409 लोग परमेश्वर में सचमुच विश्वास नहीं करते हैं

1 मेरे कार्य के कई वर्षों के दौरान, मनुष्य ने बहुत अधिक प्राप्त किया और बहुत त्याग किया है, फिर भी मैं कहता हूँ कि लोग मुझ पर वास्तव में विश्वास नहीं करते। क्योंकि लोग केवल यह मानते हैं कि मैं परमेश्वर हूँ जबकि मेरे द्वारा बोले गए सत्य से वे असहमत होते हैं, और वे उन सत्‍यों का भी अभ्‍यास नहीं करते, जिनकी अपेक्षा मैं उनसे करता हूँ। कहने का अर्थ है कि मनुष्य केवल परमेश्वर के अस्तित्व को ही स्वीकार करता है, लेकिन सत्य के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता; मनुष्य केवल परमेश्वर के अस्तित्व को ही स्वीकार करता है परन्तु जीवन के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता, मनुष्य केवल परमेश्वर के नाम को स्वीकार करता है परन्तु उसके सार को स्वीकार नहीं करता। अपने उत्साह के कारण, मनुष्य मेरे लिए घृणित बन गया है। क्योंकि वह केवल मुझे धोखा देने के लिए कानों को अच्छे लगने वाले शब्द बोलता है; कोई भी सच्चे हृदय से मेरी आराधना नहीं करता।

2 तुम लोगों के शब्‍दों में दुष्ट व्यक्ति का प्रलोभन है; इसके अलावा, इंसान बेहद अहंकारी है, प्रधान स्वर्गदूत की यह पक्की उद्घोषणा है। इतना ही नहीं, तुम्हारे कर्म हद दर्जे तक तार-तार हो चुके हैं; तुम लोगों की असंयमित अभिलाषाएँ और लोलुप अभिप्राय सुनने में अपमानजनक हैं। तुम सब लोग मेरे घर में कीड़े और घृणित त्याज्य वस्तु बन गए हो। क्योंकि तुम लोगों में से कोई भी सत्य का प्रेमी नहीं है, बल्कि तुम इंसान हो जो आशीष चाहता है, स्वर्ग में जाना चाहता है, और पृथ्वी पर अपने सामर्थ्य का उपयोग करते हुए मसीह के दर्शन करना चाहता है। क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि कोई तुम लोगों के समान व्यक्ति, जो इतनी गहराई तक भ्रष्ट हो चुका है, और जो नहीं जानता कि परमेश्वर क्या है, वह परमेश्वर का अनुसरण करने योग्य कैसे हो सकता है? तुम लोग स्वर्ग में कैसे आरोहण कर सकते हो? तुम लोग उस महिमा को देखने योग्य कैसे बन सकते हो, जो अपने वैभव में अभूतपूर्व है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं से रूपांतरित

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