एक "चुराया हुआ" आशीष

07 दिसम्बर, 2022

मार्च 2012 की बात है। पता नहीं यह किस दिन शुरू हुआ, लेकिन मैंने देखा कि हर रात खाने के बाद मेरी पत्नी जल्दी से नित्यकर्म निपटाकर, कोई किताब पढ़ने बेडरूम में चली जाती। ऐसा एक दिन हुआ, फिर अगले दिन ... फिर होता ही रहा। मुझे बड़ी जिज्ञासा थी। वह कौन-सी किताब पढ़ रही थी? वह किताब उसे क्यों भाती थी? एक रात मैंने इसे जानने के लिए दरवाजा खोल दिया। मुझे अंदर आते देख उसने किताब दूर करने की कोशिश की। मैंने उसका किताब वाला हाथ पकड़ लिया और पूछा कि वह कौन-सी किताब पढ़ रही थी। उसने मुस्कराकर कहा, "यह मेमने द्वारा खोली गई पुस्तक। ये वापस आए हुए प्रभु यीशु के बोले वचन हैं। हम उसकी वापसी को लालायित रहे हैं और अब वह वापस आ चुका है।" यह सुनकर मैं चौंक गया, डर गया। मुझे पादरी की बात याद आई, "हम प्रभु में विश्वास रखते हैं, इसलिए हम बचाए जा चुके हैं। जब वह आएगा, तो हमें उठाकर सीधे स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा, इसलिए प्रभु के आने के बारे में किया गया हर प्रचार झूठा है।" मैंने गुस्से से कहा, "मेरे ख्याल से तुम गलती कर रही हो। क्या भूल गईं कि पादरी ने हमें क्या बताया था? प्रभु में आस्था के कारण हम पहले ही बचाए जा चुके हैं। अगर प्रभु वापस आया होता, तो हम पहले ही स्वर्ग के राज्य में उठा लिए गए होते। लेकिन हम अब भी यहीं हैं, है न? प्रभु के विश्वासियों के तौर पर, हमें बाइबल पढ़नी चाहिए, और प्रभु के मार्ग पर बने रहना चाहिए। केवल इसी तरह, प्रभु के आने पर हम स्वर्ग के राज्य में ले जाए जा सकेंगे।" मेरी पत्नी बोली, "इतनी जल्दी इसकी व्याख्या न करो। पहले यह किताब पढ़ो, तब जान पाओगे कि क्या प्रभु सच में वापस आ चुका है।" लेकिन तब मैं बहुत सतर्क था, सो पत्नी की बात नहीं मान सका, तो वह किताब ले गई।

इसके बाद एक बार काम के दौरान कुछ लेने मैं घर आया, तो अपनी पत्नी को फिर से वह किताब पढ़ते देख, मैंने नाक-भौं सिकोड़ी, उसकी अनदेखी की और जरूरी चीज उठाकर चला गया। लौटते समय मैं सोचता रहा, "मेरी पत्नी इसके बारे में इतनी उत्साहित क्यों है? जब भी समय मिलता है, इसे पढ़ती है और सुसमाचार का प्रचार करने बाहर जाती है।" एकाएक मुझे पहले कभी अपनी माँ की कही बात याद आई, "'चमकती पूर्वी बिजली' भविष्य की शक्ति है। बाइबल से परिचित भाई-बहन जो अच्छी तरह अनुसरण करते हैं, वे अपनी किताबों में खो जाते हैं, और कभी बाहर नहीं आते।" मैंने सोचा, "क्या मेरी पत्नी चमकती पूर्वी बिजली की किताब पढ़ रही है? क्या वह उसके फेर में पड़ गई है? अगर धोखा खाकर वह प्रभु का उद्धार खो दे तो क्या होगा? मगर मैं सयाना नहीं हूँ, बाइबल से भी ज्यादा परिचित नहीं हूँ। मैं नहीं जानता, उसे कैसे वापस लाऊँ।" बाद में मैं पुन: सजावट में मदद करने, पादरी चेन के घर गया। मैं सोचता था कि उनकी वर्षों से प्रभु में आस्था थी, बाइबल से परिचित थे और सयाने थे। उनके पास मेरी पत्नी को उस कगार से पीछे लाने के विवेकपूर्ण तरीके जरूर होंगे। इसलिए मैंने पादरी चेन से कहा, "कुछ समय से मेरी पत्नी एक किताब पढ़ रही है। कहती है कि प्रभु वापस लौट आया है, और वह सक्रियता से सुसमाचार का प्रचार कर रही है। काफी बदल गई है। आप जानते हैं कि पहले प्रभु में उसकी आस्था कमजोर थी, वह बाइबल को ज्यादा नहीं पढ़ती थी। पता नहीं, अब वह इतने जोश से क्यों अनुसरण कर रही है।" यह सुनकर वे गंभीर लहजे में बोले, "वह खतरे में है! अब पूरे धार्मिक संसार में केवल चमकती पूर्वी बिजली ही प्रभु के वापस आने की गवाही देती है, और सिर्फ वे ही कुछ लोग हैं जो बाइबल नहीं पढ़ते। आपकी पत्नी ने शायद चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार कर लिया है। अगर वे चमकती पूर्वी बिजली में आस्था रखती हैं, तो प्रभु का उद्धार खो देंगी, और स्वर्ग के राज्य में उनके लिए कोई जगह नहीं होगी। उन्हें वापस लाने के लिए आपको जल्द कुछ-न-कुछ करना होगा।" यह सुनकर मैं बुरी तरह सिहर गया। मुझे फिक्र हुई कि गलत आस्था के कारण प्रभु मेरी पत्नी को त्याग देगा, और वह विपत्तियों में घिर