143 क्या सर्जित प्राणी परमेश्वर के नाम का निर्धारण कर सकते हैं?
1 परमेश्वर के कई नाम हैं, किंतु ये कई नाम परमेश्वर के स्वभाव को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर सकते, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव इतना समृद्ध है कि वह बस मनुष्य के जानने की सीमा से बढ़कर है। मनुष्य की भाषा का उपयोग करके परमेश्वर को पूरी तरह से समाहित करने का मनुष्य के पास कोई तरीका नहीं है। मनुष्य परमेश्वर के स्वभाव के बारे में जो कुछ जानता है, उस सबको समाहित करने के लिए उसके पास सीमित शब्दावली है। किसी एक विशेष शब्द या नाम में परमेश्वर का उसकी समग्रता में प्रतिनिधित्व करने की क्षमता नहीं है, तो क्या तुमको लगता है कि उसका नाम नियत किया जा सकता है? परमेश्वर इतना महान और इतना पवित्र है, फिर भी तुम उसे हर नए युग में अपना नाम नहीं बदलने दोगे?
2 हर युग में, जिसमें परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है, वह उस कार्य को समाहित करने के लिए, जिसे करने का वह इरादा रखता है, एक ऐसे नाम का उपयोग करता है, जो उस युग के अनुकूल होता है। वह अस्थायी महत्व वाले इस विशेष नाम का उपयोग उस युग के अपने स्वभाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए करता है। यह परमेश्वर अपने स्वभाव को व्यक्त करने के लिए मनुष्य की भाषा का उपयोग करता है। एक दिन आएगा, जब परमेश्वर यहोवा, यीशु या मसीहा नहीं कहलाएगा—वह केवल सृष्टिकर्ता होगा। उस समय वे सभी नाम, जो उसने पृथ्वी पर धारण किए हैं, समाप्त हो जाएँगे, क्योंकि पृथ्वी पर उसका कार्य समाप्त हो गया होगा, जिसके बाद उसका कोई नाम नहीं होगा।
3 जब सभी चीजें सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन आती हैं, तो उसे किसी अत्यधिक उपयुक्त फिर भी अपूर्ण नाम की क्या आवश्यकता है? क्या तुम अभी भी परमेश्वर के नाम की तलाश कर रहे हो? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यहोवा ही कहा जा सकता है? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है? क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा का पाप सहन करने में समर्थ हो? तुम्हें पता होना चाहिए कि मूल रूप से परमेश्वर का कोई नाम नहीं था। उसने केवल एक या दो या कई नाम धारण किए, क्योंकि उसके पास करने के लिए कार्य था और उसे मानवजाति का प्रबंधन करना था। चाहे उसे किसी भी नाम से बुलाया जाए—क्या उसने स्वयं उसे स्वतंत्र रूप से नहीं चुना? क्या इसे तय करने के लिए उसे तुम्हारी—एक प्राणी की—आवश्यकता होगी?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) से रूपांतरित