707 स्वभाव में बदलाव वास्तविक जीवन से अलग नहीं हो सकता
परमेश्वर में विश्वास करने में, यदि मानव बदलाव लाना चाहता है,
तो उसे अपने वास्तविक जीवन से खुद को वियुक्त नहीं करना चाहिए।
1
यदि तुम सिद्धांतों और धार्मिक अनुष्ठानों पर ग़ौर करते हो,
बिन वास्तविक जीवन में प्रवेश किए, तुम यथार्थ में प्रवेश नहीं करोगे,
तुम खुद को कभी न जान सकोगे, न ही सच या परमेश्वर को जान सकोगे,
तुम सदा रहोगे अज्ञानी, तुम सदा रहोगे अंधे।
वास्तविक जीवन में खुद को जानो,
त्यागो खुद को और सत्य का अभ्यास करो,
हर चीज़ में अपने आचरण के व्यावहारिक ज्ञान और नियमों को सीखो,
ताकि तब तुम प्राप्त कर सको नियमित परिवर्तन, नियमित परिवर्तन।
2
जो परमेश्वर की अवज्ञा करते हैं
वास्तविक जीवन में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
मानवता की बातें वे करते हैं, पर होते हैं वे दुष्टात्माओं की तरह।
वे सत्य की बात करते हैं, पर उसकी जगह धर्मसिद्धांतों को जीते हैं।
जो वास्तविक जीवन में सत्य को न जी सके
परमेश्वर द्वारा अस्वीकृत किए जाते हैं।
वास्तविक जीवन में खुद को जानो,
त्यागो खुद को और सत्य का अभ्यास करो,
हर चीज़ में अपने आचरण के
व्यावहारिक ज्ञान और नियमों को सीखो,
ताकि तब तुम प्राप्त कर सको नियमित परिवर्तन, नियमित परिवर्तन।
3
अपने प्रवेश का अभ्यास करो,
अपने कमियों को और नाफ़रमानी को जानो,
जानो अपनी अस्वाभाविक मानवता को,
जानो अपनी कमज़ोरी और अज्ञानता को।
इस तरह तुम्हारा ज्ञान तुम्हारी वास्तविक स्थिति से संयुक्त होगा।
केवल ये ज्ञान ही वास्तविक है,
देता है अनुमति तुम्हारी स्थिति को समझने
और परिवर्तन को प्राप्त करने की।
वास्तविक जीवन में खुद को जानो,
त्यागो खुद को और सत्य का अभ्यास करो,
हर चीज़ में अपने आचरण के
व्यावहारिक ज्ञान और नियमों को सीखो,
ताकि तब तुम प्राप्त कर सको नियमित परिवर्तन, नियमित परिवर्तन।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कलीसियाई जीवन और वास्तविक जीवन पर विचार-विमर्श से रूपांतरित