मार्ग ... (3)

अपने जीवन में, मुझे अपना तन-मन पूरी तरह से परमेश्वर को देने में हमेशा खुशी होती है। केवल तभी मेरा अंतःकरण तिरस्कार से रहित और कुछ हद तक शांत होता है। जो लोग जीवन की खोज करते हैं, उन्हें पहले अपना पूरा हृदय परमेश्वर को देना चाहिए; यह एक पूर्व-शर्त है। मैं अपने भाई-बहनों से चाहूँगा कि वे मेरे साथ परमेश्वर से प्रार्थना करें : “हे परमेश्वर! स्वर्ग में तेरा पवित्रात्मा धरती पर लोगों को अनुग्रह प्रदान करे, ताकि मेरा हृदय पूरी तरह से तेरी ओर मुड़ सके, ताकि मेरी आत्मा तेरे द्वारा प्रेरित हो सके, ताकि मैं अपने हृदय और आत्मा में तेरी मनोरमता देख सकूँ, और ताकि जो लोग पृथ्वी पर हैं, वे तेरी सुंदरता देखकर धन्य हो सकें। परमेश्वर! तेरा पवित्रात्मा एक बार फिर हमारी आत्माओं को प्रेरित करे, ताकि हमारा प्रेम चिरस्थायी और अडिग हो!” हम सभी में, परमेश्वर पहले हमारा हृदय परखता है—और जब हम अपना हृदय उसमें उड़ेल देते हैं, तब वह हमारी आत्मा को प्रेरित करना शुरू कर देता है। हम केवल अपनी आत्माओं में ही परमेश्वर की मनोरमता, सर्वोच्चता और महानता देख सकते हैं। यह मनुष्यों में पवित्र आत्मा का मार्ग है। क्या तुम्हारा जीवन इस तरह का है? क्या तुमने पवित्र आत्मा के जीवन का अनुभव किया है? क्या तुम्हारी आत्मा परमेश्वर द्वारा प्रेरित की गई है? क्या तुमने देखा है कि पवित्र आत्मा लोगों में किस प्रकार कार्य करता है? क्या तुमने अपना पूरा हृदय परमेश्वर को दे दिया है? जब तुम अपना पूरा हृदय परमेश्वर को दे चुके होते हो, तो तुम पवित्र आत्मा के जीवन का सीधे अनुभव करने में सक्षम हो जाते हो, और उसका कार्य निरंतर तुम्हारे सामने प्रकट किया जाएगा। उस समय तुम एक ऐसे व्यक्ति बन जाओगे, जिसका पवित्र आत्मा द्वारा उपयोग किया जाता है। क्या तुम ऐसा व्यक्ति बनने के इच्छुक हो? मुझे याद है कि जब मुझे पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित किया गया था और मैंने पहली बार परमेश्वर को अपना हृदय दिया था, तो कैसे मैं उसके सामने गिर गया था और चिल्लाया था : “हे परमेश्वर! तूने मेरी आँखें खोल दी हैं और मुझे अपना उद्धार जानने दिया है। मैं अपना हृदय पूरी तरह से तुझे देना चाहता हूँ, और मैं केवल इतना ही कहता हूँ कि तेरी इच्छा पूरी हो, मैं केवल यही चाहता हूँ कि मेरा हृदय तेरी उपस्थिति में तेरा अनुमोदन प्राप्त करे, और मैं केवल तेरी इच्छा पर चलने की माँग करता हूँ।” मैं यह प्रार्थना कभी नहीं भूलूँगा; मैं गहराई तक प्रेरित हो गया था, और परमेश्वर के सामने वेदना से फूट-फूटकर रोया था। परमेश्वर की उपस्थिति में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वह मेरी पहली सफल प्रार्थना थी, जिसे बचाया गया था, और यह मेरे हृदय की पहली इच्छा थी। उसके बाद, पवित्र आत्मा द्वारा मुझे