न्याय का प्रकाश

04 नवम्बर, 2020

"परमेश्वर पूरी पृथ्वी पर निगाह रखता है, हर चीज़ पर नियंत्रण रखता है, और मनुष्य के सभी वचनों और कर्मों को देखता है। उसका प्रबंधन नपे-तुले चरणों में, उसकी योजना के अनुसार होता है। यह चुपचाप, नाटकीय प्रभाव के बिना आगे बढ़ता है, मगर उसके चरण मनुष्यों के निकट बढ़ते ही रहते हैं, और उसका न्याय का आसन बिजली की रफ्तार से ब्रह्माण्ड में तैनात होता है, और उसके तुरंत बाद हमारे बीच उसके सिंहासन का अवरोहण होता है। वह कैसा आलीशान दृश्य है, कितनी भव्य और गंभीर झाँकी! कपोत के समान, गरजते हुए सिंह के समान, पवित्र आत्मा हम सब के बीच में पहुँचता है। वह बुद्धिमान है, वह धार्मिकता है, वह और प्रताप है, वह बुद्धिमान है, वह धार्मिकता है, वह और प्रताप है, वह अधिकार से युक्त और प्रेम एवं करुणा से भरा हुआ, चुपचाप हमारे बीच में पहुँचता है। वह बुद्धिमान है, वह धार्मिकता है, वह और प्रताप है, वह बुद्धिमान है, वह धार्मिकता है, वह और प्रताप है, वह अधिकार से युक्त और प्रेम एवं करुणा से भरा हुआ, चुपचाप हमारे बीच में पहुँचता है" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। परमेश्वर के वचनों के इस भजन को गाने से मुझे वो वक्त याद आता है जब मैं प्रभु यीशु में विश्वास रखती थी। पादरी और एल्डर हमेशा कहते थे कि परमेश्वर आकाश में एक विशाल मेज़ से अंत के दिनों में हमारा न्याय करेगा, प्रभु यीशु एक विशाल सफ़ेद सिंहासन पर आसीन होगा, जहां वह लोगों का उनके काम के आधार पर न्याय करेगा, नेक लोगों को पुरस्कृत करेगा और दुष्ट लोगों को दंड देगा। मुझे हमेशा इस पर यकीन था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और उसके अंत के दिनों के कार्य की जांच-पड़ताल करने के बाद ही मैं वाकई जागी और समझी कि वे सब इंसानी धारणाएं और कल्पनाएँ थीं। दरअसल परमेश्वर अपने अंत के दिनों के न्याय के लिए सत्य व्यक्त करने इंसानों के बीच पहले ही आ चुका है और मसीह के सिंहासन के सामने न्याय बहुत पहले ही शुरू हो चुका है।

2015 की बात है, मैं 20 वर्षों से विश्वासी थी। अक्तूबर में, मेरे सहयोगियों ने मुझे फेसबुक इस्तेमाल करना सिखाया, ताकि मैं मित्रों को ढूँढ़ कर चैट कर सकूं। समय मिलने पर मैं भाई-बहनों की पोस्ट पर भी नज़र दौड़ाती, मुझे जो भी अच्छा लगता, मैं उसे लाइक और शेयर करती। फरवरी 2016 में, एक दिन, मैं हमेशा की तरह फेसबुक देख रही थी, तभी मैंने एक ग्रुप देखा जिसमें परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के बारे में चर्चा हो रही थी। हर किसी के पास कहने को कुछ अलग था। किसी ने कहा, उसे नहीं पता न्याय क्या है, इसलिए वह यूं ही कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता, हम परमेश्वर के भविष्य के कार्य के बारे में कयास नहीं लगा सकते। एक और व्यक्ति ने भजन संहिता 75:2 का ज़िक्र किया : "जब ठीक समय आएगा तब मैं आप ही ठीक ठीक न्याय करूँगा।" उसके अनुसार इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर के पास हर किसी की करनी का लेखा-जोखा है, और जब अंत के दिनों में प्रभु यीशु लोगों का न्याय करेगा, तो वह इसे सभी को एक फिल्म की तरह दिखाएगा, इसलिए हमारा चाल-चलन अच्छा होना चाहिए, हमें ईमानदार होना चाहिए और बुरे काम नहीं करने चाहिए, फिर