परमेश्वर के राज्य का मार्ग हमेशा आसान नहीं होता (I)
मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ, बचपन से ही मैं प्रभु में विश्वास रखने में अपने माता-पिता के साथ चलने लगा। अक्सर कलीसिया की सभाओं में जाता, कलीसिया की विभिन्न गतिविधियों में भाग लेता। मार्च 2020 में, एक दिन, फेसबुक पर मेरी एक बहन से मुलाकात हुई। हमने प्रभु में विश्वास रखने के बारे में बात की, मुझे लगा कि इस बहन ने जो बातें बताईं वे बड़ी अनोखी थीं। मिसाल के तौर पर, उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के मानदंड जानता हूँ, इस विषय ने फौरन मेरी जिज्ञासा जगा दी। मुझे लगा, "मैंने प्रभु में इतने लंबे समय से विश्वास रखा, लेकिन पादरियों और एल्डरों ने स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के मानदंडों पर कभी भी चर्चा नहीं की। मैंने भी कभी नहीं सोचा कि जैसा विश्वास हम रखते हैं, उससे क्या सच में स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।" इस विषय के बारे में सुनने का यह मेरा पहला मौका था, और मुझे इसका जवाब जानने की जिज्ञासा थी। फिर, सभाओं में भाग लेकर और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं समझ गया कि शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद, हमारे भीतर पापी प्रकृति होती है, और हम अक्सर पाप करते हैं। अगर हम इस पापी प्रकृति को खत्म न करें, तो हम पाप से बच नहीं सकते। जो लोग इस कदर गंदे और भ्रष्ट हो चुके हैं, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने योग्य नहीं हैं, क्योंकि परमेश्वर धार्मिक और पवित्र है, और लोग पवित्र हुए बिना परमेश्वर के दर्शन नहीं कर सकते। उसने मुझे यह भी बताया, "प्रभु यीशु अनेक सत्य व्यक्त करने, और लोगों का न्याय कर उन्हें शुद्ध करने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। ऐसा वह हमारी पापी प्रकृति को खत्म करने और हमें पाप से पूरी तरह बचाने के लिए करता है। सिर्फ परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य को स्वीकार करके, और अपनी भ्रष्टता से शुद्ध होकर ही हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने योग्य बनते हैं।" उसने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन भी पढ़कर सुनाए। "तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अंत के दिनों में उतरेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे उतरेगा? तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में)। "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। उस बहन ने परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ के बारे में भी संगति की। इसे सुनकर, मैंने अपने और भाई-बहनों के कर्मों और आचरण के बारे में सोचा। मुझे मानना पड़ा कि प्रभु में हमारी आस्था में, हमारे पाप माफ कर दिए गए थे, हमने प्रभु के भरपूर अनुग्रह का आनंद पाया था, हमने कुछ नेक कर्म किए थे, हम दयालु थे, हम कभी किसी को डाँटते या पीटते नहीं थे, मगर अब भी हम झूठ बोल सकते थे, पाप कर सकते थे, घमंडी थे, दूसरों को नीची नजर से देखते थे, शोहरत और फायदे के लिए दूसरों से होड़ लगाते थे, अभी भी दूसरों से ईर्ष्या और घृणा करते थे। हम सब पाप करने और स्वीकारने के कुचक्र में जी रहे थे, लगातार पाप से संघर्ष कर रहे थे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद ही मैं समझ पाया, ऐसा इसलिए था कि हमारी पापी प्रकृति खत्म नहीं की गई थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से मुझे पाप से दूर जाने और परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का रास्ता भी मिला। यानी हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य को