खटखटाओ और तुम्हारे लिए द्वार खोला जायेगा
1989 में, मैंने अपनी माँ के साथ प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार किया। जब मैंने प्रभु में विश्वास करना शुरू किया, तब अक्सर सभाओं में भाग लेने और धर्मशास्त्रों को पढ़ने के माध्यम से, मुझे पता चला कि यह परमेश्वर था जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और उसमें सबकुछ बनाया था, और उसने मानवजाति बनाई थी, और यह परमेश्वर है जो मानवजाति के लिए सबकुछ प्रदान करता है। उस समय प्रचारक अक्सर हमें बताते थे, "चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, जब तक हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, परमेश्वर हमारी मदद करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रभु ने कहा, 'माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा' (मत्ती 7:7–8)। प्रभु भरोसेमंद हैं, इसलिए यदि हमें कठिनाइयाँ होती हैं और हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं, तो प्रभु हमारी प्रार्थनाओं को सुनेंगे। वह बाइबल के वचनों के माध्यम से हमसे बात करते हैं, और सभी कठिनाइयों में हमारी अगुआई करते हैं"... उसके बाद, चाहे बड़े मामलें हो या छोटे, मैंने सबकुछ प्रभु को सौंप दिया। प्रभु ने वास्तव में मेरी प्रार्थनाओं को सुना और मुझे बाइबल के वचनों के माध्यम से राह दिखाई, और मैंने जो कुछ भी खोजा उन सबको फलीभूत किया। इस वजह से मैं बाइबल को अधिक से अधिक संजोने लगी, और यह कुछ ऐसा था जो मुझसे अलग नहीं हो सकता था, इसे मैं हर जगह अपने साथ रखती थी।
सितंबर 1997 में एक रविवार को, मैं हमेशा की तरह एक सभा में आयी, और एक बुजुर्ग बहन जो प्रचार कर रही थीं, उन्होंने कहा, "परमेश्वर को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद दें। आज मैंने इन दो युवा बहनों को हमारे साथ साहचर्य करने के लिए आमंत्रित किया है, और आपके मन में जो भी प्रश्न हों वो पूछ सकते हैं..." शरुआत से ही, मैं इन बुजुर्ग बहन को बहुत चाहती थी, जिन्होंने 18 वर्ष की उम्र से ही परमेश्वर में विश्वास करना शुरू कर दिया था, और जो अब 68 वर्ष की थीं। अपने 50 साल के विश्वास में, उन्होंने बाइबल को इतने उत्साह से पढ़ा था कि उन्होंने तीन प्रतियां घिस दीं थीं, और वह बाइबल में काफी प्रवीण थीं, लेकिन आज मुझे आश्चर्य हुआ कि वह इन लगभग बीस साल की दो बहनों को हमें उपदेश देने दे रही हैं। उन्होंने परमेश्वर में कब से विश्वास किया था? वे हमें कौन सा संदेश देने में सक्षम थीं? मैं बहुत आश्वस्त नहीं थी, लेकिन चूँकि बुजुर्ग बहन ने इसकी सिफारिश की थी, मैंने कुछ भी नहीं कहा। जब युवा बहनों ने हमें प्रकाशितवाक्य 22:1-5 से जन्मी एक कविता, "जीवन जल की एक नदी" का एक पद गाना सिखाया, तो मैंने सोचा कि यह पद काफी नया और सुनने में अच्छा था, इसलिए मेरा दिल शांत हो गया। उसके बाद उन्होंने हमें एक और नया गीत, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर पहले से ही पूर्व में