प्रश्न 14: परमेश्वर में अपनी आस्था को लेकर सबके अपने विचार और राय हैं। मुझे ऐसा लगता है कि आपके विचार और सिद्धांत आपकी अपनी समझ के अनुसार हैं, और ये सब सिर्फ भ्रम हैं। हम साम्यवादियों को यकीन है भौतिकवाद और विकासवाद के सिद्धांत ही सत्य हैं क्योंकि वे, विज्ञान के मुताबिक़ हैं। हमारा देश, प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक उपयुक्त शिक्षा देता है। ऐसा किसलिए? इसलिए कि सभी बच्चों में छोटी उम्र से ही, नास्तिकता और विकासवाद, की सोच घर कर जाए, ताकि वे धर्म और अंधविश्वास से, दूर रहें, ताकि वे हर सवाल का तर्कसंगत जवाब दे सकें। उदहारण के लिए, जीवन के उद्भव को ले लें। पहले के वक्त में, हम अनजान थे, और किस्से-कहानियों में, यकीन करते थे, जैसे कि स्वर्ग और पृथ्वी का अलग होना और नुवा द्वारा इंसान को बनाया जाना। पश्चिमी लोग विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने हम सबकी रचना की। दरअसल, ये सब मिथक और किस्से हैं, और विज्ञान के मुताबिक़ नहीं हैं। विकासवाद के, सिद्धांत के आने के बाद से जिसने मानवजाति के उद्भव के बारे में समझाया था, कि किस तरह, मनुष्य बंदरों से विकसित हुए, तब से, परमेश्वर द्वारा मनुष्य की रचना की कहानियाँ पूरी तरह निराधार साबित हो गयी हैं। हर चीज़ का विकास पूरी तरह से प्रकृति में हुआ है। यही सत्य है। इसलिए, हमें विज्ञान में विश्वास करना होगा और विकासवाद में। आप सभी लोग पढ़े-लिखे जानकार लोग हैं। आप परमेश्वर में कैसे विश्वास कर सकते हैं? क्या आप अपने विचार हमसे साझा कर सकेंगे?
उत्तर: कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य, भौतिकवाद और विकासवाद में विश्वास करते हैं, आप मार्क्स और डारविन का आदर करते हैं। तो ऐसा क्यों है, कि दुनिया में पहले से बहुत कम लोग, भौतिकवाद और विकासवाद में विश्वास करते हैं? मानवजाति में, परमेश्वर में विश्वास करनेवाले लोग बहुतायत में हैं। जो लोग परमेश्वर पर सच्चा विश्वास करते हैं, वो विकासवाद पर विश्वास नहीं रखतें। अविश्वासियों में भी, ऐसे लोग ज़्यादा नहीं हैं, जो विकासवाद को, मानते हैं। क्या आजकल, लोग डारविन में विश्वास करते हैं? क्या ऐसे लोग हैं, जो विकासवाद को सत्य मानते हैं? शायद उतने नहीं जितने कि आप सोचते हैं। क्या मैं पूछ सकता हूँ: क्या विकासवाद में विश्वास करनेवाले, सभी लोग यह मानते हैं कि बंदर उनके पूर्वज हैं? पूर्वजों के लिए किये गए क्रियाकर्म में, क्या वे बंदरों को सम्म्मानित करते हैं? अगर वे बंदरों को सम्मानित नहीं करते, मगर दोहराते रहते हैं कि विकासवाद सत्य है, तो वे जो शिक्षा देते हैं, उसका पालन नहीं करते। आप विज्ञान की आराधना करते हैं, हर चीज़ को विज्ञान पर आधारित करते हैं, और हर चीज़ को, समझाने के लिए विज्ञान का उपयोग करते हैं। क्या मैं पूछ सकता हूँ: क्या विज्ञान सत्य है? विज्ञान का उद्भव आखिर हुआ कैसे? बहुत-से वैज्ञानिक सिद्धांत, जो प्रकाशित होते हैं, उनका बाद में, दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा खंडन क्यों किया जाता है? क्या आप यह कहने की, हिम्मत कर सकते हैं कि विज्ञान सत्य है? मैं आपसे पूछता हूँ: क्या विज्ञान हमें, भ्रष्ट चाल-चलन से बचा सकता है? क्या विज्ञान मानवजाति को, शैतान की ताकत से बचा सकता है? क्या विज्ञान, लोगों को पाप करना छोड़कर, एक सार्थक जीवन जीने में मदद कर सकता है? क्या विज्ञान दुनिया में अमन कायम कर सकता है? क्या विज्ञान हमारे लिए खुशियाँ, और एक शानदार मंजिल, ला सकता है? क्या विज्ञान हमें सुरक्षा और खुशी दिला सकता है? क्या विज्ञान मानवजाति के विकास और उसकी मंजिल की भविष्यवाणी कर सकता है? विज्ञान इनमें से, कोई भी काम नहीं कर सकता। आप कैसे कह सकते हैं कि विज्ञान सत्य है? अंत में, सत्य क्या है? क्या आप पक्के तौर पर बता सकते हैं?
