परमेश्वर में विश्वास के मार्ग पर आगे बढ़ना

18 सितम्बर, 2019

रोंगुआंग हारबिन शहर, हीलोंगजियांग प्रांत

1991 में, परमेश्वर की कृपा से, मैंने एक बीमारी के कारण सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना शुरू किया। उस समय मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में कुछ भी नहीं पता था, किन्तु दिलचस्प बात यह है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचनों को खाते और पीते समय, मुझे अच्छा लगता था। मुझे लगता था कि उसके वचन बहुत अच्छे हैं, और जब मैं गाता या प्रार्थना करता था तो मैं अक्सर पवित्र आत्मा द्वारा इतना द्रवित हो जाता था कि रो पड़ता था। मेरे हृदय की वह मिठास, वह आनंद ऐसा था मानो कि मेरे साथ एक आनंदमय घटना हो गई हो। विशेष रूप से पवित्र आत्मा के महान कार्य के दौरान मुलाक़ातों में, मुझे लगता था मानो मैं देह की इच्छाओं को पार कर चुका हूँ और मैं तीसरे स्वर्ग में रह रहा हूँ, मानो कि मैंने दुनिया से संबंधित हर चीज़ की चिंता छोड़ दी हो। मैं बता नहीं सकता कि मैं अपने हृदय में कितना आनन्दित, कितना खुश था। मुझे लगता था कि मैं दुनिया का सबसे खुशहाल व्यक्ति हूँ। इसलिए उस समय मुझे विश्वास था कि परमेश्वर पर विश्वास करना केवल उसके अनुग्रह का आनंद लेना है।

जैसे-जैसे अधिक से अधिक परमेश्वर के वचन जारी हो रहे थे (उस समय वचनों के अंश लगातार एक के बाद एक कलीसिया को भेजे जा रहे थे), मैं भी अधिक से अधिक जान रहा था। फिर, मैं परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेने मात्र से अब और संतुष्ट नहीं था। जब मैंने उसके वचनों में "ज्येष्ठ पुत्रों" का उल्लेख देखा और जाना कि परमेश्वर अपने ज्येष्ठ पुत्रों को महान आशीष प्रदान करता है, तो मैंने उनमें से एक बनने इच्छा की, इस आशा से कि भविष्य में मैं परमेश्वर के साथ शासन कर सकूँ। बाद में, जब मैंने उसके वचनों में देखा कि उसका समय जल्द ही आ रहा है, तो मुझे और भी अधिक तात्कालिक ज़रूरत महसूस हुई और मैंने सोचा: मैंने बहुत देर से परमेश्वर पर विश्वास करना शुरू किया था; क्या मैं इस आशीष को प्राप्त करने में असमर्थ रहूँगा? मुझे इसमें अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। इसलिए जब परमेश्वर के घर ने मेरे लिए एक दायित्व की व्यवस्था की, तो मैंने इसमें बहुत तत्परता दिखाई। मुझे कठिनाई का डर नहीं था। मैंने फैसला किया कि मैं परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्याग दूंगा, ताकि मैं एक ज्येष्ठ पुत्र होने का आशीष प्राप्त करने में सक्षम हो सकूँ। वास्तव में, परमेश्वर ने अपने वचनों में सुनिश्चित ढंग से कभी भी नहीं कहा था कि हम ज्येष्ठ पुत्र हो सकते हैं। केवल इस कारण कि हम महत्वाकांक्षी थे और हमारी अनावश्यक इच्छाएँ थी, हमारा मानना था कि चूँकि परमेश्वर ने हमें अपना "पुत्र" कहा है और अब उसने हमारा उत्थान भी किया है, तो हम निश्चित रूप से ज्येष्ठ पुत्र बन जाएँगे। इस तरह से मैं विश्वास करने लगा कि मैं स्वाभाविक रूप से, एक ज्येष्ठ पुत्र बन गया हूँ। बाद में मैंने परमेश्वर के उन वचनों को देखा जो अभी-अभी जारी किए गए थे, जिनमें बार-बार "सेवा करने वालों" का उल्लेख किया गया था, और उनमें सेवा करने वालों के न्याय का अधिक से अधिक उल्लेख किया गया था। मैंने मन ही मन सोचा: सौभाग्य से मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण कर रहा हूँ, अन्यथा मैं एक सेवाकार बन जाता। जब मैंने परमेश्वर की आशीषों और ज्येष्ठ पुत्रों के लिए वादों के बारे में पढ़ा, तो मुझे विश्वास था कि उसमें से एक हिस्सा मेरा होगा। जब मैंने ज्येष्ठ पुत्र के लिए उसके सुकून और प्रोत्साहन देने वाले वचनों के बारे में पढ़ा, तो मैंने यह भी महसूस किया कि वे मुझसे कहे गए थे। मुझे विशेष रूप से तब और भी अधिक प्रसन्नता महसूस हुई, जब मैंने इन वचनों को देखा: "बड़ी आपदाएँ निश्चित रूप से मेरे प्रिय पुत्रों, मेरे प्यारे लोगों पर नहीं पड़ेंगी। मैं हर समय और हर पल अपने पुत्रों की देखरेख करूँगा। तुम लोगों को निश्चित रूप से उस पीड़ा और कष्ट को नहीं भुगतना पड़ेगा। इसके बजाय, इसका होना मेरे पुत्रों की पूर्णता और उनमें मेरे वचन की पूर्ति के लिए है। परिणामस्वरूप, तुम लोग मेरी सर्वशक्तिमत्ता को पहचान सकते हो, जीवन में आगे बढ़ सकते हो, शीघ्र ही मेरी खातिर ज़िम्मेदारी कंधे पर ले सकते हो और मेरी प्रबंधन योजना की पूर्णता के लिए अपनी संपूर्ण अस्मिता समर्पित कर सकते हो। तुम लोगों को इसकी वजह से ख़ुशी और प्रसन्नता से आनंदित होना चाहिए। मैं तुम लोगों को सब कुछ सौंप दूँगा ताकि तुम लोग नियंत्रण ले सको; मैं इसे तुम लोगों के हाथों में रख दूँगा। अगर यह सच है कि कोई पुत्र अपने पिता की पूरी संपत्ति की विरासत पाता है, तो तुम लोगों, मेरे ज्येष्ठ पुत्रों के लिए यह कितना अधिक सच होगा? तुम लोग वास्तव में धन्य हो। बड़ी आपदाओं से पीड़ित होने के बजाय, तुम लोग अनंत आशीषों का आनंद लोगे। कैसी महिमा है! कैसी महिमा है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 68)। मैंने सोचा: क्या मैं सपना देख रहा हूँ? स्वर्ग से ऐसा अविश्वसनीय मन्ना मुझ पर उतरा है? मैं इस पर विश्वास करने का पूरी तरह से साहस नहीं कर पा रहा था, किन्तु मुझे डर था कि मेरे भाई और बहन कहेंगे कि मेरा विश्वास बहुत छोटा है, इसलिए मैंने उस पर विश्वास नहीं करने का साहस नहीं किया।