प्रकट हो चुका है" गवाया और मैंने सोचा कि यह भजन भी बहुत अच्छा था, और इसमें विशेषता और ऊर्जा थी। मैंने सोचा कि कलीसिया में हमने पहले जो गाने गाये थे यह उनके मुकाबले लोगों को आस्था देने में ज़्यादा सक्षम था। उस पल में मेरे दिल में उन दो युवा बहनों को लेकर अब और द्वंद नहीं रह गया था। लेकिन जल्द ही, युवा बहनों में से एक ने प्रभु यीशु के पहले ही लौट आने की गवाही दी, और यह भी कहा कि आखिरी दिनों में परमेश्वर फिर से देहधारी होकर आये हैं, मनुष्य के पुत्र के रूप में प्रकट होकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु यीशु के छुटकारे के काम के आधार पर, उन्होंने वचन के काम का एक चरण सम्पादित किया है जो लोगों को शुद्ध करता है और उनका न्याय करता है, और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से छोटी पुस्तक खोली है... बात करते हुए, उसने बाइबिल को नीचे रख दिया और मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक नामक एक किताब ली, और मेरे भीतर घमासान मच गया: "ये लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन वास्तव में बाइबल नीचे रख देते हैं। यह निश्चित रूप से सही नहीं हो सकता! बाइबल पढ़े बिना प्रभु में विश्वास का क्या अर्थ है? हम बाइबल पर प्रभु में अपना विश्वास रखते हैं, और हमें इसे हमेशा पढ़ना चाहिए!" जैसे ही मैं उन्हें अस्वीकार करना चाहती थी, मैंने देखा कि बुजुर्ग बहन स्वीकृति में अपना सर हिला रहीं हैं, और मैंने उन शब्दों को निगल लिया जिनसे मैं उनका खंडन करने जा रही थी। मैंने सोचा, "यदि जो कुछ भी वे प्रचार कर रहीं हैं, उसे बुजुर्ग बहन स्वीकार करेंगी, तो मैं बाइबल के अपने ज्ञान से उन्हें अस्वीकार करने में शायद सक्षम नहीं हो पाऊँगी, और मुझे शर्मिंदा होना पड़ेगा। इसलिए उनके चले जाने के बाद बुजुर्ग बहन से बात करना बेहतर होगा। निश्चित रूप से बाइबल को पीछे छोड़ परमेश्वर पर विश्वास करना सही नहीं है, क्योंकि बाइबिल में लिखा है: 'सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा' (2 तीमुथियुस 3:16)। चूंकि बाइबिल परमेश्वर की प्रेरणा से दी गयी है, यह परमेश्वर की वाणी का प्रतिनिधित्व करती है। हम बाइबल का पालन करते हैं या नहीं, वास्तव में, इस महान विषय के संबंध में है कि हम आशीर्वाद प्राप्त करते हैं या दुर्भाग्य से पीड़ित होते हैं, और मुझे इस मामले की स्पष्ट समझ लेनी ही है। मुझे इन दो बहनों को हमें हमें धोखा देने और गुमराह करने नहीं देना चाहिए।" चिंता से भरपूर, मैं पूरे समय घबराई हुई थी। सभा खत्म होने तक इंतजार करना आसान नहीं था। मैं बार बार बुजुर्ग बहन की ओर देखती, कि वह कैसे स्पष्ट रूप उसे स्वीकार रही थीं जिसकी युवा बहनें संगति कर रही थीं। पूरे समय, वह शांत और खुश लग रही थीं, और मैं बड़बड़ाये बिना नहीं रह पायी: "आप क्यों कुछ नहीं कह रहीं हैं? क्या आप उन्हें बाइबल छोड़ कर यों ही इस तरह उपदेश देने देंगी? क्या इसे ही आप प्रभु के लिए एक अच्छा प्रबंधक होना कहतीं हैं?"
घर वापस जाते हुए, जितना मैं सोचती उतना अधिक चिंतित होती जाती। "मैंने सात या आठ सालों तक बाइबल पढ़ी है, और अब कुछ लोग हैं जो मुझे बाइबल छोड़ने के लिए कह रहे हैं। साथ ही, अप्रत्याशित रूप से बुजुर्ग बहन को भी लगता है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन यह परमेश्वर की मांगों के अनुसार कैसे है? लेकिन कलीसिया के अधिकांश भाइयों और बहनों ने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के काम को स्वीकार कर लिया है, और यदि मैं इसे स्वीकार नहीं करती हूँ, तो यदि थोड़ी भी सम्भावना हुई कि प्रभु सच में वापस आ गये हैं और वास्तव में वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, तो क्या मैं परमेश्वर की वापसी का स्वागत करने का अवसर नहीं खो दूँगी?" फिर भी, इस बारे में मैं पुनर्विचार करने लगी। मैं बस यों ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को स्वीकार नहीं कर सकती थी और बाइबिल को वैसे नहीं त्याग सकती थी जैसा कि उन्होंने किया था, लेकिन मैं क्या कर सकती थी? क्योंकि मेरे दिल में चैन नहीं था, और मेरे पैरों के नीचे की सड़क उबड़-खाबड़ और ऊँची-नीची लग रही थी, मैं परेशान घर लौट आयी। जब मेरे पति ने मेरे उलझे हुए भाव देखे, तो उन्होंने तुरंत मुझसे पूछा, "तुम इतनी विचलित क्यों हो? तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?" "ओह! रहने दीजिये, आज दो युवा बहनें कलीसिया में आईं और हमें उपदेश दिया, और कहा कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुके हैं और उन्होंने छोटी पुस्तक खोल दी है। उन्होंने हममें से प्रत्येक को भी एक किताब दी, और कहा कि यह परमेश्वर का नया वचन है। भविष्य में, वे हमें केवल इस किताब को पढ़ने के लिए कह रहे हैं जिसे मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक कहा जाता है। आपको क्या लगता है? हमने प्रभु में इतने सालों से विश्वास किया है, और साथ ही शुरुआत से ही बाइबल पढ़ी है, और बाइबल ने हमें इतना फायदा पहुंचाया है। हम बाइबिल को कभी नहीं छोड़ सकते!" मेरे पति ने भी आश्चर्यचकित होकर कहा, "ओह? तो यह सब चल रहा है?" एक पल के लिए गहराई से सोचने के बाद, उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि तुम सही हो। प्रभु के प्रति हमारा एक विवेक होना चाहिए, और हमें परमेश्वर में हमारे विश्वास में बाइबल पढ़नी चाहिए। हम कभी भी बाइबल को त्याग नहीं सकते।" मेरे पति के निश्चित जवाब ने बाइबल की रक्षा के प्रति मेरे विश्वास को और दृढ़ कर दिया।
शाम को, मैंने बाइबिल के सामने घुटने टेककर प्रभु से अधीरतापूर्वक प्रार्थना की, प्रभु को अपने झुंड पर नज़र रखने और लोगों को उन्हें चुराने न देने के लिए प्रार्थना की। इसके कुछ दिनों बाद, मैंने बाइबल को पहले की ही तरह पढ़ा, और जब रविवार आया तो मैंने अपनी बाइबिल ली और समय से पहले ही निकल पड़ी। मैंने मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक इस किताब को भी अपने बैग में रख लिया। क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मुझे इस किताब के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए, मैं बुजुर्ग बहन और दूसरों की राय सुनना चाहती थी। जब मैंने बुजुर्ग बहन को देखा, तो मैंने उसके बारे में अपने सभी धारणाओं को उन्हें बताया। यह सुनने के बाद, बुजुर्ग बहन मुस्कुराईं और उन्होंने कहा, "बहन, यह निश्चित रूप से कोई मामूली मामला नहीं है, और कुछ ऐसा है जिसके साथ हमें