अकसर प्रेरित किया गया। क्या तुम्हें इस तरह का अनुभव हुआ है? पवित्र आत्मा ने तुम में कैसे कार्य किया है? मुझे लगता है कि यह अनुभव कमोबेश उन सभी को होता है, जो परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं—बस इतना ही है कि वे भूल जाते हैं। अगर कोई कहता है कि उसे इस तरह का अनुभव नहीं हुआ है, तो यह साबित करता है कि उसे अभी तक बचाया नहीं गया है और वह अभी भी शैतान की सत्ता में रहता है। पवित्र आत्मा का जो कार्य हम सभी के लिए आम है, वह है पवित्र आत्मा का मार्ग, और यह उन लोगों का मार्ग भी है जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और उसकी तलाश करते हैं। पवित्र आत्मा लोगों पर जो कार्य करता है, उसका पहला कदम है उनकी आत्माओं को प्रेरित करना, जिसके बाद वे परमेश्वर से प्रेम और जीवन की खोज करने लगते हैं, और इस मार्ग पर चलने वाले सभी लोग पवित्र आत्मा की धारा में होते हैं। यह केवल मुख्य भूमि चीन में ही परमेश्वर के कार्य की गत्यात्मकता नहीं है, बल्कि समस्त विश्व में है। वह इसी तरह हर व्यक्ति में कार्य करता है। अगर कोई कभी भी प्रेरित नहीं हुआ है, तो यह साबित करता है कि वह बहाली की धारा से बाहर है। अपने हृदय में मैं अनवरत परमेश्वर से प्रार्थना किया करता हूँ कि वह सभी लोगों को प्रेरित करे, ताकि पृथ्वी का प्रत्येक व्यक्ति उसके द्वारा प्रेरित होकर इस मार्ग पर चले। यह मेरी ओर से परमेश्वर से एक तुच्छ-सा अनुरोध हो सकता है, लेकिन मेरा विश्वास है कि वह इसे पूरा करेगा। मुझे आशा है कि मेरे सभी भाई-बहन इसके लिए प्रार्थना करेंगे, कि परमेश्वर की इच्छा पूरी हो, और कि उसका कार्य शीघ्र समाप्त हो, ताकि स्वर्ग में उसका आत्मा विश्राम कर सके। यह मेरी अपनी छोटी-सी आशा है।

मेरा मानना है कि चूँकि परमेश्वर अपना कार्य दानवों के एक गढ़ में आरंभ कर पाया है, इसलिए वह निश्चित रूप से ब्रह्मांड भर में अनगिनत दूसरे स्थानों पर भी ऐसा कर सकता है। अंतिम युग के हम लोगों का परमेश्वर की महिमा का दिन देखना निश्चित है, ठीक वैसे ही, जैसे यह कहा गया है कि “वह जो अंत तक अनुसरण करता है, उसे बचाया जाएगा।” कोई भी परमेश्वर के कार्य के इस चरण में उसकी जगह नहीं ले सकता—केवल स्वयं परमेश्वर ही यह कार्य कर सकता है, क्योंकि कार्य का यह चरण असाधारण है; यह विजय के कार्य का चरण है, और लोग अन्य लोगों को नहीं जीत सकते। लोग केवल तभी जीते जाते हैं, जब परमेश्वर अपने मुँह से बोलता है और अपने हाथ से कार्य करता है। संपूर्ण विश्व में से परमेश्वर एक परीक्षण-भूमि के रूप में बड़े लाल अजगर के देश का उपयोग करता है, जिसके बाद वह विश्व भर में इस कार्य को शुरू करेगा। इस प्रकार वह पूरे विश्व में और भी बड़ा कार्य करेगा, और विश्व के सभी लोग परमेश्वर के विजय के कार्य को प्राप्त करेंगे। हर