मिलजुलकर काम करने की मेरी कहानी
मैं एक कलीसिया में सिंचन कार्य के लिए जिम्मेदार थी। जैसे-जैसे सुसमाचार फैलता गया और अंत के दिनों में ज्यादा से ज्यादा लोगों ने परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया, मैं सिर्फ नए सदस्यों का सिंचन ही नहीं कर रही थी, बल्कि सिंचनकर्मियों के कामकाज की खोज-खबर भी ले रही थी, साथ ही, उनकी समस्याओं और मुश्किलों को हल करने में भी उनकी मदद कर रही थी। मगर मैं हर चीज का ठीक से ध्यान नहीं रख पाई, जिससे कुछ नए विश्वासियों का समय पर सिंचन नहीं हो पाया और उनमें सभाओं में आने का उत्साह कम हो गया। काम में देरी को रोकने के लिए, मेरी अगुआ ने बहन कारमन को मेरे साथ काम पर लगाया। यह सुनकर मुझे खुशी हुई, क्योंकि कारमन काम से जुड़ी समस्याएं खोज लेती थी और अपने कर्तव्य में जिम्मेदारी उठा सकती थी। उसे सिंचन में हमेशा अच्छे नतीजे मिलते थे। उसके साथ भागीदारी करने से मेरी कमियों की भरपाई हो जाएगी और मेरे काम का दबाव भी कुछ कम हो जाएगा।
बाद में, मैंने कारमन को सिंचन कार्य की टीम में शामिल कर लिया। उस समय सिंचन टीम के कुछ लोग काफी निष्क्रिय थे; कारमन उनके हालात का समाधान करने के लिए परमेश्वर के वचनों पर संगति करने लगी। जब टीम के सदस्य सवाल पूछते तो वह फौरन जवाब देती। यह सब देखकर मैं असहज हो गई। मैंने सोचा कि पहले जब मैं काम से जुड़ी चीजों की अकेली प्रभारी थी, तो उनके सवालों के जवाब मैं ही देती थी, मगर आने के बाद से उसने मुख्य भूमिका निभाकर मेरी अहमियत कम कर दी थी। इसके अलावा, उसकी संगति में रोशनी होती थी जो मेरी संगति में नहीं थी, तो हर किसी को यही लगेगा कि वह मुझसे बेहतर है। इस विचार ने मुझे काफी बेचैन कर दिया। मुझे लगा मानो वह मेरी चमक चुरा रही है, हर मामले में मुझे अपने मुकाबले कमजोर दिखा रही है; मुझे उसे लेकर अच्छा महसूस नहीं हो रहा था। वह टीम को जो मैसेज भेजती, मैं उसे नहीं पढ़ती थी, उसके साथ ज्यादा बातचीत भी नहीं करती थी—मैं जानबूझकर उसे दरकिनार कर रही थी। चूंकि मैं हमारे काम के बारे में कारमन को सक्रियता से जानकारी नहीं दे रही थी, तो कुछ दिनों के बाद भी उसे भाई-बहनों के असली हालात का पता नहीं चल पाया और हमारे काम में तेजी नहीं आई। मैं जानती थी कि मुझे सिंचन टीम के सदस्यों के हालात और मुश्किलों के बारे में बात करने के लिए उनके पास जाना चाहिए था, ताकि फौरन संगति करके समस्याओं का हल किया जा सके। मगर फिर मैंने कारमन के मुख्य भूमिका लेने और इस बारे में सोचा कि वहां लोग यही समझते थे कि मुख्य रूप से वही सिंचन कार्य संभाल रही है। मुझे डर था कि अगर मैंने टीम के सदस्यों की समस्याएं सुलझाई और काम अच्छा हुआ, तो जिन भाई-बहनों को असली हालत की जानकारी नहीं थी, वे कहेंगे कि यह सब कारमन की वजह से मुमकिन हुआ है; तब वे पहले से ज्यादा उसका आदर करने लगेंगे। फिर मैं कहीं दिखूंगी ही नहीं। इसलिए, मैंने सिंचन टीम के सदस्यों के साथ संगति नहीं की। कुछ दिन गुजर गए और हमारे सिंचन कार्य की प्रभावशीलता दिनोदिन गिरती चली गई। मैंने देखा कि कारमन चिंतित लग रही थी और वह संगति के लिए समूह में परमेश्वर के वचन भेजती रही, मगर मुझे कोई परवाह नहीं थी, बल्कि मुझे तो ये अच्छा ही लग रहा था। मुझे लगा जैसे काम का अच्छे से न होना बेहतर ही था, तभी तो अगुआ कहेगी कि कारमन अच्छी नहीं है और काम में मेरे बराबर नहीं है। हालांकि, इन विचारों से मुझे थोड़ी परेशानी तो थी, मगर उस समय मैंने उन बातों पर गंभीरता से विचार नहीं किया।
