था, लेकिन मैंने उसे हक़ीक़त में कोई ठोस कदम उठाते नहीं देखा। जब भी किसी भाई या बहन पर कोई कठिनाई आ जाती, तो पादरी उनकी मदद नहीं करता था, न ही उन्हें सहारा देता था। इससे भी ज़्यादा घृणित बात तो ये थी कि वह फिर भी लोगों की ही आलोचना किया करता था और वह उन शक्तिहीन और निर्धन भाइयों और बहनों को तुच्छ समझता था। जब मैंने कलीसिया के इस माहौल को देखा, तो मैं निराश हो गया, साथ ही भ्रमित भी हो गया: कलीसिया किस तरह इतनी बदल गई कि इसमें और समाज में कोई अंतर ही न रहा? धीरे-धीरे, मैंने उस प्यार और विश्वास को खो दिया जो शुरुआत में मेरे पास हुआ करता था, और रविवार को कलीसिया जाते वक़्त मैंने सक्रियता से भाग लेना बंद कर दिया। मैं गाना भी नहीं चाहता था। हर हफ्ते जब मैं कलीसिया जाता था, तब या तो मैं बाहर खड़ा कॉफी पीता रहता, या बेंच पर झपकी लिया करता था। जब उपदेश पूरा हो जाता, तो मैं अपना दान देकर बाहर निकल जाता था। मेरे दिल में हमेशा दुःख और विवशता की भावना रहती थी।
अगस्त 2016 की एक रविवार को, मैं बहन ली मिन से पार्क में मिला। वो अमेरिका से आई थी और कलीसिया की दो बहनों गाओ सियाइंग और ल्यू फांग की सहपाठी थी। हम सभी प्रभु में विश्वास करते थे। घास के मैदान पर बैठकर हम बातचीत करने लगे। हमने बहुत सी बातें कीं, अंत में हमारी बात कलीसिया की परिस्थिति के विषय पर आ पहुंची, और मैंने कलीसिया में जो कुछ भी देखा था, वह सब उन्हें बताया। इसे सुनकर बहन ली मिन ने विचार करते हुए सहमति में अपना सिर हिलाया और कहा: "आजकल, न केवल आपकी कलीसिया ऐसी बन गई है, बल्कि पूरी धार्मिक दुनिया ने पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है। वे सब अंधेरे और विनाश में गिर गए हैं। एक बार प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी: 'अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा पड़ जाएगा' (मत्ती 24:12)। अब हम अंत के दिनों के अंतिम पड़ाव में हैं, और धर्म में अराजकता हमेशा से कहीं अधिक बढ़ रही है। पादरी और एल्डर प्रभु के आदेशों का पालन नहीं करते हैं, वे प्रभु के मार्ग पर नहीं चलते हैं, और वे सोचते हैं कि पाप में जीना कोई बड़ी बात नहीं है। हम सभी जानते हैं कि कलीसिया का फलना-फूलना पवित्र आत्मा के कार्य का नतीजा होता है। आज, परमेश्वर पहले ही नया कार्य कर चुका है, और पवित्र आत्मा का कार्य लोगों के एक ऐसे समूह को स्थानांतरित हो गया है जो परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करते हैं और उसका अनुपालन करते हैं। धर्म से जुड़े पादरी और एल्डर अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की तलाश और जाँच करने में विश्वासियों का नेतृत्व नहीं करते हैं, बल्कि लोगों को परमेश्वर की ओर लौटने से रोकने के लिए सभी प्रकार की अफवाहों और गलत धारणाओं का प्रचार करके परमेश्वर के नए काम का विरोध और निंदा करते हैं। वे परमेश्वर की घृणा और अस्वीकृति पाते हैं, इसलिए पूरी धार्मिक दुनिया परमेश्वर के आशीर्वाद से वंचित है, इसने पूरी तरह से पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है, और प्रभु द्वारा दरकिनार कर हटा दी गई है। इससे कलीसिया अधिक से अधिक उजाड़ और अंधकारमय हो गयी है। यह उस समय की तरह है जब प्रभु यीशु ने कार्य करने के लिए देहधारण किया था। प्रभु यीशु के कार्य ने अनुग्रह के युग का प्रारंभ किया और व्यवस्था के युग को समाप्त कर दिया था। जिन लोगों ने प्रभु यीशु का अनुसरण किया, जिन्होंने परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार किया और उसका अनुपालन किया, उन्होंने पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त किया, जबकि पवित्र आत्मा ने उन लोगों के बीच कार्य नहीं किया जिन्होंने प्रभु यीशु को स्वीकार नहीं किया और जो तब भी मंदिर में बने रहे। तो वह मंदिर जो कभी परमेश्वर की महिमा से भरपूर था और जहाँ विश्वासी परमेश्वर की उपासना करते थे, एक व्यापार करने की जगह और चोरों का अड्डा बन गया। कहने का अर्थ यह है कि, कलीसिया की उजाड़ता के दो कारण हैं: पहला कारण है पादरियों और एल्डरों का परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन न करना, परमेश्वर के वचनों का अभ्यास न करना, और हमेशा पाप और बुरे कर्म करना है। दूसरा कारण यह है कि परमेश्वर नया कार्य कर रहा है, पवित्र आत्मा का कार्य स्थानांतरित हो गया है, और लोग परमेश्वर के कदमों से ताल नहीं बैठा पा रहे हैं। बहरहाल, कलीसिया की उजाड़ता में परमेश्वर की इच्छा मौजूद है, और एक सत्य है जिसकी तलाश की जानी चाहिए। कलीसिया की उजाड़ता के माध्यम से, परमेश्वर उन सभी लोगों को जो सच्चे दिल से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य के लिए तरसते हैं, प्रेरित करता है कि वे धर्म को पीछे छोड़ दें, ताकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की खोज करें, परमेश्वर के से ताल मिला पाएँ और परमेश्वर के वर्तमान कार्य और उद्धार को प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की उपस्थिति में आ जाएँ।"