स्वीकारना होगा। सिर्फ अपने भ्रष्ट स्वभाव के शुद्ध किए जाने के बाद ही हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के योग्य होंगे। मुझे लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत अच्छे और व्यावहारिक हैं। उसके वचनों ने मेरे दिल को रोशन कर दिया, मुझे उन सत्यों की समझ दी, जो मैंने पहले नहीं सुने थे। फिर, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बड़ी लगन से पढ़े, सक्रिय होकर ऑनलाइन सभाओं में भाग लिया, परमेश्वर के वचनों के ज्ञान और समझ के बारे में भाई-बहनों के साथ संगति की, हमारी हर मुलाक़ात मुझे ज्ञानवर्धक लगती, आनंद देती। कुछ समय बाद, मैं ऐसे अनेक सत्य और रहस्य जान गया, जो प्रभु में अपनी आस्था और बाइबल के पाठ से मैं पहले नहीं जान पाया था, जैसे कि देहधारण क्या है, सच्चे मसीह और झूठे मसीह में कैसे भेद करें, परमेश्वर के नाम का रहस्य और परमेश्वर की प्रबंधन योजना का उद्देश्य क्या है, शैतान मानवजाति को कैसे भ्रष्ट करता है, इंसान को बचाने के लिए परमेश्वर कदम-दर-कदम कैसे कार्य करता है, पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य कैसे साकार होता है, आदि-आदि। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में, बाइबल की उन बहुत-सी बातों के जवाब भी मिले, जिन्होंने पहले मुझे उलझा रखा था। मुझे एहसास हुआ कि एकमात्र परमेश्वर ही ये सत्य और रहस्य प्रकाशित कर सकता है, किसी भी इंसान में इन रहस्यों को खोलने की सामर्थ्य नहीं हो सकती। इसलिए मैंने तय किया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन ही सत्य है, परमेश्वर की वाणी है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है! मैं बहुत खुश था। मैंने प्रभु के वापस आने की अच्छी खबर बहुत-से दोस्तों को सुनाई, और उनसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य पर गौर करने को कहा।
मगर जल्दी ही, मेरे इलाके की सबसे ऊंची और सबसे आधिकारिक ईसाई कलीसिया पूर्वोत्तर भारत की बैप्टिस्ट कलीसिया—ने विश्वासियों के बीच वो दस्तावेज बांटने शुरू कर दिए, जो धार्मिक पादरियों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा करने के लिए तैयार किए थे। इन दस्तावेजों में सीसीपी द्वारा कलीसिया को बदनाम करने के लिए लगाए गए लांछन भरे हुए थे, और उनमें अनुयायियों को कलीसिया की सभाओं में भाग लेने से रोका गया था। इसकी सामग्री भारत के बड़े-बड़े टीवी केंद्रों से प्रसारित भी की गई। टीवी या कंप्यूटर चालू कर खबरें देखते ही, इस तरह का नकारात्मक प्रचार दिखाई दे जाता था। धीरे-धीरे यह पूरे देश में फैल गया। धार्मिक दुनिया के इन पादरियों और अगुआओं को, सच्चाई को खुल्लमखुल्ला तोड़-मरोड़ कर पेश करते देख, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर को बदनाम और निंदित करने के लिए अफवाहें और भ्रांतियाँ फैलाते देख मुझे बहुत गुस्सा आया, मैं बहुत दुखी हुआ। तब, मेरे साथ परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जाँच-पड़ताल करनेवाले बहुत-से लोग, छल का शिकार होकर सभा-समूहों से बाहर निकल गए। कुछ ने मुझे भी यह कहकर रोकने की कोशिश की, "यह सीसीपी द्वारा निंदित कलीसिया है, इस पर यकीन नहीं करना चाहिए।" उन्हें सच्चे मार्ग को छोड़ते देख मैं निराश हो गया, मुझे उनके लिए बुरा लगा। सीसीपी एक नास्तिक शासन है। यह परमेश्वर में बिल्कुल विश्वास नहीं रखती, लगातार धार्मिक आस्थाओं को उत्पीड़ित करती है। इन तमाम लोगों ने परमेश्वर की वाणी सुनने या उसके कार्य की जाँच-पड़ताल करने के बजाय एक नास्तिक राजनीतिक पार्टी, सीसीपी में विश्वास रखना क्यों पसंद किया? ये इतने बेवकूफ कैसे हो सकते थे? उसी वक्त, मेरे गाँव के एक दोस्त ने मेरा व्हाट्सऐप पोस्ट देखा, जिसमें लिखा था, "प्रभु वापस आ गया है, और मसीह का राज्य पृथ्वी पर आ गया है," उसने मुझसे पूछा कि क्या मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में भाग लिया था। मैंने कहाँ, "हाँ।" उसने मुझसे इसमें विश्वास न रखने को कहा। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में लांछन-भरी टिप्पणियाँ और भ्रांतियाँ भी भेजीं, और कहा, "पादरी ने हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण न करने की चेतावनी दी है। अंत के दिनों में, प्रभु शायद देहधारी बन कर वापस नहीं आएगा, इसलिए हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में भाग नहीं ले सकते।" उसकी बातों से मैं परेशान नहीं हुआ, क्योंकि तब तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन मेरे साथ देहधारण के सत्य के बारे में संगति कर चुके थे, उन्होंने कहा था कि प्रभु अंत के दिनों में देहधारी होकर वापस आएगा, जिसकी योजना परमेश्वर ने बहुत पहले बना ली थी और जो प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों से साबित होता है। प्रभु यीशु ने कहा था, "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। "इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा" (मत्ती 24:44)। जब प्रभु यीशु ने अंत के दिनों में अपने वापस आने की भविष्यवाणी की, तो कई बार उसने "मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा," "मनुष्य का पुत्र आ जाएगा," और "मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा" का जिक्र किया। यहाँ, "मनुष्य के पुत्र" का संदर्भ देहधारी से है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आया है और उसने अनेक सत्य व्यक्त किए हैं। वह स्वयं ही है मनुष्य के पुत्र का आना, उद्धारकर्ता का प्रकटन, जो प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को साकार करता है। मैं यह भी जानता था कि परमेश्वर ही सत्य, मार्ग और जीवन है। अगर कोई इंसान सत्य और परमेश्वर के वचन व्यक्त कर सके, अंत के दिनों में न्याय और शुद्धिकरण का कार्य कर सके, तो वह इंसान देहधारी परमेश्वर ही होगा। वह देखने में कितना भी साधारण क्यों न हो, उसके पास रुतबा या सामर्थ्य हो या न हो, उसके वचन और कार्य सबसे अहम चीजें हैं। उसकी पहचान और रुतबा साबित करने का यह सबसे उत्तम तरीका है। मैंने अपने दोस्त को अपनी समझ बताई और उससे कहा, "परमेश्वर ही सृजन का प्रभु है, परमेश्वर जो चाहे कर सकता है। हम इंसानों को उसकी आलोचना कर उसे सीमित नहीं करना चाहिए, बल्कि सत्य खोजना चाहिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाएं मेरे लिए बहुत लाभकारी हैं, अनेक सत्य समझने में मेरी मदद करती हैं, इसलिए मैं वहाँ जाना बंद नहीं करूँगा। परमेश्वर में विश्वास रखने पर, हमें आँखें बंद कर लोगों की बातें नहीं बल्कि परमेश्वर की वाणी सुननी चाहिए। बाइबल कहती है, 'मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है' (प्रेरितों 5:29)।" फिर मेरे दोस्त ने मुझसे गंभीरता से कहा, "अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखते रहोगे, तो गाँव लौटने पर सुप्रीम काउंसिल तुमसे सवाल करेगी। पादरी तुम्हें इसमें विश्वास नहीं रखने देगा, गाँववाले तुम्हें ठुकरा देंगे। क्या तुमने इन बातों के बारे में सोचा है?" मैंने कहा, "लोगों द्वारा ठुकराया जाना डरावना नहीं है। डराने वाली बात होगी परमेश्वर के कदम से कदम मिला कर न चल पाना और उसके द्वारा त्याग दिया जाना। क्या तुमने कभी विचार किया है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच में प्रभु यीशु का वापस आना है, और हम उसे स्वीकार न करें, तो हम विपत्ति में घिर जाएंगे, रोते और दांत पीसते रह जाएँगे? प्रभु का वापस आना एक बड़ा विषय है, तुम सत्य खोजकर इस पर गौर क्यों नहीं करते?" लेकिन उसने अब भी मेरी सलाह नहीं मानी।
