867 परमेश्वर है मनुष्य का अनंत सहारा

1

फिर जी उठा यीशु मगर, था इन्सान के साथ उसका काम और दिल।

अपने प्रकटन के ज़रिये उसने इन्सान को बताया

रूप चाहे हो जो भी, पर रहेगा वो उनके साथ ही।

वो चलेगा उनके साथ, रहेगा साथ वो हर जगह, हर समय,

करेगा आपूर्ति और चरवाही, देगा उन्हें खुद को देखने और छूने,

ताकि न हों असहाय वे फिर कभी, वे फिर कभी।

अपने पुनरुत्थान के बाद यीशु ने दिखाई

इन्सान के लिए परमेश्वर की आशा और चिंता,

और दिखाया कि परमेश्वर करता इन्सान की परवाह और उसे है संजोता।

यह तो है पहले जैसा, और कभी नहीं है बदला।


2

यीशु चाहता था कि लोग जानें कि नहीं हैं वे इस दुनिया में अकेले।

उनकी परवाह करता परमेश्वर, है वो उनके साथ में,

उस पर वे सदा आसरा रख सकते हैं।

अपने हर अनुयायी का वो परिवार है।

परमेश्वर के आसरे, इन्सान न कमज़ोर, न अकेला है।

जो उसे पाप-बलि के रूप में स्वीकार करते हैं।

वो पाप के बंधन में और न रहेंगे।


3

जी उठने के बाद इन्सान के वास्ते,

यीशु के काम देखने में लगते थे छोटे।

लेकिन परमेश्वर के लिए उनके अर्थ थे बड़े,

उनके मूल्य और महत्व भी थे बड़े।

परमेश्वर जो करता है आरम्भ, उसे खत्म भी वही करता है।

भिन्न चरण और योजनायें, दिखाते हैं उसकी बुद्धि,

वो दिखाते हैं उसके महान कर्म और सर्वसामर्थता उसकी,

और दिखाते हैं उसका प्रेम और दया भी।


4

परमेश्वर के काम में सबसे मुख्य है

कि वो इन्सान की बहुत परवाह करता है,

और उसके लिए सच में है वो चिंता से भरा।

ये हैं भावनाएं ऐसी जिन्हें वो अनदेखा नहीं कर सकता, कर सकता।

अपने पुनरुत्थान के बाद यीशु ने दिखाई

इन्सान के लिए परमेश्वर की आशा और चिंता,

और दिखाया कि परमेश्वर करता इन्सान की परवाह और उसे है संजोता।

यह तो है पहले जैसा, और कभी नहीं है बदला,

नहीं है बदला, नहीं है बदला, नहीं है बदला।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित

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