बहन ली ने जो सहभागिता की, उसे सुनकर मैंने सहमति प्रकट की और कहा: "तुमने जो कहा वह सही है। यह निश्चित रूप से ठीक वैसा ही है जैसा कि तुम कह रही हो। मैं कभी इस समस्या को समझ नहीं पाया था। कलीसिया मूल रूप से परमेश्वर की उपासना करने की जगह थी, लेकिन कलीसिया और बाहर के समाज के बीच अब कोई अंतर नहीं रहा है। इसके अलावा, पादरी जो उपदेश देते हैं, उसमें कोई नया प्रकाश नहीं है, न ही उसे सुनने में कोई आनंद है, और लोग अब अंधेरे में रहते हैं। अब पता चला, कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हम अभी तक परमेश्वर के नए कार्य से ताल नहीं बैठा पाये हैं, तो अब हमें परमेश्वर के नए कार्य से कदम मिलाने के लिए क्या करना चाहिए?" बहन ली ने कहा: "प्रभु यीशु बहुत पहले ही लौट आया है। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से सत्य को व्यक्त करने और मानवजाति के न्याय और शुद्धिकरण के कार्य को करने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण किया है। हमें परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य से ताल मिलाना है और परमेश्वर के वचन के न्याय को स्वीकार करना है, और तब ही हम पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल कर सकते हैं।" जब मैंने सुना कि प्रभु यीशु पहले से ही न्याय के कार्य का एक चरण पूरा करने के लिए लौट चुका है, मैं आश्चर्यचकित हो गया। मैंने सोचा: "क्या न्याय किसी व्यक्ति को दोषी घोषित करने के बाद, दंडित करना नहीं है? परमेश्वर अंत के दिनों में उन लोगों का न्याय करने के लिए आता है जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं, और हम जो प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं, पहले से ही हमारे पापों से छूट चुके हैं और उद्धार का अनुग्रह पा चुके हैं। हमें परमेश्वर के न्याय को प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जब प्रभु आएगा तो वह हमें सीधे स्वर्गिक राज्य में ले जाएगा। वह हमारा न्याय करने के लिए कैसे आ सकता है?" उस विचार के साथ, मैंने अपनी राय व्यक्त की। इस पर बहन ल्यू फैंग ने कहा, "भाई, मैं बहन गाओ के साथ एक सप्ताह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जाँच कर रही हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पढ़कर, हमने यह पहचान लिया है कि यह परमेश्वर की आवाज़ है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटा हुआ प्रभु यीशु है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन पढ़िये, और आप समझ जाएंगे। प्रभु यीशु के न्याय के कार्य को करने के लिए लौटने का कारण यह है कि, हम जो प्रभु में विश्वास करते हैं, हमारे पापों के लिए क्षमा तो कर दिए गए हैं, लेकिन हम सब के सब हमेशा पाप के बीच जीते हैं जिससे हम खुद को मुक्त नहीं कर सकते। हमारे पास अपने आपको पाप के बंधन और नियंत्रण से मुक्त करने का कोई तरीक़ा नहीं है, और वास्तव में हमें आवश्यकता है कि हमारा न्याय और शुद्धिकरण करने के लिए, हमारी पापी प्रकृति और भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को निर्मूल करने के लिए परमेश्वर सत्य को व्यक्त करे। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य एक नया और अधिक उत्कृष्ट काम है, जो प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर बना है। यह वचनों के न्याय के माध्यम से इंसानों को पूरी तरह शुद्ध करता और बचाता है, और लोगों को एक अद्भुत निवास स्थान पर ले आता है।" इसके बाद, उन्होंने धैर्यपूर्वक मेरे साथ और कई सत्यों के बारे में सहभागिता की। लेकिन उनके कुछ भी कहने पर मैं इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं कर सका कि प्रभु उन लोगों का न्याय करने के लिए लौटा था जो उस पर विश्वास करते हैं। जब मैं अंदर के असमंजस से जूझ रहा था, मैं मन-ही-मन परेशान भी था: बहनें गाओ और ल्यू बहुत निष्ठावान विश्वासी थीं, और हर कोई प्रभु के प्रति उनके विश्वास और प्यार को मानता था, तो वे कैसे यह विश्वास कर सकती थीं कि प्रभु यीशु हम लोगों का, जो उस पर विश्वास करते हैं, उनका न्याय करने के लिए लौटा है, और वह हमें सीधे स्वर्ग के राज्य में नहीं उठाएगा? क्या यह हो सकता है कि इसमें कोई सत्य या रहस्य छिपा है जिसे मैं नहीं जानता?