फिर, मेरे दोस्त ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था के बारे में, मेरे माता-पिता को बता दिया। इसके बाद, पूरे हफ्ते मेरे माता-पिता हर दिन मुझे बुलाकर भला-बुरा कहते, बोलते, "पादरी हमसे कहता रहता है हम तुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में जाने से रोक दें। तुझे इन सभाओं में जाना बंद करना होगा, उस कलीसिया को छोड़ना होगा!" मैंने उनसे कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया वैसी नहीं है जैसी पादरी कहते हैं। सभाओं में जाने से मैं ऐसे अनेक सत्य समझ पाया हूँ जो पहले नहीं समझता था। यह सच्चा मार्ग है, मैं भटका नहीं हूँ।" मैं उन्हें अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की गवाही देना चाहता था, लेकिन वे अफवाहों से इतना धोखा खा चुके थे कि उन्होंने मुझे और कुछ नहीं बोलने दिया। फिर, महामारी के कारण, मैं स्कूल से घर लौट आया। जब मेरे माता-पिता ने देखा कि मैं अक्सर ऑनलाइन सभाओं में भाग लेता हूँ, तो उन्होंने मुझे रोकने की कोशिश की। पड़ोसी भी मेरे बारे में बातें बनाते थे कि मैं पागल हो गया हूँ जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ और पादरी की अनदेखी करता हूँ। कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि मैं राक्षस के कब्जे में हूँ। ये बातें सुनकर मेरे माता-पिता और भी ज्यादा नाराज हो गए। घर लौटने पर उन्होंने मुझे डांट लगाई, "तुझे मालूम है गाँववाले तेरे बारे में क्या बोलते हैं? क्या तू हमारी बात नहीं मानेगा और अब भी सभाओं में जाएगा?" मैंने कहा, "हाँ, मैं अब भी सभाओं में भाग लूँगा।" मेरे माता-पिता बहुत नाराज थे, उन्होंने मुझे रोकने की और ज्यादा कोशिश की। वे सभाओं के दौरान अक्सर रुकावट पैदा करते, जिससे मेरा शांति से भाग लेना मुश्किल हो गया। एक बार, एक सभा के बाद मैं प्रार्थना कर रहा था, जब मैंने आँखें खोलीं, तो मैंने अचानक अपने पिता को मेरे बगल में खड़े होकर घूरते हुए पाया, मैं चौंक गया, मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। फिर वे गुस्से से मुझ पर जोर से चिल्लाए, "इंटरनेट काट दे, अभी इसी वक्त अपना सभा समूह छोड़ दे!" मैंने अपने माता-पिता से कहा, "प्रभु यीशु वास्तव में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है, और वह नया कार्य करने लगा है। अगर हम परमेश्वर के कदम से कदम न मिलाएं और परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य को न स्वीकारें, अगर हम पाप से दूर न रहें, तो हम बचाए नहीं जा सकेंगे, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकेंगे, और अंत में, हम विपत्ति में घिर जाएंगे, दंडित होंगे।" लेकिन उन्होंने मेरी बात बिल्कुल नहीं सुनी, वे पादरी द्वारा प्रचारित अफवाहों और भ्रांतियों को दोहराते रहे। उन्होंने कहा, ऐसा मुमकिन ही नहीं है कि परमेश्वर एक औरत के रूप में देहधारी हुआ हो। मैंने सोचा, "मैं इनके साथ संगति कैसे करूँ?" फिर मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का एक अंश याद आया, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों ने मुझे पढ़कर सुनाया था। "परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के प्रत्येक चरण के अपने व्यवहारिक मायने हैं। जब यीशु का आगमन हुआ, तो वह पुरुष रूप में आया, लेकिन इस बार के आगमन में परमेश्वर, स्त्री रूप में आता है। इससे तुम देख सकते हो कि परमेश्वर द्वारा पुरुष और स्त्री, दोनों का ही सृजन उसके काम के लिए उपयोगी हो सकता है, वह कोई लिंग-भेद नहीं करता। जब उसका आत्मा आता है, तो वह इच्छानुसार किसी भी देह को