एक दिन, मैं उत्साहित होकर एक बैठक में भाग लेने के लिए गया, और मैंने देखा कि दो अगुवा कलीसिया में आए थे। जब मैं उनके साथ संगति में था, तो उन्होंने कहा कि वे सेवा करने वाले हैं। यह सुनकर मैं हैरान हो गया, और मैंने उनसे पूछा: "यदि आप सेवा करने वाले हैं, तो क्या हम सभी सेवा करने वाले नहीं हैं?" उन्होंने बिना संकोच के सत्य बोला: "चीन में लगभग हम सभी सेवा करने वाले हैं।" उन्हें यह कहते सुनकर, मेरा हृदय डूब गया। ऐसा नहीं हो सकता है! क्या यह सत्य है? किन्तु जब मैंने उनके भारी, दुःखी भावों को देखा और देखा कि दूसरों के चेहरे भी बहुत उदास थे, तो मुझे इस पर विश्वास करना ही पड़ा। किन्तु फिर मैंने अपना मन बदल कर सोचा: अगुवाओं के रूप में, उन्होंने परमेश्वर के कार्य के लिए अपने परिवारों और आजीविका को छोड़ दिया था, बहुत कष्ट सहन किया था और इतनी बड़ी कीमत चुकाई थी। उनकी तुलना में, मुझमें काफी कमी थी; यदि वे सेवा करने वाले हैं, तो मैं और क्या कह सकता हूँ? एक सेवा करने वाला एक सेवा करने वाला ही है, इसलिए उस समय, मुझे बहुत बुरा नहीं लगा।

घर जाने के बाद, मैंने एक बार फिर परमेश्वर के वचन की किताब को लिया और सेवा करने वालों के बारे में परमेश्वर का क्या कहना था इस पर नज़र डाली, और मैंने यह देखा: "मेरे लिए सेवा करने वालों, सुनो! मेरी सेवा करते समय तुम मेरा कुछ अनुग्रह प्राप्त कर सकते हो। अर्थात, तुम लोग मेरे बाद के काम और भविष्य में होने वाली चीजों के बारे में कुछ समय के लिए जानोगे-लेकिन तुम बिलकुल ही इनका आनंद नहीं भोगोगे। यह मेरा अनुग्रह है। जब तुम्हारी सेवा पूरी हो जाती है, तो तुरंत चले जाओ, ठहरे न रहो। तुममें से जो मेरे पहलौठे पुत्र हैं, वे घमंडी न बनें, लेकिन तुम गर्व कर सकते हो क्योंकि मैंने तुम लोगों को अनंत आशीर्वाद प्रदान किए हैं। तुममें से जो विनाश के लक्ष्य हैं, खुद पर परेशानी न लाओ या अपने भाग्य के लिए दुख महसूस न करो। तुम लोगों को शैतान का वंशज किसने बनाया? मेरे लिए अपनी सेवा पूरी करने के बाद तुम अथाह कुंड में लौट सकते हो, क्योंकि तुम अब मेरे लिए किसी काम के नहीं रहोगे। फिर मैं तुम लोगों से अपनी ताड़ना के साथ निपटना शुरू कर दूँगा। एक बार जब मैं अपना काम शुरू कर दूँगा तो मैं अंत तक जाऊंगा; मेरे कर्म पूरे किए जाएंगे और मेरी उपलब्धियां हमेशा के लिए बनी रहेंगी। यह मेरे पहलौठे पुत्रों, मेरे बेटों और मेरे प्रजाजनों पर लागू है और यह तुम लोगों के लिए भी है : तुम लोगों के लिए मेरी ताड़नाएँ हमेशा के लिए होंगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 86)। जैसे ही मैंने इन वचनों को पढ़ा, मैं ऐसी पीड़ा से भर गया जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी। मैंने जल्दी से परमेश्वर के वचनों की किताब बंद कर दी और इसे फिर से देखने का साहस नहीं किया। एक पल में पीड़ा, उलझन और असंतोष की भावनाएँ एक साथ मेरे हृदय में उमड़ पड़ीं। मैंने सोचा: कल मैं खुशहाली के पालने में था, किन्तु आज मुझे परमेश्वर के घर से बाहर धकेल दिया गया है। कल मैं परमेश्वर का पुत्र था, किन्तु आज मैं परमेश्वर का शत्रु, शैतान का वंशज बन गया हूँ। कल, परमेश्वर की असीम आशीषें मेरी प्रतीक्षा कर रही थीं, किन्तु आज अथाह गड्ढा मेरी मंज़िल है, और मुझे अनन्तकाल तक दंडित किया जाएगा। यदि वह आशीष प्रदान नहीं कर रहा है, तो कोई फर्क नहीं पड़ता, किन्तु उसे अभी भी मुझे क्यों दंड देना है? आखिर मैंने क्या ग़लत किया है? आखिर यह सब किसके लिए है? मैं इस वास्तविकता का सामना करने के लिए तैयार नहीं था; मैं इस प्रकार की वास्तविकता का सामना करने में असमर्थ था। मैंने अपनी आँखों को बंद कर लिया, मैं इसके बारे में अब और सोचने का इच्छुक नहीं था। मैंने बहुत आशा की कि यह सिर्फ एक सपना हो।

