681 परमेश्वर के परीक्षण और शुद्धिकरण मानव की पूर्णता के लिए हैं
1
परमेश्वर में यदि यक़ीं है तुम्हें, आज्ञा माननी चाहिए,
कर्तव्य पूरा और सच का अभ्यास करना चाहिए।
तुम्हें पता हो किन चीज़ों का अनुभव होना चाहिए।
यदि करते हो अनुभव, अनुशासन और न्याय का, ओ, ओ,
लेकिन ईश्वर करता है कब व्यवहार नहीं कह सकते
या अनुशासित कर रहा है, तो अस्वीकार्य है।
काफ़ी नहीं एक बार शुद्धिकरण में डटे रहना,
तुम्हें आगे बढ़ना चाहिए, बढ़ना चाहिए।
सुनो, बेअंत है ईश्वर के लिए प्रेम, वो, वो।
सुनो, इसकी कोई सीमा नहीं।
ईश्वर का कार्य जितना मनुष्य में अद्भुत होता है,
उतना ही मूल्यवान और सार्थक होता है।
यह तुम्हारे लिए जितना ज़्यादा अगम्य है
जितना ज़्यादा असंगत है तुम्हारी धारणाओं से,
कार्य ईश्वर का विजय पाता तुमपर उतना ही,
प्राप्त करता है, तुम्हें बनाता है परिपूर्ण।
2
जब ईश्वर शुद्ध करता है, मानव को कष्ट होता है,
ईश्वर के लिए प्रेम बढ़ता है, उसकी शक्ति दिखती है मानव में।
जब मानव का शुद्धिकरण कम होता है,
प्रेम उसका कम, उसमें परमेश्वर की शक्ति होगी कम, ओ, ओ।
लेकिन दर्द, यातना, शुद्धिकरण जितना ज़्यादा हो
वह उतना गहरा प्रेम करेगा परमेश्वर से,
ईश्वर में उसकी आस्था उतनी ही सच्ची होगी,
वह परमेश्वर को उतनी गहराई से जानेगा।
सुनो, बेअंत है ईश्वर के लिए प्रेम, वो, वो।
सुनो, इसकी कोई सीमा नहीं।
ईश्वर का कार्य जितना मनुष्य में अद्भुत होता है,
उतना ही मूल्यवान और सार्थक होता है।
यह तुम्हारे लिए जितना ज़्यादा अगम्य है
जितना ज़्यादा असंगत है तुम्हारी धारणाओं से,
कार्य ईश्वर का विजय पाता तुमपर उतना ही,
प्राप्त करता है, तुम्हें बनाता है परिपूर्ण।
3
सहते हैं जो अधिक शुद्धिकरण और अनुशासन,
बेहद प्रेम करें वे परमेश्वर से, जानें उसे गहराई से।
अनुशासित नहीं किये गए हैं जो कभी
उनके पास होगा सिर्फ़ सतही ज्ञान।
अनुशासन और व्यवहार के बाद,
लोग बोल सकते हैं सच्चा ज्ञान परमेश्वर का।
ईश्वर का कार्य जितना मनुष्य में अद्भुत है,
उतना ही मूल्यवान और सार्थक होता है।
यह तुम्हारे लिए जितना ज़्यादा अगम्य है
जितना ज़्यादा असंगत है तुम्हारी धारणाओं से,
कार्य ईश्वर का विजय पाता तुमपर उतना ही,
प्राप्त करता है, तुम्हें बनाता है परिपूर्ण।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा से रूपांतरित