मैंने अपने परिवार का जुल्म कैसे झेला
जब मैं छोटी थी, तो मेरी माँ अक्सर मुझसे कहती थी : "एक औरत के लिए अच्छा पति पाने और सामंजस्यपूर्ण परिवार होने से बेहतर कुछ नहीं है। केवल इन्हीं चीजों के साथ एक औरत खुश रह सकती है।" ऐसी सोच मेरे मन में गहराई तक समा गई थी, और मैं अच्छा पति पाने को तरसती थी जो बड़ी होने पर मेरी देखभाल करे। मगर चीजें वैसी नहीं हुईं जैसा मैं चाहती थी। मेरी पहली शादी बहुत दुख से भरी थी, इसने मुझे प्रभु यीशु में आस्था रखने के लिए प्रेरित किया। प्रभु की कृपा से मेरे मन को कुछ सुकून मिला, पर मेरी आस्था के कारण मेरा पति अक्सर मुझे पीटता था, आस्था जारी रखने के लिए मेरे पास उसे तलाक देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। बाद में कलीसिया की एक सहकर्मी यांग के परिचय से मैंने भाई वांग के साथ रिश्ता बनाया। यह देखकर कि उसका पूरा परिवार प्रभु में आस्था रखता है और वे मेरे लिए बहुत अच्छे थे, मुझे वास्तव में खुशी हुई। भाई वांग और मैंने संकल्प लिया कि हम प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करेंगे और एक साथ उसकी वापसी का इंतजार करेंगे।
साल भर बाद एक बहन ने मुझे प्रवचन सुनने बुलाया। हमारे बीच कुछ दिनों की संगति हुई और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर की छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना के रहस्य प्रकट करते हुए, अंत के दिनों का न्याय कार्य करके कई सत्य व्यक्त किए हैं। मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। मैं बहुत उत्साहित थी, जब मैं घर लौटी तो पति को जल्दी से खुशखबरी सुनाई, जिसे उसने भी खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। इसके बाद हमने अपनी कलीसिया में भाई-बहनों के साथ सुसमाचार साझा किया, जिनमें से कई ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर इसे परमेश्वर की वाणी माना, और अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया।
मगर ताज्जुब यह कि जब यांग को इसका पता चला तो वह उसी रात कुछ दूसरे सहकर्मियों के साथ पास की कई कलीसियाओं में गई, वहां लोगों को डराया और जिन्होंने अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकारा था, उन्हें आस्था से दूर रहने को कहा। अगली सुबह जल्दी ही वह बखेड़ा खड़ा करने मेरे घर आ गई, मुझसे रुखाई से पूछा : "तुमने न केवल चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार किया है, बल्कि दूसरे भाई-बहनों को भी इसमें आस्था रखने के लिए उकसाया है। क्या तुम प्रभु को धोखा नहीं दे रही हो?" मैंने जवाब दिया : "सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर मैंने प्रभु का स्वागत किया है। यह जानकर कि प्रभु लौट आया है और तब भी उसे न स्वीकारना—प्रभु के साथ विश्वासघात है।" लेकिन उन्होंने मेरी बिल्कुल नहीं सुनी, और यह कहते हुए मेरी निंदा की : "तुमने हमारी कलीसियाओं की भेड़ों का शिकार किया है। तुरंत प्रभु के सामने अपने पाप कुबूल करो, वरना प्रभु तुम्हें शाप और दंड देगा।" अपने दृढ़ विश्वास की ताकत के साथ मैंने जवाब दिया : "प्रभु यीशु ने कहा था, 'अच्छा चरवाहा मैं हूँ; मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं' (यूहन्ना 10:14)। भेड़ें परमेश्वर की हैं, किसी इंसान की नहीं। जिनकी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था है वे वो हैं जो परमेश्वर की वाणी सुनते हैं, प्रभु का स्वागत करते हैं और उसके नक्शेकदम पर चलते हैं।" यह देखकर कि वे मुझसे बहस नहीं कर सकते, उन्होंने चिढ़कर कहा : "हमने ये कलीसियाएं स्थापित की हैं, हमने इन लोगों को प्रभु में आस्था रखने के लिए बदला है। ये भेड़ें हमारी हैं और मैं तुम्हारे साथ हरेक को सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर आस्था रखने से रोकूँगी!" उन्होंने मेरे पति और सास को भी धमकाया : "कलीसिया ने हमेशा आपके मुश्किल वक्त में आपके परिवार की मदद की है, पर अगर झेंग लैन ने चमकती पूर्वी बिजली में आस्था रखी, तो हम संपर्क तोड़ देंगे और फिर कभी मदद नहीं करेंगे।" मेरी सास यह सुनकर डर