जाएगी। मैंने पादरी चेन से पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए। वे थोड़ी देर सोचकर बोले, "मैं एक पादरी हूँ, बाइबल को आपसे बेहतर जानता हूँ। आपकी पत्नी जो किताब पढ़ रही हैं, उसे आज रात आप चुरा लें, मैं उस पर गौर करने में आपकी मदद करूँगा। मगर उन्हें पता न चलने दें।" तब मैंने सोचा कि बेहतर होगा कि पादरी इसके विश्लेषण में मेरी मदद करें। इस तरह मैं उसकी विषय-वस्तु भी जान सकूँगा और मुझे थोड़ी समझ हासिल हो सकेगी। अगर मेरी पत्नी की आस्था गलत थी, तो हम उसे लौटने को मना सकेंगे। उस रात, मैं चोरी-छिपे मेमने द्वारा खोली गई पुस्तक पादरी चेन के घर ले आया। पादरी चेन ने किताब ले ली, सरसरी तौर पर पन्ने पलटे, फिर किताब को मेज पर दे मारा। किताब के मुखपृष्ठ पर नजरें गड़ाकर वे घृणा से बोले, "हाँ, यह चमकती पूर्वी बिजली की किताब है। मुझे यकीन है कि आपकी पत्नी चमकती पूर्वी बिजली में आस्था रखती है। उनका प्रचार बहुत ऊँचा होता है, और ज्यादातर लोग उनकी बात काट नहीं पाते। जो लोग कड़ाई से अनुसरण करते हैं और बाइबल से परिचित हैं, वे उनकी किताबें पढ़ने के बाद बाइबल पढ़ना बिल्कुल छोड़ देते हैं। अगर वे बाइबल नहीं पढ़ते, तो क्या वे अब भी प्रभु के विश्वासी हैं? चमकती पूर्वी बिजली ने आपकी पत्नी से छल किया है। अगर वे वापस नहीं लौटतीं, तो स्वर्ग के राज्य के आशीष खो देंगी।" यह सुनकर मैं थोड़ा पसोपेश में पड़ गया, "बाइबल से अपरिचित लोगों को समझ नहीं होती, इसलिए उनका धोखा खाना आम बात है, लेकिन जो वर्षों से अगुआ रहे हों और बाइबल को अच्छी तरह जानते हों, वे चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास रखें, तो क्या इस किताब में कोई रहस्य छिपा है? वरना, बाइबल से परिचित लोगों को यह किताब इतनी ज्यादा क्यों भा जाती है, और वे चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास रखने लगते हैं? मैं बिल्कुल समझ नहीं पा रहा हूँ।" इसलिए मैंने पादरी से कहा, "आप बाइबल के बारे में बहुत-कुछ समझते हैं। किताब की सामग्री पर नजर डालकर इसमें कही गई बातों के बारे में मुझे बताएँ। अपनी पत्नी को वापस आने को मनाने के लिए क्या करूँ?" पादरी चेन को गंभीरता से यह कहते सुन मैं हैरान रह गया, "मैं एक पादरी हूँ, जीवन में सयाना हूँ, इसलिए मुझे यह किताब पढ़ने की जरूरत नहीं। हम प्रभु में आस्था से बचाए जा चुके हैं, और परमेश्वर के राज्य में ले जाने तक हमें बस उनकी प्रतीक्षा करनी है। अगर आपकी पत्नी आपको चमकती पूर्वी बिजली के बारे में बताए, तो उसमें विश्वास न करें। चमकती पूर्वी बिजली एक वित्तीय घोटाले के सिवाय कुछ नहीं। इस मामले में आप सिर्फ एक ही काम करें कि उन्हें ज्यादा पैसे न दें। अपना सारा पैसा खाते में जमा कर दें, उन्हें उस तक पहुँचने न दें और उनकी हर गतिविधि पर नजर रखें।" तब मुझे लगा, पादरी मुझसे ज्यादा जानते हैं, मेरी रक्षा के लिए ऐसा कर रहे हैं, तो मैंने उनकी बात मानने का फैसला किया। घर पहुँचा तो लगा पत्नी घर नहीं लौटी थी, तो मैंने किताब सावधानी से उसकी जगह रख दी, मगर रखने से पहले ही पत्नी दूसरे कमरे से बाहर आ गई। मैं चौंक गया, फिर उसने बेचैनी से पूछा, "क्या तुमने मेरी किताब ली थी?" अपनी चोरी का पता चल जाने के डर से मैंने झूठ बोला, "मैंने नहीं ली। तुम हमेशा चीजें यहाँ-वहाँ रख देती हो। मैं ढूँढने में मदद करता हूँ।" फिर मैंने कमरे को खँगाला, और आखिर में किताब निकालकर उसे पकड़ा दी और बोला, "यह रही। तुम हमेशा चीजें यहाँ-वहाँ रख देती हो। तुम्हें चीजों को उनकी जगह पर ही रखना चाहिए।" मेरी पत्नी बस मुझे घूरती रही, मन में दोष की भावना से मेरा चेहरा लाल हो गया था। सौभाग्य से मेरी पत्नी ने और कुछ नहीं पूछा। वह बस किताब लेकर चली गई। उस पल मुझे याद आया कि प्रभु यीशु हमें ईमानदार होने को कहता है। "तुम्हारी बात 'हाँ' की 'हाँ,' या 'नहीं' की 'नहीं' हो" (मत्ती 5:37)। लेकिन मैंने क्या किया था? मैंने प्रभु की शिक्षाओं और अपने अंत:करण के खिलाफ काम किया था, एक चोर जैसा काम किया था। लेकिन मैंने यह सोचकर खुद को सांत्वना दी कि ऐसा उसकी रक्षा के लिए किया था।

अगले दिन, मैंने बैंक जाकर अपने सभी बैंक खातों और कार्ड के पिन नंबर बदल दिए, सारा अतिरिक्त पैसा खाते में जमा कर दिया, ताकि पैसे सिर्फ खाने-पीने के लिए पर्याप्त हों। अप्रत्याशित रूप से पता चल जाने के बाद भी पत्नी कुछ नहीं बोली। अपनी किताब पढ़ने के अलावा उसने हमेशा की तरह अपना रोजमर्रा का काम निपटाया, और हमेशा की तरह मुझसे अच्छे ढंग से पेश आई। लेकिन मैंने शर्मिंदगी और बेचैनी महसूस की। मेरी कई साल से प्रभु में आस्था थी, फिर भी मैंने पत्नी से इतने घिनौने तरीके से बर्ताव किया। एक ईसाई को ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए। मुझे एहसास हुआ कि किताब पढ़ना शुरू करने के बाद से मेरी पत्नी बहुत बदल गई थी। मेरे ऐसे बर्ताव के बावजूद वह नाराज नहीं हुई थी। क्या किताब के वचनों ने उसे बदल दिया था? क्या मैं गलती कर रहा था? मेरी पत्नी जिस चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास रखती थी, क्या वह सचमुच प्रभु यीशु की वापसी है? मैं जानता था कि मुझे इन सबका पता लगाना था।

एक रात भोजन के दौरान मेरी पत्नी मुझे फिर से किताब पढ़ने को प्रोत्साहित कर बोली, "तुम कहते हो तुम प्रभु में आस्था से बचा लिए गए हो और जब वह आएगा, तो हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा। लेकिन हमारी माँ और भाभी को देखो, और फिर हमें देखो, हमने वर्षों से प्रभु में आस्था रखी है, फिर भी हम दिन में पाप करते हैं और रात में मान लेते हैं। हम पाप के बंधन से छूट नहीं पाते। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि पवित्रता के बिना हम प्रभु के दर्शन नहीं कर सकते। परमेश्वर पवित्र है, इसलिए अगर हम अभी भी बारम्बार पाप करते हैं, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के योग्य कैसे हो सकते हैं? अब प्रभु यीशु वापस लौट आया है। वह सत्य व्यक्त कर परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय कार्य करता है, ताकि लोगों को पूरी तरह से स्वच्छ कर हमें अपने राज्य में ले जा सके। स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य को स्वीकार करना होगा।" पत्नी की बात मुझे सार्थक लगी। हम अभी भी दिन में पाप करने और रात में मान लेने की स्थति में जीते हैं, और अभी भी पाप के बंधन से छूट नहीं सके हैं। प्रभु पवित्र है, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि क्या हमारे जैसे गंदे और भ्रष्ट लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। इसका एहसास होने पर मैंने हामी भरी। मेरी पत्नी ने देखा कि मैं प्रतिरोधी नहीं था, और खुशी-खुशी बोली कि अगले दिन प्रभु की वापसी के बारे में मुझे बताने के लिए दो बहनें आ सकती हैं। मैं उन्हें सुनने को राजी हो गया। मगर जानता था कि मुझे बाइबल की ज्यादा समझ नहीं है, इसलिए मैं चाहता था कि पादरी चेन भी आएँ ताकि उसे समझने और बहनों के साथ बहस में वे मेरी मदद कर सकें। इस तरह मैं समझ सकूँगा और देख सकूँगा कि किसके वचन बाइबल के ज्यादा अनुरूप हैं। तो मैंने पादरी चेन को इस बारे में बताया।

अगले दिन रात के भोजन के बाद सब लोग आ चुके थे। एक बहन ने संगति की, "प्रभु वापस आ चुका है, वह सत्य व्यक्त कर लोगों का न्याय और शुद्धिकरण करता है—" उसकी बात पूरी होने से पहले ही पादरी चेन जोर से चिल्लाकर बोले, "आप किस आधार पर कहती हैं कि प्रभु वापस आ चुका है? प्रभु यीशु में आस्था से हमारे पाप माफ किए जा चुके हैं। हम अनुग्रह से बचाए गए हैं। हमें इस न्याय कार्य की जरूरत नहीं। आप बाइबल को बिल्कुल नहीं समझतीं!" दूसरी बहन ने पादरी से कहा, "भाई सत्य के बारे में झगड़ा कर हम उसे नहीं पा सकते। प्रभु सचमुच वापस आ चुका है, और अगर आप वापस आए हुए प्रभु द्वारा व्यक्त सत्य को पढ़ें तो आप जान जाएँगे वह असली है या नहीं।" पादरी चेन ने बेसब्री से कहा, "मैं उसे क्यों पढ़ूँ? प्रभु वापस नहीं आया है। आप बाइबल को बिल्कुल नहीं समझतीं, तो फिर आप सुसमाचार का प्रचार क्यों कर रही हैं? मैं बाइबल के बारे में आपसे ज्यादा जानता हूँ और मैं यह सब नहीं मानूंगा।" दोनों बहनों ने अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के बारे में बताने के लिए बाइबल का संदर्भ लिया, लेकिन पादरी चेन ने बिल्कुल नहीं सुनी, वे उन्हें लगातार टोकते रहे, बोलने से रोकते रहे, जब तक दोनों बहनों के पास चले जाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा था। फिर वे मेरी पत्नी से बोले, "उनकी बातें न सुनें। आप बाइबल नहीं समझतीं, इसलिए उनसे धोखा न खाएँ और भविष्य में बाइबल को ज्यादा पढ़ें।" और बस इसी तरह पंद्रह मिनट से कम समय में वे सभी जा चुके थे। मैं बहुत हताश था। एक कलीसिया के पादरी के तौर पर, अगर कोई गवाही दे कि प्रभु वापस आ चुका है तो उसे खोज और जांच-पड़ताल करनी चाहिए, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोगों से बहस करनी चाहिए। अगर यह सचमुच प्रभु का वापस आना है तो हमें साथ मिलकर इसे स्वीकारना होगा, और नहीं है तो हमें थोड़ी समझ हासिल होगी। यह सभी के लिए अच्छा होगा। पादरी चेन इतने घमंडी क्यों थे? अगर वे सचमुच बाइबल को समझते थे, तो उन्हें उनके साथ उचित चर्चा करनी चाहिए थी। मैंने सोचा था कि उस शाम मुझे कुछ हासिल होगा। यह देखकर हैरत हुई कि मैं बहुत गलत था, पादरी चेन के बर्ताव से मैं नाखुश था। लेकिन उनकी संगति बाइबल पर आधारित थी, और दोनों बहनों ने बाइबल से बाहर की किसी भी बात पर संगति नहीं की थी। दोनों बाइबल के आधार पर तर्क दे रहे थे, तो फिर उनकी समझ और बयान इतने अलग क्यों थे? मैं बड़ी उलझन में था।

बाद में पत्नी और मैं हमारे गाँव चले गए, और स्थानीय कलीसिया के पादरी लियू और सहकर्मी लियांग मेरी पत्नी को चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास छोड़ने को मनाने के लिए मेरे घर आए, जब उन्होंने देखा कि वह नहीं सुन रही थी, तो सहकर्मी लियांग ने गुस्से से मेरी पत्नी की ओर उंगली उठाकर उसे नीचा दिखाया, उसे डराने के लिए चमकती पूर्वी बिजली की निंदा में कई बातें बोलीं। मैंने सोचा, "क्या यह इंसान अब भी प्रभु में विश्वास रखता है? मेरी पत्नी बस चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास रखती है। परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार आपको प्रेम से उसकी मदद कर उसका साथ देना चाहिए, न कि उस पर उंगली उठानी चाहिए।" मैं नाराज था, उससे बहस करना चाहता था, लेकिन तभी पादरी लियू मुझे दरवाजे से बाहर खींचकर बोले, "आपको अपनी पत्नी को मनाना होगा। चमकती पूर्वी बिजली में आस्था रखे उन्हें ज्यादा समय नहीं हुआ है, तो उन्हें प्रभु से अपने पाप मान लेने और प्रायश्चित्त करने को कहें, और अगर वे न मानें, और जरूरत पड़े तो आप पुलिस को बुला लें।" तब मुझे लगा पादरी लियू का यूँ कहना ठीक नहीं था, साथ ही मुझे यह भी लगा कि उन्हें रोकने का और कोई तरीका भी नहीं था। उनके जाने के बाद पत्नी ने मुझसे कहा, "प्रभु में आस्था रखते समय मैं निष्क्रिय और कमजोर थी, और मेरी आस्था उदासीन थी, लेकिन कोई भी पादरी या एल्डर मेरी मदद को नहीं आया। अब मैंने प्रभु का स्वागत किया है और तुम देख सकते हो मैं कितनी मेहनती हो गई हूँ। कह सकती हूँ कि उन्हें मेरी जरा भी परवाह नहीं। वे बस मुझे धर्म में वापस घसीटना चाहते हैं, ताकि मैं उन्हें चढ़ावे देती रहूँ, जब वे ऐसा नहीं कर पाते तो उनकी पूरी पकड़ बदल जाती है। उन्होंने मुझे उंगली दिखाई, मेरा अनादर किया और तिरस्कारपूर्ण बातें कहें। क्या यह प्रभु की शिक्षा के अनुरूप है? क्या वे प्रभु के विश्वासियों जैसा बर्ताव कर रहे हैं? आपको उन्हें समझना चाहिए, आँखें बंद कर उनकी बातें नहीं माननी चाहिए। यहूदी धर्म के विश्वासी प्रभु यीशु की निंदा में फरीसियों के पीछे चले, अंत में, उन्होंने प्रभु को सूली पर चढ़ा दिया और परमेश्वर के स्वभाव को नाराज किया।" पत्नी की बात सुनकर मुझे याद आया कि पादरी लियू ने कैसे कहा था कि वे मेरी पत्नी को वापस लाने आए हैं, मगर उन्होंने प्रेम और समर्थन का एक भी शब्द नहीं बोला। उनकी हर बात में डराना-धमकाना और निंदा थी। उन्होंने मुझे अपनी पत्नी को गिरफ्तार करवाने के लिए पुलिस बुलाने को भी कहा। क्या ऐसी बातें प्रभु के विश्वासी बोलेंगे? क्या यह मेरी पत्नी को खाई में धकेलने वाली बात नहीं होगी? मैं आग बबूला था, इसके बाद मैंने पादरियों पर फिर से भरोसा करने की हिम्मत नहीं की।