तब से, जैसे ही मैं अपने बारे में एक सेवा करने वाले के रूप में सोचता था, तो मुझे अपने हृदय में एक अकथनीय पीड़ा महसूस होती थी, और मैं पुनः परमेश्वर के वचनों को पढ़ने का साहस नहीं करता था। किन्तु परमेश्वर बहुत बुद्धिमान है, और उसके वचन जो ताड़ना देते हैं और लोगों को प्रकट करते हैं, न केवल रहस्य से व्याप्त हैं, बल्कि उनमें भविष्य की तबाही की भविष्यवाणियाँ और साथ ही राज्य का दृष्टिकोण और इसी तरह की अन्य बातें भी हैं। ये सभी वे बातें थीं जो मैं जानना चाहता था, इसलिए मैं अभी भी उसके वचनों से मुँह नहीं मोड़ सकता था। परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय, उसके खंजर-से पैने वचनों ने बार-बार मेरे हृदय को बेध दिया, और मैं उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। मुझे महसूस हुआ कि परमेश्वर के न्याय का प्रतापी कोप हमेशा मुझ पर था। पीड़ा के अलावा, मैं शैतान के द्वारा मुझे भ्रष्ट किए जाने की वास्तविक सच्चाई को जान सका। यह पता चला कि मैं बड़े लाल अजगर की संतान, शैतान का वंशज, और विनाश का लक्ष्य हूँ। निराशा में, मैं लालच से किसी भी आशीष की आशा करने का अब और साहस नहीं करता था, और मैं परमेश्वर द्वारा इस पूर्वनियति को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं एक सेवा करने वाला हूँ। जब मुझे लगा कि मैं अपने हृदय को एक सेवाकर्ता बनने में लगा सकता हूँ, तो परमेश्वर ने एक बार फिर ऐसा वातावरण तैयार किया जिसने मेरे अंदर छुपे भ्रष्ट स्वभाव को सामने ला दिया। एक दिन परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हुए, मैंने देखा: "मेरे सिय्योन लौटने के बाद, पृथ्वी के लोग उसी तरह मेरी स्तुति करते रहेंगे, जैसा कि वे अतीत में करते थे। वे वफ़ादार सेवाकर्मी मुझे सेवा प्रदान करने के लिए हमेशा की तरह प्रतीक्षा करेंगे, किंतु उनका कार्य समाप्त हो गया होगा। सर्वोत्तम चीज़ जो वे कर सकते हैं, वह है पृथ्वी पर मेरी उपस्थिति की परिस्थितियों पर चिंतन करना। उस समय मैं उन लोगों पर आपदा लाना शुरू कर दूँगा, जो विपदा से पीड़ित होंगे; फिर भी हर कोई विश्वास करता है कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ। मैं निश्चित रूप से उन वफ़ादार सेवा-कर्मियों को दंडित नहीं करूँगा, बल्कि उन्हें केवल अपना अनुग्रह प्राप्त करने दूँगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 120)। यह देखकर, मैंने मन ही मन सोचा: मैं अब ज्येष्ठ पुत्र के जन्मसिद्ध अधिकार के बारे में अब और नहीं सोचूँगा और मैं महान आशीषों को अब और नहीं चाहूँगा। अब मैं केवल एक धर्मनिष्ठ सेवाकर्ता बनने की कोशिश करूँगा। यही अब मेरी एकमात्र कोशिश है। भविष्य में, इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर के घर ने मेरे लिए किस कार्य की व्यवस्था की है, मैं इसे जितना धर्मनिष्ठ ढंग से कर सकता हूँ अवश्य करूँगा। मैं पुनः एक धर्मनिष्ठ सेवा करने वाला बनने का अवसर बिल्कुल भी नहीं खो सकता हूँ। यदि मैं एक धर्मनिष्ठ सेवा करने वाला बनने में भी सक्षम नहीं हूँ, बल्कि केवल एक सामान्य सेवा करने वाला हूँ, तो अपनी सेवा पूरी करने के बाद मुझे अवश्य अथाह गड्ढे अथवा आग और गंधक की झील में डाल दिया जाएगा। ऐसे में, यह सब किसलिए है? मैंने इस विचार को किसी के सामने व्यक्त करने का साहस नहीं किया, किन्तु मैं परमेश्वर की नज़रों की जांच से बच नहीं सकता था। मैंने परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा: "मेरे सिवाय कोई भी मनुष्य की प्रकृति की थाह नहीं पा सकता है, और वे सभी, इस बात से अनभिज्ञ रहते हुए कि उनकी वफ़ादारी अशुद्ध है, सोचते हैं कि वे मेरे प्रति वफ़ादार हैं। ये अशुद्धताएँ लोगों को बर्बाद कर देंगी क्योंकि वे बड़े लाल अजगर का एक षड़यंत्र हैं। यह मेरे द्वारा बहुत पहले स्पष्ट कर दिया गया था; मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ, तो मैं इतनी-सी आसान चीज़ को कैसे नहीं समझ सकता? तेरे इरादों को देखने के लिए मैं तेरे रक्त और मांस में घुसने में सक्षम हूँ। मनुष्य की प्रकृति को समझना मेरे लिए मुश्किल नहीं है, किन्तु लोग, यह सोचते हुए चालाक बनने की कोशिश करते हैं कि उनके इरादों को उनके अलावा और कोई नहीं जानता। क्या वे नहीं जानते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर आकाश और पृथ्वी और सभी चीज़ों के भीतर विद्यमान है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 118)। "अधिकांश लोग अब एक छोटी-सी आशा बनाए रखते हैं, किन्तु जब वह आशा निराशा में बदल जाती है तो वे और आगे जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं और वापस लौटने के लिए कहते हैं। मैंने इससे पहले कहा है कि मैं यहाँ किसी को अपनी इच्छानुसार नहीं रखता हूँ, बल्कि इस बारे में विचार करने के लिए सावधान रहता हूँ कि तेरे लिए क्या परिणाम होंगे। मैं तुम्हें धमकी नहीं दे रहा; यह तथ्यों की बात है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 118)। इसे पढ़ने के बाद, मेरा हृदय ज़ोर से धड़क रहा था। मुझे लगता था कि परमेश्वर वास्तव में मनुष्य के अस्तित्व के हर पहलू में देखता है। हम किसी चीज़ के बारे में सोचते हैं और परमेश्वर को पता चल जाता है; हम चुपके से अपने हृदयों में थोड़ी सी आशा रखते हैं और परमेश्वर को घृणा हो जाती है। तभी मेरे हृदय में परमेश्वर के लिए थोड़ी सी श्रद्धा उत्पन्न हुई। मैंने दृढ़ निश्चय किया कि मैं परमेश्वर के साथ अब और लेन-देन नहीं करूँगा, बल्कि मैं ईमानदारी से एक सेवा करने वाले के रूप में कार्य करूँगा और उसकी योजनाओं का पालन करूँगा।