गई और उसने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा : "चिंता न करो! मैं चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास नहीं रखती, और झेंग लैन को भी नहीं रखने दूँगी।" फिर उसने मुझसे कहा : "यह यांग ही थी जिसने मुझे सबसे पहले प्रभु में आस्था दिलाई और कई मौकों पर हमारी मदद की। हमें उसकी बात सुननी होगी। हम उसे निराश नहीं कर सकते। कुछ भी हो तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था नहीं रख सकती। इस परिवार में जो मैं कहूँगी, वही होगा, तो तुम सबको आस्था में मेरे पीछे चलना होगा!" यह सुनकर मेरे पति ने भी हथियार डाल दिए और कहा : "मैं अब तुम्हारे साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था नहीं रख सकता। यांग ने हमारी काफी मदद की, हमारी शादी हुई क्योंकि उसने हमारा परिचय कराया था। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखकर उसे निराश ही करूँगा। चूँकि मेरी माँ इसके खिलाफ हैं, तो मैं रोज कलह नहीं होने दे सकता।" यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने कहा : "तुमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े हैं, तुम्हें पता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है, पर यांग से संबंध बचाने के लिए तुम उसका अनुसरण करने को तैयार नहीं हो। तुम्हारी आस्था लोगों में है या परमेश्वर में?" मेरे पति झिझके और फिर कहा : "मैं मानता हूँ कि यह सच्चा मार्ग है, पर यांग कहती है कि अगर हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखा, तो वे हमारी मदद नहीं करेंगे। मैं यह विश्वास नहीं रख सकता।"
इसके बाद मेरी सास कई बार मेरे रास्ते में आईं। एक बार उन्होंने मुझसे कहा : "अगर हमने एक साथ प्रभु में अपनी आस्था रखी तो हमारा परिवार खुश रहेगा। तुम्हारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखने पर जोर है, मेरा बेटा और मैं प्रभु यीशु में आस्था रखते हैं, तो क्या तुम दोनों अलग-अलग आदर्शों और रास्तों को अपनाकर साथ रह पाओगे? क्या एक औरत को किसी मुकाम पर परिवार नहीं बनाना चाहिए? तुम्हारे बूढ़े होने पर तुम्हारी देखभाल कौन करेगा? तुम्हें सिरदर्द या बुखार होगा, तो कौन तुम्हें देखेगा? मेरा बेटा तुमसे बहुत प्यार करता है, अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखने की जिद करोगी, तो तुम्हारा तलाक हो जाएगा, और ऐसा हुआ तो तुम्हें घर से निकलना होगा। मैं यह सब तुम्हारे भले के लिए कह रही हूँ। अच्छी तरह सोच लो!" तब मैं थोड़ी असमंजस में थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था से क्या परिवार बिखर जाएगा? एक औरत के जीवन की सबसे बड़ी खुशी अच्छा पति पाना और एक स्थिर परिवार होना है। मैं परिवार को खोना नहीं चाहती थी, तो क्या मुझे सास की बात मानकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखनी छोड़ देनी चाहिए? इस बारे में इस तरह सोचने पर मुझे सच में अपराध बोध हुआ। क्या प्रभु में आस्था के इतने वर्षों में मुझे प्रभु की वापसी की लालसा नहीं थी? प्रभु यीशु वापस आ गए हैं, तो उनका अनुसरण न करने पर भी क्या मैं विश्वासी मानी जाती? मैं परमेश्वर का अनुसरण नहीं छोड़ सकती थी। तब तक मुझे अभी भी अपने पति के लिए आशा की किरण दिख रही थी। मुझे लगा कि अगर मैं रोज उसे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाती रहूँगी, तब उसे खुद समझ आ जाएगा और वह मेरे साथ आस्था रख पाएगा। इसके बाद समय मिलते ही मैं अपने पति के सामने परमेश्वर के वचन पढ़ती। मैं हमेशा परिवार के लिए अच्छा खाना बनाती, और पूरे घर को साफ-सुथरा रखती। चाहे मेरी सास ने मेरे बारे में कुछ भी कहा, मैंने उन्हें हमेशा की तरह उचित सम्मान दिया, उम्मीद थी कि इससे मेरा पति प्रेरित होगा, और हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में एक साथ आस्था रख पाएंगे। पर मेरी हर कोशिश के बावजूद, जब भी मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम लेती, मेरा पति नाराज हो जाता, जब मैं उसे परमेश्वर का वचन पढ़कर सुनाती तो वह सो जाता। पति को इस तरह देखकर मैं उदासीन हो गई। इस दौरान मुझे लगा कि परमेश्वर की भेड़ें उसकी वाणी सुनती हैं, और मेरे पति की आस्था सच्ची नहीं थी, वह सत्य का अनुसरण करने वाला इंसान नहीं था, उसे अपने साथ लाने के लिए मुझे भावनाओं पर नहीं चलना चाहिए, क्योंकि यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं था। अगर कोई परमेश्वर की भेड़ नहीं है और सत्य से प्रेम नहीं करता तो आप कितनी भी कोशिश करें, सब बेकार है। पूरे परिवार की आस्था हो सकती है, पर इससे यह तय नहीं होता कि सभी स्वर्गारोहित होंगे। यह प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी को भी पूरा करता है : "उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे; एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा" (लूका 17:34)। "उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा" (मत्ती 24:40)। कुछ समय बाद मेरे पति और सास-ससुर का उत्पीड़न गंभीर होता गया।
एक दिन बहन ली मुझे परमेश्वर के वचन की कुछ किताबें देने आई, तो मेरी सास ने आँगन में खड़े होकर उसे गाली-गलौज की और खूब हल्ला मचाया। मैं बहन ली को विदा करने ही वाली थी कि मेरी सास मेरे पति पर चिल्लाई : "जरा झेंग लैन की अकल ठिकाने लगाओ!" फिर मेरे पति ने एक मुर्गे को पकड़ा और पागलों की तरह मुझ पर फेंककर दे मारा। मैंने उसे चकमा दे दिया मुर्गा मेरी बगल में बने लोहे के दरवाजे से टकराकर नीचे गिरा और मर गया। मुझे मारने से चूक जाने पर मेरी सास मेरे पति पर गला फाड़कर चिल्लाई : "उसे मार! मार उसे!" मेरे पति की आँखों में खून उतर आया था, वह चिल्लाते हुए मेरे पास आया : "लगता है कि तू पिटे बिना नहीं मानेगी! तेरी यह इच्छा भी पूरी कर देता हूँ! अगर तूने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखी तो यहाँ से निकल जा!" मैं पति को देखकर बहुत डर गई, जो हमेशा मेरे साथ इतना उदार था, अचानक दुष्ट और राक्षस बन गया था। वह मुझसे दुश्मन की तरह इतनी नफरत कैसे कर सकता है? अपनी नफरत निकालने के लिए उसे मुझे मारने को उतावला देखकर मैं बहुत निराश हुई। मुझ पर उसे मुक्का उठाते देखकर मैंने जल्दी से मन में सुरक्षा के लिए परमेश्वर को पुकारा। मैंने पति से शांति से कहा : "प्रभु यीशु ने हमें अपने दुश्मनों से भी प्यार करना सिखाया है। मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूँ और मैंने तुम्हारे साथ कोई अन्याय नहीं किया है, तो तुम मुझे क्यों मार रहे हो? ऐसा करके क्या तुम प्रभु में विश्वासी रह भी पाओगे?" मेरे इतना कहते ही उसने मुझे पीटना बंद कर दिया। हालाँकि मेरी सास कठोर बनी हुई थी, वह बोली : "अगर झेंग लैन सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखती रही तो मैं गुस्से से मर जाऊँगी। परिवार में अब या तो वह रहेगी या मैं। तुम्हें पत्नी चाहिए या मैं?" बाद में मेरे पति ने मेरे सामने घुटने टेक दिए और आँसू भरकर कहा : "मैं तुमसे भीख माँगता हूँ, बस सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखना बंद कर दो। मुझे अपना आपा नहीं खोना चाहिए था और मैं तुम्हें फिर कभी नहीं मारूँगा। बस एक बार मेरी सुन लो और वो किताबें वापस दे दो। अगर मेरी माँ सच में गुस्सा करके मरी तो हम बुरी संतान माने जाएंगे, और हम अपना बाकी जीवन अपमान में बिताएंगे। अगर तुम मेरी माँ को नाराज नहीं करोगी तो मैं तुम्हें एक दिन शहर में रहने ले जाऊँगा, और हम एक साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखेंगे।" पति को इतना परेशान देखकर मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूँ। मुझे पता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मनुष्य को बचाने के लिए कई सत्य जारी किए हैं, मुझे उस पर भरोसा रखना था। लेकिन मैं परिवार को नहीं खोना चाहती थी। मैं अपने आँसू नहीं रोक सकी। अगर वह विचार बदलकर मेरे साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास कर पाया तो यह बहुत अच्छा होगा। अगर मैंने उसकी बात न मानी, फिर उसने चीजों को मुश्किल बना दिया और कुछ गलत हो गया तो मैं क्या करूँगी? अगर मैं सचमुच अपनी सास पर नाराज हो जाती तो न केवल मुझे बदतमीज करार दिया जाता, बल्कि पति मुझे घर से निकाल देता। इन नतीजों पर सोचने से मुझे हर तरफ शिथिलता और कमजोरी महसूस हुई। मुझे लगा जैसे मैं सचमुच बंधन में थी और इस स्थिति से उबर नहीं पा रही थी। फिर मैंने वह फैसला किया जिसका मुझे आज तक अफसोस है।
