896 परमेश्वर हमेशा इंसान के लौट आने का इंतज़ार करता है
1
अक्सर ईश्वर ने इंसान को अपने आत्मा से बुलाया
फिर भी वो दिखाये जैसे ईश्वर ने किए हों वार।
दूर-दूर से देखे उसे वो, इस डर से कि ले जाएगा ईश्वर उसे दूसरी दुनिया में।
उसने अक्सर इंसान की आत्मा से पूछताछ की,
लेकिन वो बेख़बर रहता है, डरता है कि ईश्वर ले लेगा उसका सब-कुछ।
इसलिए वो उस पर दरवाज़ा बंद कर देता है।
ईश्वर इंसान को मजबूर नहीं करता, बस करता है अपना काम।
एक दिन समंदर पार कर आएगा वो उसके पास,
ताकि ले सके आनंद संसार की संपदा का,
छोड़ कर पीछे खतरा समंदर में डूबने का।
जब-जब गिरा है इंसान, ईश्वर ने बचाया है उसे,
पर होश संभालते ही वो छोड़ जाता उसे;
ईश्वर प्रेम से अछूता, सतर्क नज़रों से देखता उसे।
तभी उसके दिल में गर्मी नहीं दी ईश्वर ने।
ईश्वर इंसान को मजबूर नहीं करता, बस करता है अपना काम।
एक दिन समंदर पार कर आएगा वो उसके पास,
ताकि ले सके आनंद संसार की संपदा का,
छोड़ कर पीछे खतरा समंदर में डूबने का।
2
इंसान में कोई भावना नहीं, वो है एक नृशंस जानवर।
परमेश्वर के आगोश की गर्मी से भी, उसका दिल कभी नहीं पिघला।
किसी जंगली राक्षस-सा है वो, उसने कभी उसके प्यार की परवाह नहीं की।
वो पहाड़ों में रह लेता, जंगली जानवरों को सह लेता,
पर वो ईश्वर की शरण नहीं लेना चाहता।
ईश्वर इंसान को मजबूर नहीं करता, बस करता है अपना काम।
एक दिन समंदर पार कर आएगा वो उसके पास,
ताकि ले सके आनंद संसार की संपदा का,
छोड़ कर पीछे खतरा समंदर में डूबने का।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 20 से रूपांतरित