683 परमेश्वर को उसके अनुग्रह का आनंद लेकर नहीं जाना सकता
इंसान ईश्वर के लिए दुख सह पाता है
इतनी दूर आ सका है, उसके प्रेम के कारण,
उसके उद्धार, न्याय के कारण,
इंसान में किए गए ताड़ना के काम के कारण।
1
अगर तुम रहित हो ईश्वर के न्याय से, उसकी ताड़ना, परीक्षण से,
अगर वो तुम लोगों को कष्ट न दे,
तो तुम उससे सच्चा प्रेम न कर पाओगे।
ईश्वर का काम इंसान में जितना बड़ा हो, जितना अधिक वो कष्ट सहे,
उतना अधिक ये दिखाये कि ईश-कार्य बहुत सार्थक है,
उतना अधिक इंसान प्रेम कर सके ईश्वर से।
ईश्वर से इंसान के प्रेम के दो आधार हैं : ईश्वर द्वारा शोधन और न्याय।
अगर तुम बस ईश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते,
शांति भरा जीवन जीते, संसार के आशीष पाते हो,
तो तुम्हारी आस्था सफल नहीं हुई, और तुमने नहीं पाया है ईश्वर को।
2
अब, इंसान समझे कि बस परमेश्वर की दया, अनुग्रह और प्रेम से
वो कभी खुद को न जान पाएगा,
कभी इंसान के सार को समझ या बूझ न पाएगा।
केवल ईश्वर द्वारा शोधन और न्याय से,
और शोधन की प्रक्रिया के दौरान ही, इंसान अपनी कमियाँ जान सके,
और जान पाये कि उसके पास कुछ नहीं।
ईश्वर से इंसान के प्रेम के दो आधार हैं : ईश्वर द्वारा शोधन और न्याय।
अगर तुम बस ईश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते,
शांति भरा जीवन जीते, संसार के आशीष पाते हो,
तो तुम्हारी आस्था सफल नहीं हुई, और तुमने नहीं पाया है ईश्वर को।
3
ईश्वर ने अनुग्रह के काम का एक चरण पूरा कर लिया,
वो इंसान पर आशीष पहले ही बरसा चुका।
पर इंसान को पूर्ण न बनाया जा सके, सिर्फ अनुग्रह, प्रेम और दया से।
जीवन में इंसान ने कुछ ईश-प्रेम पाया है।
वो ईश्वर का प्रेम और दया देखे।
पर, कुछ समय इसका अनुभव कर,
वो समझ जाये कि यह इंसान को पूर्ण न बना सके।
अनुग्रह और प्रेम भ्रष्टता को प्रकट या दूर न कर सकें।
ये इंसान के प्रेम और आस्था को पूर्ण न कर सकें।
ईश-अनुग्रह तो बस एक चरण का काम था;
अनुग्रह के भरोसे इंसान ईश्वर को न जान सके।
ईश्वर से इंसान के प्रेम के दो आधार हैं : ईश्वर द्वारा शोधन और न्याय।
अगर तुम बस ईश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते,
शांति भरा जीवन जीते, संसार के आशीष पाते हो,
तो तुम्हारी आस्था सफल नहीं हुई, और तुमने नहीं पाया है ईश्वर को।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो से रूपांतरित