कुछ दिन बाद एक बहन मुझसे मिलने आई तो मैंने असहाय होकर उससे कहा : "अपनी सास को शांत करने के लिए मुझे परमेश्वर के वचन की ये पुस्तकें तुम्हें वापस करनी पड़ेंगी। मैं और मेरे पति अपनी आस्था का अभ्यास यहाँ से निकलकर ही कर पाएंगे।" बहन ने मुझे फिर से सोचने का आग्रह किया, पर परिवार को बचाने के लिए बहुत झिझक के बाद मैंने उससे परमेश्वर के वचन की पुस्तकें लेने को कहा। एक बार जब किताबें चली गईं, तो मेरे दिन बेचैनी और निराशा में बीतने लगे, जैसे मेरा मन खोखला हो गया हो। मेरा खाना-सोना छूट गया मेरा दिल सचमुच पीड़ा से भरा था। मेरी सास यह देखकर बहुत खुश थी कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ रही थी या सभाओं में नहीं जा रही थी, वह आँगन में खड़ी होकर गाना गाती, जब भी मुझे देखती तो और जोर से गाने लगती। मुझे लगता मानो शैतान मेरा मजाक उड़ा रहा है। मैं बहुत पछताई और परमेश्वर के वचन की पुस्तकें लौटाने के लिए खुद से नफरत करने लगी। मुझे रोज बेसुध देखकर मेरे पति मुझे खरीदारी करने और रिश्तेदारों से मिलाने ले गए। जब मैंने पति को अविश्वासियों के बीच, धूम्रपान करते, शराब पीते, गेम खेलते, और नशे में धुत होते देखा, कहीं से भी वह रत्ती भर विश्वासी नहीं लग रहा था, तब मुझे सच में निराशा हुई। मैं आखिर होश में आई। मेरा पति साफ जानता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, फिर भी उसने यांग और मेरी सास की बात सुनी। न केवल उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास नहीं किया, बल्कि मुझे सताया और विश्वास रखने से रोका। वह अब प्रभु यीशु के वचनों का भी पालन नहीं कर रहा था, वह प्रभु से प्रार्थना नहीं करता था, न बाइबल पढ़ता था, बल्कि धूम्रपान करता और शराब पीता था। उसकी बोली और व्यवहार पूरी तरह गैर-ईसाई के थे। वह एक गैर-विश्वासी था, तो मेरे साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर कैसे विश्वास कर पाता? अचानक मुझे होश आया, मेरे पति का यह कहना कि एक दिन वह मेरे साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखेगा, असल में परमेश्वर के वचन की किताबें वापस कराने की चाल थी, ताकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण न करूँ, उसकी माँ को शांत रखूँ, और दिलोजान से उसके परिवार की सेवा करती रहूँ। क्या यह मुझे परमेश्वर से अलग कर उससे विश्वासघात कराने की शैतान की चाल नहीं थी? मैं इतनी अंधी और अज्ञानी थी कि मैंने शैतान की चालें सफल होने दीं। मुझे भाई-बहनों के साथ सभा करने और परमेश्वर के वचन पढ़ने के दिन बेहद याद आए, मैं उस आनंद से चूक गई जो परमेश्वर के वचन की संगत में मिलता था। बाद में मैंने उस बहन को खोजा जिसके साथ मैंने बैठक की थी, पर वह पहले ही दूर जा चुकी थी, और मुझे नहीं पता था कि दूसरे भाई-बहन कहाँ रहते थे। रोते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, मुझे रास्ता दिखाने को कहा। मुझे याद आया कि घर पर अभी भी परमेश्वर के वचनों के भजन वाला एक टेप रखा था। मैं बेहद उत्साहित थी और मैंने बार-बार परमेश्वर को धन्यवाद दिया। पहला भजन जो बजा वह था, "दुख से भर जाते हैं दिन परमेश्वर के बिन।" "जब किसी व्यक्ति का कोई परमेश्वर नहीं होता है, जब वह उसे नहीं देख सकता है, जब वह स्पष्टता से परमेश्वर की संप्रभुता को समझ नहीं सकता है, तो उसका हर दिन निरर्थक, बेकार, और हताशा से भरा होगा। कोई व्यक्ति जहाँ कहीं भी हो, उसका कार्य जो कुछ भी हो, उसके आजीविका के साधन और उसके लक्ष्यों की खोज उसके लिए बिना किसी राहत के, अंतहीन निराशा और असहनीय पीड़ा के सिवाय और कुछ लेकर नहीं आती है, ऐसी पीड़ा कि वह पीछे अपने अतीत को मुड़कर देखना भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। केवल तभी जब वह सृजनकर्ता की संप्रभुता को स्वीकार करेगा, उसके आयोजनों और उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करेगा, और एक सच्चे मानव जीवन को खोजेगा, केवल तभी वह धीरे-धीरे सभी निराशाओं और पीड़ाओं से मुक्त होगा, और जीवन की सम्पूर्ण रिक्तता से छुटकारा पाएगा" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। यह सुनते ही मेरे आँसू छलक पड़े। मैंने घुटने टेके और परमेश्वर से प्रार्थना की : "हे परमेश्वर! तुम्हारे बिना मेरे दिन सचमुच अंधेरे में और पीड़ा से भरे रहे हैं। मेरा जीवन पूरी तरह आशा के बगैर रहा और मैंने मर जाना बेहतर समझा। तुमने मुझ पर कृपा दिखाई ताकि मैं तुम्हारे सामने आ सकूँ, तुमने भाई-बहनों को मेरा सिंचन और मदद करते रहने को प्रेरित किया। यह सब तुम्हारा प्यार है। मगर मैं इसे संजो नहीं पाई और मैंने अपने परिवार की रक्षा के लिए तुम्हें धोखा दिया। मुझमें सचमुच समझ नहीं थी। परमेश्वर, मेरे विद्रोह के बाद भी तुम मुझे प्रबुद्ध करते हो, अपने वचनों से मेरे दिल को प्रेरित करते हो। मैं सच में तुम्हारी ऋणी हूँ। मैं अपने रास्ते बदलना चाहती हूँ। चाहे मेरा परिवार मुझे जितना सताए, मैं दिल से तुम्हारा अनुसरण करूँगी।" प्रार्थना के बाद मुझे वास्तव में शांति और सुकून मिला। ताज्जुब यह कि मैं अगले ही दिन सड़क पर एक बहन से मिली। मैं इतनी खुश थी जैसे लंबे समय से खोए रिश्तेदार से मिल रही हूँ। मुझे पता था कि यह मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम था और मैंने दिल की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद दिया।
जब मेरे पति ने देखा कि मैंने फिर से सभाओं में जाना शुरू कर दिया, तो उसने मेरी बाइक तोड़ने और मुझे पीटने की धमकी दी। मेरी सास ने भी मुझे पहले की तरह फिर से सताना शुरू कर दिया, पर अब चाहे वो जितना सताएं, मैं उनकी बात नहीं मानती थी। सामान्य रूप से सभा करने के लिए मुझे घर का सारा काम जल्द से जल्द पूरा करने को रोज जल्दी उठना और देर से सोना पड़ता था ताकि मुझे परमेश्वर के वचन इकट्ठा करने और पढ़ने का समय मिल पाए। हालाँकि मैं घर का सारा काम संभालती थी और कभी-कभी पूरी तरह थक जाती थी, फिर भी मेरे प्रति मेरे पति और सास का रवैया बिल्कुल नहीं सुधरा। असल में उत्पीड़न बढ़ता गया। जब वे मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ते देखते तो मेरा मजाक उड़ाते, कहते : "क्या किताब पढ़ना, खाने की जगह ले सकता है? यदि तुम इधर-उधर घूम रही हो तो काम कौन कर रहा है?" एक बार जब मैं पेटदर्द के कारण आराम करना चाहती थी और काम नहीं कर पाई तो मेरे पति ने मुझसे गुस्से में कहा : "और उन चीजों का क्या जो मैं चाहता हूँ कि तुम करो? तुम नहीं करोगी तो कौन करेगा?" मेरी सास ने मुझे कुछ दर्द निवारक दवाएं लाकर दीं, और उन्हें खाकर काम करने को कहा। उन्हें मेरे साथ ऐसा बर्ताव करते देखकर वाकई मेरा दिल टूट गया। मैंने इस परिवार के लिए दिन-रात कुत्ते की तरह कष्ट सहे और काम किया, और फिर भी उन्हें मेरा जरा भी खयाल या परवाह नहीं थी। मैं इस घर में परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पा रही थी और बीमार होने पर मुझे आराम करने का भी हक नहीं था। क्या मैं ऐसा परिवार चाहती थी? क्या यही "खुशी" थी? इस तरह जीना बहुत दमनकारी और दर्दनाक है। मैंने परमेश्वर का वचन पढ़ा : "वे घातक प्रभाव, जो हज़ारों वर्षो की 'राष्ट्रवाद की बुलंद भावना' ने मनुष्य के हृदय में गहरे छोड़े हैं, और साथ ही सामंती सोच, जिसके द्वारा लोग बिना किसी स्वतंत्रता के, बिना महत्वाकांक्षा या आगे बढ़ने की इच्छा के, बिना प्रगति की अभिलाषा के, बल्कि निष्क्रिय और प्रतिगामी रहने और गुलाम मानसिकता से घिरे होने के कारण बँधे और जकड़े हुए हैं, इत्यादि—इन वस्तुगत कारकों ने मनुष्यजाति के वैचारिक दृष्टिकोण, आदर्शों, नैतिकता और स्वभाव पर अमिट रूप से गंदा और भद्दा प्रभाव छोड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मनुष्य आतंक की अँधेरी दुनिया में जी रहे हैं, और उनमें से कोई भी इस दुनिया के पार नहीं जाना चाहता, और उनमें से कोई भी किसी आदर्श दुनिया में जाने के बारे में नहीं सोचता; बल्कि, वे अपने जीवन की