556 केवल सत्य का अभ्यास करने वाले ही परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं

1

अगर तुम लोगों को ज़रा-सी भी उम्मीद है,

तो ईश्वर को अतीत याद हो, न हो, तुम्हारे मन में यही होना चाहिए:

"मैं अपना स्वभाव बदलूँगा, ईश्वर को जानूँगा,

शैतान के हाथों फिर बेवकूफ़ न बनूँगा, ईश्वर को शर्मिंदा न करूँगा।"


कोई आशा तुम्हारे लिए है या नहीं, तुम्हें बचाया जाएगा या नहीं,

ये तय होता इससे कि वचन सुनकर सत्य पा सकते हो या नहीं,

सत्य पर अमल कर सकते हो या नहीं, तुम बदल सकते हो या नहीं।


2

अगर तुम्हें सिर्फ मलाल है, मगर जब कुछ करो,

तुम पुराने तरीकों से सोचते, अपनी भ्रष्टता से काम करते;

अगर तुममें समझ न हो, स्थिति बदतर हो रही हो,

तो आशा नहीं तुम्हारे लिए, माने जाओगे निकम्मे।

ईश्वर को, अपनी प्रकृति को जितना जानोगे, खुद को उतना काबू में रखोगे।

अपने अनुभव को समेटते हुए, तुम फिर इस तरह असफल नहीं होगे।


कोई आशा तुम्हारे लिए है या नहीं, तुम्हें बचाया जाएगा या नहीं,

ये तय होता इससे कि वचन सुनकर सत्य पा सकते हो या नहीं,

सत्य पर अमल कर सकते हो या नहीं, तुम बदल सकते हो या नहीं।


3

सभी दोषपूर्ण हैं, सबमें अहंकार, दंभ, अपराध या विद्रोह जैसी भ्रष्टता दिखे।

कोई भ्रष्ट इंसान इनसे बच न सके।

मगर सत्य को समझने पर, तुम्हें इनसे बचना चाहिए,

अतीत से परेशान नहीं होना चाहिए।

डर है, तुम समझकर भी न बदलो,

जानते हुए भी गलत काम करो, और गलत तरीके अपनाओ।

ऐसे लोगों का छुटकारा नामुमकिन है।


कोई आशा तुम्हारे लिए है या नहीं, तुम्हें बचाया जाएगा या नहीं,

ये तय होता इससे कि वचन सुनकर सत्य पा सकते हो या नहीं,

सत्य पर अमल कर सकते हो या नहीं, तुम बदल सकते हो या नहीं।


—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन से रूपांतरित

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