बाद में जाकर मुझे पता चला कि इन तीन महीनों का मेरा अनुभव असल में सेवा करने वालों का परीक्षण था। यह परमेश्वर के वचनों द्वारा परीक्षण का पहला कार्य था जिसे उसने लोगों में पूरा किया। सेवा करने वालों की परीक्षा से गुज़रने के बाद, मेरी समझ में आया कि परमेश्वर न केवल दयालु और प्रेममय परमेश्वर है, बल्कि वह एक धार्मिक, प्रतापी परमेश्वर भी है जो इंसान के अपराधों को सहन नहीं करता है। उसके वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है, जिनसे मनुष्य के हृदय में भय पैदा होना स्वाभाविक ही है। मैं यह भी जानता था कि इंसान परमेश्वर का सृजन है, हमें परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। यही बात सही और उचित है। इसमें किसी कारण, शर्त की ज़रूरत नहीं है, कोई महत्वाकांक्षा या असाधारण इच्छा तो बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए। यदि लोग परमेश्वर से कुछ प्राप्त करने के लिए उस पर विश्वास करते हैं, तो इस तरह का विश्वास, परमेश्वर का फ़ायदा उठाना और उसे धोखा देना है। यह विवेक और तर्क के अभाव की अभिव्यक्ति है। अगर लोग परमेश्वर पर विश्वास करें किन्तु उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं हो और बाद में परमेश्वर से दण्ड मिले, तब भी उन्हें उस पर विश्वास करना चाहिए। इंसान को परमेश्वर में विश्वास करना चाहिए और परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए क्योंकि वह परमेश्वर है। मैंने यह भी स्वीकार किया कि मैं स्वयं बड़े लाल अजगर की संतान, शैतान का वंशज और उनमें से एक हूँ जो नष्ट होंगे। परमेश्वर समस्त सृष्टि का प्रभु है, और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह मेरे साथ कैसा व्यवहार करता है, मैं सी के योग्य हूँ। यह सब धर्मी है, और मुझे बिना शर्तों के उसकी योजनाओं और व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए। मुझे उसके साथ तर्क-वितर्क का प्रयास नहीं करना चाहिए, और उसका विरोध तो और भी नहीं करना चाहिए। इस परीक्षण में प्रकट हुई मेरी स्वयं की मूर्खता के बारे में सोचते हुए, मैंने देखा कि मैं वास्तव में बेशर्म था, और मैं केवल कुछ ऊँची हैसियत, महान आशीष प्राप्त करना, यहाँ तक कि परमेश्वर के साथ बैठकर उसके साथ शासन करना चाहता था। जब मैंने देखा कि मुझे वे आशीष नहीं मिलेंगी जिनकी मैंने आशा की थी, बल्कि उसके बजाय मुझे तबाही का सामना करना पड़ेगा, तो मैंने परमेश्वर से विश्वासघात करने की सोची। इन सर्वथा पारदर्शी प्रदर्शनों ने मुझे स्पष्ट रूप से देखने दिया कि परमेश्वर पर विश्वास करने का मेरा लक्ष्य आशीष पाने के लिए था। मैं स्पष्ट रूप से परमेश्वर के साथ लेन-देन करने का प्रयास कर रहा था; मैं वास्तव में बेशर्म था, और मैं पूरी तरह से उस विवेक को खो चुका था जो एक व्यक्ति में होना चाहिए। यदि परमेश्वर के कार्य में ऐसी बुद्धि न होती, जिसमें मुझे जीतने के लिए, आशीषों को पाने की मेरी महत्वाकांक्षा को तोड़ने के लिए, सेवा करने वालों की परीक्षा का इस्तेमाल न किया गया होता, तो मैं अभी भी आशीष पाने के झूठे मार्ग पर नीचे गिरता चला जाता। मैं शायद अपने भ्रष्ट सार को भी नहीं समझ पाता, और खास तौर से परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को पूरी आज्ञाकारिता से नहीं स्वीकार पाता। उस हालत में, मैं कभी भी बचाया या पूर्ण किया नहीं जा सकता था।

सेवा करने वालों की परीक्षा से गुज़रने के बाद, मुझे लगता था कि मैं बस आशीषों को पाने के लिए परमेश्वर पर विश्वास करने और अपने कर्तव्य को पूरा करने की हिमाकत अब और नहीं करता था, और मैं सोचता था कि मैं परमेश्वर के साथ लेन-देन करने के इरादे से चीज़ों को करने का साहस नहीं करता था। मुझे लगता था कि इस तरह से परमेश्वर का लाभ उठाना और उसे धोखा देना बहुत घृणित है। किन्तु, साथ ही, मुझे यह समझ थी कि इंसान को बचाने के लिए परमेश्वर का इस परीक्षा का उपयोग करना उसका दयालु इरादा है, और मुझे पता था कि उसका कोई भी ऐसा हिस्सा नहीं है जो मनुष्य से नफ़रत करता हो। जब से उसने दुनिया का सृजन किया है तब से इंसान के लिए उसका प्रेम नहीं बदला है, इसलिए, भविष्य के अपने विश्वास में परमेश्वर के प्रेम को संतुष्ट करने और उसके प्रेम का मूल्य चुकाने और अपने कर्तव्य की पूर्ति के मार्ग को खोजने के लिए मैं मन से तैयार था। लेकिन, क्योंकि आशीष प्राप्त करने और परमेश्वर के साथ लेन-देन करने का इरादा लोगों के हृदय में बहुत गहराई से समाया हुआ है, इसलिए मात्र एक परीक्षा का अनुभव करके इसका पूरी तरह से समाधान करना संभव नहीं है। कुछ समय बीत जाने के बाद, ये चीज़ें स्वयं को पुनः दिखाएँगी। इसलिए, हमें और अधिक गहराई से और पूर्णतः जीतने और हमें बचाने के लिए, वह हम पर उत्तरोत्तर कई परीक्षण करता है—ताड़ना के समय का परीक्षण, मृत्यु का परीक्षण, और सात-वर्षीय परीक्षण। इन परीक्षणों में से, जिसमें मैंने सर्वाधिक कष्ट झेला और जिससे मुझे सर्वाधिक फायदा हुआ, वह था 1999 का सात-वर्षीय परीक्षण।