परमेश्वर हमें नरक में नहीं भेजेगा। एक और व्यक्ति ने कहा कि प्रकाशित वाक्य के वचनों के आधार पर, जब परमेश्वर अंत के दिनों में हमारा न्याय करेगा, तो वह आकाश में एक विशाल सफ़ेद सिंहासन पर बैठ कर करेगा, जहां प्रभु यीशु एक विशाल मेज़ लगा कर उसके पास बैठेगा, हर व्यक्ति के जीवन की क़िताब खोलेगा, फिर एक-एक कर उनके कर्मों के आधार पर उनका न्याय करेगा। जिन्होंने नेक काम किये होंगे, उन्हें परमेश्वर के राज्य में ले जाया जाएगा, जबकि बुरे काम करने वालों को नरक में भेज दिया जाएगा। इन सब पोस्ट को पढ़ने के बाद, मैं मन-ही-मन अंत के दिनों में प्रभु यीशु द्वारा लोगों का न्याय करने के बारे में इन सभी विचारों का खाका बनाने लगी। प्रभु यीशु आकाश में एक विशाल सफ़ेद सिंहासन पर बैठेगा, उसके सामने वे लोग घुटने टेके बैठे होंगे जिनका न्याय किया जाना है। लोगों के कर्मों में कितने अच्छे हैं और कितने बुरे, इस आधार पर प्रभु यीशु तय करेगा कि लोग स्वर्ग जायेंगे या नरक। मैंने प्रभु में 20 वर्षों से भी ज्यादा से विश्वास रखा, उसका अनुसरण किया और बड़े जोश से सुसमाचार को फैलाया, उसकी शिक्षाओं के अनुसार जीवन जीने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की। मेरा ख़याल था कि वह मेरी निष्ठा देखकर मुझे अपने राज्य में ज़रूर ले जाएगा।

मैं उस बारे में सोचती रही, फिर ख़याल आया कि मुझे "न्याय" की ऑनलाइन खोज करनी चाहिए, और देखो भला, क्या नज़र आया। मैंने अपनी खोज में ये देखा : "परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है मनुष्य की मुक्ति का प्रकाश।" इसने तुरंत मेरा ध्यान खींचा। इसमें क्या है यह देखने की उत्सुकता में मैंने लिंक पर क्लिक किया। यहाँ मुझे मिला एक सुंदर विचारोत्तेजक भजन : "अपने जीवन में, यदि मनुष्य शुद्ध होकर अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहता है, यदि वह एक सार्थक जीवन बिताना चाहता है, और एक प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य को निभाना चाहता है, तो उसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और उसे परमेश्वर के अनुशासन और प्रहार को अपने-आपसे दूर नहीं होने देना चाहिए, ताकि वह खुद को शैतान की चालाकी और प्रभाव से मुक्त कर सके, और परमेश्वर के प्रकाश में जीवन बिता सके। यह जान लो कि परमेश्वर की ताड़ना और न्याय प्रकाश है, मनुष्य के उद्धार का प्रकाश है, और मनुष्य के लिए इससे बेहतर कोई आशीष, अनुग्रह या सुरक्षा नहीं है" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। इसके बोल ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी। इसमें कहा गया था कि परमेश्वर का न्याय और ताड़ना मनुष्य के उद्धार का प्रकाश हैं, ये हमारे लिए उत्तम सुरक्षा और महानतम अनुग्रह हैं। मैं सोच में पड़ गयी कि इसका अर्थ क्या है। इसमें यह भी कहा गया कि शुद्ध होकर सार्थक जीवन जीने के लिए हमें परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करना होगा। इस पर सोच-विचार करने से मन में कुछ सवाल उठे : क्या न्याय सिर्फ़ हमारा परिणाम तय नहीं करता? यह हमारे उद्धार का प्रकाश कैसे हो सकता है? मैंने यह पहले कभी नहीं सुना था। मैं जिसे न्याय समझती थी, यह न्याय उससे अलग था, लेकिन मुझे धुंधला-सा अंदाज़ा था कि यह उतना