233 अंतिम क्षणों को संजो कर रखो
1 मैं इन तमाम वर्षों में परमेश्वर में विश्वास रखता रहा, यह वक्त कब निकल गया, मुझे पता ही नहीं चला। यह देखते हुए कि परमेश्वर का कार्य समाप्त होने वाला है, मैं इस बात पर आत्म-मंथन करता हूँ कि क्या मैंने सत्य और जीवन प्राप्त किया है। मुझे समझ में नहीं आता कि मैं परमेश्वर को कैसे हिसाब दूँ। कितनी ही बार परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हुए, मैंने असावधानी से काम किया और गंभीरता से विचार नहीं किया। कितनी ही बार मेरी काट-छाँट हुई, मेरा निपटारा हुआ, लेकिन मैंने सत्य की खोज नहीं की। इतने सालों तक त्याग करते और अपने आपको खपाते हुए, मुझे लगा कि मैं परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हूँ। सावधानी से अपने इरादों का विश्लेषण करते हुए, मैंने जाना कि ये सब मैंने नाम और रुतबे के लिये किया है। परमेश्वर ने इतने सारे वचन व्यक्त किये हैं, लेकिन मैंने शायद ही किसी सत्य को समझा है। मैं कितने ही परीक्षणों और शुद्धिकरण से गुज़रा हूँ, लेकिन मेरा स्वभाव नहीं बदला। अब जबकि परमेश्वर वापस जाने वाला है, तो मेरा सुन्न हृदय अचानक जाग गया है। मैंने सत्य का अनुसरण न करके, पूर्ण किए जाने के अनेक अवसर गँवा दिए।
2 परमेश्वर सिय्योन वापस जाने वाला है, बड़ी विपदा आएगी। परमेश्वर अभी भी जीवन में हमारी अपरिपक्वता से चिढ़ा हुआ है। वह ईमानदारी से हमें वक्त बर्बाद किए बिना सत्य का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है। समय-समय पर, न्याय और ताड़ना मेरे सुन्न हृदय को जगाते हैं। मैं परमेश्वर के तमाम हृदय-स्पर्शी वचनों को देखकर आँसू बहाता हूँ। इंसान को बचाने के लिए परमेश्वर ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है। अगर मेरे अंदर वास्तव में ज़मीर और विवेक होते तो मैं फिर से विद्रोह कैसे कर सकता था, कैसे परमेश्वर को आहत कर सकता था? अगर मैंने अभी भी सत्य का अनुसरण नहीं किया, तो इसका अर्थ है कि मेरे अंदर इंसानियत नहीं है और मैं जीने का हकदार नहीं हूँ। परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक और पवित्र है, वह इंसान के अपराधों को बर्दाश्त नहीं करेगा। जब तक मेरा भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध और रूपांतरित नहीं किया जाता, मैं कैसे बचाया जा सकता हूँ? अतीत की बातों को लेकर, मेरे मन में ढेरों पश्चाताप हैं, मेरा दिल पछतावे से भर हुआ है। मैं अंतिम क्षणों को संजोकर रखूँगा, इंसान की तरह जीने के लिये सत्य का अनुसरण करूँगा और परमेश्वर को संतुष्ट करूँगा।