155 तुम्हारी रोशनी में आता है हर देश
सिसकते इंसान को दुलारने की ख़ातिर
अपने आगोश में ले लेते हो तुम,
अपनी मज़बूत और फ़िक्रमंद बाहें फैला देते हो तुम,
और चमक रही हैं तेजस्वी आँखें तुम्हारी!
कसकर थामता है हमें तुम्हारा प्रेम, करुणा तुम्हारी,
और प्रकट होती है मुखाकृति महिमामय तुम्हारी।
लम्बे समय से भ्रष्ट संसार में,
अब रोशनी की किरणें हैं तुम्हारी, तुम्हारी।
पतित और पापी दुनिया हमारी मर रही है,
फिर से उद्धारक को आने के लिये पुकार रही है।
तुम हर इंसान के लिये उम्मीद लाते हो,
और दो हज़ार साल के इंतज़ार का अंत लाते हो, लाते हो!
आते हैं सभी देश तुम्हारी रोशनी में,
होंगे आज़ाद दुष्ट की अधीनता से।
होंगे आज़ाद हमेशा के लिये हम अंधेरों से।
होंगे आज़ाद पुकारने को
"होता रहे गुणगान तुम्हारे नाम का अनंतकाल तक!"