प्रश्न 3: बाइबल कहती है, "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। हम इसकी व्याख्या कैसे करें?

उत्तर: हमें प्रभु की वापसी की आशा, उनकी भविष्यवाणियों के आधार पर करनी चाहिए। यही सही तरीका है। आप दरअसल, किनका हवाला दे रहीं हैं? प्रभु के वचनों का या इंसानों के वचनों का? "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें;" ये बात किसने कही? क्या ये प्रभु यीशु के वचन हैं? प्रभु यीशु ने, ऐसी बात कभी नहीं कही। न ही पवित्र आत्मा ने कभी ऐसा कहा। आप जिन वचनों का हवाला दे रहीं हैं, वे पौलुस के वचन हैं। क्या पौलुस के वचन प्रभु यीशु के वचनों को दर्शाते हैं? क्या वे परमेश्वर का, प्रतिनिधित्व कर सकते हैं? इस रहस्य का जवाब सिर्फ परमेश्वर जानते हैं। अगर हम भ्रष्ट इंसान आँख मूँदकर इस तरह व्याख्या और परखने का साहस करेंगे तो फिर यह समस्या गंभीर है। पौलुस मसीह नहीं था। वह सिर्फ एक सामान्य भ्रष्ट व्यक्ति था। उसका लेखन इंसानी विचारों और कल्पनाओं से भरा हुआ है। चूँकि उसके वचन सत्य नहीं हैं, इसलिए हम सबूत के तौर पर, उनका उपयोग नहीं कर सकते। सारे सबूत बाइबल में परमेश्वर के वचनों पर आधारित होने चाहिए। वो सत्य के अनुरूप है। बाइबल में लोगों के अनुसार आरोहण और, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की जांच करना गलत है, खास तौर से प्रभु यीशु के वचनों के आधार पर न करके पौलुस के वचनों के, आधार पर करना केवल प्रभु यीशु के वचन ही सत्य हैं; सिर्फ उनके वचनों में अधिकार है। केवल प्रभु यीशु मसीह हैं, स्वर्गीय राज्य के सम्राट। आप प्रभु यीशु के वचनों में सत्य और परमेश्वर की इच्छा की खोज क्यों नहीं करतीं? उसके बजाय आप अपनी खोज का आधार इंसान के वचनों को क्यों बनातीं हैं? क्या यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है? इससे आपका झुकाव इंसान का अनुसरण करने और अपने खुद के, रास्ते पर चलने की ओर होने लगता है। परमेश्वर ने इंसान को धरती पर मिट्टी से बनाया है। उन्होंने इंसान को धरती पर बाकी सभी, सृजित जीवों के प्रबंधन का दायित्व सौंपा है। वे चाहते थे की इंसान धरती पर उनकी आज्ञा माने, उनकी आराधना और सम्मान करे, और यह अधिदेश दिया कि उनका गंतव्य, धरती पर है, न कि स्वर्ग में। परमेश्वर ने हमें बहुत पहले ही बता दिया था, कि वे अपना राज्य धरती पर स्थापित करेंगे। वे हम इंसानों के साथ धरती पर रहेंगे और, धरती के राज्य मसीह द्वारा शासित राज्यों में बदल दिए जाएंगे।। आखिरकार, परमेश्वर का राज्य धरती पर स्थापित होगा, न कि स्वर्ग में। ऐसे बहुत से लोग हैं जो चाहते हैं कि उन्हें स्वर्ग में उन्नत किया जाए। ऐसे लोगों की अपनी मान्यताएँ और कल्पनाएँ हैं, ख़्याली इच्छाएँ हैं। ये बातें परमेश्वर के, कार्य की सच्चाई से बिल्कुल मेल नहीं खाती।

"स्वप्न से जागृति" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 2: हम लोग अभी तक तय नहीं कर पाए हैं कि परमेश्वर का राज्य धरती पर है या स्वर्ग में। प्रभु यीशु ने "स्वर्ग का राज्य पास में हैं" और "स्वर्ग का राज्य आता है" के बारे में बात की थी। अगर यह "स्वर्ग का राज्य," है तो यह स्वर्ग में होना चाहिये। यह धरती पर कैसे हो सकता है?

अगला: प्रश्न 4: आपकी बातों से मुझे एक बात समझ में आई है कि प्रभु की वापसी और आरोहण की हमारी उम्मीदें वाकई इंसानी मान्यताओं और कल्पनाओं की देन हैं। हम पहले ही प्रभु के वचनों को धोखा दे चुके हैं। ख़ैर, अब हम प्रभु की वापसी और आरोहण का इंतज़ार कैसे करें? इस पर थोड़ा और विस्तार से चर्चा कर लें?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

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