बहुत सावधानी से पेश आना चाहिए। अगर हम आँखें बंद करके प्रभु की वापसी के मामले में राय बनाते हैं, तो प्रभु के विरुद्ध अपराध करना बहुत आसान है। ईमानदारी से प्रभु की उपस्थिति में थोड़ा और प्रार्थना करें, और मुझे विश्वास है कि प्रभु हमें रोशन और प्रबुद्ध करेंगे, ताकि हम उनकी इच्छा को समझ सकें। "मैंने कभी सोचा नहीं था कि बुजुर्ग बहन ऐसा कहेंगी लेकिन जब मैंने उनके रवैये को देखा, तो ऐसा लगा कि वह इस मामले में अंतिम निष्कर्ष पर पहले ही पहुँच गयीं थीं। उस शाम, मैं अपने बिस्तर में बेचैन होकर करवटें ले रही थी, और मैं सो नहीं पा रही थी। मैंने सोचा कि कैसे बुजुर्ग बहन ने प्रभु में इतने सालों से विश्वास किया, और वह कितनी विवेक वाली थीं। उन वर्षों में कलीसिया में बड़ी अराजकता थी, और वह पादरी और एल्डरों द्वारा दबाव डाले जाने और किनारे किये जाने पर भी, थ्री सेल्फ देशभक्ति आन्दोलन कलीसिया में अपनी पदवी को दृढ़तापूर्वक और डटकर एक किनारे करने और प्रार्थना और परमेश्वर की इच्छा खोजने के माध्यम से गृह कलीसिया पर्यावरण में प्रवेश करने में सक्षम हुईं। कारावास के खतरे में जीते हुए, उन्होंने प्रभु की सेवा जारी रखी। मैं उनका बहुत सम्मान और प्रशंसा करती थी, और मुझे विश्वास था कि वह इस समय प्रार्थना और खोज के बिना, केवल इच्छा पर अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के काम को स्वीकार नहीं करेंगी। "लेकिन इस किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, ने बाइबल को त्याग दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे किस तरह से देखते हैं, यह गलत ही है! प्रभु, मुझे क्या करना चाहिए?" उस समय, मुझे बुजुर्ग बहन की हिदायत याद आयी कि एक व्यक्ति को उन चीज़ों के बारे में अधिक प्रार्थना और खोज करनी चाहिए जिन्हें वह अच्छी तरह से समझ नहीं पाता है। इस पर, मैंने प्रभु की उपस्थिति में उनके सामने घुटने टेककर प्रार्थना की: "अनुग्रह के प्रभु यीशु मसीह, हमारे रचियता और परिपूर्णकर्ता, कलीसिया के भाइयों और बहनों सभी ने बाइबिल को छोड़ दिया है, और एक किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, पढ़ना शुरू कर दिया है। वे यह भी कहते हैं कि यह आपका नया वचन है, प्रभु! इतने सालों में, कब ऐसा हुआ है कि किसी ने परमेश्वर में विश्वास किया हो और बाइबिल को त्याग दिया हो? फिर भी आज, जिन भी चीज़ों की संगति सभाओं में की जाती है वह बाइबल की विषयवस्तु के अलावा कुछ और ही है। प्रभु! मुझे आप में किस तरह विश्वास करना चाहिए? मैं आपसे आगे का रास्ता दिखाने के लिए विनती करती हूँ, क्योंकि आप मेरे सामने दीपक की रोशनी हैं, मार्ग पर प्रकाश हैं, और मैं आपके मार्गदर्शन का इंतजार कर रही हूँ।"
उसके बाद भी मैं बाइबल को अपने साथ सभा में ले जाया करती थी, और जब मैं सुनती कि सभाओं में बताई गई विषयवस्तु बाइबल के वचन के अनुसार थी, तो मैं अनिच्छुक रूप से उसमें से थोड़ा स्वीकार कर लेती। जो कुछ भी बाइबल के अनुसार नहीं होता था, उसे न सुनने का नाटक करती थी, इस पूरे समय उस दिन की प्रतीक्षा करते हुए कि भाई-बहन सत्य के प्रति सचेत हो जाएंगे। लेकिन ऐसी ही बने रहते हुए, मैंने पाया कि भाइयों और बहनों की हालत निरंतर बेहतर होती जा रही थी, और उनमें से हर एक के चेहरे खुशी से भरे हुए थे। दूसरी तरफ, मेरी मनोदशा धीरे-धीरे और खराब होती जा रही थी, और भाइयों और बहनों का जवाब देते समय मुझे मुस्कुराने के लिए खुद को मजबूर करना पड़ता था। एक