प्रभु यीशु ने स्वर्ग राज्य की चाबियाँ पेत्रुस को क्यों दीं
- सूचीपत्र
- बाइबल पढ़कर चकराना
- एक सहकर्मी से परामर्श करना और जवाब ढूंढना
- पतरस प्रभु को प्रेम करता है और उनका अनुमोदन प्राप्त करता है
- पतरस ने प्रभु को जानने और प्यार करने की तलाश कैसे की
बाइबल पढ़कर चकराना
जब मैं सुबह जल्दी उठ गयी, तो मैंने प्रार्थना की, फिर बाइबल में मत्ती 16:19 खोला, जहाँ प्रभु यीशु पतरस से कहते हैं: "मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।" बाइबल के इस अवतरण को पढ़कर, मैं यह सोचते हुए उलझन में पड़ गयी: "पतरस ने कोई महान काम नहीं किया और न ही उसके लिखे पत्र ही बहुत प्रसिद्ध थे। उस पर, जब प्रभु यीशु को गिरफ्तार किया गया और वे सुनवाई के लिए खड़े हुए, तो पतरस ने उन्हें तीन बार अस्वीकार कर दिया। प्रभु ने अन्य शिष्यों को स्वर्ग के राज्य की चाबियाँ क्यों नहीं दीं, केवल पतरस को ही क्यों दी?" मैंने धर्मशास्त्रों में बहुत खोजा, लेकिन कुछ भी मेरे भ्रम को दूर नहीं कर पा रहा था। मेरे पास काम पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
एक सहकर्मी से परामर्श करना और जवाब ढूंढना
दोपहर में भोजन के वक्त के दौरान मैं अभी भी सुबह के अपने प्रश्न पर विचार कर रही थी: "परमेश्वर धर्मी हैं और निश्चित रूप से कोई भी कार्य गलती से नहीं करेंगे, परन्तु प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य की चाबियाँ पतरस को क्यों दीं? किस तरह का रहस्य इसके भीतर है?" मैंने एक ऐसे सहकर्मी से परामर्श किया जिसने कई वर्षों तक प्रभु में विश्वास किया था ताकि मैं इस पर स्पष्टता प्राप्त कर सकूँ।
मेरा सहकर्मी मुस्कुराया और उसने कहा: "प्रभु ने स्वर्ग के राज्य की चाबियाँ पतरस को दीं क्योंकि परमेश्वर ने उसे चुना था। तो प्रभु ने पतरस पर अतिकृपा क्यों की?" मेरे चकराए भाव को देखते हुए, उसने पूछा: "क्या तुम्हें याद है कि जब यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा कि वे कौन हैं तो पतरस ने क्या जवाब दिया था?"
मैंने कहा, "शमौन पतरस ने उत्तर दिया, "तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है" (मत्ती 16:16)।
मेरे सहकर्मी ने अपना सिर स्वीकृति में हिलाया और आगे कहा: "यह सही है। प्रभु यीशु के बारह शिष्यों में से, केवल पतरस को पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता प्राप्त हुई और उसने पहचाना कि प्रभु यीशु ही वो मसीह थे जिनकी आने की भविष्यवाणी की गई थी। जब प्रभु यीशु ने कहा कि वे जीवन की रोटी थे और लोगों को अनन्त जीवन पाने के लिए केवल उनके शरीर को खाने और उनका लहू पीने की ज़रूरत है, तो कुछ लोगों ने धारणाएं बना ली और प्रभु का अनुसरण करना छोड़ दिया। केवल पतरस ने कहा: 'प्रभु, हम किसके पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं; और हम ने विश्वास किया और जान गए हैं कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है' (यूहन्ना 6:68–69)। इन दो घटनाओं से हम देख सकते हैं कि पतरस को प्रभु यीशु के काम और वचनों से उनकी सच्ची समझ थी, कि वह पूरी तरह से निश्चित था कि प्रभु यीशु ही मसीह थे और अनन्त जीवन का मार्ग थे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फरीसियों ने कैसे प्रभु यीशु की आलोचना की, निंदा की और हमला किया, वह कभी भ्रमित नहीं