466 परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है कि इंसान उसकी बात सुने और माने
1
जबसे परमेश्वर ने कई साल पहले बनाया इस दुनिया को,
तबसे किया है बहुत काम उसने इस धरती पर,
मानवता के सबसे बुरे तिरस्कार को सहा है, सही हैं उसने झूठी निंदा।
किसी ने भी पृथ्वी पर परमेश्वर के आगमन का स्वागत नहीं किया।
सबने उसे अनादर के साथ ठुकरा दिया।
उसने सहीं हैं हज़ारों सालों की कठिनाइयां।
मनुष्य के आचरण ने बहुत पहले तोड़ दिया उसका दिल।
मनुष्य के विद्रोह पर वो अब ध्यान देता नहीं,
बल्कि उन्हें बदलने और शुद्ध करने की योजना है उसकी।
2
देहधारी परमेश्वर ने सहा है काफ़ी उपहास,
किया है अनुभव बहिष्कार और सूली पर चढ़ने का।
सहा है उसने मनुष्य की दुनिया के सबसे बुरे दुखों को।
स्वर्ग में पिता सह न पाए इसे।
उसने झटका पीछे अपना सिर, बंद कर ली अपनी आँखें,
अपने प्रिय पुत्र की वापसी का इंतज़ार करने के लिए।
परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है इंसान सुने और माने उसकी बात।
उसकी देह के सामने हो शर्मसार और विद्रोह न करे।
उसकी है यही एकमात्र इच्छा आज सभी लोगों से,
वे करें बस विश्वास कि है परमेश्वर का अस्तित्व।
3
परमेश्वर ने बहुत पहले मनुष्य से मांगना छोड़ दिया।
जो कीमत उसने चुकाई, वो है पहले ही बहुत अधिक।
फिर भी मनुष्य करता है आराम,
मानो देख पाता नहीं वो परमेश्वर के कार्य को।
परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है इंसान सुने और माने उसकी बात।
उसकी देह के सामने हो शर्मसार और विद्रोह न करे।
उसकी है यही एकमात्र इच्छा आज सभी लोगों से,
वे करें बस विश्वास कि है परमेश्वर का अस्तित्व।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (4) से रूपांतरित