धर्म और हर पंथ के लोगों को कार्य के इस चरण को स्वीकार करना चाहिए। यह वह मार्ग है, जिसे अपनाया ही जाना चाहिए—कोई इससे बच नहीं सकता। क्या तुम इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हो, जो परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपा गया है? मुझे हमेशा लगा है कि पवित्र आत्मा का आदेश स्वीकार करना एक शानदार बात है। मेरी नजर में यह सबसे बड़ा आदेश है, जो परमेश्वर मनुष्य को देता है। मुझे आशा है कि मेरे भाई-बहन मेरे साथ कड़ी मेहनत करेंगे और परमेश्वर के इस आदेश को स्वीकार करेंगे, ताकि पूरे ब्रह्मांड और ऊपर के राज्य में परमेश्वर महिमा पाए, और हमारे जीवन व्यर्थ न जाएँ। हमें परमेश्वर के लिए कुछ करना चाहिए, या हमें एक शपथ लेनी चाहिए। अगर लोग परमेश्वर पर विश्वास करते समय किसी लक्ष्य की खोज नहीं करते, तो उनका जीवन व्यर्थ है, और जब उनकी मृत्यु का समय आएगा, तो उन्हें केवल नीला आकाश और धूल भरी पृथ्वी दिखाई देगी। क्या यह कोई सार्थक जीवन है? अगर तुम जीवित रहते हुए परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने में सक्षम हो, तो क्या यह एक सुंदर बात नहीं है? तुम हमेशा अपने ऊपर ऐसी मुसीबत क्यों लाते हो, और तुम हमेशा हताश क्यों रहते हो? क्या इस तरह से कार्य करके तुमने परमेश्वर से कुछ भी प्राप्त किया है? और क्या परमेश्वर तुमसे कुछ प्राप्त कर सकता है? परमेश्वर के प्रति मेरी शपथ में केवल मेरे हृदय का वादा था; मैं उसे शब्दों से बेवकूफ बनाने का प्रयास नहीं कर रहा था। मैं ऐसा कुछ कभी नहीं करूँगा—मैं केवल परमेश्वर को सुकून पहुँचाना चाहता हूँ, जिसे कि मैं हृदय से प्रेम करता हूँ, ताकि स्वर्ग में उसके आत्मा को दिलासा मिल सके। हृदय मूल्यवान हो सकता है, लेकिन प्रेम अधिक मूल्यवान है। मैं परमेश्वर को अपने हृदय का सबसे मूल्यवान प्रेम दूँगा, ताकि वह मेरी सबसे सुंदर चीज का आनंद ले सके, और वह उस प्रेम से भर सके, जो मैं उसे अर्पित करता हूँ। क्या तुम परमेश्वर के आनंद के लिए उसे अपना प्रेम देने को तैयार हो? क्या तुम इसे अपने अस्तित्व की पूँजी बनाने को तैयार हो? अपने अनुभवों में मैंने देखा है कि जितना अधिक प्रेम मैं परमेश्वर को देता हूँ, उतना ही अधिक आनंद मुझे जीने में मिलता है; इसके अलावा, मुझमें ताकत की कोई सीमा नहीं होती, मैं खुशी से अपना पूरा तन-मन अर्पित कर देता हूँ, और मुझे हमेशा महसूस होता कि संभवतः मैं परमेश्वर को पर्याप्त प्रेम नहीं कर सकता। तो क्या तुम्हारा प्रेम नगण्य प्रेम है, या वह अनंत, अथाह है? अगर तुम वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हो, तो तुम्हारे पास उसे वापस देने के लिए हमेशा अधिक प्रेम होगा—और अगर ऐसा है, तो संभवतः कौन-सा व्यक्ति या वस्तु परमेश्वर के लिए तुम्हारे प्रेम के आड़े आ सकती है?