1999 में, मुझे एक कलीसिया के अगुवा के रूप में चुना गया। यह वो वर्ष था जब राज्य का सुसमाचार बहुत विस्तारित हो गया था, और परमेश्वर के घर की अपेक्षा थी कि हम उस हर एक व्यक्ति को बचाने का प्रयास करें जिसके बचाये जाने की संभावना थी। जब मैंने परमेश्वर के घर की इस व्यवस्था को देखा, तो मैंने सोचा कि परमेश्वर का कार्य वर्ष 2000 में किया जाएगा। अधिक आत्माओं को प्राप्त करने और समय आने पर अपने लिए एक अनुकूल गंतव्य प्राप्त करने के लिए, मैंने बहुत सुबह से लेकर देर रात तक सुसमाचार के कार्य में अपने आप को व्यस्त कर लिया। जहाँ तक कलीसिया के जीवन की बात है, मैं मात्र उपस्थिति दर्शा रहा था और बिना रुचि के कार्य कर रहा था। यद्यपि मुझे एहसास था कि मेरे इरादे ग़लत हैं, लेकिन मैं आशीष पाने की अपनी इच्छा को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। उस समय मैं काफ़ी व्यस्त था, और मुझे लगता था कि सुसमाचार के कार्य के अलावा कुछ भी करना यहाँ तक कि परमेश्वर के वचन को खाना और पीना भी मुझे रोक रहा था। इस तरह से मैंने अपने आप को कार्य के उत्साह में झोंक दिया, मुझे पता भी नहीं चला कि कब वह वर्ष समाप्त हो गया। परमेश्वर के घर ने कार्य में सहायता करने के लिए एक स्थानीय व्यक्ति का चयन किया था, इसलिए मैं अपने गृह नगर के क्षेत्र में लौट आया।

मैंने कल्पना की थी कि जब परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाएगा, तो महान विपत्ति निश्चित रूप से आएगी, इसलिए घर वापस लौटने के बाद, मैं घर पर हर दिन, परमेश्वर के कार्य के अंत की प्रतीक्षा करते हुए, आपदा की प्रतीक्षा करता रहा। जब मैंने देखा कि बसंत महोत्सव आ रहा है, तो कलीसिया के अगुवा ने सहभागिता करते हुए कहा कि सात वर्ष के परीक्षणों से गुज़रना आवश्यक है। इस संदेश को सुनने के बाद, मैंने व्याकुल महसूस किया और मेरा हृदय बेचैन हो गया। मै परमेश्वर के साथ तर्क करने से खुद को रोक नहीं पाया: सात वर्ष मुझे और काटने हैं—यह जिंदगी जीने का तरीका कैसे हो सकता है? हे परमेश्वर, मैं तुझसे विनती करता हूँ कि तू मुझे मिटा दे। मैं सच में इस दुःख को अब और सहन नहीं कर सकता हूँ! अगले दिन भी, मैं अपने अवसाद से नहीं बच सका। मैंने सोचा: जो भी हो, सात वर्ष तय हो गए हैं। कल एक और दिन है—मैं बाहर जाऊँगा और इसे अपने मन से निकाल दूँगा। जैसे ही मैं बस में चढ़ा, मुझे लगा कि पवित्र आत्मा मेरे अंदर मेरी भर्त्सना कर रहा है: जिस समय तू स्वेच्छा से तलाश कर रहा था, तूने अपनी कीमत चुका दी थी, और कहा था कि तू परमेश्वर से अंत तक प्रेम करेगा, तू उसे कभी नहीं छोड़ेगा, तू किसी भी कठिनाई को सहन करेगा और किसी भी खुशी को साझा करेगा। तू ऐसा पाखंडी था जिसने स्वयं को मूर्ख बनाया! पवित्र आत्मा की भर्त्सना का सामना करते हुए, मैं अपना सिर झुकाने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। यह सच था। इससे पहले, जब मैं परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठाता था, तो मैंने उससे वादे किए थे, किन्तु अब जब कठिनाइयाँ आ रही हैं और मुझे कष्ट उठाना है, तो मैं अपने वादे से पीछे हटना चाहता हूँ। तो क्या मेरे वादे मात्र झूठ नहीं हैं? परमेश्वर ने मुझे बहुत प्रेम दिया, और अब जब मैं ऐसे वातावरण का सामना करता हूँ जो कि पूरी तरह से वैसा नहीं है जैसा मैं चाहता हूँ तो मुझे इस हद तक रोष है कि मैं परमेश्वर से मुँह फेर लेना चाहता हूँ। मैं वास्तव में एक कृतघ्न जंगली हूँ, जो किसी जानवर से कम नहीं है! जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मेरा अब बाहर जाने का मन नहीं था, मैं भारी हृदय से घर लौट आया। यद्यपि मुझे "आज्ञाकारी" होने के लिए बाध्य किया गया था, जब मैंने इस तथ्य के बारे में सोचा कि परमेश्वर के कार्य में अभी भी सात वर्ष शेष हैं, तो मैंने उसे अपने हृदय से जाने दिया और मैं जो भी करता था, उसे लेकर मैं जल्दबाजी में या चिंता में नहीं रहता था। मैं अपना कर्तव्य पूरा करने के हर दिन कड़ी मेहनत करता था जैसे कि यह घड़ी पर मात्र एक और दिन हो। इस तरह की नकारात्मक और विरोधी स्थिति ने धीरे-धीरे पवित्र आत्मा के कार्य पर मेरी पकड़ को ख़त्म कर दिया, और यद्यपि मैं अपनी स्वयं की स्थिति को बदलना चाहता था, किन्तु मैं ऐसा करने में असमर्थ था।