आसान नहीं है जितना मैंने सोचा था। मैंने ढूँढ़ा कि यह भजन कहाँ से लिया गया है, तो देखा कि यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से है। मैंने उनकी वेबसाइट देखी। उसकी डिज़ाइन आकर्षक थी और उसमें तरह-तरह की बहुत-सी सामग्री थी। मैंने ढेरों क़िताबें, परमेश्वर की प्रशंसा वाले भजन, सुसमाचार फ़िल्में, दूसरे वीडियो, और लिखित गवाहियाँ देखीं। मैं पहले क़िताबों के खंड में गयी, जहां मैंने ऐसे कुछ नाम देखे न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है और मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवों की गवाहियाँ। दोनों में "न्याय" का ज़िक्र था। मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवों की गवाहियाँ में न्याय के बारे में बहुत-से लेख थे, जैसे कि "न्याय द्वारा बदलाव" और "न्याय प्रकाश है।" मैंने कुछ लेख पढ़े, ये सभी इस बारे में थे कि ईसाई लोगों ने परमेश्वर के वचनों के न्याय को कैसे अनुभव किया, जिससे आस्था के बारे में उनके विचार और उनका भ्रष्ट स्वभाव बदल गया। यह पढ़ कर मैं और भी ज़्यादा जिज्ञासु हो गयी। मैंने सोचा : "क्या यह संभव है कि न्याय निंदा या परिणामों का निर्धारण न होकर, उद्धार हो? 'परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है मनुष्य की मुक्ति का प्रकाश' का अर्थ क्या है?" ऐसा लगा कि न्याय के बारे में ये क़िताबें वाकई उपयोगी होंगी, मैंने उन्हें ध्यान से पढ़ना चाहा। लेकिन काम पर जाने का वक्त हो गया था, इसलिए मुझे कंप्यूटर बंद करके जाना पड़ा। मगर पूरा दिन मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट के बारे में ही सोचती रही, ख़ास तौर से "परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है मनुष्य की मुक्ति का प्रकाश" के बारे में। मैं कुछ भी नहीं समझ पायी कि वहां न्याय का सच में क्या अर्थ है।

उस शाम घर पहुँचने के बाद मैं उस साइट पर दोबारा गयी और "न्याय" शब्द खोजा। फिर मैंने पढ़ा "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है।" इसके एक अंश ने मुझे वाकई बड़ी प्रेरणा दी। "बीते समय में जो यह कहा गया था कि न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होगा, उन वचनों में 'न्याय' उस फैसले को संदर्भित करता है, जो परमेश्वर आज उन लोगों के बारे में देता है, जो अंत के दिनों में उसके सिंहासन के सामने आते हैं। शायद कुछ लोग ऐसे हैं, जो ऐसी अलौकिक कल्पनाओं पर विश्वास करते हैं, जैसे कि, जब अंत के दिन आ चुके होंगे, तो परमेश्वर स्वर्ग में एक बड़ी मेज़ स्थापित करेगा, जिस पर एक सफेद मेज़पोश बिछा होगा, और फिर एक बड़े सिंहासन पर बैठकर, जिसके सामने सभी मनुष्य ज़मीन पर घुटने टेके होंगे, वह प्रत्येक मनुष्य के पाप उजागर करेगा और इसके द्वारा यह निर्धारित करेगा कि उन्हें स्वर्ग में आरोहण करना है या नीचे आग और गंधक की झील में डाला जाना है। मनुष्य किसी भी प्रकार की कल्पना क्यों न करे, उससे परमेश्वर के कार्य का सार नहीं बदल सकता। मनुष्य की कल्पनाएँ मनुष्य के विचारों की रचनाओं के सिवा कुछ नहीं हैं; वे उसकी देखी-सुनी बातों के जुड़ने और एकत्र होने पर उसके दिमाग़ से निकलती हैं। इसलिए मैं कहता हूँ, कल्पित तसवीरें कितनी भी शानदार क्यों न हों, हैं वे तसवीरें ही, और वे