क्योंकि आप विज्ञान को इतना ऊंचा स्थान देते हैं, और उसकी काफी इज़्ज़त करते हैं, क्या आप हमें समझा सकेंगे कि विज्ञान वास्तव में है क्या? विज्ञान सिर्फ कुछ ऐसे सिद्धांत हैं, जो महज़ ज्ञान के दायरे में होते हैं, जिनका अनुसंधान भ्रष्ट इंसानों ने तब किया, जब उन्हें परमेश्वर की बनायी दुनिया का सामना करना पड़ा। यह पूरी तरह से इंसान के दिमाग की उपज है। भ्रष्ट इंसानों के पास सत्य नहीं होता। विज्ञान इंसानों से आता है। आप कैसे समझा सकते हैं कि वैज्ञानिक जानकारी सत्य है? सत्य सिर्फ परमेश्वर से आ सकता है। परमेश्वर ही, सृजनकर्ता हैं। सिर्फ सृजनकर्ता द्वारा व्यक्त वचन ही सत्य हैं। परमेश्वर ने प्रकट होने के बाद से बहुत-से कार्य किये हैं और वचन बोले हैं, तभी से इंसान ने उनके वचनों को अनुभव किया है। उन्होंने पहचान लिया है कि सिर्फ परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं; ये न बदलनेवाले तथ्य हैं। व्यवस्था के युग में, परमेश्वर ने बहुत-सी चीज़ों की घोषणा की, परमेश्वर की व्यवस्थाओं का पालन करने के लिए मनुष्यों की अगुवाई की, जिससे वे परमेश्वर की देखभालवाली सुरक्षा और उनका आशीर्वाद पा सकें। जिन लोगों ने व्यवस्थाओं को तोड़ा, उन्हें दोषी करार देकर श्राप दिया गया। अनुग्रह के युग में, मानवजाति के पापों के लिए प्रभु यीशु को, सूली पर चढ़ाया गया, और उन्होंने मानवजाति को छुटकारा दिलाया। उनमें विश्वास करने से, लोगों के पाप माफ़ कर दिये गए, और वे परमेश्वर के अनुग्रह और आशीर्वाद का आनंद ले सके। राज्य के युग के आगमन से, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने प्रकट होकर, लोगों के साथ न्याय करने और उन्हें बचाने के लिए सत्य व्यक्त करके कार्य किया है, लोगों को पूरी तरह से शैतान की ताकतों से बचाया है, लोगों को परमेश्वर की शरण में लाकर,परमेश्वर का आशीर्वाद दिलाया है, और उन्हें एक शानदार मंज़िल से नवाज़ा है। परमेश्वर के कार्य के तथ्य यह साबित करने के लिए काफी हैं, कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, और वे लोगों को जो दिलाते हैं, वो हैं, प्रकाश, आशीर्वाद और उद्धार। हज़ारों सालों से, परमेश्वर ने लोगों की अगुवाई के लिए, और आज हम जहां हैं, वहां का रास्ता दिखाने के लिए वचनों का उपयोग किया है। परमेश्वर सब-कुछ संपन्न करने के लिए वचनों का उपयोग करते हैं, परमेश्वर का प्रत्येक वचन सच साबित हो रहा है। ये ऐसे तथ्य हैं जिनको कोई भी देख सकता है। प्रभु यीशु ने कहा था: "क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या एक बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा" (मत्ती 5:18)। "आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी" (मत्ती 24:35)। अंत के दिन आ चुके हैं, और बहुत-से ईसाइयों ने देखा है कि प्रभु यीशु की भविष्यवाणियाँ, सच हो गयी हैं। इससे यह पता चलता है कि, सिर्फ परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं, और ये सकारात्मक बातें हैं। ये ऐसे तथ्य हैं, जिनको कोई नकार नहीं सकता। सिर्फ परमेश्वर ही, मानवजाति को बचा सकते हैं। सिर्फ परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं, और इंसान की ज़िंदगी हो सकते हैं। विज्ञान सत्य नहीं है। विज्ञान तरक्की कर रहा है, लेकिन उसने दरअसल क्या हासिल किया है? बाहर से, ऐसा लगता है कि विज्ञान सकारात्मक नतीजे लाया है। लगता है कि जीवन-स्तर ऊपर उठा है और समाज फल-फूल रहा है। जबकि असलियत में, विज्ञान ने आस्था का संकट खड़ा कर दिया है, क्योंकि