दिन सभा में, मैंने भाइयों और बहनों को बड़े जोश में उसकी संगति करते हुए देखा जो उन्होंने स्वीकार किया था और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन से सीखा था, और उनमें से हर कोई ऐसा उत्साहित था मानो कि उसे बस कोई खजाना मिल गया हो। जहाँ तक मेरी बात थी, ऐसा लगता था कि जिस बारे में वे संगति कर रहे हैं उसमें से मैं शायद ही कुछ समझ पा रही थी, और मैं काठ के समान मूर्ख थी। मेरे पास कहने के लिए एक वाक्य भी नहीं था, और केवल बेवकूफों की तरह बस कोने में खड़ी ही रह सकती थी। मुझे दिल में बहुत दुख और बेचैनी महसूस हुई। मैं केवल अपने दिल में प्रभु को रोकर पुकार सकती थी, "प्रभु! इससे पहले, आपने मेरे साथ बहुत अनुग्रह के साथ व्यवहार किया, और आप अक्सर मुझे प्रबुद्ध करते थे। ऐसा क्यों है कि अब आप मुझे प्रबुद्ध नहीं कर रहे हैं? क्या यह हो सकता है कि आप मुझे नहीं चाहते हैं? प्रभु, आप मेरी एकमात्र आशा हैं, और मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मुझे ना त्यागें..." भले ही मैंने बहुत प्रयास से प्रभु को पुकारा, फिर भी मुझे प्रभु से कोई प्रतिक्रिया या सांत्वना नहीं महसूस हुई। मेरा दिल ठंडा पड़ गया: प्रभु मुझे नहीं चाहते...
जब मैं घर लौटी, तो मैं अपने दिल के दुःख को और सहन नहीं कर पा रही थी। मैं अपने बिस्तर पर सीधी लेट गयी और बिना सोचे विचारे प्रभु को पुकारा: "हे प्रभु, आप जानते हैं कि मैं आपसे प्यार करती हूँ, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कैसे हालात सामने आते हैं, मैं बाइबल को यों ही त्याग नहीं सकती और आपसे दूर नहीं रह सकती। मैंने कई वर्षों से आप में विश्वास किया है, लेकिन मैंने कभी भी अपनी आत्मा में ऐसा अंधकार महसूस नहीं किया है। प्रभु! मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मुझसे अपना चेहरा दूर न करें। आप मुझ पर दया करें। भाइयों और बहनों का कहना है कि नए वचन आपकी वाणी हैं, आप लौट आए हैं। इन वचनों को पढ़ने से उन सभी को बहुत कुछ मिला है, और वे सभी खुशी खुशी रह रहे हैं, फिर भी मैं अंधेरे में गिर गयी हूँ और अब और आपकी उपस्थिति महसूस नहीं कर पा रही हूँ। प्रभु! यह न जानते हुए कि इन सबका कैसे सामना करना है, मैं अपने दिल में बहुत पीड़ा भोग रही हूँ और मैं परेशान भी हूँ। प्रभु! क्या यह किताब, मेमने द्वारा खोली गयी पुस्तक, सच में लौटने के बाद की आपकी वाणी है? यदि ऐसा है, तो मैं आपसे प्रभुद्धता और मार्गदर्शन के लिए विनती करती हूँ। मुझे अपनी वाणी समझने दें, क्योंकि मैं भी आपका अनुसरण करना चाहती हूँ। उस बिंदु पर प्रार्थना में, मेरे मन में प्रभु यीशु की मेरे द्वार पर खटखटाते हुए एक छवि उभरी, और ऐसा लगा कि मानो प्रभु बहुत समय पहले से बाहर मेरा इंतज़ार कर रहें हों। मैं चकित हो गयी और अचानक मुझे एहसास हुआ कि यह मैं थी जिसने प्रभु यीशु पर द्वार बंद कर रखा था। मैंने तुरंत खुद को दोषी ठहराया, पश्चाताप किया, और आभार के आँसुओं को बहते हुए महसूस किया। मैं आँसू पोंछ भी ना पाई और जल्दी से फर्श से उठने लगी। मैंने अपनी बाइबिल निकाली और प्रकाशितवाक्य 3:20-22 पढ़ा: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ। जो जय पाए मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊँगा, जैसे मैं भी जय पाकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया। जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" मुझे यकीन था कि यह पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता थी। इस पर, मैंने प्रभु की उपस्थिति में फिर से घुटने टेके, पश्चाताप के मेरे आँसू निरंतर बह रहे थे: "मेरे प्रभु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने सोचा ना था कि मैं आपके आगमन के साथ ऐसा व्यवहार करुँगी... वास्तव में मैं अंधी और अज्ञानी थी और आपकी वाणी को समझ नहीं सकी, और आपको दरवाजे के बाहर बंद कर दिया... मेरे कारण आपको दर्द और निराशा का अनुभव हुआ... अगर आपकी कृपा न होती, तो मैं अभी भी अन्धकार में रहते हुए, आपकी वाणी का त्याग कर रही होती। सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैं आपकी ओर आना चाहती हूँ आपका वचन स्वीकार करना चाहती हूँ, और आपसे मेरे पापों से अपना मुख फेरने के लिए, और मुझ पर अपना उद्धार का कार्य जारी रखने की विनती करती हूँ।" अपनी प्रार्थना के बाद, अपने दिल में मैंने अद्वितीय स्वतन्त्रता का अनुभव किया, और ऐसा लगा की मेरे दिल पर रखा भारी पत्थर हटा दिया गया हो। मेरा दिल कितना हल्का महसूस हो रहा था! इसके बाद, जब भी मेरे पास समय होता मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ती। मैं हर खोये समय को पूरा करने के लिए उत्सुक थी, लेकिन मैं अभी भी बाइबल को छोड़ परमेश्वर के काम के विषय में अपनी आत्मा की गहराई में परेशानी महसूस कर रही थी।
एक दिन मैंने परमेश्वर का वचन खोला और पढ़ा: "परमेश्वर में विश्वास करते हुए बाइबल के समीप कैसे जाना चाहिए? यह एक सैद्धांतिक प्रश्न है। …बहुत सालों से, लोगों के विश्वास का परम्परागत माध्यम (दुनिया के तीन मुख्य धर्मों में से एक, मसीहियत के विषय में) बाइबल पढ़ना ही रहा है; बाइबल से दूर जाना प्रभु में विश्वास नहीं है, बाइबल से दूर जाना एक दुष्ट पंथ और विधर्म है, और यहाँ तक कि जब लोग अन्य पुस्तकों को पढ़ते हैं, तो इन पुस्तकों की बुनियाद, बाइबल की व्याख्या ही होनी चाहिए। कहने का अर्थ है कि, यदि तुम कहते हो कि तुम प्रभु में विश्वास करते हो, तो तुम्हें बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए, तुम्हें बाइबल खानी और पीनी चाहिए, बाइबल के अलावा तुम्हें किसी अन्य पुस्तक की आराधना नहीं करनी चाहिए जिस में बाइबल शामिल नहीं हो। यदि तुम करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो। उस समय से जब बाइबल थी, प्रभु के प्रति लोगों का विश्वास बाइबल के प्रति विश्वास रहा है। यह कहने के बजाए कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने की अपेक्षा की उन्होंने बाइबल पढ़नी आरम्भ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरम्भ कर दिया है; और यह कहने की अपेक्षा कि वे प्रभु के सामने वापस आ गए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने वापस आ गए हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (1)")। परमेश्वर के वचन के इस अवतरण को पढ़ने के बाद, ऐसा लगा कि मैं परमेश्वर के साथ आमने सामने हूँ। हाँ, जो मैं सोच रही थी वह वही था जो परमेश्वर ने प्रकट किया था; मैं सोचती थी कि एक व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास करने के लिए बाइबल पढ़ने की ज़रूरत है और बाइबिल के अलावा वह किसी अन्य पुस्तक को नहीं पढ़ सकता, अन्यथा वह परमेश्वर को धोखा दे रहा था। लेकिन मैं अभी भी उलझन में थी: "क्या बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं दी गई है? प्रभु में विश्वास करते हुए, क्या हम बाइबल का पालन नहीं कर रहे