क्या आप जानते हैं कि प्रभु यीशु के पुनरुत्थान और मनुष्य के सामने उसके प्रकटन का क्या अर्थ है?
ईस्टर क्या है? ईस्टर का उद्भव
ईस्टर, या जैसा कि इसे पुनरुत्थान रविवार भी कहा जाता है, एक अवकाश-दिवस है जब प्रभु यीशु के पुनरुत्थान का जश्न मनाया जाता है जो उनके क्रूस पर चढ़ाये जाने के तीन दिन बाद हुआ था। इसका सटीक समय, हर साल वसंत विषुव के बाद पहली पूर्णिमा के उपरांत आने वाले प्रथम रविवार को पड़ता है। यीशु के पुनरुत्थान की यादगारी में और वे मानवजाति के लिए जो उद्धार और आशा लेकर आये उसे याद करने के लिए, प्रत्येक वर्ष मार्च से अप्रैल तक, दुनिया भर के ईसाई, ईस्टर के दिन समारोह का आयोजन करते हैं। जबकि हम ईसाई, यीशु के पुनरुत्थान को याद कर रहे हैं, क्या हम जानते हैं कि वे मृतकों में से क्यों लौटे और अपने छुटकारे के कार्य को पहले ही पूरा कर लेने के बावजूद मनुष्य के सामने क्यों प्रकट हुए? उनके पुनरुत्थान और मनुष्य के सामने उनके प्रकटन का क्या अर्थ है?
प्रभु यीशु के पुनरुत्थान और मनुष्य के सामने उनके प्रकटन का अर्थ
परमेश्वर के वचन कहते हैं: "प्रभु यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद पहली चीज़ यह की, कि उसने इस बात की पुष्टि करने के लिए कि वह मौजूद है, और अपने पुनरुत्थान के तथ्य की पुष्टि करने के लिए अपने को सबको देखने दिया। इसके अतिरिक्त, इस कार्य ने लोगों के साथ उसका संबंध उसी रूप में बहाल कर दिया, जैसा वह तब था जब वह देह में कार्य कर रहा था, वह वो मसीह था जिसे वे देख और छू सकते थे। इसका एक परिणाम यह है कि लोगों को इस बात में कोई संदेह नहीं रहा कि सूली पर चढ़ाए जाने के बाद प्रभु यीशु मरकर पुन: जी उठा है, और उन्हें मानवजाति को छुड़ाने के प्रभु यीशु के कार्य में भी कोई संदेह नहीं रहा था। दूसरा परिणाम यह है कि पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु के लोगों के सामने प्रकट होने और लोगों को अपने को देखने और छूने देने के तथ्य ने मानवजाति को अनुग्रह के युग में दृढ़ता से सुरक्षित किया, और यह सुनिश्चित किया कि अब से, इस कल्पित तथ्य के आधार पर कि प्रभु यीशु 'गायब' हो गया है या 'बिना कुछ कहे छोड़कर चला गया है', लोग व्यवस्था के पिछले युग में नहीं लौटेंगे। इस प्रकार उसने सुनिश्चित किया वे प्रभु यीशु की शिक्षाओं और उसके द्वारा किए गए कार्य का अनुसरण करते हुए लगातार आगे बढ़ते रहेंगे। इस प्रकार, अनुग्रह के युग के कार्य में औपचारिक रूप से एक नया चरण खुल गया था, और उस क्षण से व्यवस्था के अधीन रह रहे लोग औपचारिक रूप से व्यवस्था से बाहर आ गए और उन्होंने एक नए युग में, एक नई शुरुआत में प्रवेश किया। पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु के मानवजाति के सामने प्रकट होने के ये बहुआयामी अर्थ हैं" ('परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III')। "अपने पुनरुत्थित होने के बाद प्रभु यीशु उन लोगों के सामने प्रकट हुआ जिन्हें वह आवश्यक समझता था, उनसे बातें कीं, और उनसे अपेक्षाएँ कीं, और लोगों के बारे में अपने इरादे और उनसे अपनी अपेक्षाएँ पीछे छोड़ गया। कहने का अर्थ है कि देहधारी परमेश्वर के रूप में मानवजाति के लिए उसकी चिंता और लोगों से उसकी अपेक्षाएँ कभी नहीं बदलीँ; जब वह देह में था तब, और सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थित होने के बाद जब वह आध्यात्मिक देह में था तब भी, वे एक-जैसी रहीं। सलीब पर चढ़ाए जाने से पहले वह इन चेलों के बारे में चिंतित था, और अपने हृदय में वह हर एक व्यक्ति की स्थिति को लेकर स्पष्ट था और वह प्रत्येक व्यक्ति की कमियाँ समझता था, और निस्संदेह, अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और आध्यात्मिक शरीर बन जाने के बाद भी प्रत्येक व्यक्ति के बारे में उसकी समझ वैसी थी, जैसी तब थी जब वह देह में था। वह जानता था