सामान्य स्थिति से संतुष्ट हैं, बच्चे पैदा करने और पालने-पोसने, उद्यम करने, पसीना बहाने, अपना रोजमर्रा का काम करने; एक आरामदायक और खुशहाल परिवार के सपने देखने, और दांपत्य प्रेम, नाती-पोतों, अपने अंतिम समय में आनंद के सपने देखने में दिन बिताते हैं और शांति से जीवन जीते हैं...। सैकड़ों-हजारों साल से अब तक लोग इसी तरह से अपना समय व्यर्थ गँवा रहे हैं, कोई पूर्ण जीवन का सृजन नहीं करता, सभी इस अँधेरी दुनिया में केवल एक-दूसरे की हत्या करने के लिए तत्पर हैं, प्रतिष्ठा और संपत्ति की दौड़ में और एक-दूसरे के प्रति षड्यंत्र करने में संलग्न हैं। किसने कब परमेश्वर की इच्छा जानने की कोशिश की है? क्या किसी ने कभी परमेश्वर के कार्य पर ध्यान दिया है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (3))। परमेश्वर के वचन पढ़ना खत्म होते ही, मेरे आँसू बह निकले। परमेश्वर का वचन मेरी स्थिति का खुलासा कर रहा था। मैं सामंती सोच से इतनी बंधी थी कि मुझे कोई आजादी नहीं थी। छोटी उम्र से ही मैं "युवापन में शादी करो ताकि बुढ़ापे में साथी रहे", "तुम्हारा पति तुम्हारी चट्टान है और परिवार तुम्हारा आश्रय" जैसे विचारों के काबू में रही थी, इसलिए मैंने हमेशा खुशहाल घर, वैवाहिक जीवन का आनंद, सामंजस्यपूर्ण परिवार और खुशियों से भरे जीवन का सपना देखा। मगर हकीकत मेरी चाहत से बिल्कुल अलग थी। मेरी पहली शादी में सुख नहीं था, और पति मेरी आस्था के कारण मुझे प्रताड़ित करता और पीटता था। दूसरे पति के साथ घर बसाने के बाद मुझे वह परिवार सचमुच अच्छा लगा, एक खुशहाल जीवन जीने के लिए मैं सुबह से शाम तक बिना उफ किए घर को संभालती थी, जब तक कि मेरी पीठ दर्द न करने लगती। लेकिन मेरे पति और सास ने मेरी परवाह नहीं की, उन्होंने मुझे सताया, पाबंदियां लगाईं, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने दिए, और बीमार होने पर भी काम करने को मजबूर किया। मैं गुलाम की तरह थी। यह कोई परिवार नहीं था! इस परिवार के बिना, कम से कम मैं परमेश्वर में आजादी से विश्वास रखने, उसके वचन पढ़ने, और अक्सर भाई-बहनों के साथ सभा और संगति करने में सक्षम होती। यह परिवार मेरे जीवन का गला घोंट रहा था, यह मेरा फंदा और बेड़ियां बन गया था। यह मेरी आस्था या कर्तव्य निर्वहन के लिए सही नहीं था। यह परिवार मेरी जिंदगी बर्बाद कर देता। आखिर मैं जाग गई थी। मैंने हमेशा सुखी परिवार की कल्पना की थी, पर सभी को शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है और वे भ्रष्ट स्वभाव से भरे हैं। लोग बेहद घमंडी, दंभी, कुटिल, धूर्त और स्वार्थी हैं। मुझे लगता है कि जिस खुशहाल शादी को मैं तरसती थी, उसका दुनिया में कोई अस्तित्व नहीं है। "युवापन में शादी करो ताकि बुढ़ापे में साथी रहे" और "तुम्हारा पति तुम्हारी चट्टान है और परिवार तुम्हारा आश्रय" जैसे विचार सिर्फ झूठ और चालबाजी हैं, जिन्हें शैतान लोगों को धोखा देने और चोट पहुँचाने को इस्तेमाल करता है! परमेश्वर के वचन के प्रकाशन से मैंने अपने परिवार के सार की थोड़ी समझ हासिल की। मैं पहले कितनी अंधी और अज्ञानी थी! परमेश्वर में विश्वास करके मैं सही जीवन पथ पर थी, अब वो मुझे विवश नहीं कर सकते थे। मुझे पूरा समय सभा करने और कर्तव्य निभाने में लगाना था। इसलिए मैंने पति से कहा : "मैं केवल परमेश्वर में आस्था के कारण तुम्हारे साथ आई थी। मैं प्रभु की वापसी का स्वागत करती हूँ और यदि आपको विश्वास नहीं है तो भी मैं विश्वास करूँगी। भले ही हम तलाक ले लें, मैं सभा करना और सुसमाचार फैलाना जारी रखूँगी।" मेरा संकल्प देखकर वह मेरे रास्ते में न आने को मान गया। मगर अच्छी चीजें देर तक नहीं टिकतीं, जल्द ही उसने मुझे फिर सताना शुरू कर दिया।