हुआ, और दूसरों ने प्रभु यीशु को त्यागा या नहीं, वह कभी भी इससे बाध्य नहीं हुआ और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करते हुए अपनी भक्ति बनाए रखी। और प्रभु के पुनरुत्थान और स्वर्ग में आरोहित होने के बाद, पतरस ने प्रभु के आदेशानुसार कलीसियाओं को चरवाही की। उसने प्रभु के सुसमाचार को फैलाया और अंतत: एक शानदार, सुंदर गवाही देते हुए, उनके लिए क्रूस पर उल्टा लटकाया गया। हम इन सब से देख सकते हैं कि पतरस के पास प्रभु की सच्ची समझ थी और उसके पास उनके लिए प्यार भरा सच्चा दिल था। अन्यथा, वह अपने पूरे जीवन को परमेश्वर का अनुसरण करने और उनके सुसमाचार को फैलाने के लिए समर्पित करने में सक्षम नहीं होता, और वह विशेष रूप से मृत्यु की हद तक प्रभु के लिए चरम प्यार और आज्ञाकारिता की गवाही न दे पाता।"
मैंने स्वीकृति में सर हिलाया और कहा: "तुम सही हो। बारह शिष्यों में से केवल पतरस ने यह स्वीकार किया कि प्रभु यीशु ही मसीह थे, और केवल पतरस को उनके लिए क्रूस पर उल्टा लटकाया गया था। मैं इन चीजों से देख सकती हूँ कि पतरस के पास ऐसे पहलु थे जो प्रभु की स्वीकृति और अनुमोदन को महत्व देते थे।"
मेरे सहकर्मी ने आगे कहा: "प्रभु यीशु ने हमें बताया: 'तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है' (मत्ती 22:37–38)। 'यदि कोई मुझ से प्रेम रखेगा तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे और उसके साथ वास करेंगे। जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता' (यूहन्ना 14:23–24)। 'जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है' (मत्ती 7:21)। प्रभु के वचनों से स्पष्ट था कि उनकी अपेक्षा यह है कि हम सभी उन्हें अपने पूरे दिल और दिमाग से प्यार करें, उनके वचनों के अनुसार अभ्यास करें, और प्रभु के दिखाए मार्ग पर बनें रहें। ये हमारे लिए उनकी अपेक्षाएं हैं और यही उनकी प्रशंसा पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए मानक हैं। पतरस का अनुसरण प्रभु के इन वचनों पर आधारित था; उसने परमेश्वर से प्यार करने का लक्ष्य निर्धारित किया और ऐसा व्यक्ति बनने की कोशिश की जो परमेश्वर को चाहता है। जब प्रभु यीशु को गतसमनी के बगीचे में गिरफ्तार किया गया था, तो पतरस महायाजक के दास के कान को काटकर उन्हें बचाने के लिए आगे बढ़ा था। यद्यपि पतरस का ऐसा करना काफी लापरवाही भरा था, लेकिन यह हमें दिखाता है कि वह एक खतरे के पल में आगे आया, कि वह सच में अपने दिल में प्रभु से प्यार करता था और वास्तव में उनकी रक्षा करना चाहता था। यद्यपि पतरस ने तीन बार प्रभु को इंकार किया था, पश्चाताप करने और खुद से घृणा करने के अलावा, उसने अपनी विफलता के कारण पर विचार करने के लिए भी उस अवसर का इस्तेमाल किया। उसने देखा कि भले ही उसमें प्रभु के लिए अपना जीवन देने की इच्छा थी, उसके पास प्रभु के लिए सच्चे प्यार की वास्तविकता या उनके लिए अपना जीवन देने की वास्तविकता नहीं थी। वह अभी भी मृत्यु की बाधाओं के अधीन था और उसने अपनी जिंदगी दांव पर लगाने की हिम्मत नहीं की। इस प्रकार, उसने अपने भविष्य की खोज के लिए अपना लक्ष्य स्थापित कर लिया, कि अपने बाकी जीवन में वह केवल प्रभु से प्यार और उन्हें संतुष्ट करने की खोज करेगा। पतरस प्रभु यीशु के आदेश के प्रति पूरे जीवन वफादार बना रहा-प्रभु यीशु के