हैं? फिर, बाइबिल की उपस्थिति और परमेश्वर की उपस्थिति में लौटने के बीच वास्तव में कितना बड़ा अंतर है?" मैंने परमेश्वर के वचन में जवाब खोजना जारी रखा। इसके बाद जल्द ही, मैंने देखा कि परमेश्वर का वचन कहता है: "बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है, और प्राचीन नबीयों की अनेक भविष्यवाणियों और साथ ही उस समय उसके कार्य में यहोवा के कुछ कथनों को प्रलेखित करती है। इस प्रकार, सभी लोग इस पुस्तक को 'पवित्र' (क्योंकि परमेश्वर पवित्र और महान है) मानते हैं। वास्तव में, यह सब यहोवा के लिए उनके आदर और परमेश्वर के लिए उनकी श्रद्धा का परिणाम है। लोग केवल इसलिए इस रीति से इस पुस्तक की ओर संकेत करते हैं क्योंकि परमेश्वर के जीवधारी अपने सृष्टिकर्ता के प्रति बहुत श्रद्धावान हैं, और ऐसे लोग भी हैं जो इस पुस्तक को एक 'स्वर्गीय पुस्तक' कहते हैं। वास्तव में, यह मात्र एक मानवीय अभिलेख है। यहोवा द्वारा व्यक्तिगतरूप से इसका नाम नहीं रखा गया था, और न ही यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसकी रचना कामार्गदर्शन किया था। दूसरे शब्दों में, इस पुस्तक का ग्रन्थकार परमेश्वर नहीं था, बल्कि मनुष्य था। 'पवित्र' बाइबल ही केवल वह सम्मानजनक शीर्षक है जो इसे मनुष्य के द्वारा दिया गया है। इस शीर्षक का निर्णय यहोवा और यीशु के द्वारा आपस में विचार विमर्श करने के बाद नहीं लिया गया था; यह मानव विचार से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि इस पुस्तक को यहोवा के द्वारा नहीं लिखा गया था, और यीशु के द्वारा तो कदापि नहीं। इसके बजाए, यह अनेक प्राचीन नबीयों, प्रेरितों और पैगंबरों का लेखा-जोखा है, जिन्हें बाद की पीढ़ियों के द्वारा प्राचीन लेखों की एक ऐसी पुस्तक के रूप में संकलित किया गया था जो, लोगों को, विशेष रूप से पवित्र दिखाई देती है, एक ऐसी पुस्तक जिसमें वे मानते हैं कि अनेक अथाह और गम्भीर रहस्य हैं जो भविष्य की पीढ़ियों के द्वारा प्रकट किए जाने का इन्तज़ार कर रहे हैं। वैसे तो, लोग यह विश्वास करने में और भी अधिक उतारू हो गए कि यह पुस्तक एक 'दिव्य पुस्तक' है। चार सुसमाचारों और प्रकाशित वाक्य की पुस्तक के शामिल होने के साथ ही, इसके प्रति लोगों की प्रवृत्ति किसी भी अन्य पुस्तक से विशेष रूप से भिन्न है, और इस प्रकार कोई भी इस 'दिव्य पुस्तक' को चीरफाड़ करने की हिम्मत नहीं करता है—क्योंकि यह बहुत ही अधिक 'पवित्र' है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (4)")। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ने अनन्त रहस्य का खुलासा किया है, और बाइबल के रहस्यों को समझाया है। इसने मेरे दिल की कठिनाइयों को भी समझाया है। परमेश्वर का वचन कहता है: "बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है।" इसके बारे में सावधानी से सोचते हुए, मैंने निष्कर्ष निकाला: "यह वास्तव में इसी तरह है, और बाइबल में जो कुछ भी दर्ज किया गया है वह वास्तव में इस्राएल में किए गए परमेश्वर के काम का इतिहास है। यह वह काम है जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में किया था, परन्तु परमेश्वर वह परमेश्वर हैं जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी और सबकुछ बनाया है, और पूरी मानवजाति पर भी शासन करते हैं। परमेश्वर हमेशा मानवजाति के लिए मार्गदर्शन और आपूर्ति प्रदान करते हैं, तो वह केवल इस्राएल में कैसे काम कर सकते हैं? वे केवल वो कैसे कह सकते हैं जो बाइबल में