251 परमेश्वर से प्रेम करने का अवसर सँजो लो
1 अचानक अतीत को याद करते हुए मुझे बहुत पछतावा होता है। मैंने परमेश्वर के प्यार का कितना आनंद लिया है, लेकिन मैंने उसे बस दर्द ही दिया है। मैंने कहा कि मैं परमेश्वर से प्रेम करती हूँ, लेकिन मेरा दिल स्वार्थी ख्वाहिशों से भरा था। मैं अपने कर्तव्य में फिसड्डी होने के अलावा कुछ नहीं थी और मैंने देह-सुख का लालच किया। जब उत्पीड़न, कठिनाई और परीक्षण मुझ पर पड़े, तो मैं बुजदिल हो गई और शिकायत करने लगी। मैंने परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने की कसम खाई थी, लेकिन मैं परीक्षणों के इम्तहान में सफल नहीं हो पाई। ईमानदार होने का ढोंग करते हुए मैंने सिर्फ खोखले वचन बोले, और परमेश्वर को आशीषों के लिए धोखा देना चाहा। मैंने बस अपने भविष्य और मंजिल के बारे में सोचा, परमेश्वर की इच्छा की जरा भी परवाह नहीं की। परमेश्वर के सामने खड़ी होकर मेरा दिल उससे बहुत दूर लगा। अतीत असहनीय यादों से भरा था।
2 परमेश्वर का प्रेम सदा मेरे साथ है, उसके वचन मुझे प्रबुद्ध करते हैं, मुझे राह दिखाते हैं और मेरी अगुआई करते हैं। कितनी ही बार मेरा न्याय किया गया है और कितनी ही बार मुझे ताड़ना दी गई है, कितनी ही बार मैं अनेक परीक्षणों और शुद्धिकरण से गुजरी हूँ। मेरा कठोर, सुन्न हृदय आखिरकार जागने और वापस आने लगा है। मैं देखती हूँ कि मैं कितनी स्वार्थी और घृणित हूँ, और कैसे मैंने अपनी इंसानियत और विवेक बहुत पहले ही खो दिया था। परमेश्वर की दया और उद्धार के बिना मैं आज यहाँ तक कैसे पहुँच पाती? मुझे इस बात से नफरत है कि मैं इतनी देर से जागी हूँ और कि मैंने सत्य पाने के कई अवसर गँवा दिए हैं। मुझे बचाने के लिए परमेश्वर ने बहुत श्रमसाध्य कीमत अदा की है। परमेश्वर के प्रेम और उद्धार के आगे मैं दोबारा विद्रोह कैसे कर सकती हूँ? इंसान केवल सत्य का अनुसरण करके, परमेश्वर से प्रेम करके और उसे संतुष्ट करके ही बिना पछताए जी सकता है। बड़े परीक्षण और क्लेश झेलते हुए भी मैं परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए अपना कर्तव्य निभाऊँगी। मैं अपने अंतिम दिनों को सँजोकर रखूँगी और अपना शुद्ध प्रेम परमेश्वर को समर्पित करूँगी।