प्रश्न 15: राष्ट्रीय नेताओं ने, ईसाई धर्म और कैथोलिक धर्म पर, कुपंथ का ठप्पा लगाया है, और पवित्र बाइबल को, कुपंथ की किताब कहा है। ये आम तौर पर माने हुए तथ्य हैं। इस सवाल पर, कि केंद्र सरकार ने ईसाई गृह कलीसियाओं, ख़ास तौर से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर कुपंथ का ठप्पा क्यों लगाया है, मेरा शोध मुझे कुछ यूं यकीन करने की तरफ आगे बढ़ाता है: वे सभी जो, यह गवाही देते हैं कि परमेश्वर ने सब चीज़ों की रचना की, जो गवाही देते हैं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं, और उन्होंने मानवजाति की रचना की, जो गवाही देते हैं कि परमेश्वर सब पर शासन करते हैं, और जो गवाही देते हैं कि परमेश्वर नियंत्रण करते हैं, और वे ब्रह्मांड के प्रभु हैं, और हमसे परमेश्वर का,सम्मान और आराधना, करवाते हैं ये कुपंथ हैं। वे सभी जो गवाही देते हैं, कि परमेश्वर धार्मिक और पवित्र हैं, और जो परमेश्वर के प्रेम और उद्धार की गवाही देते हैं, जो शैतान की मानवजाति को भ्रष्ट करनेवाली दुष्ट शासक शक्ति के रूप में निंदा करते हैं, ख़ास तौर से जो कम्युनिस्ट पार्टी पर सीधा हमला करते हैं और उसकी निंदा करते हैं ये सब कुपंथ हैं। वे सभी जो, गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आये हैं, जो देहधारी मसीह की गवाही देते हैं, और एक साधारण इंसान के काम के बारे में बात करते हैं, मानो यह किसी उद्धारकर्ता का कार्य हो, और गवाही देते और प्रचारित करते हैं कि मसीह के सभी वचन संपूर्ण सत्य हैं, और लोगों से कहते हैं, कि वे परमेश्वर को, स्वीकार करें, उनकी शरण में जाएं और कम्युनिस्ट पार्टी के बजाय उनके आगे समर्पण करें ये कुपंथ हैं। वे सभी जो, गवाही देते हैं कि, परमेश्वर के वचन, सबसे बड़े सत्य हैं, जो गवाही देते हैं कि पवित्र बाइबल परमेश्वर का वचन है वचन देह में प्रकट होता है सत्य है, और मार्क्सवाद-लेनिनवाद कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा की निंदा करते हैं ये कुपंथ हैं। वे सभी जो अंत के दिनों के मसीह की गवाही देते हैं, यह उपदेश देते हुए कि परमेश्वर वापस आ चुके हैं, पूरी मानवजाति को परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करने देते हैं, जो लोगों का आह्वान करते हैं कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए परमेश्वर का अनुसरण करें ये कुपंथ हैं। मेरी जानकारी के अनुसार, यही वजह है कि सरकार सभी ईसाई कलीसियाओं पर, ख़ास तौर से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर, कुपंथ का ठप्पा लगाती है। चीन में, कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण है। कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी-लेनिनवादी, नास्तिक पार्टी है जो हर प्रकार की आस्तिकता का विरोध करती है। कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर में विश्वास करनेवाले सभी समूहों को कुपंथ मानती है। यह उनके, संपूर्ण अधिकार को दर्शाता है। सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी ही महान, गौरवशाली और सही है। मार्क्सवाद-लेनिनवाद का विरोध करनेवाली हर चीज़ गलत है; कम्युनिस्ट पार्टी इन सब पर बंदिश लगाना चाहती है। चीन में, आपको कम्युनिस्ट पार्टी को, महान मानना ही होगा। तो क्या, इसमें कुछ गलत है? आपकी कलीसिया का दावा है, यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आये हैं, और वे अंत के दिनों के मसीह हैं। आप यह भी, दावा करते हैं कि, सर्वशक्तिमान परमेश्वर लोगों को, शुद्ध