हम, परमेश्वर से दूर होकर, उन्हें नकारते और धोखा देते हैं। लोगों के विज्ञान में विश्वास की वजह से, बहुत-से लोग परमेश्वर को नहीं खोजते। बल्कि वे भौतिक सुखों को खोजते हैं। इन रुझानों के पीछे भागने के कारण, इन्सान के नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है, वे और भी ज़्यादा दुष्ट हो गये हैं। लोगों की आत्माएं कहीं ज़्यादा खोखली हो गयी हैं। लोग उत्तेजना तलाशते हैं, और हवस के पीछे भागते हैं। नशे की लत और, खुदकुशी के मामले बढ़ गये हैं। ये आज की सच्चाई है। जिस दौरान हमने विज्ञान का विकास किया, हमने अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया, हवा, पानी, मिट्टी और यहाँ तक कि भोजन को भी दूषित कर दिया है। इससे हमें बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचा है। बहुत-से देश हथियारों की दौड़ में, ज़्यादा आधुनिक हथियार बनाने के लिए दिमाग के घोड़े दौड़ा रहे हैं। विज्ञान ने परमाणु हथियार और गाइडेड मिसाइलें बनाकर, हम सबके लिये तबाही का खतरा पैदा कर दिया है। अगर तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया, तो यह मानवजाति को तबाह कर देगा। आप कह सकते हैं जब विज्ञान अपने चरम पर पहुंचेगा तब मानवजाति का अंत हो जाएगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सुनें। शायद आप समझ सकें विज्ञान मानवजाति के लिए वरदान लाया है या तबाही।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मानवजाति द्वारा सामाजिक विज्ञानों के आविष्कार के बाद से मनुष्य का मन विज्ञान और ज्ञान से भर गया है। तब से विज्ञान और ज्ञान मानवजाति के शासन के लिए उपकरण बन गए हैं, और अब मनुष्य के पास परमेश्वर की आराधना करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश और अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं रही हैं। मनुष्य के हृदय में परमेश्वर की स्थिति सबसे नीचे हो गई है। हृदय में परमेश्वर के बिना मनुष्य की आंतरिक दुनिया अंधकारमय, आशारहित और खोखली है। ... विज्ञान, ज्ञान, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, फुरसत, आराम : ये मनुष्य को केवल अस्थायी सांत्वना देते हैं। यहाँ तक कि इन बातों के साथ भी मनुष्य पाप करता और समाज के अन्याय का रोना रोता है। ये चीज़ें मनुष्य की अन्वेषण की लालसा और इच्छा को दबा नहीं सकतीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर द्वारा बनाया गया था और मनुष्यों के बेतुके त्याग और अन्वेषण केवल और अधिक कष्ट की ओर ही ले जा सकते हैं और मनुष्य को एक निरंतर भय की स्थिति में रख सकते हैं, और वह यह नहीं जान सकता कि मानवजाति के भविष्य या आगे आने वाले मार्ग का सामना किस प्रकार किया जाए। यहाँ तक कि मनुष्य विज्ञान और ज्ञान से भी डरने लगता है, और खालीपन के एहसास से और भी भय खाने लगता है। ... यदि किसी देश या राष्ट्र के लोग परमेश्वर के उद्धार और उसकी देखभाल प्राप्त करने में अक्षम हैं, तो वह देश या राष्ट्र पतन के मार्ग पर, अंधकार की ओर चला जाएगा, और परमेश्वर द्वारा जड़ से मिटा दिया जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)।