एक बार कुछ भाई-बहन मेरे घर एक सभा के लिए आए। एक बहन की बाइक के टायर में हवा नहीं थी, तो उसमें हवा डालने को मैंने पंप निकाला। मगर यह देख मेरी सास ने शोर मचा दिया और शातिराना नजर से देखते हुए पंप छीन लिया। वो बहन घबरा गई, मेरी सास ने मुझे डांटा और दांत पीसे : "मैंने तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखने से मना किया है, पर तुम नहीं मानती। अब मैं तुम्हें बताती हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखने देने से अच्छा मैं तुमको ही यहाँ से निकाल दूँगी..." यह कहकर उन्होंने चिल्लाते हुए मुझे पीटना शुरू कर दिया। और तब तक पीटा जब तक मेरा सिर नहीं घूमने लगा। मुझे पिटती देख भाई-बहन मेरी सास को रोकने की कोशिश ममें आगे आए, पर वह उन पर चिल्लाई : "मैं तुम सभी को पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो भिजवाऊँगी, फिर देखती हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में कैसे आस्था रखोगे!" तब तक भीड़ हंगामा देखने को सड़क पर जमा हो गई थी। मुझे लगा था कि पति उनसे बात करके उन्हें चुप कराएगा, पर मुझे ताज्जुब हुआ जब अपनी माँ के गुस्से के चलते उसने मेरे सिर के पीछे मुक्का मारा, जिससे मैं बेहोश हो गई। मारपीट के कारण पति मेरे मन से उतर गया और मैं आत्मचिंतन करने लगी : मेरा इस परिवार में बने रहने का क्या मतलब है?
बाद में मुझे परमेश्वर का वचन याद आया : "पति अपनी पत्नी से क्यों प्रेम करता है? पत्नी अपने पति से क्यों प्रेम करती है? बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार की इच्छाएँ पालते हैं? क्या उनकी मंशा उनकी खुद की योजनाओं और स्वार्थी आकांक्षाओं को पूरा करने की नहीं है? ... आज लोगों में एक दूसरे के बीच भौतिक संबंध होते हैं, उनके बीच खून के रिश्ते होते हैं, किंतु भविष्य में, यह सब ध्वस्त हो जाएगा। विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचन के प्रकाशन से मैं समझ गई कि सभी को शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है और सभी लोग स्वार्थी हैं। पति और पत्नी केवल अपनी स्वार्थी इच्छाएं पूरी करने और एक दूसरे का इस्तेमाल करने के लिए साथ रहते हैं। मेरे पति की मीठी बातें और मेरी परवाह सिर्फ मेरा इस्तेमाल करने के लिए थी, ताकि मैं बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल और घर का काम करूँ, और मैंने उससे शादी इसलिए की थी ताकि वह मेरा सहारा बनकर रहे। ऐसे रिश्ते में सच्चा प्यार कहाँ होगा? यह सच्चा प्यार नहीं है। मेरा पति हमेशा परमेश्वर में आस्था रखने और उसके वचन पढ़ने के रास्ते में आ रहा था, और उसे परमेश्वर ने काफी समय पहले अविश्वासी के रूप में उजागर कर दिया था। जैसे परमेश्वर का वचन खुलासा करता है : "विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं।" मगर मैंने उसे कभी जाने नहीं दिया और हमेशा परिवार चलाने की इच्छा रखी। मैं सचमुच मूर्ख थी। मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : "यदि कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है! शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे नहीं, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते? क्या ये वे लोग नहीं, जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं? क्या ये वे नहीं, जो विश्वास करने का दावा तो करते हैं, परंतु उनमें सत्य नहीं है? क्या ये वे लोग नहीं, जो सिर्फ़ आशीष पाने की फ़िराक में रहते हैं जबकि परमेश्वर के लिए गवाही देने में असमर्थ हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं पति के सार को और अधिक साफ तौर पर देख पाई। मेरे पति को प्रभु यीशु के नाम में आस्था थी, मगर सार रूप में वह केवल परमेश्वर से अनुग्रह और आशीष चाहता था। उसका कुछ पाने में विश्वास था वरना वह आस्था भी न रखता। जब उसने प्रभु की वापसी का सुना तो सोचा कि वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर जीवन जी सकता है, तो उसने इसे सहर्ष स्वीकार लिया। लेकिन जब धार्मिक लोगों ने उसे बाधित किया और ठुकराया, तो उसने न केवल आस्था रखनी बंद कर दी, बल्कि मुझे सताया और मेरा रास्ता रोका। उसका सार शैतान का था—जो परमेश्वर का दुश्मन था। लोगों के जैसे सार होते हैं, वैसे ही वो रास्ते अपनाते हैं, यहां तक कि परिवार भी दुश्मन बन सकते हैं। यह वास्तव में उस वचन की पुष्टि करता है जो प्रभु यीशु ने कहा : "मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे" (मत्ती 