पुनरुत्थान और स्वर्ग लौटने के बाद, पतरस हर जगह जाकर सुसमाचार फैलाने और भेड़ों की चरवाही करने लगा। उसने प्रभु के वचनों और उनकी इच्छा के प्रति गवाही दी और लोगों को सिखाया कि कैसे प्रभु के वचनों को अभ्यास में लाया जाए। अपने काम में, पतरस ने भाइयों और बहनों को उस सत्य के साथ सहयोग किया जिसे वह समझता था और परमेश्वर की अपनी वास्तविक समझ के साथ सहारा दिया, उसने हर जगह परमेश्वर की गवाही देते और उनका उत्कर्ष करते हुए भाइयों और बहनों को प्रभु के सामने लाया। और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यहूदी धर्म के अगुवा कैसे उसका पीछा करते थे या रोमन सरकार उसे कैसे सताती थी, सभी पीड़ाओं और कठिनाइयों से गुजरते हुए, पतरस परमेश्वर के आदेश के प्रति दृढ़तापूर्वक वफादार था और कभी भी उनका निर्देश नहीं भूला था। जब रोमन तानाशाह नीरो ईसाइयों की हत्या करना चाहता था, तो पतरस दूसरों की मदद से रोम शहर से बच निकला। प्रभु यीशु ने पतरस को दर्शन दिया और कहा कि उसे उनके लिए फिर से क्रूस पर चढ़ाया जाएगा। एक बार जब पतरस ने प्रभु की इच्छा को समझ लिया, तो उसने वापस लौटने में संकोच नहीं किया, अपने जीवन को क्रूस पर उल्टा लटकाए जाने के लिए दे दिया, और मृत्यु की हद तक आज्ञाकारिता की गवाही और परमेश्वर के चरम प्यार को हासिल किया। पतरस एक ऐसा व्यक्ति था जिसने प्रभु से प्यार किया और स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी की, और उसकी खोज को परमेश्वर की मंजूरी प्राप्त हुई। यही कारण है कि प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य की चाबियाँ उसे दीं। अगर हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं, तो हमें पतरस के उदाहरण से सीखना चाहिए और वैसा इंसान बनना चाहिए जो प्रभु को जानता है और प्यार करता है, जो स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है। प्रभु ने जो वादा किया है उसे हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है।"
मेरे सहकर्मी की बातों को सुनने के बाद, मुझे अचानक अहसास हुआ: "वाह! तो पतरस वास्तव में वह व्यक्ति था जो परमेश्वर से प्यार करता था और उसका पालन करता था! कोई आश्चर्य नहीं कि प्रभु यीशु ने उसे स्वर्ग के राज्य की चाबियाँ दीं। मेरे विश्वास में और मैंने प्रभु के लिए जो व्यय किया है उसमें स्वयं की पतरस के अनुभवों से तुलना करते हुए, मैंने बस यही सोचा कि मैं स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश पा सकती हूँ और पुरस्कृत की जा सकती हूँ। मैंने यह नहीं सोचा कि प्रभु के वचनों को अभ्यास में कैसे लाया जाए या उसकी अपेक्षाओं को कैसे पूरा किया जाए। मेरे काम में, मैंने यह नहीं सोचा कि भाइयों और बहनों के साथ प्रभु की इच्छा का कैसे संवाद करना है, और सुसमाचार का प्रचार करने के दौरान, जब मुझे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और मैं अपने भाइयों और बहनों का समर्थन नहीं कर पाती हूँ, तो मैं नकारात्मक और कमजोर हो जाती हूँ, प्रभु में अपना विश्वास खो देती हूँ। केवल अब, पतरस से खुद की तुलना करने पर मैंने देखा कि मैं वास्तव में वो नहीं हूँ जो प्रभु से प्यार करता है! पतरस की गवाही वास्तव में कुछ ऐसी है जिसका हमें अनुकरण करना चाहिए, तो पतरस ने आम तौर पर प्रभु को जानने और प्यार करने की खोज कैसे करता था?"