कि लोग मसीह के रूप में उसकी पहचान को लेकर पूर्णत: निश्चित नहीं थे, किंतु देह में रहने के दौरान उसने लोगों से कठोर माँगें नहीं कीं। परंतु पुनरुत्थित हो जाने के बाद वह उनके सामने प्रकट हुआ, और उसने उन्हें पूर्णत: निश्चित किया कि प्रभु यीशु परमेश्वर से आया है और वह देहधारी परमेश्वर है, और उसने अपने प्रकटन और पुनरुत्थान के तथ्य का उपयोग मानवजाति द्वारा जीवन भर अनुसरण करने हेतु सबसे बड़े दर्शन और अभिप्रेरणा के रूप में किया। मृत्यु से उसके पुनरुत्थान ने न केवल उन सभी को मज़बूत किया जो उसका अनुसरण करते थे, बल्कि उसने अनुग्रह के युग के उसके कार्य को मानवजाति के बीच अच्छी तरह से कार्यान्वित कर दिया, और इस प्रकार अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा किए जाने वाले उद्धार का सुसमाचार धीरे-धीरे मानवजाति के हर छोर तक पहुँच गया। क्या तुम कहोगे कि पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु के प्रकटन का कोई महत्व था? ... उसके प्रकटन ने लोगों को परमेश्वर की चिंता और परवाह का एक बार और अनुभव और एहसास कराया, साथ ही सशक्त रूप से यह भी प्रमाणित किया कि वह परमेश्वर ही है, जो युग का सूत्रपात करता है, युग का विकास करता है, और युग का समापन भी करता है। अपने प्रकटन के माध्यम से उसने सभी लोगों का विश्वास मज़बूत किया, और संसार के सामने इस तथ्य को साबित किया कि वह स्वयं परमेश्वर है। इससे उसके अनुयायियों को अनंत पुष्टि मिली, और अपने प्रकटन के माध्यम से उसने नए युग में अपने कार्य के एक चरण का सूत्रपात किया" ('परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III')।
परमेश्वर के वचनों से, हम देख सकते हैं कि मृतकों में से लौट आने के बाद, प्रभु यीशु का अपने शिष्यों को अनेक बार दर्शन देने का गहरा अर्थ है, इसके पीछे परमेश्वर की श्रमसाध्य परवाह और विचार भी छिपे हुए हैं! यीशु जानते हैं कि, भले ही उस समय उनके अनुयायियों ने उनकी कई शिक्षाओं को सुना था, उनके द्वारा किए गए कई चमत्कारों को देखा था, और वे दावा करते थे कि यीशु उनके प्रभु हैं और परमेश्वर के पुत्र हैं, फिर भी उन्हें इस तथ्य की सच्ची समझ बिल्कुल नहीं थी कि यीशु मसीह हैं और स्वयं ईश्वर हैं। जब रोमन अधिकारियों ने यीशु को पकड़ लिया था, सैनिक उन्हें कोड़े मार रहे थे और उनका मजाक उड़ा रहे थे, तब उनके अनुयायियों में से कई को उनकी पहचान के बारे में संदेह होने लगा और प्रभु पर उनका विश्वास कमजोर होता चला गया। खासकर जब, क्रूस पर ठोंके जाने के बाद प्रभु यीशु की मृत्यु हो गई थी, तो बहुत से लोग उनसे पूरी तरह से निराश हो गए थे। जिस चीज़ की शुरुआत एक संदेह के रूप में हुई थी, वह प्रभु यीशु नकारनेमें बदल गयी। इस तरह की पृष्ठभूमि में, यदि प्रभु यीशु अपने पुनरुत्थान के बाद लोगों के सामने नहीं आये होते, तो उनका अनुसरण करने वालों में से कई, यीशु मसीह पर विश्वास करना छोड़ देते और व्यवस्था के युग में वापस जाकर, पुराने नियम की व्यवस्था का पालन करना जारी रखते। लेकिन परमेश्वर ने लोगों के अंतरतम हृदय की जाँच की और उनकी कमजोरियों को समझा। वे जानते थे कि लोग छोटी कद-काठी के हैं। इसलिए प्रभु यीशु मृतकों में से लौट आये, उन्होंने अपने शिष्यों को कई बार दर्शन दिए; अपने शिष्यों के साथ बात की, पुनरुत्थान के बाद के अपने आध्यात्मिक शरीर को उन्हें दिखाया, उनके साथ भोजन किया और उन्हें धर्मशास्त्रों के बारे में बताया। ये सब करने के पीछे उनका यह उद्देश्य था कि उनके अनुयायीपूरे दिल से इस बात को मानें कि प्रभु यीशु वास्तव में मृतकों में से लौट आये थे, वह अभी भी वही यीशु थे जो मनुष्य से प्रेम करते थे, जिन्होंने मनुष्य पर दया की थी, कि प्रभु यीशु स्वयं देहधारी परमेश्वर थे, वे वही मसीहा थे जो मानवजाति के उद्धार के लिए आने वाला था और जिसकी बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी। वे अब प्रभु यीशु पर संदेह नहीं करते थे या उन्हें नकारते नहीं थे, बल्कि वे ईमानदारी से उन पर विश्वास करते थे, साथ ही यीशु मसीह को अपने प्रभु के रूप में स्वीकार करते थे। इससे हम देख सकते हैं कि लोगों के सामने फिर से जी उठने और प्रकट होने से, यीशु ने, स्वयं का अनुसरण करने और अपने में विश्वास करने के लिए लोगों की आस्था को मजबूत किया और इस प्रकार वे लोगों को परमेश्वर के करीब लाये। यह यीशु के पुनरुत्थान के अर्थ का एक पहलू है।