परमेश्वर हर मनुष्य के प्रेम को सँजोता है। उन सभी पर तो उसके आशीष और भी घनीभूत हो जाते हैं, जो उससे प्रेम करते हैं, क्योंकि मनुष्य का प्रेम पाना बहुत कठिन है, वह बहुत थोड़ा, लगभग अगोचर होता है। विश्व भर में परमेश्वर ने लोगों से उसे वापस प्रेम करने के लिए कहने का प्रयास किया है, लेकिन युगों-युगों से अब तक, केवल कुछ—मुट्ठी-भर—लोगों ने ही उसे वापस सच्चा प्रेम दिया है। जहाँ तक मुझे याद है, पतरस उनमें से एक था, लेकिन उसे भी यीशु ने व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन दिया था और केवल अपनी मृत्यु के समय ही उसने परमेश्वर को अपना पूरा प्रेम दिया था, और फिर उसका जीवन समाप्त हो गया। और इसलिए, इन दारुण परिस्थितियों में, परमेश्वर ने विश्व में अपने कार्य का दायरा संकुचित कर दिया, और अपनी समस्त ऊर्जा और प्रयास एक ही स्थान पर केंद्रित करते हुए, बड़े लाल अजगर के देश का प्रदर्शन-क्षेत्र के रूप में उपयोग किया, ताकि वह अपने कार्य को अधिक प्रभावी और अपनी गवाही के लिए अधिक लाभदायक बना सके। इन दो स्थितियों में ही परमेश्वर ने संपूर्ण विश्व का अपना कार्य मुख्य भूमि चीन के इन लोगों में स्थानांतरित किया, जिनके पास सबसे सबसे कम क्षमता थी, और विजय का अपना प्यारा कार्य शुरू किया। और जब वे सभी उससे प्रेम करने लगेंगे, तो वह अपने कार्य का अगला चरण कार्यान्वित करेगा, जो कि परमेश्वर की योजना है। उसका कार्य इसी प्रकार सबसे बड़ा प्रभाव प्राप्त करता है। उसके कार्य के दायरे का मर्म और सीमाएँ दोनों हैं। यह स्पष्ट है कि हमारे भीतर अपना कार्य करते हुए परमेश्वर ने कितना बड़ा मूल्य चुकाया है और कितना अधिक प्रयास किया है, ताकि हमारा दिन आए। यह हमारे लिए आशीष है। इसलिए, लोगों की धारणाओं को जो बात गलत साबित करती है, वह यह है कि अच्छे स्थान पर पैदा होने के कारण पश्चिमी लोग हमसे ईर्ष्या करते हैं, लेकिन हम सभी अपने आप को नीच और दीन-हीन समझते हैं। क्या यह परमेश्वर द्वारा हमें ऊपर उठाना नहीं है? बड़े लाल अजगर के वंशज, जिन्हें हमेशा कुचला गया है, पश्चिमी लोगों द्वारा आदर से देखे जाते हैं—यह सच में हमारा आशीष है। जब मैं इस बारे में सोचता हूँ, तो मैं परमेश्वर की दया, उसकी प्रीति और घनिष्ठता के वशीभूत हो जाता हूँ। यह दर्शाता है कि परमेश्वर जो करता है, वह सब मनुष्य की धारणाओं के साथ असंगत है। यद्यपि ये सभी लोग शापित हैं, किंतु वह व्यवस्था से विवश नहीं है और उसने जानबूझकर पृथ्वी के इस भाग में अपना कार्य स्थानांतरित किया है। यही कारण है कि मैं आनंदित होता हूँ और असीम सुख महसूस करता हूँ। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो कार्य में अग्रणी भूमिका निभाता है, ठीक इस्राएलियों के बीच मुख्य पादरियों की तरह, मैं सीधे पवित्रात्मा का कार्य पूरा करने और सीधे परमेश्वर के आत्मा की सेवा करने में सक्षम हूँ; यह मुझ पर आशीष है। ऐसी बात की कल्पना करने की हिम्मत कौन करेगा? किंतु आज, यह अप्रत्याशित रूप से हम पर आ गया है। यह वास्तव में एक बहुत बड़ा आनंद है, जो हमारे द्वारा उत्सव मनाने योग्य है। मुझे आशा है कि परमेश्वर हमें आशीष देना और ऊपर उठाना जारी रखेगा, ताकि हम में से इस घूरे के ढेर में रह रहे लोग परमेश्वर द्वारा महान उपयोग में लाए जा सकें, और इस प्रकार उसके प्रेम को चुका सकें।