धारण कर सकता है और वही देह उसका प्रतिनिधित्व करता है; चाहे पुरुष हो या स्त्री, दोनों ही परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, यदि यह उसका देहधारी शरीर है। यदि यीशु स्त्री के रूप में आ जाता, यानी अगर पवित्र आत्मा ने लड़के के बजाय लड़की के रूप में गर्भधारण किया होता, तब भी कार्य का वह चरण उसी तरह से पूरा किया गया होता। और यदि ऐसा होता, तो कार्य का वर्तमान चरण पुरुष के द्वारा पूरा किया जाता और कार्य उसी तरह से पूरा किया जाता। प्रत्येक चरण में किए गए कार्य का अपना महत्व है; कार्य का कोई भी चरण दोहराया नहीं जाता है या एक-दूसरे का विरोध नहीं करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)। मुझे याद है उन्होंने संगति में कहा था कि परमेश्वर का देहधारण तब होता है जब परमेश्वर का आत्मा देह धारण कर एक साधारण इंसान बन जाता है, तो वह व्यक्ति पुरुष हो या स्त्री, वह स्वयं परमेश्वर ही है, वह सत्य व्यक्त करके परमेश्वर का कार्य कर सकता है। प्रभु यीशु पुरुष था। उसे मानवजाति के लिए सूली पर चढ़ा दिया गया था, उसने लोगों के पाप अपने पर लिए थे, और इस तरह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा किया था। अंत के दिनों में, परमेश्वर एक स्त्री के रूप में देहधारी होकर आया है, और प्रभु यीशु के कार्य की बुनियाद पर मानवजाति को बचाने के लिए जरूरी सत्य व्यक्त करता है, लोगों के न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करता है। इसलिए, देहधारी परमेश्वर पुरुष हो या स्त्री, उसके द्वारा व्यक्त सत्य और किया गया कार्य परमेश्वर के आत्मा का कार्य है, और वे सभी मानवजाति को छुटकारा दिलाकर बचा सकते हैं। यही नहीं, अंत के दिनों में, अगर परमेश्वर स्त्री के रूप में देहधारी होकर कार्य करने आता है, तो लोग परमेश्वर को यह सोचकर परिभाषित नहीं करेंगे कि वह पुरुष है और स्त्री हो ही नहीं सकता। इस बारे में सोचकर, मैंने अपने माता-पिता से कहा, "परमेश्वर आत्मा है, उसमें लिंग भेद नहीं होता। परमेश्वर ने अपनी ही छवि में पुरुष और स्त्री का सृजन किया है, इसलिए देहधारी परमेश्वर स्वाभाविक रूप से पुरुष या स्त्री हो सकता है। उसका भौतिक स्वरूप मायने नहीं रखता। अहम बात है कि वह मानवजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर सकता है, वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण है, स्वयं परमेश्वर है।" मेरे माता-पिता मेरी बातों को काट नहीं सके, इसलिए वे बोले, "तू कहता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वापस आया प्रभु यीशु है, लेकिन हमें यकीन नहीं। हम इसे तभी मानेंगे जब पादरी और एल्डर इसे स्वीकारेंगे। पादरी कहता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक साधारण इंसान है, एक साधारण परिवार में पैदा हुआ है, इसलिए यह परमेश्वर का देहधारण नहीं हो सकता।" इसके जवाब में मैंने उन्हें बताया, "जब प्रभु यीशु काम करने आया, तो यहूदी धर्म के मुख्य पादरी, धर्मशास्त्री और फरीसी उसे उसके साधारण जन्म और स्वरूप के कारण परमेश्वर के रूप में पहचान नहीं पाए। उन्होंने प्रभु यीशु को यह कहकर नकार दिया, 'यह तो बढ़ई का बेटा है न? इसकी माँ का नाम मैरी है न?' इन फरीसियों ने सिर्फ प्रभु यीशु का स्वरूप देखा। उन्होंने यह जाँच-पड़ताल नहीं की कि क्या उसके वचन और कार्य परमेश्वर से आए हैं। उन्होंने अपने घमंडी स्वभाव से आलोचना करते हुए कहा, वह एक साधारण इंसान है, परमेश्वर नहीं। उन्होंने अफवाहें भी बनाईं, प्रभु यीशु पर लांछन लगाए और उसकी निंदा की। यहूदी धर्म के विश्वासियों ने उन लोगों की आराधना की, उनकी आज्ञा मानी, और इसलिए वे प्रभु को सूली पर चढ़ाने के लिए उनके पीछे चले। अंत में, उन्हें परमेश्वर का