इसके अलावा, यीशु देह में प्रकट हुए और काम किया, उन्होंने पूरी तरह से व्यवस्था के युग को समाप्त कर दिया, और अनुग्रह के युग की शुरूआत की। पुन: जीवित होने के बाद, यीशु ने लोगों को इस तथ्य को और भी स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम बनाया, कि भले ही देहधारी यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया था, फिर भी उन्होंने पाप और मृत्यु पर विजय पायी, उन्होंने शैतान को हरा दिया, अपने छुटकारे के कार्य को सम्पन्न कर लिया था और महिमा प्राप्त कर ली थी। प्रभु यीशु ने एक नए युग की शुरुआत की, मानवजाति को पुराने नियम के व्यवस्था के युग से पूरी तरह बाहर लाये और उन्हें मज़बूती से अनुग्रह के युग में स्थापित किया। इस प्रकार उन्होंने लोगों को अनुग्रह के युग में, परमेश्वर का मार्गदर्शन, चरवाही और सिंचन ग्रहण करने में सक्षम बनाया। भले ही यीशु पुनर्जीवित होकर स्वर्ग में आरोहित हो गये, और अब मनुष्य के साथ रहते-खाते, नहीं थे, फिर भी मनुष्य यीशु के नाम पर प्रार्थना और आह्वान कर सकता था, उनकी शिक्षाओं का पालन कर सकता था, यीशु का अखंड विश्वास के साथ अनुसरण कर सकता था और प्रभु के सुसमाचार का प्रसार कर सकता था। विशेष रूप से, प्रभु यीशु के पुनर्जीवित होने और उनका अनुसरण करने वाले शिष्यों के सामने आने के बाद, उन सबका विश्वास बहुत बढ़ गया, और जब प्रभु के सुसमाचार को फैलाने या उनका साक्षी होने की बात आई, तो उन्हें किसी कठिनाई या खतरे का भय नहीं था, वे अपनी दृढ़ता में अदम्य थे। उन्होंने सुसमाचार फैलाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, यहाँ तक कि प्रभु की खातिर स्वयं को शहीद कर दिया। अंततः, यीशु का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड और दुनिया भर में फैल गया, और प्रभु यीशु के अनुयायियों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रही। हर घर में सभी ने उनका सुसमाचार सुना और यह सभी को ज्ञात हो गया।
जब वे मृतकों में से लौट आये, तब प्रभु यीशु ने मनुष्य को दर्शन दिए, वे उनके संपर्क में आये, उनसे बात की, धर्मशास्त्र पर चर्चा की, संवाद किया, उनके साथ भोजन किया, इत्यादि। इन कर्मों ने प्रभु यीशु का अनुसरण करने वालों को, मनुष्य के लिए उनकी परवाह और चिंता को महसूस करने दिया, इसकी पुष्टि करने में समर्थ बनाया कि यीशु वास्तव में स्वयं परमेश्वर हैं, देहधारी मसीह हैं। इन कर्मों ने अनुग्रह के युग में परमेश्वर के अनुयायियों को दृढ़ता से स्थापित किया। इसके अलावा, यीशु के छुटकारे का कार्य तब तक फैलता रहा जब तक वह पूरे ब्रह्मांड और पूरे विश्व में नहीं पहुँच गया। इसलिए यह स्पष्ट है कि यीशु के पुनरुत्थान और मानवजाति के समक्ष उनका प्रकटन बहुत गहन है। इन कर्मों के भीतर न केवल परमेश्वर की श्रमसाध्य परवाह और विचार छिपे हैं, बल्कि उनकी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता भी छिपी है!
प्यारे भाइयो और बहनो, आइए हम परमेश्वर की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन को धन्यवाद दें, जिन्होंने हमें यीशु के पुनरुत्थान के अर्थ को समझने में सक्षम बनाया है, और एक बार फिर हमें उनके कार्य के भीतर, हम मनुष्यों के लिए उपस्थित परमेश्वर की परवाह और चिंता को समझने दिया है। परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?