10:36)। मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े। "क्यों वह परमेश्वर के दिल के प्रति इतना लापरवाह है? क्या वह चुपचाप इस दमन और कठिनाई को माफ़ कर देता है? क्या वह उस दिन की कामना नहीं करता, जब वह अंधेरे को प्रकाश में बदल सके? क्या वह एक बार फिर धार्मिकता और सत्य के विरुद्ध हो रहे अन्याय को दूर नहीं करना चाहता? क्या वह लोगों द्वारा सत्य का त्याग किए जाने और तथ्यों को तोड़े-मरोड़े जाने को देखते रहने और कुछ न करने का इच्छुक है? क्या वह इस दुर्व्यवहार को सहते रहने में खुश है? क्या वह गुलाम होने के लिए तैयार है? क्या वह इस असफल राज्य के गुलामों के साथ परमेश्वर के हाथों नष्ट होने को तैयार है? कहां है तुम्हारा संकल्प? कहां है तुम्हारी महत्वाकांक्षा? कहां है तुम्हारी गरिमा? कहां है तुम्हारी सत्यनिष्ठा? कहां है तुम्हारी स्वतंत्रता? ... वह क्यों नहीं जितनी जल्दी हो सके, परमेश्वर को अपना जीवन सौंप देता? वह क्यों अभी भी डगमगाता है? वह कब परमेश्वर का कार्य समाप्त कर सकता है? इस प्रकार निरुद्देश्य ढंग से तंग और प्रताड़ित किए जाते हुए उसका पूरा जीवन अंततः व्यर्थ ही व्यतीत हो जाएगा; उसे आने और विदा होने की इतनी जल्दी क्यों है? वह परमेश्वर को देने के लिए कोई अनमोल चीज़ क्यों नहीं रखता? क्या वह घृणा की सहस्राब्दियों को भूल गया है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचन ने मुझे उसके तात्कालिक इरादे समझने में मदद की। परमेश्वर मानवजाति की चिंता करता है और नहीं चाहता कि हम अनंतकाल तक शैतान के बंधन और पीड़ा में जीवन जिएं। वह चाहता है कि हम अंधकार की शक्तियों के बंधनों से आजाद होकर उसे अपना जीवन सौंप दें और प्रकाश में रहें। लेकिन मैं ऐसी कायर थी। मेरे पति और सास शैतान के साथी हैं और वे मेरी आस्था के रास्ते में खड़े थे, मुझे पीट रहे थे, डांट रहे थे और सता रहे थे, पर मैं इस परिवार को छोड़ना सहन नहीं कर पाई। इसलिए मैंने अन्याय और अपमान सहा और एक गुलाम की तरह मेरा जीवन पति और परिवार के इर्द-गिर्द घूमता रहा, मैं बेकार बातों में उलझी रही। परमेश्वर मुझे सही रास्ते पर चलने को प्रेरित कर रहा था, उसने ऐसे सत्य व्यक्त किए थे जिनसे मुझे मानव जीवन का अर्थ और मूल्य समझ आया था, पर मेरे पास उस पर चलने का संकल्प नहीं था। मैं वास्तव में अभागी थी। प्रभु यीशु ने कहा था, "जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो बेटा या बेटी को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं" (मत्ती 10:37)। परमेश्वर ने मुझे चुना और बचाया—मुझे सत्य और जीवन दिया। मुझे परमेश्वर का अनुसरण और उससे प्रेम करना चाहिए। मेरे पति और सास दोनों ने परमेश्वर का विरोध किया, वे मेरे प्यार या उत्साह के लायक नहीं थे। मैं कितनी अज्ञानी और अंधी थी। मैंने हमेशा वैवाहिक सद्भाव और पारिवारिक आनंद की तलाश की। मेरा आधा जीवन बेकार चला गया। मुझे बचे हुए दिन परमेश्वर को संतुष्ट करने में लगाने चाहिए। अब हम राज्य का सुसमाचार फैलाने के अहम समय में हैं, और अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए अधिक लोगों की जरूरत है, ताकि ज्यादा लोग अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार पा सकें। मुझे परमेश्वर का सहयोग करना चाहिए और पूरी क्षमता से अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। अर्थपूर्ण और मूल्यवान जीवन जीने का यही तरीका है।
कुछ समय बाद मैंने सुसमाचार फैलाने के लिए घर छोड़ दिया। मैंने हर दिन भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के वचन पर संगति करने और कर्तव्य निभाने लगी, इससे मेरे दिल को काफी सुकून मिला और मैं आजाद महसूस करने लगी। अब कभी-कभी जब मुझे अपने कर्तव्य में कठिनाइयाँ आती हैं या जब मैं बीमार होती हूँ, तो बहनें हमेशा मेरी मदद और देखभाल करती हैं। वे मुझे परिवार की तरह मानती हैं। यह सब परमेश्वर का प्रेम है। अब मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर मेरी असली चट्टान है, और परमेश्वर का घर मेरा असली परिवार है। मैं तहेदिल से परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?