पतरस ने प्रभु को जानने और प्यार करने की तलाश कैसे की
मुझे यह कहते हुए सुनकर, मेरे सहकर्मी ने ख़ुशी से अपना टैबलेट निकाला और मुझसे कहा: "मैंने एक सुसमाचार की वेबसाइट पर पतरस ने प्रभु को कैसे जाना और प्यार किया, इस पर कुछ अवतरण पढ़े हैं। इसे काफी स्पष्ट रूप से समझाया गया है। आओ इसे साथ में पढें: 'पतरस ने कुछ वर्षों तक यीशु का अनुगमन किया और उसने यीशु में अनेक बातों को देखा जो लोगों के पास नहीं थीं। …उसके जीवन में यीशु के प्रत्येक कार्य ने उसके लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य किया, और विशेषत: यीशु के उपदेश उसके हृदय में बस गये थे। वह यीशु के प्रति अत्यधिक विचारशील और समर्पित था, और उसने यीशु के बारे में कभी शिकायत नहीं की थी। इसीलिए जहाँ कहीं यीशु गया वह यीशु का विश्वासयोग्य सहयोगी बन गया। पतरस ने यीशु की शिक्षाओं, उसके नम्र शब्दों, वह क्या खाता था, क्या पहनता था, उसकी दिनचर्या और उसकी यात्राओं पर ध्यान दिया। उसने प्रत्येक रीति से यीशु के उदाहरणों का अनुगमन किया। वह पाखण्डी नहीं था, परन्तु उसने अपनी सभी पुरानी बातें उतारकर फ़ेंक दी थी और कथनी और करनी में यीशु के उदाहरण का अनुगमन किया था। तभी उसे अनुभव हुआ कि आकाशमण्डल और पृथ्वी और सभी वस्तुएँ सर्वशक्तिमान के हाथों में थीं, और इसी कारण उसकी अपनी कोई पसन्द नहीं थी, परन्तु अपने उदाहरण के रूप में प्रत्येक कार्य वैसे ही किया जैसे यीशु करता था' (सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिये परमेश्वर के कथन "वचन देह में प्रकट होता है" के "पतरस के जीवन पर")।
"कुछ समय के अनुभव के बाद, पतरस ने यीशु में परमेश्वर के बहुत सारे कार्यों को देखा, परमेश्वर की सुंदरता को देखा, और यीशु में परमेश्वर की बहुत कुछ समानता को देखा था। इसलिए भी उसने यह देखा कि यीशु के वचनों को कोई मनुष्य नहीं बोल सकता था, और उसके कार्यों को कोई और मनुष्य नहीं कर सकता था। इसके अलावा, यीशु के वचनों और कार्यों में पतरस ने परमेश्वर के अधिकांश ज्ञान, और बहुत ही अलौकिक कार्यों को देखा। अपने अनुभवों के दौरान, उसने न सिर्फ़ अपने आप जाना, परन्तु यीशु के कार्यों को भी देखने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, जिससे उसने कई नई बातों को खोजा; यानि कि पमरेश्वर द्वारा यीशु के माध्यम से किए गए कार्य में व्यावहारिक परमेश्वर के कई सारे भाव थे, और यीशु के वचनों, कार्यों और कलीसियों की चरवाही करने के तरीके और उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य साधारण मनुष्य से पूरी तरह से भिन्न थे। इस प्रकार से, यीशु से उसने कई पाठ सीखे जो उसे सीखने चाहिए थे, और यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने के समय तक, उसने यीशु के बारे में कुछ ज्ञान प्राप्त कर लिया था - ज्ञान जिस के आधार पर वह यीशु के लिए जीवन भर वफादार बना रह सका और यीशु के लिए क्रूस पर उलटा भी लटक सकता था" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल वही जो परमेश्वर को जानते हैं, उसकी गवाही दे सकते हैं")।
यह सुनकर, मैंने अपने सहकर्मी से कहा: "ओह, तो प्रभु यीशु का अनुसरण करने के दौरान, पतरस ने प्रभु के कर्मों और व्यवहार का पालन करना जारी रखा, और उनके वचनों और कार्यों से उन्हें जाना।"
मेरे सहकर्मी ने कहा: "यह सही है। हम इन दो अवतरणों से देख सकते हैं कि पतरस प्रभु को जानने के लिए लालायित था और जब वह प्रभु यीशु के साथ संवाद कर रहा था, तो यीशु ने जो कुछ भी कहा और किया, उस हर छोटी चीज़ को उसने आत्मसात किया। उनमें, पतरस ने अत्यधिक दिव्यता देखी। उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु द्वारा बोले गए वचन सत्य थे; वे शक्ति और अधिकार से भरपूर थे और लोगों की आध्यात्मिक जरूरतों के लिए पोषण प्रदान कर सकते थे। प्रभु यीशु ने जिन चमत्कारों और असाधारण चीजों को किया वह परमेश्वर के अधिकार और उनकी सर्वशक्तिमत्ता प्रकट करती थीं और ऐसी चीजें थीं जो कोई भी मनुष्य नहीं कर सकता था। प्रभु यीशु ने दयालुता के साथ पापियों को बचाया, उनके सारे पापों को क्षमा कर दिया और मानवजाति को समृद्ध आशीष प्रदान किया-वह मनुष्यों के लिए दया और प्रेम से भरपूर थे। प्रभु यीशु द्वारा फरीसियों को सात विपत्तियों के साथ दंडित किये जाने से पतरस ने यह भी देखा कि वे पवित्र और धर्मी थे, और मनुष्य से अपमान सहन नहीं करेंगे। जब वे काम कर रहे थे, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनका देह कितनी पीड़ा सहता था या उनका काम कितना कठिन था, इसका अर्थ अपने जीवन को त्यागना भी हो तो भी, प्रभु यीशु पूरी तरह से परमेश्वर के आदेश को पूरा करने के लिए दृढ़ थे। पतरस ने देखा कि मसीह का सार पिता परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता का था। यीशु में पतरस ने अत्यधिक दिव्यता देखी और परमेश्वर की वास्तविक, व्यावहारिक समझ प्राप्त की। इसके अलावा, पतरस ने प्रभु यीशु के वचनों को अपने दिल में रखा, अक्सर उन पर विचार किया और उनसे प्रभु की इच्छा को समझने की कोशिश की ताकि वह मानवजाति से परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर सके। यीशु ने एक बार उससे तीन दफा पूछा: 'हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?' (यूहन्ना 21:16)। पतरस ने अक्सर इस पर विचार किया और अपने सोचविचार के माध्यम से, समझ गया कि वह जिसे प्यार करता था वह स्वर्ग में एक अज्ञात परमेश्वर था, न कि असली मसीह। उसने महसूस किया कि वह वास्तव में परमेश्वर से प्यार नहीं कर रहा था, और केवल पृथ्वी पर मसीह से प्यार करना वास्तव में परमेश्वर से प्यार करना था। तब से वह अक्सर प्रभु के प्यार को कैसे प्राप्त किया जाये इसके लिए प्रार्थना करता और इसकी तलाश करता था। अंत में ऐसा इंसान बनते हुए जो वास्तव में परमेश्वर को प्यार करता था, उसने परमेश्वर के चरम प्रेम और मृत्यु की हद तक आज्ञाकारिता हासिल कर ली। पतरस प्रभु यीशु से आलोचना स्वीकार करने और उसका पालन करने में भी सक्षम था, और वह इससे सत्य की खोज कर सकता था। जब उसने जाना कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाया जायेगा और उसने इसे रोकने की कोशिश की, यह कहते हुए कि ऐसा नहीं हो सकता है, यीशु ने कठोरता से उसे डांटा और कहा: 'हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो' (मत्ती 16:23)। पतरस यीशु के कठोर फटकार से समझ गया कि प्रभु मनुष्य के उत्साह और उदारता से घृणा करता है, और जो कुछ भी परमेश्वर की इच्छा में बाधा डालता है वह शैतान का कार्य है और परमेश्वर द्वारा निंदित किया जाता है। हम इससे देख सकते हैं कि पतरस के लिए प्रभु को उनके काम, कार्रवाइयों, उपदेशों, और फटकारों से समझना महत्वपूर्ण था, और यही कारण है कि उसमें प्रभु की सच्ची समझ थी और उसने उनके लिए सच्चे प्यार से भरा दिल विकसित किया।"
अपने सहकर्मी की संगति सुनने के बाद मुझे वास्तव में स्पष्टता की भावना महसूस हुई। मुझे अपने दिल में लगा कि परमेश्वर वास्तव में लोगों के दिलोदिमाग का निरीक्षण करते हैं। यह बेकार में नहीं था कि प्रभु यीशु ने पतरस की प्रशंसा की और उसे स्वर्ग के राज्य की चाबियाँ दीं। यीशु को पतरस की मानवता और क्षमता, और सत्य और प्रभु के लिए प्यार भरे दिल से लगाव था। वे जानते थे कि पतरस उनके आदेश और उनके विश्वास के लिए सबसे अधिक योग्य था, यही कारण है कि उन्होंने उसे अपने झुंड की चरवाही करने की महान ज़िम्मेदारी सौंपी। इस पर विचार करते हुए, मैं पतरस के प्रति प्रभु के अनुमोदन को समझने में असफल थी क्योंकि पतरस ने उन्हें तीन बार अस्वीकार कर दिया था, लेकिन अब मैं समझती हूँ कि प्रभु किसी व्यक्ति में जो देखते हैं वह उसका सार है। दूसरी तरफ, मैंने सिर्फ पतरस के व्यवहारों में से एक को देखा था। और तो और, पतरस उस समय सिर्फ तीन साल से प्रभु का अनुसरण कर रहा था, इसलिए उसका विश्वास अभी तक उतना बड़ा नहीं था। जीवन और मृत्यु के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान पर, देह की कमजोरी की पूरी तरह से उम्मीद की जा सकती है। मैं दूसरों के छोटे-मोटे दोषों पर कैसे पकड़े रह सकती हूँ? अगर यह मैं होती, तो मुझे डर है कि जब यीशु को ले जाया गया था तो मैं भाग गयी होती, फिर भी मैंने पतरस की आलोचना की और उसे सीमा में बंद कर दिया। मैं कितनी घमंडी, मूर्ख और अज्ञानी थी! अपने सहकर्मी की सहभागिता के माध्यम से मुझे यह समझ आया कि पतरस ने परमेश्वर को खुशी दी और हमें उसके उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए। मेरी इच्छा है कि मैं अपने जीवन में प्रभु के वचनों को पूरा कर सकूं, अपने काम और प्रभु की सेवा में समर्पित रहूँ, और सभी चीजों में प्रभु को जानूँ और प्यार करने और उनकी इच्छा को पूरा करने की तलाश करूँ। केवल यही तरीका है जिससे कि मैं परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त कर सकती हूँ और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का अवसर प्राप्त कर सकती हूँ।
यह सब समझने के बाद मैंने अपने सहकर्मी से कहा: "आज प्रभु के मार्गदर्शन और हमारी बातों के कारण, अब मैं समझती हूँ कि प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य की चाबियाँ पतरस को क्यों दीं। वास्तव में इसमें एक रहस्य है! अब मुझे पता है कि कैसे खोजना है। मैं प्रभु के मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देती हूँ। आमीन!"
उसने मुस्कुराते हुए कहा, "प्रभु का धन्यवाद! आमीन।"
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?