484 परमेश्वर में सच्चा विश्वास उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव है

1

ईश-वचनों के व्यावहारिक अनुभव से ही

इंसान को मिले सत्य और ज़िंदगी।

केवल इससे ही इंसान समझ सके

सामान्य मानवता क्या है।

इससे ही इंसान समझ सके क्या है सार्थक जीवन,

क्या है सच्चा सृजित प्राणी होना,

ईश्वर की आज्ञा मानना,

कैसे उसे ईश्वर की परवाह करनी चाहिए,

कैसे सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना

और कैसे एक असली इंसान बनना चाहिए।


2

ईश-वचनों के व्यावहारिक अनुभव से ही

सच्ची आस्था और आराधना समझी जा सके।

इससे ही इंसान जाने कौन है शासक

स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों का।

इससे ही इंसान समझे कि सभी चीज़ों का मालिक

कैसे सब पर शासन करे,

कैसे अपनी सृष्टि की अगुआई करे, पोषण दे।

इससे ही इंसान देखे कि कैसे वो अस्तित्व में रहे,

कैसे वो खुद को अभिव्यक्त करे, काम करे।


ईश-वचनों के असल अनुभव के बिना

इंसान को उनका और सत्य का ज्ञान नहीं होता है।


3

ऐसा इंसान बस जिंदा लाश है, बस एक ढांचा है,

उसे सृष्टिकर्ता का कोई ज्ञान नहीं।

ईश्वर की नज़रों में, ऐसे इंसान ने

उस पर कभी विश्वास नहीं किया,

उसने कभी उसका अनुसरण नहीं किया है।

ईश्वर न समझे उसे अनुयायी, न समझे उसे विश्वासी,

न समझे उसे एक सच्चा सृजित प्राणी।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, प्रस्तावना से रूपांतरित

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