करने के लिए सत्य व्यक्त करते हैं, इससे धार्मिक वर्ग बंट गये हैं, और करोड़ों लोग, परमेश्वर की शरण में जा रहे हैं। इसने चीन पर, बहुत बुरा असर डाला है और समाज में, अशांति फैलती जा रही है। आप लोक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा कर रहे हैं। इसलिए सरकार, सर्वशाक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को कुपंथ घोषित करती है, और उस पर कार्रवाई करती है। आप सबने धोखा खाया है भटक गये हैं। हम उम्मीद करते हैं कि, आप शीघ्र पश्चाताप करेंगे, थ्री-सेल्फ कलीसिया के लिए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को छोड़ देंगे। फिर आप, आपराधिक रूप से जिम्मेदार नहीं होंगे।

उत्तर: आपने समझाया कि कम्युनिस्ट पार्टी किस प्रकार से चीज़ों पर कुपंथ का लेबल लगाती है। लेकिन मुझे लगता है, सरकार द्वारा ऐसी निंदा बहुत बेतुकी है। अंत में, धार्मिक क्या है और बुरा क्या है, इसका आधार यह होना चाहिए कि क्या यह सत्य के मुताबिक़ है और क्या परमेश्वर के वचनों का पालन किया गया है। सबसे पहले, हमें जान लेना चाहिए, कि, सिर्फ एक सच्चे परमेश्वर ही, जिन्होंने सब चीज़ों की रचना की, सत्य हैं। परमेश्वर सबसे महान हैं, और हम सबको उनकी आराधना करनी चाहिए। कुछ ऐसी कहावतें हैं: "ऊपरवाला सब देख रहा है", "इंसान करता है, स्वर्ग देखता है", "ईश्वर की इच्छा को तोड़ा नहीं जा सकता", "न्याय मनुष्य के दिल में है", "अच्छे को अच्छा मिले, बुरे को बुरा", "कोई भी प्रार्थना, ईश्वर के अपमान से छुटकारा नहीं दिला सकती"। ये सभी साबित करते हैं परमेश्वर हर चीज़ के शासक हैं और सबकी निगरानी करते हैं। परमेश्वर सत्य हैं, और सारी सकारात्मक चीज़ें, परमेश्वर से आती हैं। समाज की व्यवस्थाएं और नैतिक मानदंड सभी परमेश्वर के कार्य, और वचनों से उपजते हैं। सृष्टि की रचना के बाद से ही, परमेश्वर ने सत्य व्यक्त किये हैं, मनुष्य को रास्ता दिखाया है, उसे छुटकारा दिलाया है, और बचाया है। इसलिए, परमेश्वर मनुष्य के सबसे बड़े उद्धारक हैं। हमारी आस्था, समर्पण, और परमेश्वर की आराधना परमेश्वर का अनुसरण, ये सभी अच्छी चीज़ें हैं हमारा सच्चा मार्ग हैं और परमेश्वर ने, इन्हें धन्य किया है। दूसरी तरफ, तमाम नाकारा चीज़ें और बुराइयां, शैतान से ही आती हैं। वे सब जो परमेश्वर को नकारें, उनका विरोध करें, और उनके प्रति शत्रुता रखें ये सब बुरी चीज़ें हैं। तो अब, कुपंथ क्या होता है? आप कह सकते हैं वो सब जो परमेश्वर के विरोध में हो वो सब जो परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य का विरोध करे, वो सब जो परमेश्वर के कार्य को नकारे, उसका विरोध करे और उसकी निंदा करे, और लोगों को अंधेरों में धकेले, जिससे लोग परमेश्वर से दूर हो जाएं, और बुराइयों में डूबकर, दुष्ट बन जाएं जिससे, परमेश्वर अपना क्रोध व्यक्त करें। इस प्रकार की बुराई ही कुपंथ है। जब से सीसीपी सत्ता में आयी है, हम चीनी लोगों को धोखा देने और भ्रष्ट करने के लिए उसने नास्तिकता और विकासवाद को फैलाया है, और इसने हमें परमेश्वर को नकारने, उनका विरोध करने और उनसे विश्वासघात करने को उकसाया है, जिससे परमेश्वर के स्वभाव का अपमान हुआ है और परमेश्वर का श्राप मिला है। परमेश्वर का विरोध करके, सीसीपी ढेर सारी विपत्ति ले आयी है। लोग लगातार पीड़ा झेल रहे हैं, मुसीबत में हैं, और बहुत-से लोग विदेश भाग रहे हैं। एक बहुत लंबे अरसे से, सीसीपी ने परमेश्वर से नफ़रत की है, और उनका विरोध करती रही है, और बहुत ज़्यादा बुराई फैलायी है जिसे हम माप भी नहीं सकते। असली कुपंथ कोई है, तो वो है सीसीपी। ईसाई कलीसियाएं को कुपंथ बताकर सीसीपी सिर्फ तथ्यों को तोड़-मरोड़ रही है।