एक दिन, जब मैं परमेश्वर के वचनों को खा और पी रहा था, तो मैंने उसके इन वचनों को देखा जिसमें कहा गया है: "जब कुछ लोगों ने पहले-पहले अपना कर्तव्य निभाना शुरू किया था, तो वे ऊर्जा से भरे हुए थे, जैसे कि वो कभी ख़त्म नहीं होगी। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि जैसे ही वे कुछ आगे बढ़ते हैं, वे उस ऊर्जा को खो देते हैं? जिस तरह के व्यक्ति वे तब थे और जिस तरह के व्यक्ति वे अब हैं, ये दो भिन्न लोगों की तरह लगते है। वे क्यों बदल गए? क्या कारण था? यह इसलिए है क्योंकि सही मार्ग पर पहुँचने से पहले ही परमेश्वर पर उनका विश्वास भटक गया। उन्होंने गलत रास्ता चुन लिया। उनके प्रारंभिक अनुसरण के अंदर कुछ छिपा हुआ था, और एक नाजुक पल में वह चीज़ उभर कर बाहर आ गई। क्या छिपा हुआ था? यह एक प्रत्याशा है जो परमेश्वर पर विश्वास करते समय उनके दिल के भीतर निहित होती है, वो प्रत्याशा यह है कि परमेश्वर का दिन शीघ्र ही आ रहा है जिससे उनका दुख समाप्त हो जाएगा; वो प्रत्याशा यह है कि परमेश्वर रूपांतरित हो जाएगा और उनकी सभी पीड़ा खत्म हो जाएगी" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सर्वाधिक जोख़िम उन्हें है जिन्होंने पवित्र आत्मा का कार्य गँवा दिया है')। परमेश्वर के वचनों के कारण मैं समस्या के मूल को खोज सका। मुझे पता चला कि मेरी खोजों के भीतर मेरी एक छुपी हुई आशा है, यह आशा कि परमेश्वर का दिन शीघ्र आएगा, जिससे मैं अब और कष्ट नहीं उठाऊँगा, और मेरी एक अच्छी मंजिल होगी। शुरुआत से ही, मेरी खोज इस आशा के प्रभाव में थी, और जब मेरी आशा निष्फल हो गई, तो मैंने कष्ट उठाया और, इस हद तक टूट गया कि परमेश्वर को धोखा देने को आ गया, यहाँ तक कि मैंने मृत्यु के माध्यम से बच निकलने की भी सोची। केवल उस समय ही मैंने देखा कि मैंने इतने वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण किया था, किन्तु इसका सार सत्य के मार्ग की खोज करना नहीं था; मेरी नज़रें हमेशा परमेश्वर के दिन पर लगीं थीं, और मैं उसकी आशीष प्राप्त करने के लिए उसके साथ लेन-देन कर रहा था। भले ही तब मैं परमेश्वर के परिवार के अंदर ही रहने और उसे नहीं छोड़ने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था, फिर भी यदि मैंने अपने भीतर के संदूषण का समाधान नहीं किया, तो कभी-न-कभी मैं परमेश्वर का विरोध करूँगा और उसके साथ विश्वासघात करूँगा। अपने भीतर छुपे हुए इस खतरे को देखने के बाद, अपने हृदय में मैंने परमेश्वर से पूछा: परमेश्वर के दिन की आशा करने के संदूषण से छुटकारा पाने के लिए मैं क्या कर सकता हूँ? तब, मैंने एक बार पुनः परमेश्वर के वचनों को पढ़ा, जिसमें कहा गया है: "क्या तुम जानते हो कि चीन में परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास करने से, इन कष्टों से गुज़रने और परमेश्वर के कार्य का आनंद लेने में तुम्हारे सक्षम होने से, विदेशी लोग वास्तव में तुम सभी से ईर्ष्या करते हैं? विदेशियों की ये इच्छाएँ हैं: हम भी परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना चाहते हैं, हम इसके लिए कुछ भी भुगत लेंगे। हम भी सत्य को प्राप्त करना चाहते हैं! हम भी कुछ अंतर्दृष्टि प्राप्त करना चाहते हैं, कुछ क़द हासिल करना चाहते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे पास वह परिवेश नहीं है। ...बड़े लाल अजगर के देश में लोगों के इस समूह को परिपूर्ण बनाना, उन्हें इस पीड़ा को सहन करने के योग्य बनाना, परमेश्वर का सबसे बड़ा उत्कर्ष कहा जा सकता है। एक बार यह कहा गया था: 'मैं बहुत पहले इज़राएल से अपना गौरव पूर्व में ले आया हूँ।' क्या अब तुम सब इस कथन का अर्थ समझते हो? तुम्हें आगे के मार्ग पर कैसे चलना चाहिए? तुम्हें सत्य की तलाश कैसे करनी चाहिए? यदि तुम सत्य की तलाश नहीं करते हो तो तुम पवित्र आत्मा के कार्य को कैसे प्राप्त कर सकते हो? एक बार अगर तुम पवित्र आत्मा के कार्य को खो दोगे, तो तुम सबसे बड़े ख़तरे में होगे। वर्तमान का दुख नगण्य है। क्या तुम जानते हो कि यह तुम्हारे लिए क्या कर देगा?" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सर्वाधिक जोख़िम उन्हें है जिन्होंने पवित्र आत्मा का कार्य गँवा दिया है')। परमेश्वर के इन वचनों से, मैं देख सकता था कि आज लोगों के कष्ट उठाने में समर्थ होने में बहुत बड़ा अर्थ है, किन्तु उस दुःख का वास्तव में क्या अर्थ है, इसे मैं ठीक से नहीं पहचान सका था। मैं सिर्फ इतना जानता था कि यदि मैं पीड़ा के अर्थ को समझ सका तभी मैं परमेश्वर के दिन की आशा करने की अपनी हालत को सचमुच बदलने में सक्षम होऊँगा। यह समाधान की ओर जाने वाला मार्ग था। यद्यपि कष्ट भुगतने का अर्थ उस समय मेरी समझ में नहीं आया, किन्तु एकमात्र चीज जो मैं कर सकता था वह थी वास्तव में सत्य का अनुसरण करना, सत्य की अधिक तलाश करना, क्योंकि केवल यदि मैं सत्य को प्राप्त कर पाया तभी मैं वास्तव में कष्ट भुगतने का अर्थ समझ सकूँगा, और केवल तभी मैं अपने भीतर के इस संदूषण से छुटकारा पा सकूंगा।

