141 परमेश्वर के कार्य के हर चरण में उसका स्वभाव दिखता है
1
व्यवस्था के युग के दौरान,
इंसान का मार्गदर्शन होता था यहोवा के नाम से;
यहाँ से काम का पहला चरण शुरू हुआ।
इस चरण में काम था मंदिर और वेदी बनाना,
व्यवस्था के अनुसार इस्राएलियों को राह दिखाना
और उनके बीच काम करना।
उसका काम फैला इस्राएल के बाहर,
ताकि जो बाद में आए उन्होंने भी जाना
कि यहोवा ही स्वयं परमेश्वर है,
जिसने आकाश, पृथ्वी और सभी प्राणी बनाए।
ईश्वर ने इस्राएलियों के द्वारा फैलाया अपना काम,
फिर इसे बाहर फैलाया, इस्राएल से बाहर ले गया।
व्यवस्था के युग में यही ईश-कार्य था।
ईश्वर का सच्चा स्वभाव दिखता है
उस काम में जो वो करे हर युग में,
उसका नाम और काम दोनों ही बदलें,
नए हो जाएँ हरेक युग में।
2
अनुग्रह के युग के दौरान,
ईश्वर का नाम था यीशु।
ईश्वर उद्धार का ईश्वर था,
प्रेम और करुणा से भरा था।
इस चरण में ईश्वर इंसान के संग था,
उसकी करुणा, उसका प्रेम
और उद्धार सदा संग थे हर एक इंसान के।
यीशु की मौजूदगी
और उसका नाम स्वीकारने से ही
इंसान पा सकता था आनंद, शांति,
उसके आशीष, उद्धार और अनुग्रह कई।
यीशु के क्रूस चढ़ने से,
उसके सभी अनुयायियों को
मिला उद्धार और क्षमा हुए पाप उनके।
ईश्वर का सच्चा स्वभाव दिखता है
उस काम में जो वो करे हर युग में,
उसका नाम और काम दोनों ही बदलें,
नए हो जाएँ हरेक युग में।
3
अंत के दिनों में, उसका नाम है सर्वशक्तिमान—
सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जो अपने सामर्थ्य द्वारा
इंसान को राह दिखाये, जीते, प्राप्त करे।
और अंत में, युग को उसके अंत तक पहुंचाए।
हर युग में, हर चरण पे, ईश-स्वभाव स्पष्ट दिखे।
ईश्वर का सच्चा स्वभाव दिखता है
उस काम में जो वो करे हर युग में,
उसका नाम और काम दोनों ही बदलें,
नए हो जाएँ हरेक युग में।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) से रूपांतरित