1007 इंसान के अंत के लिए परमेश्वर की व्यवस्था
1
इंसान को बर्ताव से परखे इंसान:
अच्छा आचरण, धार्मिक इंसान; बुरा आचरण, दुष्ट इंसान।
अच्छे कर्मों से अच्छा भविष्य पाना चाहें कुछ इंसान।
अच्छी बातों से सुखद अंत चाहें कुछ इंसान।
वे गलत सोचते, ईश्वर बर्ताव देखकर,
या उनकी बातें सुनकर तय करे अंत उनका।
बहुत से लोग अच्छे कर्मों, या अच्छे शब्दों से,
अस्थायी सुख की खातिर, ईश्वर को छलने का प्रयास करते।
ईश्वर इंसान का न्याय करे उसके सार से,
इंसान ईश-आज्ञा मानता या नहीं, इससे।
ईश्वर के आगे झुके जो इंसान वो धार्मिक है, जो न झुके वो दुष्ट शत्रु है,
उसका आचरण अच्छा हो या बुरा, उसकी बोली सही हो या गलत।
ईश्वर इंसान का न्याय करे उसके सार से,
इंसान ईश-आज्ञा मानता या नहीं, इससे।
2
आगे जो विश्राम की स्थिति में जीवित रहेंगे
वो कष्ट सह चुके होंगे, ईश-गवाही दे चुके होंगे।
इन सबने अपने कर्तव्य पूरे कर लिए हैं,
समझ-बूझकर ईश-आज्ञा मानी है।
जो चाहें सेवा करना पर, न करें सत्य का अभ्यास वे रह नहीं पाएँगे।
हर एक के अंत के लिए उचित मानक हैं ईश्वर के पास,
जो आधारित नहीं इंसानी शब्द, बर्ताव या उसके काम पर।
कोई बच न सके अपनी दुष्टता की सज़ा से।
कोई दुष्कर्मों को छिपा न सके तबाही की पीड़ा से बचने के लिए।
3
दुष्ट अनंतकाल तक बच न सके, न वो विश्राम में प्रवेश कर सके।
धार्मिक ही है विश्राम का मालिक, वही प्रवेश कर सके।
इंसान जब सही राह पर आएगा, तो उसका जीवन सामान्य हो जाएगा।
वो अपने कर्तव्य निभाकर, ईश्वर का वफादार बन जाएगा।
वो अपनी अवज्ञा और भ्रष्ट स्वभाव का अंत कर देगा।
वो बिना विरोध, ईश्वर के लिए ही जिएगा।
वो ईश्वर के आगे झुक जायेगा, यही ईश्वर और इंसान का जीवन है।
यही राज्य का जीवन होगा, विश्राम और शांति का जीवन होगा।
ईश्वर इंसान का न्याय करे उसके सार से,
इंसान ईश-आज्ञा मानता या नहीं, इससे।
ईश्वर के आगे झुके जो इंसान वो धार्मिक है, जो न झुके वो दुष्ट शत्रु है,
उसका आचरण अच्छा हो या बुरा, उसकी बोली सही हो या गलत।
ईश्वर इंसान का न्याय करे उसके सार से,
इंसान ईश-आज्ञा मानता या नहीं, इससे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे से रूपांतरित