198 सत्य को समझकर मुक्त हो जाओ
1 प्रभु में बरसों के अपने विश्वास में, मैंने केवल वचन और सिद्धांत ही बोले, मैं नियमों से चिपका रहा, और मैंने धार्मिक अनुष्ठान किए। मेरी हर प्रार्थना एक खोखला अहंकार थी, मैंने कभी अपने दिल की बात परमेश्वर से नहीं कही। न ही मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय कभी सत्य की तलाश की; मैं परमेश्वर की इच्छा पर विचार करने में असमर्थ था। मुझे लगा कि बाइबल के इतने सारे प्रसिद्ध पदों और कथनों को याद करने के मायने हैं कि मेरे अंदर सत्य की वास्तविकता है। मैंने केवल झूठ न बोलने पर ध्यान दिया और इस तरह मैं खुद को ईमानदार समझता रहा। मैंने बरसों ख़ुशी-ख़ुशी अथक प्रयास किए कि शायद मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करूँ और पुरस्कार पाऊँ। मैं कितना ख़ुशनसीब हूँ कि मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने पुकारा; मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी और मैं उसके पास लौट आया। मैंने परमेश्वर के वचनों से बहुत से सत्यों को समझा है, परमेश्वर के रूप और कार्य को निहारा है।
2 परमेश्वर के वचनों के न्याय ने अचानक मुझे जगा दिया; सत्य का अनुसरण करना परमेश्वर के हृदय के अनुसार है। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास तो रखूँ, मगर परमेश्वर की ताड़ना और न्याय का अनुभव न करूँ, तो मेरा भ्रष्ट स्वभाव नहीं बदल सकता। अगर मैं परमेश्वर को न जानूँ, और परमेश्वर से भय न खाऊँ, तो मेरा अच्छा व्यवहार एक ढोंग है। इंसान परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का अपमान नहीं कर सकता, कपटी इंसान की राज्य में प्रवेश करने की इच्छा मात्र एक सपना है। मैं परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने, सत्य को प्राप्त करने और अपनी भ्रष्टता को दूर करने का संकल्प लेता हूँ। मैं हर चीज में, सत्य की खोज और सत्य का अभ्यास करता हूँ; मैं अपने दिल में, शांति और सुकून महसूस करता हूँ। मैं निष्ठा से अपना कर्तव्य निभाता हूँ, और प्रसन्नता से परमेश्वर की सेवा करता हूँ; मैं परमेश्वर से आशीष नहीं, बल्कि यह माँगता हूँ कि मैं उससे प्रेम करता रहूँ। अब चूँकि मैं सच्चाई को समझ गया हूँ, तो मैं अब नियमों से नहीं चिपकता; मैं परमेश्वर के समक्ष रहकर मैं स्वतंत्र मुक्त हो गया हूँ।