उद्धार नहीं मिला, वे दंडित हुए। आज भी ऐसा ही है। ये पादरी और एल्डर यह जाँच-पड़ताल नहीं करते कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन सत्य हैं, परमेश्वर की वाणी हैं। वे आँखें बंद करके सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आलोचना और निंदा करते हैं, कहते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक साधारण इंसान है, वे उसके मूल और पारिवारिक पृष्ठभूमि पर सवाल उठाते हैं। क्या यह वैसा ही नहीं है जैसा फसीसियों ने प्रभु यीशु की निंदा करते हुए की थी?" मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया, जो भाई-बहनों ने एक बार मुझे पढ़कर सुनाया था। "जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। मैंने अपने माता-पिता से कहा, "हमारा यह तय करना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की देह परमेश्वर की देह है या नहीं, इस पर आधारित होना चाहिए कि क्या वह सत्य व्यक्त कर सकता है, मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है, इस बात पर नहीं कि वह साधारण दिखता है। इस बारे में सोचें, तो क्या हम प्रभु यीशु में इसलिए विश्वास रखते हैं कि उस देह में परमेश्वर की छवि है? नहीं! हमने प्रभु में इसलिए विश्वास रखा क्योंकि हमने बाइबल में उसके वचन पढ़े, और देखा कि उसके वचनों में अधिकार है, वह इंसान को पापों से छुटकारा दिला सकता है, और क्योंकि हमने प्रभु के अनुग्रह का बहुत आनंद उठाया। आज मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में इसलिए विश्वास रखता हूँ, क्योंकि मैं समझ गया हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन ही सत्य हैं। उनमें अधिकार और सामर्थ्य है, ये परमेश्वर की वाणी हैं। तभी मैंने विश्वास किया कि वह देहधारी परमेश्वर है, वापस आया प्रभु यीशु है। आपको भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने चाहिए। आँखें बंद करके पादरी की बातें न मानें, उन पर यकीन न करें! अगर वे गलत मार्ग पर चलें, परमेश्वर का प्रतिरोध करें, उसकी निंदा करें, तो क्या आप भी परमेश्वर का प्रतिरोध और निंदा करने में उनके पीछे-पीछे चलेंगे?" जब मेरे माता-पिता ने मेरी यह बात सुनी, तो वे बहुत नाराज हो गए। उन्होंने मुझे डांटते हुए कहा, "क्या तुझे इतना जिद्दी होना चाहिए कि तू पूरी धार्मिक दुनिया की खिलाफत करे? अगर तूने पादरियों और एल्डरों का विरोध करने की हिम्मत की, तो गाँववाले तुझे खदेड़ देंगे। तू अभी वयस्क भी नहीं हुआ है, कहाँ जाएगा? अगर ऐसा कुछ हुआ, तो हम तेरी मदद नहीं कर पाएँगे! इन चीजों के बारे में बोलना बंद कर, दूसरों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही मत दे। जब पादरी और एल्डर उसे स्वीकारेंगे, तब हम भी स्वीकार लेंगे। फिलहाल, खुद को मुसीबत में मत डाल।" मैंने उनके साथ जैसे भी संगति की, उन्होंने मेरी बात बिल्कुल नहीं सुनी, और मुझे कड़ी फटकार लगाई। वे बोले, "हमने तुम्हारी पढ़ाई, खाने-पीने और कपड़ों पर इतना पैसा खर्च किया, मगर तू बहुत हठी है। तूने हमें बहुत निराश किया।" तब, मेरे दो भाइयों ने भी उनका साथ दिया। मेरे परिवार के किसी ने भी मेरी सलाह नहीं मानी। मैंने उन्हें बताने की कोशिश की कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अनेक सत्य व्यक्त किये हैं, मैंने जो भी हासिल किया था, उनके साथ साझा करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरी एक भी बात नहीं सुनी। पहले मेरे माता-पिता और गाँववाले मुझसे बड़ी अच्छी तरह पेश आते थे, लेकिन अब, सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण, मेरे प्रति उनका रवैया बदल गया था। उनकी नजरों में मैं एक खलनायक, एक बहिष्कृत था। घर में भी मुझे लगता कि मेरा परिवार मेरी परवाह नहीं करता। मैं अकेला और दुखी महसूस करता। मगर मैं जानता था, चाहे जो भी हो, मैं सभाओं में जाना बंद नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे मालूम था कि अगर मैंने सभाओं में भाग नहीं लिया और सत्य हासिल नहीं किया, तो ऐसे माहौल को झेलना मुश्किल हो जाएगा। बाद में, गैरजरूरी विवादों से बचने के लिए, मुझे उनसे छिपकर सभाओं में जाना पड़ता। मैं बातें और संगति नहीं कर सकता था। भाई-बहनों को सिर्फ चुपचाप संदेश भेज सकता था।