एक दिन, एक अगुआ ने मुझे बताया कि इन दिनों हमारा सिंचन कार्य अच्छे से नहीं चल रहा है, कारमन नए सदस्यों के बारे में जानना चाहती है, तो मुझे उसे उनके सभा समूह डाल देना चाहिए। जब अगुआ ने यह करने को कहा तो मेरा दिल ही बैठ गया। मैंने सोचा कि कैसे कारमन मेरे मुकाबले ज्यादा योग्य थी, अगर वह उन सभा समूहों से जुड़ गई, उनके साथ घुल-मिल गई और नए विश्वासियों की समस्याओं का तेजी से हल कर दिया, हमारे काम पर पकड़ बना ली, तो मैं उससे काफी पिछड़ जाऊँगी। मैं नहीं चाहती थी कि वह सभी समूहों में जाए; मैंने सोचा कि मैं खुद ही चीजों को संभाल लूंगी। इसलिए मैंने बहाने बनाकर इनकार कर दिया। लेकिन बाद में इसे लेकर मैंने दोषी महसूस किया और परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना के जरिये मुझे एहसास हुआ कि ऐसा करके मैं सिर्फ अपने नाम और रुतबे की रक्षा कर रही थी, यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है। मगर मैं फौरन कारमन को हर सभा समूह में डालना नहीं चाहती थी। मुझे डर था कि आखिर में वह मुझसे मेरा ओहदा छीन लेगी। फिर मैंने सोचा कि कैसे धार्मिक याजक वर्ग अपने रुतबे को बचाने और अपनी आजीविका पर पकड़ बनाए रखने के लिए कलीसियाओं को सीलबंद करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं, ताकि विश्वासियों को अपने चंगुल में कसकर जकड़े रह सकें और उन्हें अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की जांच-पड़ताल या प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं करने देते। वे परमेश्वर के साथ होड़ करते हैं और ऐसे मसीह-विरोधी हैं जिनका खुलासा अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य से किया जाता है। मैं कारमन को हमारे काम में शामिल होने नहीं दे रही थी, ताकि अपनी शोहरत और रुतबे को बचाए रख सकूँ। क्या मैं भी भाई-बहनों को अपने चंगुल में कसकर जकड़े हुए नहीं थी? मैं याजक वर्ग की तरह ही परमेश्वर का विरोध कर रही थी। मैं जानती थी कि मुझे फौरन अपनी यह सोच बदलनी होगी और अपनी गलत मंशाओं का त्याग करना होगा। अगले दिन, मैंने कारमन को सभा समूहों में शामिल कर लिया; तब मुझे थोड़ा सुकून मिला।
भले ही मैंने कारमन को सभा समूहों में शामिल कर लिया था, पर मैंने उससे काम की चर्चा नहीं की; हम दोनों अभी भी अपने-अपने काम कर रहे थे। कुछ हफ्ते गुजर गए, पर हमारे सिंचन कार्य में अभी भी सुधार नहीं हो पाया। जब मेरी अगुआ ने इसकी वजह पूछी, तो मैं नहीं जानती थी कि क्या जवाब दूं। बाद में मुझे थोड़ा अपराध-बोध हुआ; फिर मैंने अपने भक्ति-कार्य में परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा और चिंतन किया : “लोगों को स्वयं की मौलिक या जरूरी समझ नहीं है; इसके बजाय, वे अपनी ऊर्जा को अपने कार्यों और बाहरी खुलासों को जानने पर केंद्रित और समर्पित करते हैं। भले ही कुछ लोग कभी कभार अपने आत्मज्ञान के बारे में कुछ कहने में समर्थ हों, यह बहुत अधिक गहरा नहीं होगा। किसी ने कभी भी नहीं सोचा है कि कोई एक काम करने या कोई चीज प्रकट करने के कारण वह एक निश्चित प्रकार का व्यक्ति है या उसकी एक निश्चित प्रकार की प्रकृति है। परमेश्वर ने मनुष्य की प्रकृति और सार को उजागर कर दिया है, लेकिन लोग समझते हैं कि उनके चीजों को करने के तरीके और बोलने का तरीके दोषपूर्ण और खराब हैं; नतीजतन, उनके लिए सत्य को अभ्यास में लाना अपेक्षाकृत अधिक मेहनत का काम होता है। लोग सोचते हैं कि