ऐसा लगा मानो कि समय को पंख लग गए हों, पलक झपकते ही 2009 आ गया। मुझे पता भी नहीं चला और वे सात वर्ष बीत गए। मैं बहुत दूर तक आ गया था और अंतत: मुझे लगा कि वे सात वर्ष उतने लंबे नहीं रहे थे जितनी मैंने कल्पना की थी। उन कुछ वर्षों में, परमेश्वर के वचनों में प्रकट किए गए न्याय में, परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरणों में, मैंने अपना असली चेहरा देखा था। मैंने देखा कि मैं, हर पहलू से, बड़े लाल अजगर की संतान था, क्योंकि मैं उसके विषों से भरा था, जैसे कि "यदि कोई लाभ नहीं होता है तो जल्दी मत उठो, लाभ हर चीज़ में सबसे आगे होता है"। यह बड़े लाल अजगर के रूप का एक उत्कृष्ट प्रतिनिधि है। इस विष के के तहत, परमेश्वर में मेरा विश्वास केवल आशीष पाने के लिए था। मैंने परमेश्वर के लिए जितना खुद को खपाया उसकी एक समय सीमा थी, और मुझे बहुत कम दुःख पाने और महान आशीष प्राप्त करने की इच्छा थी। आशीष पाने के इस मजबूत इरादे और मेरे भीतर के लेन-देन के रवैये से मुझे छुटकारा के लिए, परमेश्वर ने मुझ पर कई परीक्षण और शुद्धिकरण किए। केवल तभी परमेश्वर में मेरे विश्वास के संदूषण को शुद्ध किया गया। मैंने परमेश्वर के प्रकटनों के भीतर देखा कि मैं शैतान के भ्रष्ट स्वभाव से भरा हुआ था। मैं अहंकारी, धोखेबाज़, स्वार्थी, अधम, धृष्ट और आधे-अधूरे मन वाला था। इनसे मैंने अपने स्वयं के असली चेहरे को अधिकाधिक स्पष्ट रूप से देखा, मैंने देखा कि मैं शैतान के द्वारा बहुत गहराई तक भ्रष्ट किया जा चुका था कि मैं नरक का पुत्र था। मैं उस समय परमेश्वर पर विश्वास कर सका और वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण कर सका. यह उसके द्वारा उत्थान और उसका अनुग्रह था, मैं उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर सका, यह और भी बड़ी आशीष थी। परमेश्वर के प्रति मेरी कृतज्ञता बढ़ गई, मेरी अपेक्षाएँ कम हो गईं, उसके प्रति मेरी आज्ञाकारिता बढ़ गई, और मेरा स्वयं के लिए प्रेम सिमट गया। मैंने केवल अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को फेंकने में समर्थ होने की और एक ऐसा व्यक्ति होने याचना की जो वास्तव में परमेश्वर का आज्ञापालन करता हो और उसकी आराधना करता हो। कौन जाने परमेश्वर के श्रमसाध्य प्रयासों समेत उसके कितने सारे कार्यों के बाद यह छोटा सा परिणाम प्राप्त हुआ। आज के दिन तक, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए, मैंने अंततः यह समझा है कि परमेश्वर द्वारा इंसान का उद्धार वास्तव में आसान नहीं है। उसका कार्य अत्यधिक व्यावहारिक है—इंसान को बदलने और बचाने का उसका कार्य उतना सरल नहीं है जितना लोग कल्पना करते हैं। इसलिए, अब मैं एक भोले-भाले बच्चे की तरह नहीं हूँ, जो केवल यह आशा करता है कि परमेश्वर का दिन शीघ्रता से आएगा, किन्तु मुझे हमेशा लगता है कि मेरी अपनी भ्रष्टता अत्यधिक गहरी है, मुझे परमेश्वर द्वारा उद्धार की अत्यंत आवश्यकता है, मुझे उसके न्याय और उसकी ताड़ना का, उसके परीक्षणों और शुद्धिकरणों का अनुभव करने की अत्यंत आवश्यकता है। अब मुझे उस थोड़े से ज़मीर और विवेक से सम्पन्न अवश्य होना चाहिए जो कि सामान्य इंसान में होने चाहिए, मुझे इंसान के उद्धार के परमेश्वर के कार्य का सही ढंग से अनुभव करना चाहिए। अंत में, जब मैं एक सच्चे व्यक्ति के आदर्श का जीवन जी सकूँगा और परमेश्वर के आनन्द को प्राप्त कर सकूँगा, तो मेरा हृदय संतुष्ट हो जाएगा। अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ और जब सात वर्षों के परीक्षण मुझ पर पड़े थे तब अपने बारे में मैंने जो कुछ प्रकट किया था उस पर विचार करता हूँ, तो मुझे लगता है कि मैं परमेश्वर के प्रति अत्यधिक कृतज्ञ हूँ, और मैंने उसके हृदय को अत्यधिक घायल किया है। यदि परमेश्वर का कार्य वर्ष 2000 में समाप्त हो जाता, तो मैं जो पूरी तरह से मलिन था, निश्चित रूप से विनाश का लक्ष्य होता। परीक्षणों के सात वर्ष वास्तव में मेरे लिए परमेश्वर की सहिष्णुता और करुणा थे, और इतना ही नहीं, यह मेरे लिये परमेश्वर का सबसे सच्चा और सबसे वास्तविक उद्धार था।

