सच्चा मार्ग स्वीकारने में इतनी बाधाएँ क्यों आती हैं
2008 में, मैंने और माँ ने प्रभु में आस्था रखनी शुरू की, और उसके बाद से ही मैं स्थानीय कलीसिया की सभाओं में जाने लगी। आगे चलकर, मैं कलीसिया की उपयाजक बन गई। जब भी हमारी सभा होती, मैं परमेश्वर के ज्यादा से ज्यादा वचन पढ़कर परमेश्वर की इच्छा को बेहतर समझने की कोशिश करती, लेकिन फिर लगने लगा कि मुझे पादरी के उपदेश नहीं मिल रहे हैं। अब मुझे सभाओं में आनंद नहीं आता था और अंदर एक खालीपन-सा महसूस होने लगा। जून 2020 में, जब मैं आगे की पढ़ाई के लिए एक सेमिनरी में जा रही थी, तभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सदस्य, बहन गार्सिया से मेरी ऑनलाइन मुलाकात हुई। उसने मुझसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार साझा किया और सभा समूह में भी आमंत्रित किया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़कर जाना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है और वे परमेश्वर की वाणी हैं, मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है जिसकी हम लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं भावुक होकर रोने लगी। मुझे लगा मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, मैं प्रभु की वापसी का स्वागत कर अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार पा सकती हूँ।
उसके बाद, मैं जल्द से जल्द भाई-बहनों को प्रभु की वापसी के बारे में बताना चाहती थी। मैं यह सोचकर प्रभु की वापसी की खुशखबरी लेकर सबसे पहले एंजल के पास गई कि वह कलीसिया का धर्मोपदेशक है, दयालु और जिम्मेदार है और अक्सर हमारी मदद करता है, मैंने उसके साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन साझा किए और उसके वचनों की अपनी समझ पर संगति की। लेकिन मुझे हैरानी हुई जब एंजल ने तुरंत मुझे टोकते हुए कहा : "यह असंभव है। बाइबल ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमें परमेश्वर के वचन निहित हैं। ऐसा संभव नहीं है कि परमेश्वर के वचन कहीं और प्रकट हो जाएँ। बाइबल से बाहर की सामग्री को पढ़ना प्रभु के साथ विश्वासघात है!" मैंने झट से उत्तर दिया : "यह प्रभु के साथ विश्वासघात कैसे हो सकता है? आपको परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की कोई समझ नहीं है, आपको कम से कम यह देखने के लिए उसकी जांच तो करनी चाहिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन वाकई परमेश्वर की वाणी हैं—तब आप निर्णय लीजिए।" लेकिन उसने अकड़ दिखाते हुए फिर मुझे टोका : "जांच करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम्हें धर्मोपदेश सुनने हैं, तो मुझसे सुनो। याद रखो, चाहे जो भी हो, बाइबल के अलावा कुछ भी मत पढ़ो—बाइबल से दूर होने का मतलब है प्रभु से विश्वासघात करना।" मैं अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के प्रति उसके रवैये से हैरान थी और उलझन में पड़ गई : "पहले वह कहा करता था कि हमें बुद्धिमान कुंवारियों की तरह बनना चाहिए और तन्मयता से प्रभु की प्रतीक्षा करनी चाहिए, वरना हम उसकी वापसी से चूक जाएँगे। अब जब प्रभु लौट आया है, तो वह सत्य खोजने और जांच करने से क्यों बचना चाहता है, बल्कि चाहता है कि मैं भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन न सुनूँ? क्या वह प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं करना चाहता?" मुझे उसका ऐसा रवैया समझ में नहीं आया। मैंने उसकी इस बात पर भी विचार किया : "परमेश्वर के सभी वचन बाइबल में हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल से बाहर प्रकट नहीं होते। बाइबल से दूर जाना प्रभु के साथ विश्वासघात है।" हालाँकि मैं जानती थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर मैं प्रभु का स्वागत कर रही हूँ, उसे धोखा नहीं दे रही, लेकिन फिर भी उसकी बातों से मैं भ्रमित हो गई।
फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़े और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों की संगति सुनी, इससे मेरी उलझन दूर हो गई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "बाइबिल में दर्ज की गई चीज़ें सीमित हैं; वे परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं। सुसमाचार की चारों पुस्तकों में कुल मिलाकर एक सौ से भी कम अध्याय हैं, जिनमें एक सीमित संख्या में घटनाएँ लिखी हैं, जैसे यीशु का अंजीर के वृक्ष को शाप देना, पतरस का तीन बार प्रभु को नकारना, सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान के बाद यीशु का चेलों को दर्शन देना, उपवास के बारे में शिक्षा, प्रार्थना के बारे में शिक्षा, तलाक के बारे में शिक्षा, यीशु का जन्म और वंशावली, यीशु द्वारा चेलों की नियुक्ति, इत्यादि। फिर भी मनुष्य इन्हें ख़ज़ाने जैसा महत्व देता है, यहाँ तक कि उनसे आज के काम की जाँच तक करता है। यहाँ तक कि वे यह भी विश्वास करते हैं कि यीशु ने अपने जीवनकाल में सिर्फ इतना ही कार्य किया, मानो परमेश्वर केवल इतना ही कर सकता है, इससे अधिक नहीं। क्या यह बेतुका नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1))। "आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चाहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। "बाइबल की इस वास्तविकता को कोई नहीं जानता कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख और उसके कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और इससे तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ हासिल नहीं होती। बाइबल पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। पुराने नियम सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के युग के अंत तक इस्राएल के इतिहास और यहोवा के कार्य को लिपिबद्ध करता है। पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और पौलुस के कार्य नए नियम में दर्ज किए गए हैं; क्या ये ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं? अतीत की चीज़ों को आज सामने लाना उन्हें इतिहास बना देता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी सच्ची और यथार्थ हैं, वे हैं तो इतिहास ही—और इतिहास वर्तमान को संबोधित नहीं कर सकता, क्योंकि परमेश्वर पीछे मुड़कर इतिहास नहीं देखता! तो यदि तुम केवल बाइबल को समझते हो और परमेश्वर आज जो कार्य करना चाहता है, उसके बारे में कुछ नहीं समझते और यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, किन्तु पवित्र आत्मा के कार्य की खोज नहीं करते, तो तुम्हें पता ही नहीं कि परमेश्वर को खोजने का क्या अर्थ है। यदि तुम इस्राएल के इतिहास का अध्ययन करने के लिए, परमेश्वर द्वारा समस्त लोकों और पृथ्वी की सृष्टि के इतिहास की खोज करने के लिए बाइबल पढ़ते हो, तो तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। किन्तु आज, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और जीवन का अनुसरण करते हो, चूँकि तुम परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करते हो और मृत पत्रों और सिद्धांतों या इतिहास की समझ का अनुसरण नहीं करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की आज की इच्छा को खोजना चाहिए और पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा की तलाश करनी चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4))। मुझे याद है, भाई-बहनों ने मेरे साथ संगति करते हुए कहा था कि बाइबल परमेश्वर के पिछले कार्य का एक ऐतिहासिक अभिलेख मात्र है। यह परमेश्वर के कार्य के लिखित अभिलेखों का एक संकलन है। चूँकि इसका संकलन और संपादन इंसानों ने किया है, तो जाहिर है कुछ चीजें चुन ली गईं और बाकी हटा दी गईं या उनकी अनदेखी कर दी गई। परमेश्वर के सभी वचनों और कार्यों को बाइबल में संकलित और दर्ज करना असंभव रहा होगा। जैसे प्रेरित यूहन्ना ने कहा : "और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं" (यूहन्ना 21:25)। इससे पता चलता है कि बाइबल में दर्ज परमेश्वर के वचन और कार्य