226 परमेश्वर के विश्वासियों को क्या खोजना चाहिये
1 मैंने कई सालों तक प्रभु में विश्वास रखा, मैंने अक्सर सुसमाचार का प्रसार किया, लेकिन मैं फिर भी परमेश्वर के लिए गवाही देने में असमर्थ था। मैं केवल उसकी कृपा का आनंद लेने की गवाही की बात कर सकता था, मगर मैं यह नहीं कह सकता था मुझे उसकी वास्तविक समझ है। लेकिन मैं फिर भी चाहता था कि जब प्रभु लौटकर आए तो मैं स्वर्ग के राज्य में आरोहित किया जाऊँ। यह कितना हास्यास्पद था! मसीह के सिंहासन के समक्ष न्याय का अनुभव करते हुए, मुझे बहुत पश्चाताप और शर्मिंदगी हुई। मुझे यह ही समझ में नहीं आया था कि परमेश्वर में विश्वास रखकर क्या हासिल करना है। मैंने काम तो जोश से किया लेकिन मैंने परमेश्वर के दिल का विचार नहीं किया। मैं पौलुस की तरह था, दिलो-जान से पुरस्कार और मुकुट हासिल करना चाहता है। मैंने इतने वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखा, लेकिन फिर भी मेरे स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया, इस बात की मुझे बेहद शर्मिंदगी है। आखिरकार परमेश्वर द्वारा इंसान का उद्धार इसलिए है ताकि हम जीवन पाएँ।
2 परमेश्वर के न्याय ने मुझे परमेश्वर के प्रेम और आशीष को देखने योग्य बनाया है। परमेश्वर के वचनों ने मेरे शैतानी स्वभाव को प्रकट किया है, और मेरे अभिमानी स्वभाव का निपटारा किया है। अंतत: मैंने देख लिया कि मैं बेहद भ्रष्ट हूँ, मेरे अंदर इंसानियत लेशमात्र को भी नहीं है। जब मैं अपने कर्तव्य का निर्वाह करता हूँ, तो परमेश्वर के प्रति सच्चे प्रेम के बिना, लापरवाही से काम करता हूँ। मैं परमेश्वर की गवाही और उसके प्रेम का प्रतिदान देना चाहता हूँ लेकिन मैं शक्तिहीन हूँ। अगर मैंने अभी भी सत्य का अनुसरण करने के लिए कड़ी मेहनत न करूँ, तो मेरा जीवन परमेश्वर को अपमानित करेगा। मैं संकल्प लेता हूँ, मैं तब तक विश्राम नहीं करूँगा जब तक कि मैं सत्य को प्राप्त न कर लूँ। सत्य को पाने के लिए, चाहे मुझे कितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े, मैं कभी हार नहीं मानूँगा, मैं कभी हार नहीं मानूँगा।