एक बार जब मैं उन सात वर्षों से बाहर आ गया और मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में चिंतन किया जो पहले मेरी समझ में नहीं आए थे: "क्या तुम जानते हो कि चीन में परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास करने से, इन कष्टों से गुज़रने और परमेश्वर के कार्य का आनंद लेने में तुम्हारे सक्षम होने से, विदेशी लोग वास्तव में तुम सभी से ईर्ष्या करते हैं? विदेशियों की ये इच्छाएँ हैं: हम भी परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना चाहते हैं, हम इसके लिए कुछ भी भुगत लेंगे। हम भी सत्य को प्राप्त करना चाहते हैं! हम भी कुछ अंतर्दृष्टि प्राप्त करना चाहते हैं, कुछ क़द हासिल करना चाहते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे पास वह परिवेश नहीं है। ...बड़े लाल अजगर के देश में लोगों के इस समूह को परिपूर्ण बनाना, उन्हें इस पीड़ा को सहन करने के योग्य बनाना, परमेश्वर का सबसे बड़ा उत्कर्ष कहा जा सकता है। एक बार यह कहा गया था: 'मैं बहुत पहले इज़राएल से अपना गौरव पूर्व में ले आया हूँ।' क्या अब तुम सब इस कथन का अर्थ समझते हो?" तो मैं इन वचनों के अर्थ को थोड़ा सा समझ सकता था; मैं अंततः महसूस कर सकता था कि कष्ट उठाना सचमुच सार्थक है। भले ही इन परीक्षणों को झेलते समय मुझे कष्ट हुआ, केवल कष्ट झेलने के बाद ही मैंने देखा कि मैंने जो कुछ प्राप्त किया था, वह बहुत ही अनमोल था, बहुत मूल्यवान था। इन परीक्षणों का अनुभव करते हुए, मैंने सर्वशक्तिमान के धार्मिक स्वभाव और परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि को देखा। मैंने परमेश्वर की उदारता को समझा, और मैंने अपने बच्चों के लिए परमेश्वर के गहरे, पैतृक प्रेम का स्वाद लिया। मैंने उसके वचनों में अधिकार और सामर्थ्य का भी अनुभव किया, और मैंने शैतान द्वारा मेरी स्वयं की भ्रष्टता की सच्चाई को देखा। मैंने उद्धार के परमेश्वर के कार्य में उसकी कठिनाइयों को देखा, मैंने देखा कि वह पवित्र और सम्मानित है, और मनुष्य बदसूरत और अधम है। मैंने यह भी अनुभव किया कि परमेश्वर इंसान को उस पर विश्वास करने के सही मार्ग पर लाने के लिए कैसे उसे जीतता और बचाता है। अब जब मैं इसके बारे में सोचता हूँ, यदि परमेश्वर ने मुझ पर परीक्षण के बाद परीक्षण के इस कठिन कार्य को नहीं किया होता, तो मुझमें शायद इस तरह की समझ नहीं होती। कठिनाइयाँ और शुद्धिकरण लोगों के जीवन में उनकी प्रगति के लिए बहुत लाभकारी हैं। उनके माध्यम से, लोग परमेश्वर पर विश्वास करने के अपने मार्ग में सबसे व्यावहारिक और अनमोल चीज़—सत्य—को प्राप्त कर सकते हैं। कष्ट सहने के मूल्य और अर्थ को देखने के बाद, अब मैं एक बड़ी गाड़ी पर सवार होकर राज्य में प्रवेश करने का सपना नहीं देखता हूँ, बल्कि मैं अपने पैरों को दृढ़ता से जमीन पर जमाने, परमेश्वर के कार्य का अनुभव लेने, अपने आप को बदलने के लिए सत्य की खोज करने के लिए तैयार हूँ।

परमेश्वर के कार्य के कई वर्षों का अनुभव करने के माध्यम से, केवल अब मुझे परमेश्वर के इन वचनों की थोड़ी सी व्यावहारिक समझ मिली है: "परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है: इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही 'परमेश्वर में विश्वास' कहा जा सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। परमेश्वर के इन परीक्षणों का अनुभव करने से पहले, मैं आशीष पाने के एक प्रबल इरादे और लेन-देन के दृष्टिकोण से भरा था। यद्यपि सिद्धांततः मैं जानता था कि परमेश्वर में विश्वास करना क्या है और परमेश्वर पर विश्वास का लक्ष्य क्या है, तब भी मेरी नज़रें केवल धन्य किए जाने पर ही थीं। मैंने सत्य पर कोई ध्यान नहीं दिया, मैंने परमेश्वर को पहचानने को और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करनेके लिए स्वयं को अपने भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा दिलाने को अपने अनुसरण का लक्ष्य नहीं माना। केवल उस समय ही मेरी समझ में आया कि जब परमेश्वर देहधारी हुआ तो उसका प्राथमिक कार्य इंसान के आशीष पाने के इरादे और उसके लेन-देन के दृष्टिकोण का समाधान करना था। ऐसा इसलिए था क्योंकि ये चीजें वास्तव में मनुष्य और उसके परमेश्वर पर विश्वास करने के सच्चे मार्ग में प्रवेश करने के बीच बाधाएँ हैं। जब इन चीजों को इंसान अपने भीतर आश्रय देते हैं, तो वे सच्चाई की खोज नहीं करेंगे। उनकी खोज में उनके पास सही लक्ष्य नहीं होगा; वे एक गलत मार्ग पर चलेंगे। यह ऐसा मार्ग है जो परमेश्वर द्वारा मान्य नहीं है। अब, जीतने और उद्धार के परमेश्वर के कार्य ने मेरे भीतर शैतान के किले को नष्ट कर दिया है। मैं अंततः अब और चिंतित नहीं हूँ, आशीषों को प्राप्त करने या विपत्तियों को भुगतने के विचारों में अब और चिंतामग्न नहीं हूँ। मैं असाधारण इच्छाओं का अब और अनुसरण नहीं कर रहा हूँ, और मैं तबाही से बच निकलने के रास्तों पर चर्चा नहीं कर रहा हूँ या कोशिशें नहीं कर हूँ। इस संदूषण के बिना, मैं अधिक हल्का, अधिक स्वतंत्र महसूस करता हूँ। मैं शांति से और सही तरीके से सत्य की खोज कर सकता हूँ। यही वह परिणाम है जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरणों से उत्पन्न हुआ है। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरणों का कार्य है जो मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने के सही मार्ग पर ले गया है। अब से, चाहे परमेश्वर परीक्षाओं का और कितना भी कार्य करे, चाहे मैं कितने भी अधिक पीड़ादायक शुद्धिकरणों को झेलूँ, मैं उनका आज्ञापालन करूँगा और उन्हें स्वीकार करूँगा, और वास्तव में उन्हें अनुभव करूँगा। मैं उनसे सत्य की तलाश करूँगा, और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए भ्रष्टता से मुक्त स्वभाव प्राप्त करूँगा, ताकि परमेश्वर के कई वर्षों के श्रमसाध्य प्रयासों का मूल्य चुका सकूं।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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