परमेश्वर के कार्य की योजना की स्थानापन्न बनने में अक्षम हैं। मनुष्य आख़िरकार शैतान द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है, इसलिए वह परमेश्वर के विचारों की थाह कैसे पा सकता है? मनुष्य परमेश्वर के न्याय के कार्य के विलक्षण होने की कल्पना करता है। वह मानता है कि चूँकि यह स्वयं परमेश्वर है, जो न्याय का कार्य करता है, इसलिए यह कार्य अवश्य ही बहुत ज़बरदस्त पैमाने का, और मनुष्यों की समझ से बाहर होना चाहिए, और इसे स्वर्ग भर में गूँजना और पृथ्वी को हिला देना चाहिए; वरना यह परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य कैसे हो सकता है? वह मानता है कि, चूँकि यह न्याय का कार्य है, अत: कार्य करते समय परमेश्वर को विशेष रूप से रोबीला और प्रतापी अवश्य होना चाहिए, और जिनका न्याय किया जा रहा है, उन्हें आँसू बहाते हुए आर्तनाद करना चाहिए और घुटने टेककर दया की भीख माँगनी चाहिए। इस तरह के दृश्य भव्य और उत्तेजक होंगे...। हर कोई परमेश्वर के न्याय के कार्य के चमत्कारी होने की कल्पना करता है। लेकिन क्या तुम जानते हो कि काफी समय पहले जबसे परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच न्याय का अपना कार्य आरंभ किया था, तबसे तुम सुस्ती भरी नींद में आश्रय लिए हुए हो? कि जिस समय तुम सोचते हो कि परमेश्वर के न्याय का कार्य औपचारिक रूप से आरंभ हुआ, तब तक परमेश्वर ने पहले ही स्वर्ग और पृथ्वी को नए सिरे से बना लिया होगा? उस समय शायद तुमने केवल जीवन का अर्थ समझा ही होगा, परंतु परमेश्वर के न्याय का निष्ठुर कार्य तुम्हें नरक में और भी गहरी नींद में ले जाएगा। केवल तभी तुम अचानक महसूस करोगे कि परमेश्वर के न्याय का कार्य पहले ही संपन्न हो चुका है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। इसे पढ़ कर मैं हैरान हो गयी। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के बारे में मेरे गहराई से संजोये हुए विचारों और नज़रियों पर बड़े साफ़ तौर पर प्रकाश डाला गया था। क्या मेरा यह विश्वास कि परमेश्वर आकाश में न्याय करेगा, सच में महज असामान्य सोच है? इसमें यह भी कहा गया कि परमेश्वर के अंत के दिनों का न्याय-कार्य शुरू हो चुका है और अब समाप्त होने को है, इसमें लोगों को आगाह किया गया कि वे परमेश्वर के प्रकटन को तुरंत खोज लें। मैंने सोचा : "क्या यह परमेश्वर की वाणी हो सकती है?" उस विचार ने मुझे बिल्कुल बेचैन कर दिया, मैंने उसी वक्त इसे समझ लेना चाहा। इसलिए मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के चैट लिंक पर संदेश भेज कर बताया कि मुझे परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय में दिलचस्पी है। बहुत जल्दी जवाब पाकर मैं हैरान हो गयी, फिर कलीसिया की बहन लियू और बहन ली चैट में शामिल हो गयीं।

शुरुआती परिचय के बाद मैंने उन्हें अपनी उलझन बतायी। मैंने कहा, "प्रकाशितवाक्य के आधार पर, परमेश्वर, अंत के दिनों में अपना न्याय-कार्य करने के लिए आकाश में विशाल सफ़ेद सिंहासन पर आसीन होगा, लेकिन 'मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है' में ऐसा कहा गया है कि यह मनुष्य की धारणा मात्र है, परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य तो शुरू हो चुका है। इन सबका अर्थ क्या है?"

बहन लियू ने इस संगति के साथ जवाब दिया : "प्रकाशितवाक्य में यूहन्ना द्वारा पतमुस द्वीप पर आकाश में विशाल सफ़ेद सिंहासन को देखे जाने के बारे में जो कहा गया है, वह बस एक दृष्टि थी, अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के बारे में एक भविष्यवाणी। ऐसा नहीं है कि यह सच में होगा। यानी, परमेश्वर के अपना न्याय-कार्य करने से पहले, कोई भी यह जान या तय नहीं कर सकता कि परमेश्वर ठीक किस प्रकार से यह कार्य करेगा। यह हम तभी जान सकेंगे जब भविष्यवाणी पूरी हो जाएगी।" उसने यह भी कहा कि न्याय-कार्य के बारे में बाइबल में बहुत-सी भविष्यवाणियाँ हैं, जैसे कि प्रकाशितवाक्य 14:6-7 : "फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा, जिसके पास पृथ्वी पर रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था। उसने बड़े शब्द से कहा, 'परमेश्‍वर से डरो, और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है।'" फिर यूहन्ना 9:39 भी है : "मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूँ, ताकि जो नहीं देखते वे देखें।" उसने ये पद सुनाते हुए कहा कि "लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था" और "मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूँ" यह दिखाते हैं कि परमेश्वर अवश्य पृथ्वी पर आकर अंत के दिनों में अपना न्याय-कार्य करेगा। उसने यूहन्ना 5:22 का भी ज़िक्र किया। प्रभु यीशु ने कहा, "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।" और पद 27 : "वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है" (यूहन्ना 5:27)। इसके अलावा, पतरस 4:17 में कहा गया है : "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए।" उसने कहा, "इन पदों में कहा गया है कि न्याय पुत्र द्वारा किया जाएगा। पुत्र या मनुष्य के पुत्र के किसी भी संदर्भ का अर्थ है कि वह मनुष्य की संतान है और उसमें सामान्य इंसानियत है। परमेश्वर के आत्मा को मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जाएगा। इसलिए यह पर्याप्त सबूत है कि परमेश्वर अंत के दिनों में मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी होकर न्याय-कार्य करता है। यह भी लिखा हुआ है कि न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है। यानी, परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य विश्वासियों के साथ शुरू होता है।"

इस बात पर मैं चौंक गयी और सोचा, "मैं इतने वर्षों से विश्वासी रही, उसने पहले जिन बाइबल पदों का संदर्भ दिया, मैं उन्हें पढ़ चुकी हूँ। फिर भी मेरा ध्यान क्यों नहीं गया कि परमेश्वर पृथ्वी पर अपना न्याय-कार्य करने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी होगा? मैंने पतमुस द्वीप के बारे में यूहन्ना के नज़रिये से सोचा, न्याय के बारे में अन्य पदों को नज़रअंदाज़ कर, यह कल्पना की कि परमेश्वर किस प्रकार से अपना न्याय-कार्य करेगा। मेरी समझ बहुत सीमित रही है।" इन पदों को समझते हुए मैंने बहन लियू की संगति पर सोच-विचार किया।

तभी मैंने बहन ली को संगति जारी रखते हुए सुना : "सर्वशक्तिमान परमेश्वर इंसान को शुद्ध करके बचाने के लिए अंत के दिनों में न्याय का कार्य करता है, साथ ही, वह सबके परिणामों का खुलासा कर हमें हमारी किस्म के अनुसार अलग करता है। अंत के दिनों में विशाल सफ़ेद सिंहासन के सामने का न्याय-कार्य यही है, और यह बाइबल की उन भविष्यवाणियों को पूरी तरह से साकार करता है। देहधारी परमेश्वर मुख्य रूप से विपत्तियों के आने से पहले विजेताओं का एक समूह बनाने के लिए अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करके न्याय-कार्य करता है। हर संप्रदाय के लोग जो परमेश्वर के प्रकटन के लिए सच में लालायित हैं, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, और समझ जाते हैं कि वह सत्य है, परमेश्वर की वाणी है, और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर मुड़ जाते हैं। वे ही बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं, जिन्हें परमेश्वर के सिंहासन के सामने ले जाया जाता है, जहां परमेश्वर के वचनों के जरिये न्याय कर उन्हें शुद्ध किया जाता है। विजेताओं का समूह बनाने के बाद, परमेश्वर महाविपत्तियों की वर्षा शुरू करेगा, नेक लोगों को इनाम और दुष्ट लोगों को दंड देगा, परमेश्वर का पागलों की तरह विरोध करने वाले दुष्ट लोगों को वह पूरी तरह नष्ट करेगा। यही वक्त होगा जब परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। विपत्तियाँ बद से बदतर होती जा रही हैं, चार रक्त चंद्रमा प्रकट हो चुके हैं। टिड्डियाँ, बाढ़, सूखा, अकाल और महामारियाँ फ़ैली हैं। महाविपत्तियाँ भी बहुत क़रीब हैं। उनके आने पर, जिन सबने बुरे कर्म किये हैं, जो परमेश्वर के दुश्मन हैं और जो शैतान के हैं, वे सब नष्ट कर दिये जाएँगे। जिन्होंने परमेश्वर के वचनों के न्याय को स्वीकार कर लिया है और शुद्ध हो गये हैं, उनकी रक्षा होगी, वे जीवित रहेंगे और उन्हें परमेश्वर के राज्य में ले जाया जाएगा। यही है न विशाल सफ़ेद सिंहासन के सामने अंत के दिनों का न्याय?"

उसकी संगति को सुनना मुझे प्रबुद्ध करने वाला था। मुझे एहसास हुआ कि न्याय-कार्य करने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर का सत्य व्यक्त करना ही विशाल सफ़ेद सिंहासन का अंत के दिनों का न्याय है। लेकिन मेरी उलझन पूरी तरह सुलझी नहीं थी। उन्होंने कहा था कि परमेश्वर इंसान को शुद्ध करने और बचाने के लिए सत्य व्यक्त करके न्याय-कार्य करता है, लेकिन मेरा ख़याल था, "प्रभु हमारे पापों को माफ़ कर चुका है और अब हमें पापियों के रूप में नहीं देखता। परमेश्वर को अभी भी अंत के दिनों में न्याय-कार्य करके इंसान को शुद्ध करने और बचाने की क्या ज़रूरत है?" मैंने बहनों से वह सवाल पूछा, उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो और अंश पढ़े : "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। "तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अंत के दिनों में उतरेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे उतरेगा? तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में)

इसे पढ़ने के बाद बहन ली ने अपनी संगति जारी रखी : "अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया, जो सिर्फ़ इंसान के पापों को माफ़ करने के लिए था। उसने हमारे भ्रष्ट स्वभाव को नहीं बदला। हमारे पाप माफ़ कर दिये गये हैं और प्रभु में अपनी आस्था से हम बचाये गये और न्याय-संगत मान लिये गये हैं, यानी हम व्यवस्था द्वारा दंडित और शापित नहीं हुए हैं, लेकिन पाप करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने की हमारी शैतानी प्रकृति कायम है। हमारी पापी प्रकृति जड़ से नष्ट नहीं हुई है। इसी वजह से हम अभी भी पापी प्रकृति के बंधन में हैं, हम पाप करते और झूठ बोलते रहते हैं। थोड़ी काबिलियत और खूबियों वाले कुछ लोग अहंकारी और ज़िद्दी हो जाते हैं, सिर्फ़ थोड़ा काम कर सकने के कारण वे दिखावा करते हैं, शोहरत और रुतबे के लिए लड़ते हैं, और साज़िशों में शामिल होते हैं। ऐसा दिखता है कि वे कड़ी मेहनत करते हैं, त्याग करते हैं, और कहते हैं कि यह परमेश्वर से प्रेम कर उसे संतुष्ट करने के लिए है, मगर दरअसल यह आशीष और मुकुट पाने के लिए है। मुसीबतों या परीक्षणों से सामना होने पर वे परमेश्वर से बहस करते हैं और उससे नाराज़ हो जाते हैं, या यह भी कहते हैं कि परमेश्वर अधार्मिक है, वे उसे नकारते और धोखा देते हैं। कोई ऐसा इंसान जो पाप करने से बच नहीं सकता, जो हमेशा परमेश्वर का विरोध कर उसे आंकता है, वह परमेश्वर के राज्य के लायक कैसे हो सकता है? प्रभु पवित्र है : 'उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। इसीलिए प्रभु यीशु ने वचन दिया कि वह दोबारा आयेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर कार्य करने के लिए अंत के दिनों में आया है। वह इंसान को शुद्ध करके पूरी तरह बचाने के लिए अंत के दिनों में सत्य व्यक्त कर न्याय-कार्य करता है, ताकि हम अपने पापों और अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त हो सकें और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह बचाये जाकर उसे प्राप्त हो सकें।"

वाकई यह बात मुझे सही लगी। हमारे पाप हमारी आस्था के जरिये भले ही माफ़ कर दिये गये हों, हमारी पापी प्रकृति नहीं बदल पायी है। मैंने हमारी कलीसिया की हालत के बारे में सोचा। पादरी और एल्डर सेवाओं के दौरान जीवन के लिए कोई पोषण दिये बिना सिर्फ़ बाइबल के सिद्धांतों के बारे में बताते रहते हैं, वे धन के लालची हैं, सत्ता के लिए होड़ लगाते हैं। वे गुटबाजी भी करते हैं और एक-दूसरे को आँक कर नीचे गिराते रहते हैं। भाई-बहन कमज़ोर महसूस करते हैं, उनकी आस्था और प्रेम धूमिल हो रहे हैं। बहुत-से लोग सांसारिक तौर-तरीकों के पीछे भागते हैं, देह-सुख का लालच करते हैं। वे खुद को पाप से बाहर नहीं निकाल पाते। मैंने इस बारे में भी सोचा कि कैसे मैं भी झूठ बोलने और पाप करने से खुद को रोक नहीं पायी। मैं प्रभु के वचनों का अभ्यास नहीं कर पायी, और पाप करके स्वीकार करने की हालत में जीती रही। इस तरह मैं परमेश्वर के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकती हूँ? वाकई हमें परमेश्वर की ज़रूरत है, उसे दोबारा आकर हमारा न्याय कर हमें शुद्ध करने का कार्य करना होगा। मैंने बहनों से उत्सुकता से पूछा, "परमेश्वर अपने न्याय के जरिये अंत के दिनों में लोगों को कैसे शुद्ध करके बचाता है?"

उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ कर मुझे सुनाया : "अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है। अगर तुम इन सत्यों को महत्वपूर्ण नहीं समझते, अगर तुम सिवाय इसके कुछ नहीं समझते कि इनसे कैसे बचा जाए, या किस तरह कोई ऐसा नया तरीका ढूँढ़ा जाए जिनमें ये शामिल न हों, तो मैं कहूँगा कि तुम घोर पापी हो। अगर तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है, फिर भी तुम सत्य को या परमेश्वर की इच्छा को नहीं खोजते, न ही उस मार्ग से प्यार करते हो, जो परमेश्वर के निकट लाता है, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो न्याय से बचने की कोशिश कर रहा है, और यह कि तुम एक कठपुतली और ग़द्दार हो, जो महान श्वेत सिंहासन से भागता है। परमेश्वर ऐसे किसी भी विद्रोही को नहीं छोड़ेगा, जो उसकी आँखों के नीचे से बचकर भागता है। ऐसे मनुष्य और भी अधिक कठोर दंड पाएँगे। जो लोग न्याय किए जाने के लिए परमेश्वर के सम्मुख आते हैं, और इसके अलावा शुद्ध किए जा चुके हैं, वे हमेशा के लिए परमेश्वर के राज्य में रहेंगे। बेशक, यह कुछ ऐसा है, जो भविष्य से संबंधित है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

बहन ली ने अपनी संगति जारी रखी : "सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय-कार्य करने के लिए वचनों का प्रयोग करता है, ताकि इंसान को पूरी तरह से शुद्ध कर बचाया जा सके। वह संपूर्ण सत्य व्यक्त करता है जो भ्रष्ट इंसान के समझने और उसमें प्रवेश करने के लिए ज़रूरी है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर इंसान की भ्रष्टता के सार और सत्य को ही नहीं, बल्कि संसार की तमाम बुराइयों और अँधेरे की जड़ को भी उजागर करता है। उसके वचन लोगों को भ्रष्टता से मुक्ति और उद्धार पाने के रास्ते पर ही आगे नहीं बढ़ाते, बल्कि परमेश्वर की इच्छा और इंसान से उसकी अपेक्षाओं को भी खुले तौर पर प्रकट करते हैं। वे परमेश्वर की 6,000-साल की प्रबंधन योजना के रहस्यों को ही प्रकट नहीं करते, बल्कि लोगों को उन परिणामों और मंज़िलों के बारे में भी बताते हैं, जो आने वाली हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन इंसान की भ्रष्टता के सार को बड़ी गहराई से उजागर करते हैं, जिससे हम आश्वस्त हुए बिना नहीं रह सकते। हम परमेश्वर के वचनों के न्याय का जितना ज़्यादा अनुभव करते हैं, उतना ही ज़्यादा हम समझते हैं कि तमाम इंसान शैतान द्वारा कितनी गहराई से भ्रष्ट किये जा चुके हैं। जब हम अपने शैतानी स्वभाव और अपनी भ्रष्टता के सत्य को पूरी तरह से समझ लेते हैं, तब हम देख पाते हैं कि परमेश्वर अत्यंत पवित्र और धार्मिक है। तब हम अपने दिलों में परमेश्वर के लिए आदर और प्रेम जगा पाते हैं, और सच में समझ पाते हैं कि हम कितने भ्रष्ट हैं, हममें इंसानियत की कितनी कमी है। हम समझ जाते हैं कि हम परमेश्वर के सामने जीने लायक भी नहीं हैं। तब हम खुद से नफ़रत करने लगते हैं, और अब अपने शैतानी स्वभाव के साथ नहीं जीना चाहते। हम दिल से परमेश्वर के न्याय को समर्पित हो जाते हैं, सच में प्रायश्चित करके बदल जाते हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के बिना, क्या सिर्फ़ प्रार्थना करके पाप स्वीकार कर लेने, और खुद को काबू में करने की कोशिश भर से, हमारी शैतानी प्रकृति बदल सकती है? क्या हम पाप की बेड़ियों से छूट सकते हैं? हम पाप से बच कर निकल नहीं सकते, तो फिर हम कैसे सही मायनों में प्रायश्चित कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के लायक बन सकते हैं? यही कारण है कि परमेश्वर का न्याय और ताड़ना उद्धार हैं। ये उद्धार का प्रकाश हैं। जो लोग परमेश्वर के वचनों का न्याय स्वीकार नहीं करना चाहते, वे महाविपत्तियों के आने पर डूब जाएंगे, रोयेंगे और दांत भींचेंगे।"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ कर और बहनों की कुछ दिनों की संगति के बाद, मैं दिल से समझ गयी कि इंसान को शुद्ध करके बचाने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय कितना अनिवार्य है! उस वक्त मैं परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव नहीं कर पायी थी, लेकिन बहनों की संगति और दूसरों की गवाहियों के जरिये, मैं समझ सकी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय-कार्य वाकई लोगों को शुद्ध करके बदल सकता है, और हम जैसे भ्रष्ट इंसान को बस इसी की ज़रूरत है। मैं हमेशा सोचा करती थी कि अंत के दिनों में, परमेश्वर आकाश में एक भव्य विशाल सफ़ेद सिंहासन पर बैठ कर न्याय करेगा, और विश्वासियों को प्रभु से मिलाने के लिए उठा लिया जाएगा। अब वह कल्पना की उड़ान लग रहा था। अब मुझे एहसास हो गया है कि अंत के दिनों में पृथ्वी पर वचनों से न्याय-कार्य करने के लिए परमेश्वर देहधारी होता है, और सभी सच्चे विश्वासियों को शुद्ध करके बचाता है। इसके बाद ही वह उसका विरोध करने वाले सभी लोगों को नष्ट करने के लिए विपत्तियों का प्रयोग करेगा। परमेश्वर का न्याय-कार्य बहुत व्यावहारिक है! इसके बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचनों को पढ़ा, उनमें प्रकाशित किये गये बहुत-से रहस्यों और सत्य को भी पढ़ा, जैसे कि व्यवस्था, अनुग्रह और राज्य के युगों के उसके कार्य के तीन चरणों की अंदरूनी कहानी, उनसे क्या हासिल होता है, शैतान इंसान को कैसे भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर अपने न्याय-कार्य से हमें शुद्ध करके बचाता है, हर किसी की मंज़िल और परिणाम क्या होगा, पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य कैसे साकार होता है, आदि-आदि। यह पूरी तरह से आँखें खोलने वाला और संतोष देने वाला है! अब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इस वचन का अनुभव कर लिया है : "न्याय के कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है।" ये वचन कितने व्यावहारिक हैं! मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा बोले गये वचनों में परमेश्वर की वाणी सुनी है, और मैं परमेश्वर के सिंहासन के सामने आ गयी हूँ। यह परमेश्वर द्वारा मुझे उन्नत करना और मुझ पर दया दिखाना है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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