519 सत्य को हासिल करना क्या है?

1 सत्य को प्राप्त करने का अर्थ है परमेश्वर द्वारा बोले जाने वाले हर वचन के माध्यम से परमेश्वर की इच्छा को समझना; इसका अर्थ है समझ लेने के बाद परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाना ताकि तुम परमेश्वर के वचनों को जिओ और वे तुम्हारी वास्तविकता बन जाएँ। तुम्हारे द्वारा परमेश्वर के वचन को पूरी तरह से समझ लिए जाने पर ही तुम वास्तव में सत्य को समझ सकते हो। परमेश्वर का वचन ही सत्य है। हालांकि, आवश्यक नहीं कि परमेश्वर के वचनों को पढ़ लेने के बाद इंसान सत्य को समझे और सत्य को प्राप्त करे। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के बाद यदि तुम सत्य को हासिल करने में असफल हो जाते हो, तो तुमने बस शब्दों और सिद्धांतों को हासिल किया है। तुम नहीं जानते कि सत्य को प्राप्त करने का अर्थ क्या है। तुम अपनी हथेलियों में परमेश्वर के वचनों को रख सकते हो, लेकिन उन्हें पढ़ने के बाद भी तुम परमेश्वर की इच्छा को समझने में विफल रहते हो, तुम केवल कुछ शब्दों और सिद्धांतों को ही प्राप्त करते हो।

2 सर्वप्रथम, तुम्हें पता होना चाहिए कि परमेश्वर के वचन समझने की दृष्टि से इतने सरल नहीं हैं; परमेश्वर के वचन में बहुत गहराई है। परमेश्वर के वचनों के एक वाक्य को ही पूरी तरह अनुभव करने में तुम्हारा पूरा जीवन-काल लग जाएगा। तुम परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हो, लेकिन परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हो; तुमने उसके वचनों के उद्देश्यों, उनके उद्गम, उस प्रभाव को नहीं समझा है जो वे प्राप्त करना चाहते हैं, या जो वे हासिल करना चाहते हैं। इसका अर्थ यह कैसे हो सकता है कि तुम सत्य समझते हो? संभवतः तुमने परमेश्वर के वचनों को कई बार पढ़ा हो और शायद तुमने इसके कई अंशों को कंठस्थ कर लिया हो, लेकिन तुम अभी भी बिलकुल बदले नहीं हो, न ही तुमने कोई प्रगति की है। परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध हमेशा की तरह दूरस्थ और विरक्त है। तुम्हारे और परमेश्वर के बीच, अभी भी रुकावटें हैं। तुम्हें अभी भी उस पर संदेह है। न केवल तुम परमेश्वर को समझते नहीं हो, बल्कि तुम उसे बहाने देते हो और उसके प्रति धारणाएँ पालते हो। तुम उसका विरोध करते हो और उसका तिरस्कार भी करते हो। इसका अर्थ यह कैसे हो सकता है कि तुमने सत्य प्राप्त कर लिया है?

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन से रूपांतरित

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