एक रात, पादरी और उसका सहकर्मी एकाएक मेरे घर आ गए। पड़ोसी और कुछ गाँववाले भी देखने आ पहुँचे। पादरी ने मुझसे पूछा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में तुम लोग क्या बातें करते हो?" मैंने कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया गवाही देती है कि प्रभु यीशु वापस लौट आया है, वह देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, जो अंत के दिनों में न्याय-कार्य करता है। हम इस विषय पर भी संगति करते हैं कि किस प्रकार के लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं, उद्धार पाने के लिए अनुसरण कैसे करें, और ऐसे ही दूसरे मसले।" पादरी ने फिर तिरस्कार के लहजे में पूछा, "तो मुझे बताओ किस प्रकार के लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं?" मैंने उन्हें जवाब दिया, "बाइबल कहती है, 'जो मुझ से, "हे प्रभु! हे प्रभु!" कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है' (मत्ती 7:21)। 'इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ' (लैव्यव्यवस्था 11:45)। इन पदों से हम समझ सकते हैं कि अगर हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहें, तो हमें पाप से बचकर निकलना होगा, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करना होगा, ऐसा बनना होगा कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल सकें। वर्तमान में हम सब पाप में डूबे हुए हैं। अक्सर झूठ बोलते और पाप करते हैं, परमेश्वर के वचनों पर अमल नहीं करते, इसलिए हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। मुझे पहले इस बारे में बड़ी उलझन थी कि हम पाप करने, स्वीकारने और फिर से पाप करने के निरंतर कुचक्र में क्यों फंसे रहते हैं। हम पाप के बंधन से बचकर निकल क्यों नहीं पाते? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद ही, मैं समझ पाया कि जब हम प्रभु में विश्वास रखते हैं, तो हमारे पाप धुल जाते हैं, लेकिन हमारी पापी प्रकृति, हमारे पाप की जड़ मिटाई नहीं गई है, इसलिए हम झूठ बोले बिना और पाप किए बिना नहीं रह सकते। बाइबल कहती है, 'पवित्रता के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। प्रभु पवित्र है, अगर हम अब भी पाप और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं, तो उसके राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। अब प्रभु यीशु अंत के दिनों का न्याय-कार्य करने के लिए लौट आया है। वह मानवजाति को शुद्ध करके बचाने वाले सभी सत्य व्यक्त करता है, जो प्रभु यीशु की भविष्यवाणी को साकार करता है, 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अनेक सत्य व्यक्त किए हैं। वह न सिर्फ परमेश्वर की प्रबंधन योजना का रहस्य प्रकाशित करता है, बल्कि मानवजाति के पाप के मूल कारण का भी खुलासा करता है, लोगों की पापी प्रकृति का न्याय और प्रकाशन करता है, जैसे कि घमंड, छल, दुष्टता, वगैरह-वगैरह। वह परमेश्वर में हमारी आस्था की विभिन्न मिलावटी चीजों, दूसरे गलत इरादों और नजरियों का भी खुलासा करता है, जैसे कि सिर्फ स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए ही परमेश्वर में विश्वास रखना। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हैं, धीरे-धीरे उन्हें अपनी शैतानी प्रकृति और भ्रष्टता के सत्य का एहसास होता है, उन्हें सच्चा प्रायश्चित होता है, आखिरकार वे पाप के बंधनों से मुक्त होकर अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध कर पाते हैं। राज्य के युग में, परमेश्वर के वचनों से हासिल होनेवाला प्रभाव यही है। अगर हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहें, तो हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य को स्वीकारना होगा, हमारी भ्रष्टता के शुद्ध किए जाने बाद ही, हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के योग्य बन पाएंगे।" मेरी बात पूरी हो जाने पर, पादरी ने कहा, "मुझे मालूम है कि तुम सत्य की लालसा रखते हो, मगर तुम अभी बहुत छोटे हो। तुम्हें बाइबल की ज्यादा समझ नहीं है, तुम बड़ी आसानी से धोखा खा सकते हो। फिलहाल तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण बंद करना होगा, प्रभु के सामने अपने पापों को स्वीकारना होगा, प्रायश्चित करना होगा, और उनकी सभाओं में जाना बंद करना होगा!" पादरी ने देखा कि मैं उनकी अनदेखी कर रहा था, तो वह बोला, "तुम मेरी भेड़ हो। तुम मेरी अवज्ञा करने की हिम्मत कैसे कर सकते हो? तुम्हें इसी वक्त प्रायश्चित करना होगा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया छोड़नी होगी, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम की प्रार्थना बंद करनी होगी।" मैंने अपनी बात पर अड़ते हुए कहा, "मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण कभी बंद नहीं करूंगा।" वह बहुत नाराज हो गया, उसने मुझे चेतावनी दी, "कलीसिया की सर्वोच्च काउंसिल ने मुझे तुम्हारी 'खोज-खबर लेने' के लिए नियुक्त किया है। अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखने पर अड़े रहे, तो तुम्हें पूछताछ के लिए सुप्रीम काउंसिल के सामने ले जाया जाएगा। तुम्हें जान लेना चाहिए, ऐसा होने से न सिर्फ तुम्हारी पढ़ाई पर असर पड़ेगा, कलीसिया में भी तुम्हारी बदनामी होगी। भविष्य में तुम्हें शायद नौकरी भी न मिले। इतनी मुसीबत क्यों मोल लेते हो? तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए!" पादरी की यह बात सुनकर, मेरे मन पर बहुत दबाव पडा, क्योंकि मुझे पता था कि एक बार कलीसिया की सुप्रीम काउंसिल द्वारा पूछताछ हो जाने पर, वे मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे। अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण नहीं छोड़ा, तो भविष्य में किसी प्रमाणपत्र की जरूरत होने पर ग्राम प्रमुख मेरे लिए उस पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, और शायद मुझे कोई नौकरी भी न मिले। मेरे माता-पिता ने मुझे कॉलेज इसलिए भेजा था ताकि स्नातक होने के बाद कोई अच्छी नौकारी मिल जाएगी। अगर मुझे नौकरी नहीं मिली, तो मेरे माता-पिता सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने से मुझे यकीनन और भी ज्यादा रोकेंगे। मैंने अभी-अभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है, अब भी सत्य को बहुत कम ही समझता हूँ। अगर वे मुझे पूछताछ के लिए ले गये, और मुझ पर हमला करनेवाले लोगों के समूह से मेरा सामना हुआ, तो क्या मैं झेल पाऊँगा? अगर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने पर अड़ा रहा, तो क्या वे मुझे स्कूल से निकाल देंगे? क्या वे दूसरे सभी विश्वासियों से कहेंगे कि मुझे ठुकरा दें? इस बारे में सोचकर मैं बहुत परेशान हो गया, मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, मुझे रास्ता दिखाने की विनती की, कहा कि मैं दृढ़ता से उसकी गवाही देना चाहता हूँ।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?