इस घटना के बाद भी मेरी पत्नी मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने को मनाती रही। मैं बहुत उत्सुक था। मैं देखना चाहता था कि इस किताब में है क्या, जिसने मेरी पत्नी की आस्था को इतनी शक्ति दी कि वह इसे पढ़ने के लिए मुझे मनाने का पक्का इरादा बना चुकी थी। मगर मैं नहीं चाहता था कि मेरी पत्नी को मेरे रवैये का पता चले, इसलिए मैं उसे बताने में बहुत शर्मिंदा था। एक दिन, जिस वक्त मेरी पत्नी घर पर नहीं थी, मैंने उसकी किताब उठाकर पढ़ी। मैंने पहला अध्याय खोलकर उसका शीर्षक पढ़ा, "प्रस्तावना।" किताब में मैंने जो पढ़ा, वह यह था : "यद्यपि बहुत सारे लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन कुछ ही लोग समझते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है, और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप बनने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यद्यपि लोग 'परमेश्वर' शब्द और 'परमेश्वर का कार्य' जैसे वाक्यांशों से परिचित हैं, लेकिन वे परमेश्वर को नहीं जानते और उससे भी कम वे उसके कार्य को जानते हैं। तो कोई आश्चर्य नहीं कि वे सभी, जो परमेश्वर को नहीं जानते, उसमें अपने विश्वास को लेकर भ्रमित रहते हैं। लोग परमेश्वर में विश्वास करने को गंभीरता से नहीं लेते और यह सर्वथा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर में विश्वास करना उनके लिए बहुत अनजाना, बहुत अजीब है। इस प्रकार वे परमेश्वर की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते। दूसरे शब्दों में, यदि लोग परमेश्वर और उसके कार्य को नहीं जानते, तो वे उसके इस्तेमाल के योग्य नहीं हैं, और उसकी इच्छा पूरी करने के योग्य तो बिलकुल भी नहीं। 'परमेश्वर में विश्वास' का अर्थ यह मानना है कि परमेश्वर है; यह परमेश्वर में विश्वास की सरलतम अवधारणा है। इससे भी बढ़कर, यह मानना कि परमेश्वर है, परमेश्वर में सचमुच विश्वास करने जैसा नहीं है; बल्कि यह मजबूत धार्मिक संकेतार्थों के साथ एक प्रकार का सरल विश्वास है। परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है: इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही 'परमेश्वर में विश्वास' कहा जा सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। इस बिंदु पर पहुँचकर, मुझे लगा कि कोई भी इंसान ऐसे वचन नहीं बोल सकता। परमेश्वर में हमारी आस्था में, इस विश्वास से परे कि सभी चीजों का सृजन परमेश्वर ने किया है, हमें परमेश्वर के वचनों और कार्य का अनुभव कर, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्याग देना चाहिए और परमेश्वर को जानना चाहिए। इन वचनों ने स्पष्ट कर दिया कि परमेश्वर में आस्था क्या होती है। प्रभु में आस्था के अपने तमाम वर्षों में, मैं बस इतना ही जानता था कि मुझे बाइबल पढ़नी है, और प्रार्थना कर धर्मोपदेश सुनने हैं। मुझे पादरियों की हर बात पर यकीन था, हर मामले में उनकी सुनता था। इसे परमेश्वर में विश्वास कैसे कहा जा सकता था? यह तो पादरियों में विश्वास था! मैंने ये वचन जितने पढ़े, मेरा दिल उतना ही उजला हो गया, मेरी वचन पढ़ने की चाह बलवती हो गई। जब भी मेरी पत्नी घर पर न होती, मैं पढ़ने के लिए चुपचाप किताब उठा लेता।

एक दिन, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : "ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। ये वचन पढ़ने के बाद, मुझे पादरियों और एल्डरों की तुरंत याद आई। वे बाइबल से परिचित थे, ऊपर से विनम्र, धैर्यवान और स्नेही लगते थे, और हमसे अक्सर प्रभु के आगमन के लिए चौकस होकर प्रतीक्षा करने को कहते थे, लेकिन जब किसी ने प्रभु के वापस लौट आने की वास्तविक गवाही दी, तो उन्होंने खोजने और जाँच-पड़ताल की जरा-सी भी इच्छा नहीं दिखाई। पादरी चेन ने मुझसे यह कहकर किताब चुराने को कहा कि वे उसकी जाँच में मेरी मदद करना चाहते हैं, तो यह