698 जीवन प्राप्त करने के लिए न्याय स्वीकारो

1

ईश्वर के वचन हमारे दिल पर लगते हैं,

हमें उदास करते, डर से भर देते हैं।

वो उजागर करे हमारी धारणाओं, कल्पनाओं,

और हमारे भ्रष्ट स्वभाव को।

हम जो कहते, करते, उससे लेकर

हमारे हर विचार और भाव तक

वो अपने वचनों से हमारी प्रकृति उजागर करके

हमें भय की स्थिति में डाल देता है;

हम कांप जाते हैं, मुँह दिखाने लायक नहीं रहते।


वो दिखाए हमें हमारे काम और इरादे,

हमारी भ्रष्टता, जिसे हम खुद नहीं जानते,

हमें लगे, हमारी अपूर्णताएँ उजागर हो गईं,

जीत लिया गया महसूस कराए।

उसका विरोध करने के कारण वो हमारा न्याय करे,

उसकी निंदा और तिरस्कार करने के कारण ताड़ना पाते।

हमें लगे उसकी नज़रों में हममें

एक भी लक्षण अच्छा नहीं है,

लगे कि हम इंसानी रूप में शैतान हैं।


ईश्वर के न्याय से, हम महसूस करते उसके मान को,

इंसान के अपराधों के प्रति असहिष्णुता को,

जिसकी तुलना में हम बहुत नीच और अशुद्ध हैं।

उसके न्याय और ताड़ना के कारण,

हमें अब अपने अहंकार का एहसास होता है,

हम देख पाते कि कैसे इंसान

कभी ईश्वर के बराबर न होगा।


2

उसके न्याय और ताड़ना के कारण

हम तड़पते हैं अपना भ्रष्ट स्वभाव त्यागने को,

जल्द से जल्द इस प्रकृति से छुटकारा पाने को,

और उसे हम दुष्ट और घिनौने न लगें।

उन्होंने हमें ईश-वचनों के पालन को मना लिया है;

उसके आयोजनों का अब विरोध न करेंगे।

उसकी ताड़ना और न्याय

हमें जीने की इच्छा भी प्रदान करते हैं।

हम खुशी-खुशी उसे उद्धारक स्वीकारते हैं...।


हम तो हैं बस आम लोग,

जिनके स्वभाव बहुत भ्रष्ट हैं,

जिन्हें ईश्वर ने युगों पहले नियत किया था;

घूरे से उठाया है उसने हमें।

हम कभी ईश्वर की निंदा करते थे,

अब वो हमें जीतता है।

उसने हमें अनंत जीवन का मार्ग दिया है।

हम कहीं भी जाएँ, कितना भी सहें,

हम सर्वशक्तिमान ईश्वर के उद्धार के बिना

नहीं रह सकते,

क्योंकि वो हमारा सृष्टिकर्ता, एकमात्र छुटकारा है!


ईश-प्रेम फैलता और दिया जाता है तुम्हें,

मुझे और सभी सत्य-शोधकों को,

धैर्य से ईश-प्रकटन की प्रतीक्षा करने वालों को।

जैसे चाँद करे सूरज का अनुसरण,

वैसे ही ईश्वर उन पर काम करता रहेगा

जो उसका अनुसरण करते, उसका न्याय स्वीकारते।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 4: परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना से रूपांतरित

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