410 तुम्हारा विश्वास अभी भी भ्रमित है
1
बहुतों ने बेहिचक ईश्वर का अनुसरण किया है। तुम भी बरसों थके हो।
ईश्वर तुम्हारी प्रकृति और आदतों से वाकिफ़ है।
तुम्हारे साथ रहना मुश्किल रहा है।
हालाँकि वो तुम्हें जानता है,
पर अफ़सोस, तुम उसके बारे में कुछ भी जानते नहीं।
तुम उसके स्वभाव को जानते नहीं। तुम उसके मन की थाह पा सकते नहीं।
तुम्हारी ग़लतफ़हमियाँ बढ़ती जा रही हैं, और भ्रमित है उसमें तुम्हारी आस्था।
2
न कहो कि ईश्वर में है आस्था तुम्हें, कहना चाहिए, तुम चापलूसी कर रहे हो।
जो भी तुम्हें इनाम दे, आपदाओं से बचाए,
तुम उसका अनुसरण करते हो, तुम्हें चिंता नहीं, वो ईश्वर है या कोई ख़ास ईश्वर।
बहुत से इस गंभीर स्थिति में है।
अगर ये देखने के लिए तुम्हारा इम्तहान हो,
क्या तुम मसीह के सार को समझकर आस्था रखते हो
तो कोई भी ईश्वर को संतुष्ट न कर पाएगा।
तुम उसके स्वभाव को जानते नहीं। तुम उसके मन की थाह पा सकते नहीं।
तुम्हारी ग़लतफ़हमियाँ बढ़ती जा रही हैं, और भ्रमित है उसमें तुम्हारी आस्था।
3
कल्पनाओं से भरी है तुम्हारी आस्था;
ये बहुत दूर है व्यवहारिक ईश्वर से, तो क्या सार है तुम्हारी आस्था का?
तुम्हें ईश्वर से दूर करे तुम्हारी झूठी आस्था, तो क्या सार है इस मसले का?
तुममें से ये किसी ने सोचा नहीं, ना ही तुम समझो इसकी गंभीरता को।
क्या तुमने सोचा है ऐसी आस्था का नतीजा?
तुम उसके स्वभाव को जानते नहीं। तुम उसके मन की थाह पा सकते नहीं।
तुम्हारी ग़लतफ़हमियाँ बढ़ती जा रही हैं, और भ्रमित है उसमें तुम्हारी आस्था।
तुम्हारी ग़लतफ़हमियाँ बढ़ती जा रही हैं,
और भ्रमित है उसमें तुम्हारी आस्था, आस्था।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें से रूपांतरित