जब मैं यह सोच रहा था, बहन ली मिन ने एक पुस्तक निकाली और मुझसे आग्रहपूर्वक कहा: "भाई, प्रभु यीशु ने कहा था: 'धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है' (मत्ती 5:3)। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दबाज़ी मत कीजिये, ठीक है? आइये, पहले हम देखें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन परमेश्वर की आवाज़ है या नहीं, और क्या यह हमारे जीवन का पोषण कर सकता है, क्या वह हमें शुद्ध कर सकता और बचा सकता है, और तब हम जान लेंगे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु है या नहीं। मुझे विश्वास है कि परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज़ सुनेंगी, इसलिए आइए, हम परमेश्वर के वचन को एक साथ मिलकर पढ़ें!" मैं अपने दिल में थोड़ा अनिच्छुक था और मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मेरे रवैये को देखकर वे तीन बहनें कुछ निराश हो गईं। बहन ल्यू ने अचानक सुझाव दिया: "आइए, हम सबसे पहले प्रार्थना करें, फिर परमेश्वर के वचन को पढ़ें!" यह कहकर तीनों बहनें प्रार्थना करने लगीं, मेरे पास उनका साथ देने के अलावा कोई चारा नहीं था। फिर भी, जब मैं प्रार्थना कर रहा था, मैं मुश्किल से अपने दिल को शांत कर पा रहा था। हालाँकि बहनें जिस बारे में प्रार्थना कर रही थीं, उसे मैं सुन नहीं पा रहा था, लेकिन उनके व्यवहार ने मुझे द्रवित कर दिया। परमेश्वर के प्रति उनका रवैया बहुत नेक था, और वे हर बात में परमेश्वर की इच्छा की खोज करती थीं। उन्हें आशा थी कि मैं अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की जाँच करूँगा, और यह आशा भी परमेश्वर के प्रति प्रेम से ही उपजी थी। प्रार्थना के बाद, बहन ली ने मुझे एक किताब दी और गंभीरता से मुझसे कहा: "सच्चे मार्ग की खोजबीन पर एक सौ प्रश्न और उत्तर" नाम की इस पुस्तक के अधिकांश प्रश्न सभी संप्रदायों के लोगों द्वारा पूछे गए हैं। प्रत्येक प्रश्न के उत्तर को समझाने के लिए, परमेश्वर के वचनों में से संबंधित परिच्छेद चुने गए हैं। इसे एक बार देखिए।" मैं पुस्तक लेना नहीं चाहता था, लेकिन यह देखते हुए कि उसने कितनी ईमानदारी से अनुरोध किया था, मैंने फिर से बहन गाओ और बहन ल्यू की ओर देखा, यह देखा कि उन्हें कितनी आशा थी कि मैं जाँच और खोज करूँगा। मैंने सोचा कि प्रभु के आगमन का स्वागत करना बहुत महत्वपूर्ण है, और मुझे इसके साथ लापरवाही से व्यवहार नहीं करना चाहिए। तब मैंने पुस्तक ले ली और कहा: "ठीक है, मैं इस पुस्तक को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ। आओ, आज के लिए हम यहीं पर रुकें। मैं पहले किताब पढूँगा, और फिर हम बात करेंगे।"
घर वापस आने के बाद, मैंने पुस्तक को एक तरफ़ रख दिया। मेरा दिमाग उलझन में था। मैंने बहन ली मिन की सहभागिता के बारे में सोचा और मुझे लगा कि यह सब स्पष्ट और पारदर्शी था। उसका कहा गया हर वाक्य एक तथ्य था, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि प्रभु अपनी वापसी पर न्याय का कार्य क्यों करेगा? ध्यान लगाकर सोचने के बाद भी मुझे यह समझ में नहीं आया। लेकिन जहाँ तक प्रभु के दूसरे आगमन की बात थी, चूँकि मैंने अब इसके बारे में सुन लिया था, मैं आँखें मूंदकर फैसले नहीं ले सकता था और अपने भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं रह सकता था। मैंने सोचा कि क़िताब पर एक नज़र डालना और कुछ विवेक पाना एक अच्छी बात होगी। और तब, मैंने उस पुस्तक को शुरू से अंत तक पूरी पढ़ने में छः दिन बिताये। मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने उन कई सत्यों और रहस्यों को प्रकट किया था जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं सुना था। इससे मुझे काफी मात्रा में प्रावधान हासिल हुआ, और जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा, तो मुझे यह भी लगा कि इन वचनों का स्वर प्रभु यीशु के स्वर जैसा ही था। इसमें अधिकार था और शक्ति थी मानो कि परमेश्वर स्वयं बोल रहा हो। इसलिए, पुस्तक पूरी पढ़ने के बाद, मैं बेहतर ढंग से समझना चाहता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा किया गया न्याय का कार्य किस बारे में था। मैंने स्पष्टीकरण पाने के लिए बहन गाओ से मिलने का फैसला किया।