"निरन्तर वैज्ञानिक अन्वेषण करते हैं एवं अनुसंधान की गहराई में उतरते रहते हैं, फिर वे लगातार अपनी भौतिक आवश्यकताओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए कार्य करते रहते हैं; तो फिर मनुष्य के लिए इसके क्या नतीजे होते हैं? सबसे पहले, पर्यावरणीय संतुलन टूट जाता है, जब ये होता है, तो लोगों के शरीर, उनके आंतरिक अंग इस असंतुलित पर्यावरण से दूषित एवं क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, और दुनिया भर में विभिन्न संक्रामक रोग और महामारियाँ फैल जाती हैं। क्या यह सच नहीं है कि अब ऐसी स्थिति है जिस पर मनुष्य का कोई नियन्त्रण नहीं है? अब जबकि तुम लोग इसे समझते हो, यदि मनुष्यजाति परमेश्वर का अनुसरण न करे, बल्कि इस तरह से हमेशा शैतान का अनुसरण करे—अपने आपको लगातार समृद्ध करने के लिए ज्ञान का उपयोग करे, बिना रुके मानवीय जीवन के भविष्य की खोज करने के लिए विज्ञान का उपयोग करे, जीवन बिताते रहने के लिए इस प्रकार की पद्धति का उपयोग करे—तो क्या तुम समझ सकते हो कि मानवजाति के लिए इसका अन्त क्या होगा? (इसका अर्थ होगा विलोपन।) हाँ, इसका अंत विलोपन के रूप में होगा : एक-एक कदम बढ़ाते हुए, मानवजाति विलुप्त होने के कगार पर आ रही है!" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सारी बातें तथ्य और सत्य हैं। इंसान जिस विज्ञान का विकास कर रहा है, क्या ये उसका नतीजा नहीं है? भ्रष्ट मानवजाति, विज्ञान की आराधना करती है। यह खतरनाक है! विज्ञान के विकास ने हम सबको तबाही और, बर्बादी में झोंक दिया है।
परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं। सिर्फ परमेश्वर ही मनुष्य को बचा सकते हैं। अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करते हैं, और मनुष्य के साथ न्याय करते हैं ताकि भ्रष्ट मानवजाति को शुद्ध करके बचा सकें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मेरा अंतिम कार्य न केवल मनुष्यों को दण्ड देने के लिए है बल्कि मनुष्य की मंज़िल की व्यवस्था करने के लिए भी है। इससे भी अधिक, यह इसलिए है कि सभी लोग मेरे कर्मों और कार्यों को अभिस्वीकार करें। मैं चाहता हूँ कि हर एक मनुष्य देखे कि जो कुछ मैंने किया है, वह सही है, और जो कुछ मैंने किया है वह मेरे स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह मनुष्य का कार्य नहीं है, और उसकी प्रकृति तो बिल्कुल भी नहीं है, जिसने मानवजाति की रचना की है, यह तो मैं हूँ जो सृष्टि में हर जीव का पोषण करता है। मेरे अस्तित्व के बिना, मानवजाति केवल नष्ट होगी और विपत्तियों के दंड को भोगेगी। कोई भी मानव सुन्दर सूर्य और चंद्रमा या हरे-भरे संसार को फिर कभी नहीं देखेगा; मानवजाति केवल शीत रात्रि और मृत्यु की छाया की निर्मम घाटी को देखेगी। मैं ही मनुष्यजाति का एकमात्र उद्धार हूँ। मैं ही मनुष्यजाति की एकमात्र आशा हूँ और, इससे भी बढ़कर, मैं ही वह हूँ जिस पर संपूर्ण मानवजाति का अस्तित्व निर्भर करता है। मेरे बिना, मानवजाति तुरंत रुक जाएगी। मेरे बिना मानवजाति तबाही झेलेगी और सभी प्रकार के भूतों द्वारा कुचली जाएगी...। आपदा मेरे द्वारा उत्पन्न की जाती है और निश्चित रूप से मेरे द्वारा ही आयोजित की जाती है। यदि तुम लोग मेरी नज़रों में अच्छे इंसान के रूप में नहीं दिखाई दे सकते हो, तो तुम लोग आपदा भुगतने से नहीं बच सकते" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। सिर्फ परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य के लिए समर्पित होकर, और मसीह द्वारा व्यक्त सत्य को स्वीकार करके ही, किसी का भ्रष्ट चाल-चलन शुद्ध किया जा सकता है, और तभी वह परमेश्वर की शरण में जाकर उनकी आराधना कर सकता है। किसी को परमेश्वर की रक्षा की वजह से इसी तरह से विपत्तियों से बचाया जा सकता है, और वह परमेश्वर के राज्य में पहुँच सकता है।
"साम्यवाद का झूठ" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश