520 परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो सच्चे मन से सत्य का अनुसरण करते हैं

1

पवित्र आत्मा का अनुशासन क्या है? इंसानी इच्छा से उपजा दोष क्या है?

पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन क्या है? परिवेश की व्यवस्था क्या है?

ईश-वचन भीतर क्या प्रबुद्ध करते हैं?

अगर इन बातों पर तुम न हो साफ़, तो तुममें विवेक नहीं होगा।


ईश्वर उसके साथ अन्याय न करेगा जो उसे सच्चे मन से खोजे

या उसके अनुरूप जीता है, उसकी गवाही देता है।

वो उसे शाप नहीं देता जो सचमुच सत्य का प्यासा है।


2

तुम्हें जानना चाहिए आत्मा से क्या आता है,

विद्रोह क्या है, ईश-वचनों का पालन कैसे करें,

अपनी विद्रोहशीलता से कैसे बचें।

अगर इन बातों को जान लोगे, तो तुम्हारे पास एक बुनियाद होगी।

जब कुछ होगा, तो तुलना के लिए तुम्हारे पास सत्य होगा,

उचित दर्शनों का आधार होगा, हर काम में तुम्हारे सिद्धांत होगा,

सत्य के अनुसार तुम चलोगे, प्रबुद्ध और आशीषित होगे ईश्वर द्वारा।


ईश्वर उसके साथ अन्याय न करेगा जो उसे सच्चे मन से खोजे

या उसके अनुरूप जीता है, उसकी गवाही देता है।

वो उसे शाप नहीं देता जो सचमुच सत्य का प्यासा है।


3

ईश-वचनों को खाते-पीते समय, अगर तुम अपनी असल स्थिति देखो

अपने अभ्यास और अपनी समझ पर ध्यान दो,

तो कोई समस्या आने पर, तुम प्रबुद्ध किए जाओगे,

समझ और विवेक पाओगे, अभ्यास का मार्ग पाओगे।


सत्य जिसके पास उसे धोखा देना संभव नहीं,

न वो बाधा डाले, न गलत काम करे।

वो सत्य के कारण सुरक्षित होता है, अधिक समझ, अभ्यास के मार्ग,

पवित्र आत्मा के काम और पूर्णता के अधिक मौके पाता है।


ईश्वर उसके साथ अन्याय न करेगा जो उसे सच्चे मन से खोजे

या उसके अनुरूप जीता है, उसकी गवाही देता है।

वो उसे शाप नहीं देता जो सचमुच सत्य का प्यासा है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं से रूपांतरित

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