अगले दिन, मैं बहन गाओ के घर गया, और वहाँ मेरी मुलाक़ात उसके कुछ दोस्तों से हुई। उन सभी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार किया था और एक दूसरे के साथ सहभागिता करने के लिए इकट्ठे हुए थे। हमने आपस में अभिवादन किया और बहन ली मिन ने मुद्दे की बात छेड़ते हुए मुझसे पूछा: "भाई, आपकी कौन सी अवधारणाएँ अभी भी बनी हुई हैं? परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य के कौन से पहलू आप अभी भी समझना चाहते हैं? हम मिलकर सहभागिता कर सकते हैं।" मैंने कहा: "आपने बताया था कि चूँकि अंत के दिनों में पवित्र आत्मा का कार्य आगे बढ़ गया है, इसलिए कलीसिया उजाड़ हो गयी है। मैं इसे स्वीकार कर सकता हूँ, लेकिन हम प्रभु के विश्वासियों के सारे पाप पहले से ही बरी किये गए हैं, और प्रभु हमें पापी के रूप में नहीं देखता है। तो परमेश्वर न्याय का कार्य करना क्यों चाहता है? क्या हम कार्य के इस चरण से गुज़रे बिना स्वर्गीय राज्य में नहीं उठ पाएँगे? जब परमेश्वर किसी व्यक्ति का न्याय करता है, तो क्या वह व्यक्ति पापी नहीं मान लिया जाता है? क्या हम सभी को दंडित किया जाना आवश्यक है? तब हम स्वर्गिक राज्य में कैसे उठाए जा सकते हैं?" बहन ली मिन ने कहा: "जहाँ तक अधिकतर लोगों की अवधारणाओं की बात है, प्रभु जिनका न्याय करने के लिए लौटा है वे वो अविश्वासी लोग हैं जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं। वे सोचते हैं, चूँकि परमेश्वर लोगों का न्याय करता है, तो उन लोगों को पापी घोषित कर दंडित किया जाता है। वे सोचते हैं कि जो लोग प्रभु में विश्वास करते हैं उनके पापों को मिटा दिया गया है और जब प्रभु आएगा, तो वह उन्हें सीधे स्वर्गिक राज्य में उठा लेगा, और निश्चय ही उनका न्याय नहीं करेगा। इसलिए वे अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। ऐसा करके वे पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा को गलत समझते हैं और यह दर्शाता है कि वे परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते हैं। दरअसल, अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का सत्य को व्यक्त करने का और मानव का न्याय तथा शुद्धिकरण करने का कार्य, विश्वासियों को स्वर्गिक राज्य में उठाने के लिए है। हम सब जानते हैं कि बाइबल कहती है: 'पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)। यह भविष्यवाणी हमें स्पष्ट रूप से बताती है कि अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का कार्य परमेश्वर के घर से शुरू होता है। अर्थात, यह उन लोगों के साथ शुरू होता है जो सच्चे दिल से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करते हैं। इसलिए, हम सोचते हैं कि प्रभु यीशु में विश्वास करने का अर्थ यह है कि हमें परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं करना पड़ेगा, लेकिन यह दृष्टिकोण गलत है। अंत के दिनों में, परमेश्वर उन सभी लोगों का न्याय करने के लिए अपने वचनों का उपयोग करता है जो उसके सिंहासन के सामने आते हैं, और वह इन लोगों को शुद्ध करता और बचाता है और आपदाओं से पहले, वह विजेताओं का एक समूह बनाता है। फिर जब बड़ी आपदाएं दुनिया पर आ पड़ती है, तो वह भले लोगों को पुरस्कृत और बुरों को दंडित करेगा। अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय का कार्य इसी तरह आगे बढ़ता है। अंत के दिनों में कोई भी परमेश्वर के न्याय के कार्य से बच नहीं सकता है, लेकिन जो लोग परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करते हैं और उसके न्याय का पालन करते हैं, उनके लिए यह शुद्धिकरण, उद्धार और पूर्णता है। वे लोग जो अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य से इनकार करते हैं और उसका विरोध करते हैं, भले ही वे परमेश्वर के वचन के न्याय से छिप सकते हैं, फिर भी वे अंत में बड़ी आपदाओं के न्याय से बच नहीं सकते हैं। यह एक तथ्य है! अंत के दिनों में परमेश्वर हमारा न्याय करना क्यों चाहता है, इसका कारण सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन में बहुत स्पष्ट रूप से बताया गया है। आइये हम परमेश्वर के वचन से एक अंश साथ में पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: 'तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अंत के दिनों के दौरान उतरेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे उतरेगा? तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ आरोहण चाहते हो—तुम्हें बहुत भाग्यशाली होना चाहिए! तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित करने और शुद्ध करने के कार्य को करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के अच्छे आशीषों को साझा करने के लिए अयोग्य होगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो' ("वचन देह में प्रकट होता है" में "उपाधियों और पहचान के सम्बन्ध में")। हम परमेश्वर के वचन से समझते हैं कि प्रभु यीशु में विश्वास करने से केवल हमारे पापों को क्षमा किया जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम पाप नहीं करते हैं या हम पापहीन हैं। वास्तव में, हम सभी पाप करने और फिर अपने पाप स्वीकार करने के दुष्चक्र में जीते हैं, और हमें अभी भी आवश्यकता है कि परमेश्वर वचन को अभिव्यक्त करने के द्वारा हमारा न्याय करे और हमें शुद्ध करे। एक बार जब हम शुद्ध हो जाएँगे, तो हम स्वर्गिक राज्य में उठाये जाने के योग्य होंगे। यह बाइबल में कहा गया है: 'इस कारण अपने को शुद्ध करके पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ' (लैव्यव्यवस्था 11:44)। 'उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। परमेश्वर शुद्ध और पवित्र है। अशुद्ध और भ्रष्ट लोग परमेश्वर के चेहरे को नहीं देख सकते हैं और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए अयोग्य हैं। प्रभु यीशु द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य ने हमें केवल हमारे पापों से मुक्त किया, लेकिन हमारे भ्रष्ट स्वभावों और पापपूर्ण प्रकृतियों से हमें मुक्त नहीं किया था। इसलिए हमारा अहंकार, दंभ, छल और धूर्तता, स्वार्थपरता और घिनौनापन, बुराई और लालच, सत्य के प्रति विरोध, अन्याय का आनंद लेना, और अन्य भ्रष्ट शैतानी स्वभाव अभी भी बने हुये हैं। ये भ्रष्ट स्वभाव ही वे स्रोत हैं जो हमें पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने के लिए प्रेरित करते हैं। यदि उन्हें हटाया नहीं जाता है, तो हम अक्सर पाप करेंगे, प्रसिद्धि और धन के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे, ईर्ष्या और झगड़ा करेंगे, झूठ बोलेंगे, धोखेबाज़ी करेंगे, खुद को बड़ा बनाएँगे, खुद की गवाही देंगे, इसी तरह के और भी बहुत-से काम करेंगे। खासकर जब परमेश्वर का कार्य हमारी अवधारणाओं के अनुरूप नहीं होता है, हम फिर भी अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा कर परमेश्वर का आकलन करते हैं, उससे इनकार करते, उस पर आरोप लगाते, एवं परमेश्वर के कार्य का विरोध करते हैं। परमेश्वर का विरोध करने वाले लोग कैसे स्वर्गिक राज्य में उठाए जा सकते हैं? परमेश्वर सत्य व्यक्त करता है और अंत के दिनों में न्याय का कार्य करता है, और ऐसा करने में उसका लक्ष्य हमारे भीतर रखे भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को शुद्ध करना, और साथ ही स्वर्गिक साम्राज्य में उठाए जाने के हमारे सपने को पूरा करना होता है। जब हम परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करते हैं और अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त हो जाते हैं, तो हम शुद्धिकरण प्राप्त करते हैं और बदल जाते हैं। हमारे पास परमेश्वर के वादे का वारिस होने और स्वर्गिक राज्य में परमेश्वर द्वारा लाये जाने की योग्यता होगी।"
बहन के द्वारा की गई सहभागिता और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को सुनने के बाद, मैंने सोचा: "जब कोई प्रभु में विश्वास करता है तो उसके पाप माफ़ कर दिये जाते हैं, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि अब वह पाप-कर्म नहीं करेगा। यह वास्तव में सच है! कलीसिया में सभी लोगों को लूँ तो, पादरी और एल्डरों से लेकर मुझ जैसे सभी तरह के साधारण सदस्यों तक, हर कोई दिन में पाप करने और रात में अपने पाप को स्वीकार करने की स्थिति में जीता है, कोई पाप के बंधन तथा नियंत्रण से बच नहीं सकता। ऐसा लगता है कि लोग निश्चित रूप से परमेश्वर के वचन के न्याय और शुद्धिकरण के बिना प्रभु के चेहरे को देखने में असमर्थ होंगे! ऐसे देखा जाए तो परमेश्वर का आना और इंसान के न्याय और शुद्धिकरण के कार्य को करना बिलकुल ज़रूरी है! मैं कभी यह मानता था कि यदि किसी को प्रभु यीशु में विश्वास है, तो उसका न्याय किया जाना ज़रूरी न है। मैंने सोचा कि प्रभु उन्हीं लोगों का न्याय करने आयेगा जो उस पर विश्वास नहीं करते हैं। अब मैं समझता हूँ कि यह अवधारणा परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं है, और यह एक गलत मान्यता है।" तब बहन गाओ ने मेरे लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा प्रस्तुत गायन और नृत्य का एक वीडियो चलाया, जिसे कनान की धरती पर खुशियाँ कहा जाता है: "मैं ईश्वर के परिवार में लौट आया, जोश और खुशियों से भरकर। नाज़ है सच्चे प्रभु जाना तुझे, दिल अपना मैंने किया तुझे अर्पण। सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य वचन कहता है, राज्य के युग मे हमें ले जाता है। उसके वचनों में है मिलती नयी राह, चलना जिस पर चाहिए हम सब को। स्वर्ग का सपना बना सच्चाई, ना अब कुछ खोजना हमको" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना)। पूरा गीत आनंदपूर्ण और दिल को छूने वाला था, तथा यह विशेष रूप से प्रेरणादायक था। मैंने देखा कि वीडियो में सभी भाई-बहनों के चेहरे खुशी से भरे हुए थे, हम भी गाए बिना नहीं रह सके। हम गाते-गाते नाचने भी लगे और हमारे दिल आनंद से भरपूर हो गए। मैंने देखा कि जिन भाइयों और बहनों के पास परमेश्वर के वचन का प्रावधान था, वे धन्य और प्रसन्न थे। हालाँकि वे परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से गुज़र चुके थे, उन्हें फिर भी कोई चिंता नहीं थी, बल्कि वे स्वाधीन, मुक्त, आनंदित और प्रसन्न थे। मैंने सोचा, धर्म में मेरा अपना विश्वास और उत्साह किस तरह गायब हो गया था, मुझे बस कलीसिया का विनाश और अंधेरा ही दिखाई देता था, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन पवित्र आत्मा के कार्य से भरपूर थे। उनकी सहभागिता में प्रकाश चमकता था, वे उत्साह के साथ परमेश्वर की प्रशंसा करते थे, और बड़े उत्साह और ऊर्जा के साथ परमेश्वर के प्रति गवाही दे रहे थे। आपस में तुलना करने पर ऐसा लग रहा था मानो वे बिल्कुल अलग दुनिया में जी रहे थे जो मेरी दुनिया से भिन्न थी। मुझे लगा जैसे मैं एक भटका हुआ अनाथ हूँ, जो घर लौट आया था और माँ के आलिंगन की ऊष्मा का आनंद ले रहा था। मैंने सोचा: यहाँ वास्तव में खोजने के लिए सत्य मौजूद है। मुझे अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के सत्य के बारे में भाइयों और बहनों की सहभागिता को ध्यान से सुनना चाहिए ताकि जब प्रभु लौटेगा, तो मैं स्वर्गिक साम्राज्य में उठाए जाने का अपना मौका नहीं खोऊंगा।
उस सहभागिता के बाद, बहन ली ने हमें परमेश्वर के वचन से दो और परिच्छेद पढ़कर सुनाए: "परमेश्वर के द्वारा मनुष्य की सिद्धता किसके द्वारा पूरी होती है? उसके धर्मी स्वभाव के द्वारा। परमेश्वर के स्वभाव में मुख्यतः धार्मिकता, क्रोध, भव्यता, न्याय और शाप शामिल है, और उसके द्वारा मनुष्य की सिद्धता प्राथमिक रूप से न्याय के द्वारा होती है। कुछ लोग नहीं समझते, और पूछते हैं कि क्यों परमेश्वर केवल न्याय और शाप के द्वारा ही मनुष्य को सिद्ध बना सकता है। वे कहते हैं, 'यदि परमेश्वर मनुष्य को शाप दे, तो क्या वह मर नहीं जाएगा? यदि परमेश्वर मनुष्य का न्याय करे, तो क्या वह दोषी नहीं ठहरेगा? तब वह कैसे सिद्ध बनाया जा सकता है?' ऐसे शब्द उन लोगों के होते हैं जो परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते। परमेश्वर मनुष्य की अवज्ञाकारिता को शापित करता है, और वह मनुष्य के पापों को न्याय देता है। यद्यपि वह बिना किसी संवेदना के कठोरता से बोलता है, फिर भी वह उन सबको प्रकट करता है जो मनुष्य के भीतर होता है, और इन कठोर वचनों के द्वारा वह उन सब बातों को प्रकट करता है जो मूलभूत रूप से मनुष्य के भीतर होती हैं, फिर भी ऐसे न्याय के द्वारा वह मनुष्य को शरीर के सार का गहरा ज्ञान प्रदान करता है, और इस प्रकार मनुष्य परमेश्वर के समक्ष आज्ञाकारिता के प्रति समर्पित होता है। मनुष्य का शरीर पाप का है, और शैतान का है, यह अवज्ञाकारी है, और परमेश्वर की ताड़ना का पात्र है—और इसलिए, मनुष्य को स्वयं का ज्ञान प्रदान करने के लिए परमेश्वर के न्याय के वचनों का उस पर पड़ना आवश्यक है और हर प्रकार का शोधन होना आवश्यक है; केवल तभी परमेश्वर का कार्य प्रभावशाली हो सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। "न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए समझ से परे हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा पूरे होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)।