उनकी गलतियाँ बस लापरवाही से प्रकट की गई क्षणिक अभिव्यक्तियाँ हैं, न की उनकी प्रकृति का उद्गार हैं। जब लोग इस तरह से सोचते हैं, तो उनके लिए स्वयं को वास्तव में जानना बहुत कठिन हो जाता है, और उनके लिए सत्य को समझना और उसका अभ्यास करना बहुत कठिन हो जाता है। चूँकि वे सत्य नहीं जानते और उसके प्यासे नहीं होते; इसलिए, सत्य को अभ्यास में लाते समय, वे केवल लापरवाह ढंग से नियमों का पालन करते हैं। लोग अपनी स्वयं की प्रकृति को बहुत बुरा नहीं मानते हैं, और उन्हें नहीं लगता कि वह इतनी बुरी है कि उसे नष्ट या दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन परमेश्वर के मानकों के अनुसार, लोग अत्यधिक गहराई तक भ्रष्ट कर दी गए हैं, वे अभी भी उद्धार के मानकों से दूर हैं, क्योंकि लोगों के पास केवल कुछ तरीके हैं जो बाहर से सत्य का उल्लंघन करते नहीं प्रतीत होते, जबकि वस्तुतः वे सत्य को अभ्यास में नहीं लाते और वे परमेश्वर के आज्ञाकारी नहीं हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। इस पर विचार करके, मुझे समझ आया कि खुद को जानने के लिए मुझे अपने विचारों, मंशाओं और सोच की तुलना परमेश्वर के वचनों से करनी चाहिए; मुझे अपने प्रकृति सार और अपने चुने हुए रास्ते के बारे में जानकर उनका विश्लेषण करना चाहिए और फिर सत्य के साथ समस्याओं का हल करने की कोशिश करनी चाहिए। यही सचमुच बदलने और प्रायश्चित करने का एकमात्र रास्ता है। अगर हम सिर्फ यह मान लें कि हमारे अंदर भ्रष्ट स्वभाव है या अपने प्रकृति सार को न जानने के कारण हमने कुछ गलत कर दिया है, यह न देख पाएं कि हम कितनी गहराई तक भ्रष्ट हो चुके हैं या हमारी हालत कितनी खतरनाक है, तो हममें सत्य खोजने और बदलाव लाने की लालसा नहीं होगी, सचमुच प्रायश्चित करने की तो बात ही दूर है। मैंने देखा कि मैं अपने नाम और रुतबे की रक्षा करने की बात तो मान रही थी और कैसे कारमन को समूहों में शामिल न करने की मेरी चाह परमेश्वर विरोधी थी, पर यह साफ तौर नहीं समझ पाई कि मैं किस तरह का स्वभाव दिखा रही थी, इसका सार क्या था और अपने कर्तव्य में मैं किस रास्ते पर चल रही थी। हालांकि आखिर में मैंने उसे समूहों में शामिल कर लिया, पर यह सिर्फ व्यवहार में बदलाव था, मैंने अपने भ्रष्ट स्वभाव को ठीक नहीं किया था। इसके अलावा, मैंने सचमुच अपने अहंकार को किनारे नहीं किया और उसके साथ सहयोग नहीं किया। इस तरह हमारा काम सफल कैसे हो सकता था? इसका एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए, मेरा मार्गदर्शन करने के लिए कहा ताकि मैं सचमुच खुद को जान सकूँ।
एक दिन मैंने अपने भक्ति-कार्य में परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा : “कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्वार्थपूर्ण और घृणास्पद नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्रेम नहीं होता” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं, जिसका प्रबंधन बिना किसी और के हस्तक्षेप के उन्हें ही करना होता है। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवात्मक गवाही देने में सक्षम है, अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। और इसलिए, वे उन लोगों को कमजोर करने और प्रतिस्पर्धियों के रूप में बाहर करने की कोशिश करते हैं, जो अनुभवात्मक गवाही पेश करने में सक्षम होते हैं, और जो सत्य की संगति कर सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण प्रदान कर सकते हैं, और वे हताशा से उन लोगों को बाकी सबसे पूरी तरह से अलग करने, उनके नाम पूरी तरह से कीचड़ में घसीटने और उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी शांति का अनुभव करते हैं। अगर ये लोग कभी नकारात्मक नहीं होते और अपना कर्तव्य निभाते रहने में सक्षम होते हैं, अपनी गवाही के बारे में बात करते हैं और दूसरों की मदद करते हैं, तो मसीह-विरोधी अपने अंतिम उपाय की ओर रुख करते हैं, जो कि उनमें दोष ढूँढ़ना और उनकी निंदा करना है, या उन्हें फँसाना और उन्हें परेशान और दंडित करने के लिए कारण गढ़ना है, और ऐसा तब तक करते रहते हैं, जब तक कि वे उन्हें कलीसिया से बाहर नहीं निकलवा देते। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी पूरी तरह से आराम कर पाते हैं। मसीह-विरोधियों की सबसे घातक और खराब चीज यही है। ... जब कोई थोड़ा कार्य करके अलग दिखने लगता है, या जब कोई परमेश्वर के चुने हुए लोगों को लाभ पहुँचाने, उन्हें शिक्षित करने और सहारा देने के लिए सच्ची अनुभवात्मक गवाही पेश करने में सक्षम होता है, और सभी से बड़ी प्रशंसा प्राप्त करता है, तो मसीह-विरोधियों के मन में ईर्ष्या और नफरत पैदा हो जाती है, और वे उन्हें अलग-थलग करने और दबाने की कोशिश करते हैं। वे किसी भी परिस्थिति में ऐसे लोगों को कोई काम नहीं करने देते, ताकि उन्हें अपने रुतबे को खतरे में डालने से रोक सकें। सत्य-वास्तविकताओं से युक्त लोग जब मसीह-विरोधियों के पास होते हैं, तो उनकी दरिद्रता, दयनीयता, कुरूपता और दुष्टता उजागर करने का काम करते हैं, इसलिए जब मसीह-विरोधी कोई साथी या सहकर्मी चुनता है, तो वह कभी सत्य-वास्तविकता से युक्त व्यक्ति का चयन नहीं करता, वह कभी ऐसे लोगों का चयन नहीं करता जो अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात कर सकते हों, और वह कभी ईमानदार लोगों या ऐसे लोगों का चयन नहीं करता, जो सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हों। ये वे लोग हैं, जिनसे मसीह-विरोधी सबसे अधिक ईर्ष्या और घृणा करते हैं, और जो मसीह-विरोधियों के जी का जंजाल हैं। सत्य का अभ्यास करने वाले ये लोग परमेश्वर के घर के लिए कितना भी अच्छा या लाभदायक काम क्यों न करते हों, मसीह-विरोधी इन कर्मों पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश करते हैं। यहाँ तक कि वे खुद को ऊँचा उठाने और दूसरे लोगों को नीचा दिखाने के लिए अच्छी चीजों का श्रेय खुद लेने और बुरी चीजों का दोष दूसरों पर मढ़ने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ भी देते हैं। मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने और अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करने में सक्षम लोगों से बहुत ईर्ष्या और घृणा करते हैं। वे डरते हैं कि ये लोग उनकी हैसियत खतरे में डाल देंगे, इसलिए वे उन पर हमला कर उन्हें निकालने के हर संभव प्रयास करते हैं। वे भाई-बहनों को उनके पास जाने, उनके संपर्क में आने या अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करने में सक्षम इन लोगों का समर्थन या प्रशंसा करने से रोकते हैं। यह मसीह-विरोधियों की शैतानी प्रकृति को सबसे ज्यादा उजागर करता है, जो कि सत्य से चिढ़ती और परमेश्वर से घृणा करती है। और इसलिए, क्या यह ये भी साबित करता है कि कलीसिया में मसीह-विरोधी एक दुष्ट विपरीत धारा हैं, कि वे कलीसिया के काम में बाधा और परमेश्वर की इच्छा में अवरोध पैदा करने के दोषी हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर कहता है कि मसीह-विरोधी खास तौर पर रुतबे को संजोते हैं; जब ऐसा लगता है कि उनके कार्य क्षेत्र में कोई उनके रुतबे के लिए खतरा बन रहा है, तो वे उस व्यक्ति को दबाते और किनारे करते हैं। वे उसे महत्वपूर्ण या मुख्य भूमिकाएं नहीं निभाने देते हैं; यहाँ तक कि मसीह-विरोधी अपने रुतबे को बचाने के लिए कलीसिया के हितों का त्याग भी कर देते हैं। वे खास तौर पर स्वार्थी और दुर्भावना से भरे होते हैं। क्या मेरा व्यवहार भी मसीह-विरोधी जैसा ही नहीं था? जब से कारमन मेरे साथ काम करने आई थी, मैंने देखा कि वह उस काम में मुझसे बेहतर थी और मेरे मुकाबले सत्य पर बेहतर संगति कर रही थी। यह देखकर मैं परेशान हो गई और मैंने उसे अपनी शत्रु, अपनी विरोधी मान लिया। मैंने सोचा कि उसके आने के बाद से ही, वह मुख्य भूमिका निभाने लगी थी और मेरी चमक चुरा रही थी; अगर उसने हमारे कार्य के प्रदर्शन को बेहतर कर दिया, तो मैं अक्षम दिखने लगूंगी। इसी वजह से, मैंने उसके साथ सक्रिय रूप से मिलजुलकर काम करने और उसे हमारे काम के बारे में अच्छी तरह समझाने के बजाय जानबूझकर उसे किनारे किया। जब मैंने देखा कि हमारा सिंचन कार्य ठीक से नहीं चल रहा है, तो मैंने काम की खोज-खबर नहीं ली या समस्याओं को हल नहीं किया; इसके बजाय मुझे यह डर था कि अगर मैंने समस्याएं हल कर दीं और इसके बाद नतीजे बेहतर हो गए, तो कारमन को इसका श्रेय मिल जाएगा। इतना ही नहीं, जब मैंने देखा कि हमारे कार्य की प्रभावशीलता दिनोदिन गिरती जा रही है, तो मुझे कोई चिंता नहीं हुई, मुझे तो इसमें आनंद ही आया। मैं खुश थी कि उसके तकलीफ हो रही है; मैंने सोचा, इसकी वजह से अगुआ को लगेगा कि मैं उसके मुकाबले बेहतर हूँ और मेरा ओहदा सुरक्षित हो जाएगा। मैंने सिर्फ अपने नाम और रुतबे की परवाह की; उसके संघर्ष या नए सदस्यों का ठीक से सिंचन न हो पाने के परिणामों पर मैंने बिल्कुल भी विचार नहीं किया। मैं कितनी स्वार्थी और दुर्भावना से भरी थी! जब अगुआ ने मुझे कारमन को समूहों में शामिल करने को कहा, तो मैं और भी अड़ियल हो गई। मुझे लगा जैसे वह मुझसे आगे निकल जाएगी या मेरी जगह ले लेगी, इसलिए मैंने इनकार करने के बहाने ढूंढ निकाले। अपने ओहदे को बनाए रखने के लिए, मैंने उसे अलग-थलग कर दिया और कलीसिया को अपना निजी क्षेत्र समझ लिया। अपनी जिम्मेदारी के दायरे में, मैंने उसे पाँव जमाने या उसकी खूबियों को चमकने का कोई मौका नहीं दिया। मैं एक तानाशाह बन गई थी। क्या यह एक मसीह-विरोधी स्वभाव दिखाना नहीं था? मैं बहुत हैरान थी। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं इतनी अहंकारी और दुर्भावनापूर्ण हो सकती हूँ, सिर्फ अपने रुतबे को बचाने के लिए किसी को इस कदर अलग-थलग कर सकती हूँ। मैं नए सदस्यों के सिंचन पर बिल्कुल भी विचार नहीं कर रही थी, न ही मुझे इस बात की परवाह थी कि इससे कलीसिया के काम का नुकसान हो रहा था, मैं बस अपनी निरंकुश महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना चाहती थी। मैं सचमुच अपने नाम और रुतबे के नशे में चूर थी।
फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि प्रतिष्ठा और हैसियत प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य निभा रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त और खराब करता है। उनके हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह गड़बड़ी, खराबी और विघटन है। यह लोगों के प्रसिद्धि और हैसियत के पीछे भागने का परिणाम है। जब वे इस तरह से अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो क्या इसे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना नहीं कहा जा सकता? जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को अस्त-व्यस्त कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका दूसरों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। जब लोग अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो यह निश्चित है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे और ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं निभाएँगे। वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर ही बोलेंगे और कार्य करेंगे, और वे जो भी काम करते हैं, वह बिना किसी अपवाद के इन्हीं चीजों के लिए होता है। इस तरह से व्यवहार और कार्य करना, बिना किसी संदेह के, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना है; यह परमेश्वर के कार्य में विघ्न-बाधा डालना है, और इसके सभी विभिन्न परिणाम राज्य के सुसमाचार के प्रसार और कलीसिया के भीतर परमेश्वर की इच्छा के मुक्त प्रवाह में बाधा डालना है। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने वालों द्वारा अपनाया जाने वाला मार्ग परमेश्वर के प्रतिरोध का मार्ग है। यह उसका जानबूझकर किया जाने वाला प्रतिरोध है, उसे नकारना है—यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके विरोध में खड़े होने में शैतान के साथ सहयोग करना है। यह लोगों की हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग प्रतिष्ठा और हैसियत जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक वाहक बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव बाधा डालने और काम बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। इसे पढ़ने के बाद मैं डर से कांपने लगी। परमेश्वर खुलासा करता है कि हमारा नाम और रुतबे के पीछे भागना दरअसल हमारा अपना उद्यम चलाना है; यह एक मसीह-विरोधी के रास्ते पर चलना है। सार रूप में, यह शैतान के अनुचर के रूप में काम करना है; यह कलीसिया के काम में बाधा डालना है। इससे परमेश्वर के स्वभाव का अपमान होता है। मैंने इस बारे में जितना पढ़ा उतनी ही घबराहट महसूस हुई। सुसमाचार कार्य अपने चरम पर है; ज्यादा से ज्यादा लोग परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार रहे हैं। सिंचन कार्य की प्रभारी होने के नाते, मुझे सच में परमेश्वर की इच्छा के बारे में सोचना चाहिए था, फौरन नए सदस्यों का सहयोग और सिंचन करना चाहिए था, उनकी धारणाओं और उलझनों को दूर करने में उनकी मदद करनी चाहिए थी, ताकि वे जल्दी से सच्चे मार्ग पर अपनी नींव मजबूत कर सकें। मगर मैं अपने काम पर ध्यान देने के बजाय नाम और रुतबे के पीछे भाग रही थी। मैं अपने कर्तव्य में मेहनत नहीं कर रही थी, कीमत नहीं चुका रही थी या यह नहीं सोच रही थी कि नए सदस्यों का सबसे अच्छी तरह सिंचन कैसे किया जाए; मैं तो इस काम में किसी और को शामिल भी नहीं करना चाहती थी। क्या यह कलीसिया के काम में बाधा डालना नहीं था? क्या मैं दूसरों के लिए परमेश्वर के उद्धार की राह में रोड़ा नहीं बन रही थी? मैं शैतान की औजार बनकर नकारात्मक भूमिका निभा रही थी; मैंने परमेश्वर के खिलाफ एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही थी। मैं सिंचन कार्य के लिए जिम्मेदार थी, पर अकेले इसे संभाल नहीं सकती थी; इसलिए अगुआ ने मेरी मदद के लिए कारमन की व्यवस्था की, जो एक अच्छी बात थी; कोई भी कर्तव्यनिष्ठ या समझदार इंसान नए विश्वासियों का जल्द से जल्द सहयोग और सिंचन करने के लिए किसी और के साथ सक्रिय रूप से मिलजुलकर काम करता। मगर मैं कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोच रही थी। अपने नाम और रुतबे को बनाए रखने के लिए, मैंने कारमन को अलग-थलग किया, उसे भाई-बहनों से दूर रखा और उसे उनकी समस्याएं हल करने में मदद से रोका। यह हमारे सिंचन कार्य में गंभीर रुकावट थी और इससे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में देरी हुई। यह अपना कर्तव्य निभाना नहीं था। यह साफ तौर पर दुष्टता करना था। अगर मैंने अभी भी प्रायश्चित नहीं किया, तो मैं जानती थी कि परमेश्वर मुझे एक मसीह-विरोधी के रूप में उजागर करके निकाल देगा। यह मेरे लिए एक खौफनाक एहसास था; मुझे अपने सभी कर्मों और व्यवहार पर काफी पछतावा हुआ। मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं नाम और रुतबे के पीछे भाग रही थी, कलीसिया के काम में बाधा डाल रही थी। मुझमें जरा सी भी मानवता नहीं है। मैं जो भी करती हूँ आपके खिलाफ करती हूँ। परमेश्वर, मैं तुम्हारे सामने प्रायश्चित करना चाहती हूँ...।”
उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन मेंतुम अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम निष्ठावान रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्हें इन चीज़ों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा। अगर तुम्हारे पास ज्यादा काबिलियत नहीं है, अगर तुम्हारा अनुभव उथला है, या अगर तुम अपने पेशेवर कार्य में दक्ष नहीं हो, तब तुम्हारेतुम्हारे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, हो सकता है कि तुम्हें अच्छे परिणाम न मिलें—पर तब तुमने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया होगा। तुमतुम अपनी स्वार्थपूर्णइच्छाएँ या प्राथमिकताएँ पूरी नहीं करते। इसके बजाय, तुम लगातार कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हो। भले ही तुम्हें अपने कर्तव्य में अच्छे परिणाम प्राप्त न हों, फिर भी तुम्हारा दिल निष्कपट हो गया होगा; अगर इसके अलावा, इसके ऊपर से, तुम अपने कर्तव्य में आई समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य खोज सकते हो, तब तुम अपना कर्तव्य निर्वहन मानक स्तर का कर पाओगे और साथ ही, तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाओगे। किसी के पास गवाही होने का यही अर्थ है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ना मेरे लिए प्रबोधक था। कर्तव्य में, कलीसिया के हित सबसे पहले आने चाहिए; हमें अपना सब कुछ कर्तव्य में झोंक देना चाहिए। हमें नाम और रुतबे के लिए चीजों का हिसाब नहीं लगाना चाहिए; हमें अपने भाई-बहनों के साथ सहयोग करते हुए एक दिल और एक मन से काम करना चाहिए; सिद्धांतों के अनुसार काम करने के लिए अपनी भरसक कोशिश करनी चाहिए, ताकि हमें आसानी से पवित्र आत्मा का कार्य हासिल हो सके और हमारे काम में अच्छे नतीजे मिल सकें। इसलिए, मैं कारमन से बात करने गई और उसके सामने अपनी भ्रष्टता की बात खोलकर रख दी; यह भी बताया कि इस अनुभव से मैंने अपने बारे में क्या सीखा। हमारी संगति के बाद मैंने खुद को मुक्त महसूस किया; मैं सिंचन कार्य में उसके साथ मिलजुलकर काम करने के लिए तैयार थी।
