289 परमेश्वर मानवजाति की कठिनाइयों का अनुभव करता है
1 जब समुद्र मनुष्यों को पूर्णतः निगल लेता है, तो मैं उसे ठहरे हुए समुद्र से बचाता हूँ और नए सिरे से जीवन जीने का अवसर देता हूँ। जब मनुष्य जीवित रहने का आत्मविश्वास खो देते हैं, तो मैं उन्हें, जीने का साहस देते हुए, मृत्यु के कगार से खींच लाता हूँ, ताकि वे मुझे अपने अस्तित्व की नींव के रूप में इस्तेमाल करें। जब मनुष्य मेरी अवज्ञा करते हैं, मैं उन्हें उनकी अवज्ञा में अपने आप को ज्ञात करवाता हूँ। मानवजाति की पुरानी प्रकृति और मेरी दया के आलोक में, मनुष्यों को मृत्यु प्रदान करने के बजाय, मैं उन्हें पश्चात्ताप करने और नई शुरुआत करने देता हूँ। जब वे अकाल से पीड़ित होते हैं, भले ही उनके शरीर में एक भी साँस बची हो, उन्हें शैतान की प्रवंचना का शिकार बनने से बचाते हुए, मैं उन्हें मृत्यु से छुड़ा लेता हूँ।
2 कितनी ही बार लोगों ने मेरे हाथ को देखा है; कितनी ही बार उन्होंने मेरी दयालु मुखाकृति देखी है, मेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा देखा है; और कितनी ही बार उन्होंने मेरा प्रताप और मेरा कोप देखा है। यद्यपि मानवजाति ने मुझे कभी नहीं जाना है, फिर भी मैं जानबूझकर उत्तेजित होने के लिए उनकी कमजोरियों का लाभ नहीं उठाता हूँ। मानवजाति के कष्टों के अनुभव ने मुझे मनुष्यों की कमजोरियों के प्रति सहानुभूति रखने में सक्षम बनाया है। मैं केवल लोगों की अवज्ञा और उनकी कृतघ्नता की प्रतिक्रिया में ही विभिन्न मात्राओं में ताड़ना देता हूँ।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 14 से रूपांतरित