है? बाइबिल को लोगों द्वारा 'पवित्र पुस्तक' कहा जाता है, क्योंकि परमेश्वर ने जो कुछ कहा है, यह उसे दर्ज करती है। वे इसे परमेश्वर के प्रति अपने आदर के कारण इसे यह मानद उपाधि देते हैं, लेकिन वास्तव में बाइबिल के लेखक प्राचीन संत, नबी और प्रेरित हैं, परमेश्वर नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी बाइबिल परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं दी गयी है, और यह पूरा परमेश्वर का वचन नहीं है। यह परमेश्वर को गवाही देने के लिए केवल एक ऐतिहासिक पुस्तक है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रभु यीशु ने कहा: 'तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते' (यूहन्ना 5:39–40)।" प्रभु यीशु के वचन की तुलना में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पढ़ कर, मैं अचानक प्रभु के उन वचनों को समझ गयी। इस पर, मैंने खुद से पूछा: "परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं, और जीवन का झरना हैं। परमेश्वर स्वर्ग, पृथ्वी, और उसमें सब कुछ बना सकते हैं, और सभी चीजों पर शासन करते हैं। क्या बाइबल यह काम कर सकती है? नहीं कर सकती। इस तरह इसे देखकर, ऐसा लगता है कि बाइबल निश्चित रूप से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती है। परमेश्वर और बाइबिल एक बराबर स्तर पर नहीं हैं। मुझे परमेश्वर के पदचिन्हों का पालन करना चाहिए, और बाइबल को पकड़े हुए परमेश्वर के नए काम को अस्वीकार नहीं करना चाहिए।" जितना मैंने परमेश्वर के वचन पर विचार किया, उतना ही मुझे बाइबल के सार और इसके अंदर की कहानी के बारे में ज्ञान मिला, और उतना ही अधिक मुझे अपमान और शर्मिंदगी महसूस हुयी। मैंने उन धारणाओं के बारे में सोचा जिन्हें मैंने परमेश्वर में विश्वास में इतने सालों तक संजोया था, और मैंने सोचा था कि बाइबिल परमेश्वर जितनी ही महत्वपूर्ण थी। मैंने उनके साथ समान रूप से व्यवहार किया, और सोचा कि बाइबल को छोड़ना मतलब परमेश्वर में विश्वास नहीं करना था। लेकिन वास्तव में, मैं बाइबल के सार और उसके मूल मूल्य के बारे में स्पष्ट नहीं थी, और कभी नहीं सोचा था कि प्रभु में विश्वास करने और बाइबल में विश्वास करने के बीच क्या अंतर था। परमेश्वर में विश्वास करने का व्यावहारिक अर्थ अज्ञात था, और वास्तव में मैंने अपनी धारणाओं को सत्य के रूप में माना, और बकवास बातें कहीं। मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर के काम और वचन को अस्वीकार कर दिया, और वास्तव में बहुत मूर्ख और अज्ञानी थी, बहुत अहंकारी और अविवेकी थी। परन्तु परमेश्वर ने मुझसे मेरी अज्ञानता के आधार पर व्यवहार नहीं किया, और मेरी निंदा नहीं की, लेकिन अब भी मुझे प्रबुद्ध किया और मार्गदर्शन दिया। उन्होंने मुझे बाइबल से कदम-ब-कदम दूर किया, और मैं परमेश्वर के सिंहासन के सामने आयी, ताकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का पोषण और जीवन प्राप्त कर सकूँ और धीरे-धीरे सत्य में से थोड़ा समझ सकूँ और बाइबल के सार को जान सकूँ। मेरे दिल का दरवाजा जो इतने लंबे समय तक मुहरबंद था अंततः परमेश्वर के लिए खुल गया, और अब मैं परमेश्वर के उद्धार से दूर नहीं जा सकती थी। इसके बजाय, परमेश्वर की नई वाणी में, सिंहासन से बहने वाले जीवन जल के प्रावधान का जितना चाहूं उतना आनंद उठाती हूँ। मैं ईमानदारी से परमेश्वर का धन्यवाद और उनकी स्तुति करती हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?