जल्दी ही, मुझे कुछ ऐसे नए विश्वासी मिले जो सभाओं में जाने से हिचकिचा रहे थे; मैंने कारमन की मदद ली, उनकी धारणाओं को दूर किया, अब वे नियमित रूप से सभाओं में हिस्सा ले रहे थे और कर्तव्य निभाना चाहते थे। फिर से मैं थोड़ी नाखुश हो गई। मैं पहले उनकी समस्याओं को नहीं समझ पाई थी, पर कारमन ने उन्हें हल कर दिया। क्या यह मुझे उससे कमतर नहीं दिखाएगा? यह सोचने पर, मुझे एहसास हुआ कि मैं इस बारे में सही तरीके से नहीं सोच रही थी; मुझे परमेश्वर का यह कथन याद आया : “भाई-बहनों के बीच सहयोग एक की कमजोरियों की भरपाई दूसरे की खूबियों से करने की प्रक्रिया है। तुम दूसरों की कमियों की भरपाई करने के लिए अपनी खूबियों का उपयोग करते हो और दूसरे तुम्हारी कमियों की भरपाई करने के लिए अपनी खूबियों का उपयोग करते हैं। यही दूसरों की खूबियों से अपनी कमजोरियों की भरपाई करने और सामंजस्यपूर्वक सहयोग करने का यही अर्थ है। सामंजस्य से सहयोग करके ही लोग परमेश्वर के समक्ष धन्य हो सकते हैं, और व्यक्ति इसका जितना अधिक अनुभव करता है, उसमें उतनी ही अधिक वास्तविकता आती है, चलने पर उसका मार्ग उतना ही अधिक प्रकाशवान होता जाता है, और वह और भी अधिक सहज हो जाता है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सामंजस्यपूर्ण सहयोग के बारे में)। कारमन सत्य पर संगति करने और समस्याएं हल करने में मुझसे बेहतर थी, तो मुझे उससे सीखने की जरूरत थी। इसलिए, मैंने उससे संगति करने और नए सदस्यों की समस्याएं हल करने के उसके तरीके के बारे में पूछा; संगति करते हुए उसने मुझे इस बारे में थोड़ी अंतर्दृष्टि दी कि नए सदस्यों की समस्याएं कैसे हल की जाएं। मुझे लगा जैसे उसके साथ करना बहुत शानदार था; वह मेरी कमियों की भरपाई कर सकती है और यह मेरे लिए परमेश्वर का अनुग्रह था। उसके बाद, जब मैंने देखा कि कुछ भाई-बहन अपने कर्तव्य में निष्क्रिय हैं, तो मैंने कारमन से चर्चा की ताकि जान सकूँ कि उनकी निराशा की जड़ क्या है और इस समस्या को हल करने के लिए हमें किस तरह के सत्य पर संगति करनी चाहिए। जल्दी ही हमें उनके साथ संगति के लिए जरूरी परमेश्वर के वचन मिल गए। इस संगति के बाद वे अपने कर्तव्य में ज्यादा सक्रिय हो गए। कुछ नए विश्वासियों के सिंचन में जुट गए तो कुछ सुसमाचार साझा करने लगे। धीरे-धीरे, ज्यादा से ज्यादा लोग कलीसिया में कर्तव्य निभाने लगे। थोड़े-से सहयोग और सिंचन के जरिये, और भी नए सदस्यों ने सच्चे मार्ग पर अपनी नींव मजबूत कर ली; उनमें से ज्यादातर लोग नियमित रूप से सभा करने और कर्तव्य निभाने लगे। उसके बाद, जब भी मेरे कर्तव्य में कोई समस्या आती, तो मैं फौरन कारमन से उसकी चर्चा करती; जब उसे लगता कि भाई-बहनों को अपने कर्तव्य निभाने में समस्याएं आ रही हैं, तो वह मुझे फौरन उनके बारे में बताती, ताकि मैं उन मामलों की खोज-खबर लेकर समस्याएं सुलझा सकूं। हमने एक दूसरे के साथ मिलजुलकर, एक दिल और एक मन से काम किया; इससे मुझे काफी सुकून महसूस हुआ।
इस अनुभव से मुझे पता चला कि नाम और रुतबे के पीछे भागने का मतलब है एक मसीह-विरोधी मार्ग पर चलना, शैतान की अनुचर बनकर काम करना और कलीसिया के काम में बाधा डालना। परमेश्वर के वचनों का न्याय और प्रकाशन नहीं होता, तो मुझे अपनी भ्रष्टता या अपने मसीह-विरोधी स्वभाव का कभी पता ही नहीं चल पाता; मैं रुतबे की अपनी चाह को कभी नहीं छोड़ पाती और कारमन के साथ मिलजुलकर काम नहीं कर पाती। मैं दिल की गहराइयों से परमेश्वर के उद्धार की आभारी हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?