बहन ली ने अपनी सहभागिता में हमें बताया, "शैतान के हमें भ्रष्ट करने के बाद, हम सभी शैतान के अधीन रहते थे और हम परमेश्वर का विरोध करने वाले पतित बन गए। परमेश्वर के धार्मिक और पवित्र सार के अनुसार, हम सभी परमेश्वर के अभिशाप और विनाश के लक्ष्य थे, लेकिन परमेश्वर की इच्छा मानव जाति को नष्ट करने के बजाय मानव जाति को बचाने की है। इसलिए लोगों को शैतान की अधीनता से पूरी तरह से बाहर निकाल कर बचाने के लिए, परमेश्वर अंत के दिनों में अपना वचन व्यक्त करता है और मनुष्य के न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करता है। वास्तव में न्याय का कार्य, लोगों के परमेश्वर के विपरीत होने और परमेश्वर का विरोध करने वाले शब्दों, कार्यों, प्रकृति और सार को उजागर करने के लिए परमेश्वर के द्वारा अपने वचन का उपयोग करना है, ताकि लोग अपने भ्रष्ट सार और भ्रष्टता की सच्चाई को जान सकें, परमेश्वर के धार्मिक और पवित्र स्वभाव को पहचान सकें और स्वयं से घृणा करने में सक्षम हों। फिर, लोग दिल से पश्चाताप कर बदल सकते हैं और अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभावों से मुक्त होकर परमेश्वर को प्राप्त हो सकते हैं। इस तरह लोगों को पूर्ण उद्धार हासिल होगा। केवल परमेश्वर के वचन के न्याय और ताड़ना के माध्यम से हम देख सकते हैं कि हम भ्रष्टता से भरे हुए हैं। हर समय और हर जगह, हम स्वार्थपरता, अहंकार, विश्वासघात और लालच के भ्रष्ट स्वभाव को प्रदर्शित करते हैं। हम अवधारणाओं, कल्पनाओं, असंयत इच्छाओं और परमेश्वर के संबंध में अनुचित माँगों से भरे हुए हैं। हमारे पास कोई ज़मीर और विवेक नहीं है, न ही कोई भक्ति या निष्ठा है। जितना अधिक हम परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करते हैं, उतना ही अधिक हम पहचान पाते हैं कि हम कितनी गहराई से भ्रष्ट हैं और हमारे पास वास्तव में कोई मानवता नहीं है। हम अपने आपसे घृणा करने लग जाते हैं, और अपने दिल में खुद से नफ़रत करते हैं। जितना अधिक हम परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करते हैं, उतना अधिक हम परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता को देखते हैं, उतना ही अधिक हमारे दिल परमेश्वर का सम्मान करते हैं। हम अपनी शारीरिक वासनाओं को त्यागने और परमेश्वर के वचन के अनुसार जीने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके बाद, चीज़ों और हमारे भ्रष्ट स्वभावों पर हमारे दृष्टिकोण में एक परिवर्तन होता है, और हम थोड़ा-थोड़ा एक सच्चे मानव की तरह जीना शुरू कर देते हैं। फिर हम सच में यह मानने लगते हैं कि परमेश्वर का न्याय और ताड़ना, हमारे लिए परमेश्वर का महान प्रेम और उद्धार है। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के बिना, हम सभी विनाश के लक्ष्य होते।"
जब बहन ने इस बात पर सहभागिता ख़त्म की, तो मैं बहुत उसकी बातों से बहुत प्रेरित हो गया था, मैंने देखा कि परमेश्वर का प्यार कितना महान और सच्चा है। वह वो परमेश्वर है जो मानव जाति से प्यार करता है! यह मैं था जिसने, लोगों को बचाने में परमेश्वर के अच्छे इरादे को गलत समझा था। मैंने सोचा था कि परमेश्वर लोगों के अपराध को निर्धारित करने और उन्हें दंडित करने के लिए न्याय करता था, लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि परमेश्वर का अपने वचन को व्यक्त करना और अंत के दिनों में लोगों का न्याय करना और भी अधिक सच्चा प्यार है, या यह हमारे लिए एक और भी बड़ा उद्धार है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पढ़ने से और बहनों ने जो सहभागिता की उससे, मैंने परमेश्वर के न्याय के कार्य की कुछ समझ हासिल की और परमेश्वर के बारे में मेरी गलत अवधारणाएं दूर हुईं। मुझे दृढ़ विश्वास हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु ही है, और मैं परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गया। मैं पूरी तरह से भ्रम के धुंध से उभर आया, और मेरा चेहरा एक सुखद मुस्कान के साथ चमक उठा। बहन ली ने खुशी से कहा: "आपकी अगुआई करने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद हो। यह सब परमेश्वर के वचन के माध्यम से प्राप्त किया गया फल है। यह हमें यह दिखलाता है कि सच्चाई को समझने से पहले, भले ही हम परमेश्वर और परमेश्वर के कार्य के बारे में अवधारणाएँ बना लें, लेकिन जब तक हम सत्य को खोजते और स्वीकारते हैं और परमेश्वर के वचन को सुनते हैं, तब तक हम सत्य को समझ लेंगे और हमें परमेश्वर के कार्य का ज्ञान होगा, और हमारी अवधारणाएँ और कल्पनाएँ धुएं के बादल की तरह उड़ जाएँगी। तब हम परमेश्वर की इच्छा को समझ पाएँगे, और परमेश्वर को गलत नहीं समझेंगे।" मैंने अपने खुशी से सिर हिलाया और परमेश्वर को मुझे बचाने के लिए धन्यवाद दिया।
परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने के बाद, मैंने अपने फोन पर एक मैसेजिंग ऐप इंस्टॉल किया ताकि बहन गाओ और अन्य लोग अक्सर मेरे साथ कुछ सुसमाचार फिल्में, संगीत वीडियो और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के स्तुतिगीत साझा कर सकें। जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सुसमाचार फिल्म सिंहासन से बहता है जीवन जल देखी, तो इसका मुझ पर बहुत बड़ा असर पड़ा। फिल्म में कलीसिया की उजाड़ स्थिति हमारी अपनी कलीसिया की स्थिति की तरह ही थी, और उस फिल्म ने इस बर्बादी की जड़ को पूरी स्पष्टता के साथ दिखाया था। क्योंकि परमेश्वर का कार्य स्थानांतरित हो गया था, और परमेश्वर अब कलीसियाओं के अंदर काम नहीं कर रहा था, जो लोग अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने से इनकार करते थे, वे सभी एक अकाल से पीड़ित थे। जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को स्वीकार करते हैं, वे परमेश्वर से जीवन-जल के प्रावधान को प्राप्त करते हैं और अब वे प्यासे नहीं रहेंगे। वे परमेश्वर के साथ एक धन्य जीवन जीते हैं। जब मैंने फिल्म प्रतीक्षारत देखी, तो मैं एक आह भरे बिना न रह सका। फिल्म में बूढ़े पादरी ने आजीवन प्रभु में विश्वास किया था और उसने सोचा था कि उसकी कड़ी मेहनत सराहनीय थी। वह सिर्फ प्रभु के आने का इंतज़ार कर रहा था ताकि वह स्वर्ग में उठाया जा सके। लेकिन वह जिद्द से इस विश्वास के साथ चिपका रहा कि जब प्रभु आयेगा, तो वह एक बादल पर से उतरेगा और पहले उसे प्रकाशन देगा। इस जिद्दीपन के कारण उसने अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य का विरोध किया और उससे इनकार कर दिया, इसलिए अंत में वह बस आकाश की ओर देखते हुए बादल का इंतज़ार करता रहा और पछतावा दिल में लिए मर गया। इस कड़वे सबक ने वास्तव में दर्शकों को गहराई से सोचने के लिए एक बिन्दु दिया! साथ ही, मैं अपने दिल में प्रसन्न हुआ और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने मुझ जैसे एक विद्रोही बेटे को, जो उससे केवल आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता था लेकिन उसके न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार करने के प्रति अनिच्छुक था, बचाया और मुझे अपने सिंहासन के सामने ले गया जहां मैं अंत के दिनों में उसके उद्धार को प्राप्त कर सकूँ।
अब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में कलीसियाई जीवन जीता हूँ, और वास्तव में परमेश्वर के वचन के न्याय और ताड़ना का अनुभव करके, मैंने धीरे-धीरे यह समझना शुरू कर दिया है कि परमेश्वर जो न्याय का कार्य करता है, वह कितना वास्तविक और व्यावहारिक है। जब परमेश्वर ने इंसानों की विश्वासघाती प्रकृति का विश्लेषण किया, तो मुझे लगा चूंकि मैं कभी झूठ नहीं बोलता इसलिए मैंने परमेश्वर के वचनों द्वारा प्रकट की गयी वास्तविक स्थिति को स्वीकार नहीं किया। जब मैंने परमेश्वर के द्वारा आयोजित एक व्यावहारिक परिस्थिति का सामना किया, तो अपने स्व-हित और अभिमान की रक्षा करने के लिए मैं अनायास झूठ बोल पड़ा। इसके अलावा, मुझे मेरे दिल में विश्वासघात और छल महसूस हुआ, मेरे पास कई रहस्य भी थे जिन्हें मैं खुले तौर पर बताना नहीं चाहता था। इससे मुझे यह देखने को मिला कि परमेश्वर के वचन से प्रकट हुई हर बात सत्य है और असली स्थिति है, और यह मनुष्य की प्रकृति और उसका सार है। केवल तभी मैं सचमुच परमेश्वर के वचन से सच में आश्वस्त हुआ था, और मुझे सत्य को खोजने और अपनी खुद की विश्वासघाती प्रकृति को बदलने की तत्काल इच्छा हुई। इस अनुभव के बाद, मुझे एहसास हुआ कि अगर परमेश्वर का व्यावहारिक न्याय और ताड़ना न होती, तो मैं कभी भी अपनी खुद की विश्वासघाती प्रकृति को नहीं जान पाता। मैं अपने विश्वासघाती स्वभाव को बदलने के लिए कभी भी सत्य का अभ्यास करने में सक्षम नहीं पाता। परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना वास्तव में मुझे शुद्ध कर रहे थे, बचा रहे थे, और यह एक अलग तरह का प्रेम है। मैं इस विशेष प्रकार के प्रेम का अच्छी तरह से आनंद लेना, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करना चाहता हूँ। परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए मैं जल्द-से-जल्द एक नया व्यक्ति बनना चाहता हूँ।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?