जिस मार्ग पर मैं अब चल रहा हूँ, वह परमेश्वर के प्रेम को चुकाने का मार्ग है, फिर भी मुझे लगातार महसूस होता है कि यह परमेश्वर की इच्छा नहीं है, न ही यह वह मार्ग है जिस पर मुझे चलना चाहिए। परमेश्वर द्वारा महान उपयोग किया जाना—यह परमेश्वर की इच्छा है, और यही पवित्र आत्मा का मार्ग है। शायद मुझसे गलती हुई है, लेकिन मुझे लगता है कि यही मेरा रास्ता है, क्योंकि बहुत समय पहले मैंने परमेश्वर के सामने कसम खाई थी कि मैं चाहता हूँ कि वह मेरा मार्गदर्शन करे, कि मैं पूरी शीघ्रता से उस मार्ग पर अपने पैर रखूँ जिस पर मुझे चलना चाहिए, और यथाशीघ्र परमेश्वर की इच्छा पूरी करूँ। दूसरे चाहे कुछ भी सोचें, मेरा मानना है कि परमेश्वर की इच्छा पर चलना सबसे महत्वपूर्ण है। मेरी जिंदगी में कोई भी चीज इससे महत्वपूर्ण नहीं है, और मुझे इस अधिकार से कोई वंचित नहीं कर सकता। यह मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण है, और शायद कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इसे समझ नहीं सकते, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी के भी सामने इसे सही ठहराना है। मैं वही मार्ग लूँगा, जो मुझे लेना चाहिए—उस मार्ग को पहचानते ही, जिस पर मुझे होना चाहिए, मैं उसे ले लूँगा और पीछे नहीं हटूँगा। इसलिए मैं इन वचनों पर वापस आता हूँ : मैंने अपना हृदय परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने पर लगा दिया है। मुझे यकीन है कि मेरे भाई-बहन मेरी आलोचना नहीं करेंगे! कुल मिलाकर, जैसा कि मैं व्यक्तिगत रूप से देखता हूँ, अन्य लोग जो चाहें कह सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि परमेश्वर की इच्छा पर चलना सबसे महत्वपूर्ण है, और कि कोई चीज मुझे ऐसा करने से नहीं रोक सकती। परमेश्वर की इच्छा पर चलना कभी गलत नहीं हो सकता! और यह अपने हित में कार्य करना नहीं है! मेरा मानना है कि परमेश्वर ने मेरे हृदय के अंदर देख लिया है! तो तुम्हें इसे कैसे समझना चाहिए? क्या तुम स्वयं को परमेश्वर के लिए अर्पित करने के लिए तैयार हो? क्या तुम परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने के लिए तैयार हो? क्या तुम परमेश्वर की इच्छा पर चलने की प्रतिज्ञा करते हो? मुझे आशा है कि मेरे वचन मेरे भाई-बहनों के लिए कुछ सहायक हो सकते हैं। यद्यपि मेरी अंतर्दृष्टियों के बारे में कुछ भी गहन नहीं है, फिर भी मैं तुम्हें उनके बारे में बताता हूँ, ताकि हम अपनी अंतरतम भावनाएँ अपने बीच बिना किसी बाधा के साझा कर सकें, और ताकि परमेश्वर हमेशा के लिए हमारे बीच रहे। ये मेरे हृदय के वचन हैं। ठीक है! आज मुझे अपने हृदय से बस इतना ही बोलना है। मुझे आशा है कि मेरे भाई-बहन कड़ी मेहनत करते रहेंगे, और मुझे आशा है कि परमेश्वर का आत्मा हमेशा हमारी देखभाल करेगा!

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