तर्कसंगत है कि उन्हें भी इसकी विषय-वस्तु पढ़नी चाहिए थी, मगर उस पर नजर डाले बिना ही, उन्होंने गलत होने के लिए मेरी पत्नी की फौरन निंदा कर डाली। सहकर्मी लियांग ने मेरी पत्नी को डांट लगाई और निंदापूर्ण बातें कहकर उसे डराया-धमकाया, और पादरी लियू ने मुझसे कहा कि पुलिस को बुलाऊँ, अपनी पत्नी को धोखा दूँ और उसे उनके सुपुर्द कर दूँ। परमेश्वर के विश्वासी ऐसे काम कैसे कर सकते हैं? अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच में प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है, लेकिन पादरी खोजने और जाँच-पड़ताल में हमारी अगुआई करने के बजाय, राह में रोड़ा बनने की भरसक कोशिश करें, और यह भी चाहें कि अपनी पत्नी को गिरफ्तार करवाने के लिए मैं पुलिस को बुलाऊँ, तो क्या वे इन वचनों में बताए गए लोगों जैसे नहीं थे, राह के रोड़े और बाधाएं, जो हमें सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल से रोक रहे थे? क्या वे ऐसे लोग नहीं थे जो परमेश्वर में विश्वास के नाम पर परमेश्वर का प्रतिरोध कर रहे थे? मैंने सोचा कि जब प्रभु यीशु कार्य करने आया, तब फरीसियों ने भी खोज या जाँच-पड़ताल नहीं की, बल्कि उसका प्रतिरोध और निंदा करने की भरसक कोशिश की, और अंत में प्रभु को सूली पर चढ़ा दिया गया। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच में प्रभु यीशु का वापस आगमन था, तो पादरी वही कर रहे थे, जो फरीसियों ने अपने समय में किया था। मुझे लगा कि शायद पादरी और एल्डर प्रभु का प्रतिरोध करनेवाले लोग थे। तब मैंने सोचा, "अब मैं पादरियों की नहीं सुन सकता। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की सावधानी से जांच-पड़ताल करनी चाहिए।"

बाद में मेरी पत्नी ने मुझसे संगति के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई झाऊ को आमंत्रित किया। मैंने उनसे पूछा, "बाइबल में कहा गया है, 'क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्‍वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है' (रोमियों 10:10)। हम प्रभु में विश्वास रखते हैं और हम बचाए जा चुके हैं, हमें अभी भी न्याय कार्य के चरण के लिए परमेश्वर की जरूरत क्यों है?" भाई झाऊ ने संगति की, "प्रभु यीशु में विश्वास रखने से बचाए जाने का क्या अर्थ है? वास्तव में, 'उद्धार' उन लोगों के संदर्भ में है, जो प्रभु यीशु में विश्वास रखते हैं, प्रभु से प्रार्थना करते हैं और अपने पाप स्वीकार लेते हैं। हमारे पाप माफ कर दिए गए हैं, हमें व्यवस्था से दंडित नहीं किया गया है, और हम प्रभु की दी गई शांति, उल्लास, और प्रचुर अनुग्रह का आनंद उठाते हैं। अनुग्रह के युग में 'बचाए जाने' का यही अर्थ है। लेकिन हमारे पापी प्रकृति हमारे भीतर अब भी मौजूद है, हमने अब तक अपने पापों का त्याग नहीं किया है। परमेश्वर पवित्र है, परमेश्वर का राज्य एक पवित्र स्थान है, और परमेश्वर के लिए अब भी पाप करने वालों, उसका प्रतिरोध करने वालों को अपने राज्य में लाना नामुमकिन है। इसलिए अंत के दिनों में, परमेश्वर लोगों को अच्छी तरह शुद्ध करने के लिए न्याय कार्य का चरण पूरा करता है, इस तरह, लोग परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के योग्य हो जाते हैं।" भाई झाऊ ने यह भी कहा कि अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की बहुत पहले ही बाइबल में भविष्यवाणी की जा चुकी थी। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:48)। और 1 पतरस 4:17 में कहा गया है, "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए।" उन्होंने कहा, "इससे हम देख सकते हैं कि अंत के दिनों में वापस आने पर भी प्रभु सत्य व्यक्त करेगा, लोगों के न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करेगा, और न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य ये भविष्यवाणियाँ साकार करता है।" फिर भाई झाऊ ने परमेश्वर के वचन-पाठ का एक वीडियो दिखाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में)। "मनुष्य को उसके विश्वास के कारण केवल बचाया गया था और उसके