बहुत सीमित हैं। परमेश्वर सृष्टि का प्रभु और मानव जीवन का स्रोत है। कई सहस्राब्दियों से, परमेश्वर कार्य कर रहा और वचन बोल रहा है, निरंतर प्रवाह में इंसान की हर आवश्यकता की पूर्ति कर रहा है और इंसान को आगे की राह दिखा रहा है। परमेश्वर के वचन निरंतर बहने वाला जीवन जल का सोता हैं, तो कैसे संभव है कि परमेश्वर के सभी वचन बाइबल में निहित हों? सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता है, वह सब्त के दिन का ही नहीं, बल्कि बाइबल का भी प्रभु है। वह न तो बाइबल के अनुसार अपना काम करता है और न ही बाइबल तक सीमित है। उसे अपनी योजनाओं और इंसानी जरूरतों के अनुसार, बाइबल के पार जाने, अधिक और नया कार्य करने एवं अपने अधिक से अधिक वचनों के प्रचार का पूरा अधिकार है। मिसाल के तौर पर, अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने अपना कार्य उस तरह से नहीं किया जैसा कि पुराने नियम में वर्णित व्यवस्था के युग में किया था। उसने नया और अधिक उन्नत कार्य किया, प्रायश्चित का मार्ग व्यक्त किया, सूली पर चढ़ने का कार्य किया, इंसान को पापों से छुटकारा दिलाया, ताकि व्यवस्था लोगों की निंदा न करे, उन्हें मृत्युदंड न दे और वे जीवित रह सकें। अब जबकि परमेश्वर अंत के दिनों में अपना कार्य करने आया है, तो वह बाइबल में दर्ज अपने पिछले कार्य को नहीं दोहराता, बल्कि नए वचन व्यक्त करता है और नया कार्य करता है। जैसे कि प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी : "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। अंत के दिनों में, प्रभु यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। वह परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय-कार्य करता है, मानवजाति को शुद्ध कर बचाने के लिए आवश्यक सभी सत्य व्यक्त करता है, इंसान को पाप के बंधन से मुक्त होने का अवसर देता है, ताकि वह शुद्ध और पूर्ण होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करे। जो लोग अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य स्वीकारते हैं, उन सभी को उसके वचनों का सिंचन और पोषण मिलता है और वे मेमने के विवाह भोज में शामिल होते हैं। वे वैसे ही होते हैं जैसा प्रकाशितवाक्य में बताया गया है : "ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)। यह स्पष्ट है कि वे मेमने के नक्शेकदम पर चल रहे हैं और प्रभु को धोखा नहीं दे रहे हैं। तो यह कहना कि "जो कुछ परमेश्वर ने कहा और किया है वह सब बाइबल में दर्ज है और उससे भटकना परमेश्वर से विश्वासघात है" महज एक भ्रम है और परमेश्वर के वचनों या तथ्यों के अनुरूप नहीं है। भाई-बहनों के साथ संगति करके मुझे बहुत-सी चीजें स्पष्ट हो गईं और एंजल की भ्रांतिपूर्ण टिप्पणियों को भी समझ गई।
उसके बाद, मैं अपनी मूल कलीसिया की एक बहन के साथ सुसमाचार साझा करने गई। लेकिन जब एंजल को पता चला, तो वह टाँग अड़ाने बहन के पास पहुँच गया और उसने पूरी कोशिश की कि बाकी लोग सुसमाचार न स्वीकारें, उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का तिरस्कार और निंदा करते हुए कहा कि मैंने एक अलग संप्रदाय में शामिल होकर प्रभु को धोखा दिया है। उसने और पादरी ने यह कहकर कलीसिया में मेरे बारे में अफवाह फैलाई कि मुझे एक नया प्रेमी मिल गया है जिसकी वजह से मैं अब सभाओं में नहीं जाती, अब मुझे प्रभु में सच्चा विश्वास नहीं रहा, कलीसिया के लोगों को अब मुझसे दूर रहना चाहिए। जब लोगों ने ये अफवाहें सुनीं, तो मुझे हिकारत से देखते हुए मुझसे दूर भागने लगे। कुछ तो मुझे ऐसे देखते मानो मैं कोई विचित्र जीव हूँ। कुछ ही दिन बाद, पादरी ने मेरे माता-पिता को बुलाया और कहा कि मैंने गलत रास्ते पर जाकर सभाओं में हिस्सा लेना बंद कर दिया है। उसने मेरी माँ से कहा कि वह नजर रखे और मुझे कहीं न जाने दे। जब ये सारी बातें एक साथ अचानक हो गईं, तो मुझे अच्छा नहीं लगा, ऐसा लगा जैसे सब-कुछ खत्म हो जाएगा। मुझे समझ नहीं आया कि वे मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं। मैंने उन्हें प्रभु की वापसी की गवाही ही तो दी थी और उन्होंने मुझे बदनाम करने के लिए ये सब अफवाहें उड़ा दीं, मुझे दबाने के लिए मेरे माता-पिता तक को उकसाया। यह सब देखकर लगा मेरे दिल में कोई नश्तर चुभ गया हो और मुझे भयंकर तकलीफ हुई। मैंने रोते हुए परमेश्वर से मदद के लिए प्रार्थना की। जब एक बहन ने मेरी हालत के बारे में सुना, तो उसने मेरे साथ परमेश्वर के बहुत से वचन साझा किए और मुझे काफी हौसला दिया।