कुपंथ को पहचानाने के लिए, एक आधार के रूप में प्रयुक्त सिद्धांत तय करने के लिए गहरे चिंतन-मनन की ज़रूरत है। हज़ारों सालों से, मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए शैतान ने धर्मद्रोह और भ्रांतियां फैलायी हैं, ताकि लोग परमेश्वर को नकारें, उनका विरोध करें, और उनसे विश्वासघात करें। इससे हमारी दुनिया और ज़्यादा अंधकारमय, बुरी और अराजक हो जाती है। जब से कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आयी है, वह नास्तिकता और विकासवाद का प्रचार कर रही है, और कहती "इस दुनिया का कोई परमेश्वर नहीं है, और कभी कोई उद्धारक नहीं हुआ," और "स्वर्ग और पृथ्वी पर मैं खुद अपना प्रभु हूँ," "मनुष्य प्रकृति पर विजय हासिल कर सकता है और स्वर्ग और पृथ्वी से युद्ध कर सकता है," और साथ ही यह भी कि "भाग्य आपके हाथ में है," और "हर इंसान खुद अपने लिए" और "दुनिया को घुमाए पैसा" और ऐसी ही दूसरी धर्मद्रोही बातें, जो चीन के लोगों को भ्रष्ट करती हैं, जिससे हम सभी, और ज़्यादा घमंडी, कपटी, स्वार्थी, लालची, और धूर्त बन जाते हैं। लोगों की अंतरात्मा और इंसानियत गायब हो गयी है। हैवानों की तरह लोग कोई भी बुरा काम करने से नहीं कतराते हत्या तक कर देते हैं। चीन में, जोकि दुनिया की सबसे बुरी जगह है, जहां महान लाल अजगर पडा हुआ है, परमेश्वर प्रकट हुए हैं और उन्होंने सत्य व्यक्त किया है, ताकि मानवजाति को शुद्ध कर उसे बचा लें, और शैतान की ताकत के अंधेरों से छूटने में हमारी मदद करें, ताकि हम परमेश्वर की शरण में आकर, प्रकाश से मुखातिब हों। दरअसल ये, सकारात्मक चीज़ें हैं। परंतु इन बातों की निंदा की जाती है, और दबाया और अत्याचार किया जाता है। ऐसा करके, क्या सीसीपी स्वर्ग के खिलाफ काम नहीं कर रही है? ऐसे लोग जिनका अपना अंतर्मन है, वे मानते हैं कि परमेश्वर में आस्था सही है, और यह कि परमेश्वर का कार्य और, उनके सत्य मानवजाति को बचा सकते हैं। इसलिए, सच्चा मार्ग सिर्फ वह है, जो सत्य व्यक्त करता है और लोगों को बचाता है। वो सब जो लोगों को धोखा दे, उन्हें भ्रष्ट करे, और लोगों को अँधेरे के रास्ते पर चलाये, वह एक कुपंथ है। ये ऐसी चीज़ें हैं, जो सही रास्ते को कुपंथ से अलग करती हैं। अगर एक कलीसिया जो परमेश्वर के कार्य को प्राप्त करती है और सत्य को स्वीकार करती है, उस पर कुपंथ का ठप्पा लगा दिया जाता है, तो यह सत्य को मरोड़ता है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सिर्फ परमेश्वर ही मार्ग, सत्य और जीवन हैं। सिर्फ परमेश्वर का प्रकटन और कार्य मनुष्य को सत्य और प्रकाश दे सकता है, और उसे पाप और शैतान के दुष्प्रभाव से बचा सकता है, और मनुष्य को एक गौरवशाली मंज़िल तक पहुंचा सकता है। इससे बुरा कुछ नहीं है कि एक कलीसिया परमेश्वर का अनुसरण करे लेकिन उस पर कुपंथ का ठप्पा लगा दिया जाए। सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी ही, ऐसा बुरा काम, कर सकती है। परमेश्वर के कार्य का हर चरण मानवजाति को बचाने के लिए है। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर पहली बार प्रभु यीशु के रूप में देहधारी हुए। बाहर से, वे साधारण नज़र आते थे। लेकिन उन्होंने मानवजाति के छुटकारे के लिए सत्य व्यक्त किये। खुद की बलि देकर, उन्होंने मनुष्य को पाप से बचाया, और उन्होंने मनुष्य को निंदा से बचाया, ताकि वह परमेश्वर के अनुग्रह, और आशीर्वाद में जी सके। उस वक्त यहूदी धर्म ने, सत्ताधारियों से सांठगांठ की, और प्रभु यीशु को दोषी बनाकर सज़ा देने की कोशिश की। उन्होंने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया। उन्हें यकीन था कि, इससे उनका कार्य ख़त्म हो जाएगा यही उनका लक्ष्य था। लेकिन क्या हुआ? आज, प्रभु यीशु का सुसमाचार, पूरी दुनिया में फैल चुका है। करोड़ों लोगों ने परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त किया है। धर्मों ने, मान लिया है प्रभु यीशु मसीह हैं और उद्धारकर्ता हैं। जो कलीसिया प्रभु यीशु के कार्य से पली-बढ़ी और जो सच्चा मार्ग है स्वीकार की गयी। सिर्फ नास्तिक कम्युनिस्ट पार्टी, ईसाई कलीसियाओं को कुपंथ कहकर, उनकी निंदा करती है, और पवित्र बाइबल को एक कुपंथी किताब कहकर उसकी निंदा करती है। क्या ये तथ्य नहीं हैं? यह बात कि सीसीपी प्रभु यीशु के कार्य की निंदा करती है और ईसाई धर्म को एक कुपंथ कहती है कोई हैरत की बात नहीं है। सीसीपी, एक शैतानी शासन है जो सत्य, और परमेश्वर दोनों से नफ़रत करती है। ख़ास तौर से, यह परमेश्वर के प्रकट होकर कार्य करने से नफ़रत करती है। यह सारे के सारे शैतानी स्वभाव के कारण हैं। अंत के दिनों में, प्रभु सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में वापस आ चुके हैं, जो सत्य व्यक्त करते हैं और लोगों को बचाने के लिए, उनके साथ न्याय करते हैं, और उन्हें शुद्ध करते हैं, और अंधेरों और बुराई के युग का अंत कर उन्हें परमेश्वर के राज्य में लाते हैं, यह तथ्य कि, परमेश्वर ने प्रकट होकर कार्य किया यह साबित करने के लिए काफी है कि अपने कार्य के हर चरण में वे आगे बढ़ने में मानवजाति की अगुवाई करते हैं, और यह कि परमेश्वर के सभी सत्य मानवजाति को, प्रकाश की ओर जाने का रास्ता दिखाते हैं। परमेश्वर के वचनों और कार्य के बिना, मानवजाति कोई तरक्की नहीं कर पायेगी, और पाप में और ज़्यादा, गहराई तक, डूब जाएगी। अगर ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के कार्य को एक कुपंथ का कार्य घोषित करते हैं, तो यह कैसी समस्या है? यह ऐसी चीज़ है, जिस पर हमें चिंतन-मनन करके विचार करना होगा। आजकल, अलग-अलग पंथों, और संप्रदायों के लोगों ने, जो सत्य को खोजना पसंद करते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है और वे सहमत हैं कि ये परमेश्वर की वाणी हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों के उद्धारकर्ता हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं, और पहले ही बहुत-से लोगों ने इनकी, गवाही दे दी है और इन्हें फैलाया है। कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर के कार्य और उनकी कलीसिया की निंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ने पर जोर क्यों देती है ऐसा क्यों है कि जितना ज़्यादा परमेश्वर का कार्य हो, जितना ज़्यादा सत्य हो, जितनी सकारात्मक कोई बात हो, कम्युनिस्ट पार्टी, उसकी उतनी ही ज़्यादा, निंदा कर, उस पर, हमले करती है? क्या यह स्वर्ग का विरोध करना नहीं है, और प्रतिक्रियावादी नहीं है? अब हम सब साफ़ देख सकते हैं कोई भी संस्था जो, सत्य से नफ़रत करती है परमेश्वर को नकारती है, और उनसे शत्रुता रखती है वही वास्तविक कुपंथ है। जो कोई मानवजाति को भ्रष्ट करने और धोखा देने के लिए, अफवाहें और भ्रांतियां गढ़ता है एक कुपंथ है। जो कोई, ईसाई कलीसिया को दबाता और उसकी, निंदा करता और मसीह से शत्रुता रखता है एक कुपंथ है। जो कोई, मसीह को नकारता है, सत्य को नकारता है, सत्य का विरोध करता है और मसीह से शत्रुता रखता है एक कुपंथ है। कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर को सबसे ज़्यादा नकारती है उनका सबसे ज़्यादा विरोध करती है और मसीह से सबसे ज़्यादा नफ़रत करती है। इसलिए, कम्युनिस्ट पार्टी, असलियत में, दुष्ट कुपंथ है।

