682 परमेश्वर मनुष्य को कई तरह से पूर्ण बनाता है

1

पवित्र आत्मा हर इंसान में एक राह पर चले,

सभी को पूर्ण बनाए जाने का मौका दे।

तुम्हारी नकारात्मकता से तुम्हें

दिखाई जाती तुम्हारी भ्रष्टता।

इससे बाहर निकलकर तुम्हें मिलेगा अभ्यास का पथ।

ये सभी हैं तरीके जिनसे तुम पूर्ण बनाए जाते।


तुममें हैं जो सकारात्मक चीज़ें, उनके मार्गदर्शन में,

तुम सक्रियता से अपना काम करोगे,

अंतर्दृष्टि और विवेक पाओगे।

अच्छे हालात में, तुम ईश्वर से प्रार्थना करने,

उसके वचन पढ़ने को बिल्कुल तैयार होते हो,

जो उपदेश सुनते हो उन्हें अपनी स्थिति से जोड़ते हो।


ऐसे समय में ईश्वर तुम्हें भीतर से प्रबुद्ध करे,

सकारात्मक चीज़ों का एहसास कराए।

इस तरह तुम पूर्ण किए जाते हो,

सकारात्मक पहलू में पूर्ण बनाए जाते हो।


2

नकारात्मक स्थितियों में तुम

दुर्बल और निष्क्रिय होते।

दिल में खोजते, पर ईश्वर को नहीं पाते,

फिर भी ईश्वर तुम्हें रोशन करे,

अभ्यास का पथ खोजने दे।

ये है नकारात्मक समय में पूर्णता पाना।

ईश्वर दोनों पहलुओं में इंसान को पूर्ण बना सके।


ये निर्भर करे इस पर कि

क्या तुम अनुभव कर सकते,

और क्या ईश्वर द्वारा पूर्ण

बनाए जाने का प्रयास करते।

अगर हाँ, तो नकारात्मकता तुम्हें

समझाए तुम्हारी असल स्थिति,

तुम्हारी कमी, लेकिन इससे तुम्हें नुकसान न हो।

तुम देख पाते इंसान के पास और खुद वो कुछ नहीं।


परीक्षा से अगर तुम नहीं गुजरते,

तो तुम सदा खुद को दूसरों से बेहतर समझोगे।

इस सबसे देखोगे पहले तुम जो कर सकते थे

वो ईश्वर ने किया था, उसी के द्वारा रक्षित था।


3

परीक्षा तुम्हें प्रेमहीन, आस्थाहीन कर देती।

प्रार्थना करने, भजन गाने की

तुम्हारी इच्छा नहीं रहती।

फिर अनजाने में ही,

इस सबके बीच तुम खुद को जान जाते।

इंसान को पूर्ण बनाने के

कई तरीके हैं ईश्वर के पास।

इंसान के भ्रष्ट स्वभाव से निपटने को

वो इस्तेमाल करे कई परिवेश,

कई चीज़ों से वो उजागर करे उसे।


यानी, एक ओर तो ईश्वर इंसान से निपटे,

दूसरी ओर उसका सच दिखाए,

तीसरी ओर उसे उजागर करे,

उसके भीतर के ऐसे 'राज़' निकाले,

जिनसे वो खुद अनजान था,

इंसान की सभी स्थितियाँ प्रकट कर

उसे उसकी प्रकृति दिखाए।


ईश्वर इंसान को कई तरीकों से पूर्ण करे,

उससे निपटकर, उसे उजागर करके,

उसका शोधन कर, उसे ताड़ना दे के,

ताकि इंसान जाने ईश्वर कितना व्यावहारिक है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं से रूपांतरित

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