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के इस अंश में कहा गया है : "आजकल, वे जो खोज करते हैं और वे जो नहीं करते, दो पूरी तरह भिन्न प्रकार के लोग हैं, जिनके गंतव्य भी काफ़ी अलग हैं। वे जो सत्य के ज्ञान का अनुसरण करते हैं और सत्य का अभ्यास करते हैं, वे लोग हैं जिनका परमेश्वर उद्धार करेगा। वे जो सच्चे मार्ग को नहीं जानते, वे दुष्टात्माओं और शत्रुओं के समान हैं। वे प्रधान स्वर्गदूत के वंशज हैं और विनाश की वस्तु होंगे। यहाँ तक कि एक अज्ञात परमेश्वर के धर्मपरायण विश्वासीजन—क्या वे भी दुष्टात्मा नहीं हैं? जिन लोगों का अंत:करण साफ़ है, परंतु सच्चे मार्ग को स्वीकार नहीं करते, वे भी दुष्टात्मा हैं; उनका सार भी परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाला है। ... जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है और इसके अलावा, वे नष्ट किए जाएँगे। वे सब जो विश्वास करते हैं, पर सत्य का अभ्यास नहीं करते, वे जो देहधारी परमेश्वर में विश्वास नहीं करते और वे जो परमेश्वर के अस्तित्व पर लेशमात्र भी विश्वास नहीं रखते, वे सब नष्ट होंगे। वे सभी जिन्हें रहने दिया जाएगा, वे लोग हैं, जो शोधन के दुख से गुज़रे हैं और डटे रहे हैं; ये वे लोग हैं, जो वास्तव में परीक्षणों से गुज़रे हैं। यदि कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है! शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे नहीं, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते? क्या ये वे लोग नहीं, जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। बहन के साथ परमेश्वर के वचनों की संगति करके, मुझे एहसास हुआ कि जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने आया, तो यहोवा परमेश्वर की उपासना करने वाले फरीसियों को साफ तौर पर पता था कि प्रभु यीशु के वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है, लेकिन उन्होंने सत्य खोजने और जाँच करने के बजाय, उसका घोर विरोध और निंदा की, झूठा दावा किया कि वह भूत भगाने के लिए बीएलजबब की ताकत का इस्तेमाल करता है। उन्होंने पवित्र आत्मा की निंदा की और परमेश्वर के शाप और दंड के भागी बने। फरीसियों ने सिर्फ प्रभु का तिरस्कार और निंदा ही नहीं की, बल्कि विश्वासियों के साथ कपट करके उनसे प्रभु का विरोध करवाया और परमेश्वर का उद्धार गँवा बैठे और फरीसियों की कब्रगाह बन गए। मैंने विचार किया कि कैसे उस समय प्रभु यीशु ने फरीसियों को शाप दिया था : "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। और "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो" (मत्ती 23:15)। प्रभु के वचनों से यह देखा जा सकता है कि फरीसी परमेश्वर का विरोध करने वाले मसीह-विरोधी थे। वे दयालु होने का नाटक करते, जबकि वास्तव में उन्हें सत्य से घृणा थी और परमेश्वर को अपना शत्रु मानते थे। वे आत्माओं को निगलने और लोगों को नरक में ले जाने वाले राक्षस थे। फरीसियों की नापाक हरकतों को देखते हुए, प्रभु यीशु ने उन पर सात "हाय" लगाईं। इससे हमें पता चलता है कि परमेश्वर का स्वभाव कोई अपराध सहन नहीं करता। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपना कार्य करने आया है। उसने मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए सभी आवश्यक सत्य व्यक्त किए हैं और विजेताओं का एक समूह बनाया है जिससे धार्मिक दुनिया में तहलका मच गया है। परमेश्वर के इतना विशाल कार्य करने के बावजूद, धार्मिक जगत के पादरी और धर्मोपदेशक इसकी खोज और जाँच-पड़ताल करने के बजाय, अफवाहें फैलाने और विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जांच करने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी एक किए हुए हैं। वे बिल्कुल फरीसियों की तरह हैं जिनकी प्रकृति और सार सत्य से घृणा और परमेश्वर का विरोध करने का था। अंत के दिनों में, परमेश्वर प्रत्येक को उसकी किस्म के अनुसार छांटने का कार्य कर रहा है, नकली विश्वासियों को उजागर कर सच्चे विश्वासियों की पहचान कर रहा है। जो परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा तो करते हैं लेकिन सत्य और देहधारी परमेश्वर को नहीं स्वीकारते, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं, अंतत: उन्हें त्याग दिया जाएगा। जो लोग खुले दिमाग से सत्य खोजकर परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकारते हैं उनके पास परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का अवसर होगा। एंजल दिखने में दयालु, विनम्र और मददगार व्यक्ति लगता था, लेकिन प्रभु के लौटने की बात सुनकर, उसने न तो सत्य खोजा और न ही जाँच-पड़ताल की, बल्कि परमेश्वर के वचनों और कार्यों की आलोचना और निंदा की, यहाँ तक कि अफवाहें फैलाईं और विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जाँच करने से रोका। उसे परमेश्वर का जरा-सा भी भय नहीं था। उसे प्रभु में विश्वास तो था और उसकी सेवा भी करता था, लेकिन उसका सार सत्य से घृणा करने और परमेश्वर का विरोध करने का था। उसमें और उस जमाने के परमेश्वर-विरोधी फरीसियों में कोई अंतर नहीं था। यह सब जानकर, मैं एंजल और धार्मिक दुनिया के अगुआओं को समझ गई और साफ तौर पर जान गई कि वे इस तरह की हरकतें क्यों कर रहे हैं। उसके बाद मुझे उतना बुरा नहीं लगा।
उसके कुछ समय बाद ही, कलीसिया में मुझे एक काम मिल गया। मैं प्रतिदिन सभाओं में जाकर लोगों के साथ परमेश्वर के वचन पढ़ती, मुझे बहुत अच्छा लगता। लेकिन जब मेरे माता-पिता ने पादरी और धर्मोपदेशक द्वारा फैलाई गईं अफवाहें सुनीं, तो उन्होंने मुझे गुस्से में डांटा और अपनी पुरानी कलीसिया में लौटने को मजबूर किया और सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने से मना किया। अपने माता-पिता की रुकावट और व्यवधान के कारण, मैं नियमित रूप से कार्य नहीं कर पा रही थी, सभाओं तक में नहीं जा पा रही थी। एक दिन, पिताजी ने मुझे भाई-बहनों के साथ ऑनलाइन सभा करते देख लिया, वह गुस्से में मुझे मारने ही वाले थे कि तभी माँ अंदर आ गई और पिताजी को रोक दिया। उसके बाद, मेरे माता-पिता ने मुझ पर और भी सख्ती कर दी। मुझे घर में बंद कर दिया और बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी, अब मैं सभाओं में भी नहीं जा पा रही थी। मुझे बहुत परेशानी हो रही थी। कमजोरी महसूस होने के कारण मैं अपना काम नहीं कर पा रही थी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मुझे विश्वास और शक्ति दे। उसके बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला : "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि मौजूदा हालात में दिख तो यही रहा था मानो मेरे माता-पिता ही मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने से रोक रहे हैं, जबकि असल में शैतान छिपकर व्यवधान पैदा कर रहा था। यह एक आध्यात्मिक लड़ाई थी। अंत के दिनों में परमेश्वर ने बहुत से सत्य व्यक्त किए हैं ताकि हम अपनी शैतानी भ्रष्टता से मुक्त हों और परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकें। लेकिन शैतान नहीं चाहता था कि परमेश्वर मुझे बचाए, तो उसने मेरे माता-पिता के जरिए मुझ पर हमला किया ताकि मैं परमेश्वर में विश्वास न रखूँ और अपना कार्य न कर पाऊँ। शैतान चाहता था कि मैं पूरी तरह से अपने उद्धार का अवसर गँवाकर उसके साथ नरक में चली जाऊँ। शैतान वाकई बेहद कपटी और दुष्ट है! अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना बंद कर दिया, तो क्या मैं उसकी भयावह साजिश का शिकार नहीं हो जाऊंगी?
मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? बेवकूफ़ बच्चे! तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है। जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि भले ही मुझे पादरी के दमन और माता-पिता की पाबंदी के कारण थोड़ा-बहुत कष्ट हुआ हो, लेकिन परमेश्वर ने मेरे विश्वास को पूर्ण करने के लिए ऐसे हालात बनाए थे। यह परमेश्वर का नेक इरादा था! लेकिन मैं थोड़ी-सी कठिनाई से ही कमजोर पड़कर कर्तव्य-निर्वहन छोड़ने को तैयार थी। मैंने महसूस किया कि मुझमें सत्य पाने के लिए कष्ट सहने और कीमत चुकाने का जज्बा नहीं था। परमेश्वर के प्रति मेरा रवैया ईमानदारी वाला नहीं था, मेरा आध्यात्मिक कद अभी काफी छोटा था। मुझे परमेश्वर के इरादे समझ में आ गए और अब मैं निष्क्रिय और हतोत्साहित नहीं थी। मुझमें विश्वास था, ताकत थी, अब मैं डटकर हालात का सामना करने को तैयार थी, परमेश्वर के भरोसे उत्पीड़न सहने को दृढ़-प्रतिज्ञ थी। मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती, अपनी आस्था को मजबूत करने के लिए परमेश्वर के वचन पढ़ती और परमेश्वर से याचना करती कि मुझे राह दिखाए ताकि मैं पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य निभा सकूं।
उसके बाद, मेरे बारे में एंजल और अन्य लोगों द्वारा फैलाई गईं अफवाहें मेरे माता-पिता पर भारी पड़ने लगीं, इन अफवाहों से पिंड छुड़ाने के लिए, उन्होंने मुझे मेरी दादी के पास भेज दिया। मैं वहाँ भाई-बहनों से इंटरनेट के माध्यम से जुड़ गई, अब मैं पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य-निर्वहन कर सकती थी। मेरे माता-पिता को पता चला तो वे काफी नाराज हो गए, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा, मैंने दृढ़ता से उनसे कहा : "प्रभु में मेरे विश्वास की सबसे बड़ी आशा उसकी वापसी का स्वागत करना है। अब प्रभु यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है, अगर आप लोग न समझें, तब भी मैं अंत तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करूंगी। अगर आप लोग अब भी मुझे रोकने की जिद करेंगे तो फिर मुझे आप लोगों को छोड़ना पड़ेगा।" मेरी दृढ़ता देखकर माता-पिता ने इस मामले में फिर कभी कुछ नहीं कहा। तब से, हालाँकि उनकी शिकायत रहती थी और मेरे काम में बाधा डालने की कोशिश भी करते थे, लेकिन मैं अब उनके हाथों विवश नहीं थी और अपना काम दृढ़ता से करती थी। पादरी और परिवार द्वारा बार-बार के उत्पीड़न और रुकावट का अनुभव करते हुए, मुझे थोड़ी तकलीफ तो होती थी, लेकिन मैं सत्य समझना और भेद करना जान गई थी, परमेश्वर में मेरा विश्वास और गहरा हो गया। भविष्य में मेरे सामने चाहे जैसी भी परिस्थिति आए, मैं परमेश्वर के भरोसे उनसे पार पाने को तैयार हूँ।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?