"साम्यवाद का झूठ" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 14: परमेश्वर में अपनी आस्था को लेकर सबके अपने विचार और राय हैं। मुझे ऐसा लगता है कि आपके विचार और सिद्धांत आपकी अपनी समझ के अनुसार हैं, और ये सब सिर्फ भ्रम हैं। हम साम्यवादियों को यकीन है भौतिकवाद और विकासवाद के सिद्धांत ही सत्य हैं क्योंकि वे, विज्ञान के मुताबिक़ हैं। हमारा देश, प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक उपयुक्त शिक्षा देता है। ऐसा किसलिए? इसलिए कि सभी बच्चों में छोटी उम्र से ही, नास्तिकता और विकासवाद, की सोच घर कर जाए, ताकि वे धर्म और अंधविश्वास से, दूर रहें, ताकि वे हर सवाल का तर्कसंगत जवाब दे सकें। उदहारण के लिए, जीवन के उद्भव को ले लें। पहले के वक्त में, हम अनजान थे, और किस्से-कहानियों में, यकीन करते थे, जैसे कि स्वर्ग और पृथ्वी का अलग होना और नुवा द्वारा इंसान को बनाया जाना। पश्चिमी लोग विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने हम सबकी रचना की। दरअसल, ये सब मिथक और किस्से हैं, और विज्ञान के मुताबिक़ नहीं हैं। विकासवाद के, सिद्धांत के आने के बाद से जिसने मानवजाति के उद्भव के बारे में समझाया था, कि किस तरह, मनुष्य बंदरों से विकसित हुए, तब से, परमेश्वर द्वारा मनुष्य की रचना की कहानियाँ पूरी तरह निराधार साबित हो गयी हैं। हर चीज़ का विकास पूरी तरह से प्रकृति में हुआ है। यही सत्य है। इसलिए, हमें विज्ञान में विश्वास करना होगा और विकासवाद में। आप सभी लोग पढ़े-लिखे जानकार लोग हैं। आप परमेश्वर में कैसे विश्वास कर सकते हैं? क्या आप अपने विचार हमसे साझा कर सकेंगे?

अगला: प्रश्न 16: आपका दावा है कि, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों में परमेश्वर का प्रकटन हैं सत्य है। आपका, यह भी दावा है, कि परमेश्वर ने इस संसार की रचना की और वे इस पर राज करते हैं। कि पूरे इतिहास में परमेश्वर मानवता का, मार्गदर्शन कर उसे बचा रहे हैं। मुझे बताएं आपकी इन आस्थाओं का तथ्यात्मक आधार क्या है? हम कम्युनिस्ट पार्टी में, सभी लोग नास्तिक हैं। हम परमेश्वर के शासन को या उनके अस्तित्व को ज़रा भी नहीं मानते। और आप जिन देहधारी परमेश्वर में, विश्वास करते हैं उनको तो और भी नहीं। जिस यीशु में ईसाई विश्वास करते हैं, वो तो साफ़ तौर पर मनुष्य हैं। उनके माता-पिता और भाई-बहन थे। ईसाई धर्म जोर देता है कि एक सच्चे परमेश्वर के रूप में, उनकी आराधना की जाए। पूरी बकवास। सर्वशक्तिमान परमेश्वर यीशु जैसे ही हैं आप और मुझ जैसे साधारण इंसान। किस वजह से, आप विश्वास करते हैं कि, वे देहधारी परमेश्वर हैं? और आपके लिए यह क्यों ज़रूरी है कि खुद ऐसी गवाही दें, कि वे अंत के दिनों के मसीह उद्धारकर्ता हैं? यह सरासर बेवकूफी और अज्ञान है। यह सब किस्सा-कहानी है कोई परमेश्वर नहीं है। और यही नहीं, कोई देहधारी परमेश्वर नहीं हैं। मैं फिर से कहता हूँ: आपका दावा है कि परमेश्वर ने अब साधारण मनुष्य का रूप धरा है। आपके पास कोई सबूत है? क्या कोई मुझे बता सकता है कि, आपकी आस्था की बुनियाद क्या है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

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