पाप क्षमा किए गए थे, किंतु उसका पापी स्वभाव उसमें से नहीं निकाला गया था और वह अभी भी उसके अंदर बना हुआ था। मनुष्य के पाप देहधारी परमेश्वर के माध्यम से क्षमा किए गए थे, परंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य के भीतर कोई पाप नहीं रह गया था। पापबलि के माध्यम से मनुष्य के पाप क्षमा किए जा सकते हैं, परंतु मनुष्य इस समस्या को हल करने में पूरी तरह असमर्थ रहा है कि वह आगे कैसे पाप न करे और कैसे उसका भ्रष्ट पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया और रूपांतरित किया जा सकता है। मनुष्य के पाप क्षमा कर दिए गए थे और ऐसा परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने के कार्य की वजह से हुआ था, परंतु मनुष्य अपने पुराने, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीता रहा। इसलिए मनुष्य को उसके भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से पूरी तरह से बचाया जाना आवश्यक है, ताकि उसका पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया जा सके और वह फिर कभी विकसित न हो पाए, जिससे मनुष्य का स्वभाव रूपांतरित होने में सक्षम हो सके। इसके लिए मनुष्य को जीवन में उन्नति के मार्ग को समझना होगा, जीवन के मार्ग को समझना होगा, और अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के मार्ग को समझना होगा। साथ ही, इसके लिए मनुष्य को इस मार्ग के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता होगी, ताकि उसका स्वभाव धीरे-धीरे बदल सके और वह प्रकाश की चमक में जी सके, ताकि वह जो कुछ भी करे, वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हो, ताकि वह अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर कर सके और शैतान के अंधकार के प्रभाव को तोड़कर आज़ाद हो सके, और इसके परिणामस्वरूप पाप से पूरी तरह से ऊपर उठ सके। केवल तभी मनुष्य पूर्ण उद्धार प्राप्त करेगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))। "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। भाई झाऊ ने संगति की, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन स्पष्ट हैं। प्रभु यीशु ने सिर्फ छुटकारे का कार्य किया। उसने मानवजाति को पाप से पूरी तरह नहीं बचाया। हालाँकि हम प्रभु में आस्था रखते हैं, और हमारे पाप माफ किए जा चुके हैं, हमारी पापी प्रकृति अब भी हममें मौजूद है, और हम पाप के बंधन से बचकर नहीं निकल सकते। प्रभु में अपनी आस्था के वर्षों में हमने अक्सर झूठ बोला है, धोखा दिया है, हम घमंडी, अहंकारी, ईर्ष्यालु और लड़ने को तैयार भी रहे हैं। प्रभु के लिए हमारा त्याग और खपना सब परमेश्वर से आशीष के बदले में सौदेबाजी थी, और परीक्षणों और तकलीफों का सामना होने पर हम अब भी प्रभु का प्रतिरोध और आलोचना करते हैं, उसे धोखा देते हैं, वगैरह-वगैरह। अक्सर पाप में जीनेवाले, परमेश्वर का प्रतिरोध और आलोचना करनेवाले हम जैसे लोग, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के लायक कैसे हो सकते हैं? अंत के दिनों में मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना, भ्रष्ट मानवजाति की जरूरतों, और प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के आधार पर लोगों को पूरी तरह स्वच्छ कर बदलने, पाप से बचाने, और उन्हें स्वर्ग के राज्य में लाने के लिए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त कर न्याय कार्य करता है। अगर हम प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को ही स्वीकार कर बैठे रहें, तो हमारे शैतानी स्वभाव में बदलाव नामुमकिन हो जाएगा, हम हमेशा पाप और उसके बंधन में जीते रहेंगे, और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लायक नहीं बन पाएँगे। यही कारण है कि हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय कार्य और ताड़ना को स्वीकारना होगा, स्वभाव में बदलाव के मार्ग की समझ हासिल करनी होगी, अपना भ्रष्ट स्वभाव त्यागना होगा और परमेश्वर का आज्ञाकारी बन उससे डरना होगा। तभी हम परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकेंगे।"

उसकी संगति सुनकर मेरे दिल में उजाला छा गया। छुटकारा पाना सिर्फ पाप से क्षमा पाना है। इसका यह अर्थ नहीं कि हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। मेरी आस्था दस वर्षों से थी, मैं अक्सर प्रार्थना कर अपने पाप स्वीकारता था और परमेश्वर से माफी माँगता था, लेकिन मेरा भ्रष्ट स्वभाव बिल्कुल नहीं बदला था। साथ ही पादरी चेन, पादरी लियू और दूसरों ने, प्रभु में वर्षों की आस्था के बावजूद, प्रभु की वापसी की खबर मिलने पर न खोज-खबर ली, न जाँच-पड़ताल की, दूसरे विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने से रोका, यहाँ तक कि उसका प्रतिरोध और निंदा भी की। उन्होंने मुझे पुलिस को बुलाने और अपनी पत्नी को गिरफ्तार करवाने को प्रोत्साहित भी किया। जो लोग अब भी पाप कर परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कैसे कर सकते हैं? यह सोचकर मैंने भाई झाऊ से कहा, "हमने अब भी अपने पाप नहीं त्यागे हैं, इसलिए हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय कार्य जरूर स्वीकारना होगा।" फिर, मैंने उससे पूछा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर न्याय कार्य कैसे करता है, और उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़कर मुझे सुनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। भाई झाऊ ने संगति की, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर चीजें स्पष्ट रूप से समझाता है। परमेश्वर का न्याय कार्य वास्तव में परमेश्वर का लोगों के सामने अपने सत्य, मार्ग और जीवन को खोलना है। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य के सभी पहलू व्यक्त करता है, और परमेश्वर के धार्मिक और प्रतापी स्वभाव से, वह लोगों की शैतानी प्रकृति का न्याय कर उजागर करता है, उनकी कथनी और करनी का विश्लेषण करता है, और एक-एक कर परमेश्वर में हमारी आस्था की विविध धारणाओं और अनुचित मंशाओं, हमारे घमंडी, कपटी और अड़ियल शैतानी स्वभाव, और हमारे दिलों में गहरे दबी सोच और विचारों का खुलासा करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने पर लगता है जैसे परमेश्वर हमारे सामने ही हमारा न्याय कर खुलासा कर रहा है। हम अपनी शैतानी प्रकृति को समझ पाते हैं, शैतान की ओर से हुई अपनी भ्रष्टता का तथ्य देख पाते हैं, लोगों द्वारा अपमानित न किए जा सकने वाले परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की थोड़ी समझ पाते हैं, अपने दिलों में परमेश्वर का डर रखते हैं, खुद से घृणा कर दिल से प्रायश्चित्त करने में समर्थ होते हैं, सच्चा प्रायश्चित्त कर पाते हैं, और धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव को बदल पाते हैं।" परमेश्वर का कार्य बहुत व्यावहारिक है! पहले मैं परमेश्वर के कार्य को बहुत अलौकिक और अज्ञात मानता था। सोचता था कि एक बार प्रभु में विश्वास रख लेने के बाद मैं बचा लिया गया हूँ, और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ। यह परमेश्वर के कार्य की सच्चाई से बिल्कुल मेल नहीं खाता। इसका एहसास होने पर मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस आया हुआ प्रभु यीशु है, और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को खुशी-खुशी स्वीकार लिया। मुझे खुशी है कि मैं पादरियों के पास वापस नहीं गया। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो समझ आता है कि मैं किस तरह अपनी ही धारणाओं और कल्पनाओं से चिपका हुआ था, प्रभु की वाणी सुनने और उसका स्वागत करने से इनकार करता था और अपनी पत्नी की राह में रुकावट डाल रहा था। मैं बहुत अज्ञानी और अंधा था और इस बारे में सोचकर मुझे गहरा पछतावा होता है। लेकिन मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का बहुत आभारी हूँ कि उसने मुझ पर दया दिखाई, कदम-दर-कदम मुझे अपने पास लिया, ताकि आखिर मैं परमेश्वर की वाणी सुनकर प्रभु का स्वागत कर सकूँ।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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