140 परमेश्वर भिन्न-भिन्न युगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अलग-अलग नाम धरता है

1 प्रत्येक युग में परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है; वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है? वह पुराने से कैसे चिपका रह सकता है? क्या केवल एक नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? परमेश्वर को भिन्न युग में भिन्न नाम से ही बुलाया जाना चाहिए, और उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए उस नाम का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, और प्रत्येक नाम केवल एक दिए गए युग में परमेश्वर के स्वभाव के उस समय से संबंधित पहलू का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है; उसे केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व ही करना है।

2 समस्त युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए परमेश्वर ऐसे किसी भी नाम को चुन सकता है, जो उसके स्वभाव के अनुकूल हो। चाहे वह यहोवा का युग हो, या यीशु का, प्रत्येक युग का प्रतिनिधित्व एक नाम के द्वारा किया जाता है। अनुग्रह के युग के अंत में, अंतिम युग आ गया है, और यीशु पहले ही आ चुका है। उसे अभी भी यीशु कैसे कहा जा सकता है? वह अभी भी मनुष्यों के बीच यीशु का रूप कैसे धर सकता है? क्या तुम भूल गए हो कि यीशु केवल मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाला था? वह अंत के दिनों में मनुष्य को जीतने और पूर्ण करने का कार्य हाथ में कैसे ले सकता था?

3 अंत के दिनों में, मनुष्य इस हद तक चरित्रहीनता में डूब गया है कि इस चरण का कार्य केवल न्याय और ताड़ना के माध्यम से ही किया जा सकता है। केवल इसी तरह से कार्य संपन्न किया जा सकता है। यह कई युगों का कार्य रहा है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर युग को युग से विभाजित करने और उनके बीच संक्रमण करने के लिए अपने नाम, अपने कार्य और परमेश्वर की विभिन्न छवियों का उपयोग करता है; परमेश्वर का नाम और उसका कार्य उसके युग का प्रतिनिधित्व करते हैं और प्रत्येक युग में उसके कार्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। हर युग में परमेश्वर जो कार्य करता है, उसे जिस नाम से बुलाया जाता है, और जिस छवि को वह अपनाता है—और हर चरण में आज तक जो भी कार्य वह करता है—वे किसी एक विनियम का पालन नहीं करते, और किसी भी तरह की बाध्यता के अधीन नहीं हैं।

4 वह यहोवा है, किंतु वह यीशु भी है, और साथ ही मसीहा भी, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी। उसके नाम में अनुरूपी परिवर्तनों के साथ उसका कार्य क्रमिक रूपांतरण से गुज़र सकता है। कोई अकेला नाम पूरी तरह से उसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, किंतु वे सभी नाम जिनसे उसे बुलाया जाता है, उसका प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हैं, और जो कार्य वह हर युग में करता है, वह उसके स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) से रूपांतरित

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