485 परमेश्वर के कार्य का अनुभव उसके वचनों से अविभाज्य है
1
चाहे जिस भी चरण में पहुंचे हो तुम,
तुम सत्य और ईश-वचन से अलग नहीं हो सकते।
तुम ईश-स्वभाव के बारे में जो जानते,
उसके स्वरूप के बारे में जो जानते,
वे सब व्यक्त होते उसके वचनों में।
वे जुड़े हैं सत्य से करीब से।
2
ईश्वर का स्वभाव और उसका स्वरूप
सत्य हैं, सत्य है असल अभिव्यक्ति
ईश्वर के स्वभाव की, उसके स्वरूप की।
ये उसके स्वरूप को ठोस बनाए।
ये उसके स्वरूप का स्पष्ट वक्तव्य है।
ये बताए तुम्हें ईश्वर की पसंद-नापसंद,
वो तुमसे क्या करवाना चाहता,
किसकी अनुमति नहीं देता,
किससे घृणा करता, किससे वो प्रसन्न होता।
चाहे जिस भी चरण में पहुंचे हो तुम,
तुम सत्य और ईश-वचन से अलग नहीं हो सकते।
तुम ईश-स्वभाव के बारे में जो जानते,
उसके स्वरूप के बारे में जो जानते,
वे सब व्यक्त होते उसके वचनों में।
वे जुड़े हैं सत्य से करीब से।
3
ईश्वर द्वारा व्यक्त सत्य के पीछे,
इंसान देख सके उसकी खुशी, क्रोध, दुख, आनंद;
इंसान उसका सच्चा सार भी देख सके।
ये उसका, ये उसका असली स्वभाव प्रकट करे।
ईश-वचनों द्वारा ईश्वर को जानने के अलावा,
सबसे जरूरी है अपने असल जीवन से
ईश्वर को समझना और जानना।
अनुभव किए बिना तुम उसे नहीं जान सकते।
कुछ लोग ईश-वचनों से ज्ञान पा सकते,
पर उनका ज्ञान होता बस सिद्धान्त और शब्द,
वो उससे अलग होता, जो ईश्वर वास्तव में है।
चाहे जिस भी चरण में पहुंचे हो तुम,
तुम सत्य और ईश-वचन से अलग नहीं हो सकते।
तुम ईश-स्वभाव के बारे में जो जानते,
उसके स्वरूप के बारे में जो जानते,
वे सब व्यक्त होते उसके वचनों में।
वे जुड़े हैं सत्य से करीब से।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित