234 परमेश्वर के हृदय को सुख देने के लिए नया इंसान बनना
1 मैं शैतान के द्वारा इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट हो चुका हूँ, कि जो कुछ भी मेरे पास है, मुझे उसका अहंकार हो गया है। मैं अपने काम और अपने उपदेशों में दिखावा करता हूँ, मुझे लगता है कि मैं कमाल का इंसान हूँ। मैं बेहद आत्म-तुष्ट और आत्माभिमानी हूँ! मेरे अंदर ज़रा-सी भी इंसानियत नहीं है। मैं बहुत नीच और घिनौना हूँ! मेरे अंदर लेश-मात्र भी मानवता का अंश नहीं मिल सकता। मैं हमेशा मुखौटा पहने रहता हूँ और ईमानदार होने का नाटक करता हूँ, ऐसे में तू दुखी कैसे नहीं होगा? तू मेरे दिल में झाँक कर देख चुका है, तेरे वचनों ने जो कुछ उजागर किया, उससे मैं शर्मिंदा हूँ। इतना शर्मिंदा हूँ कि तुझसे नज़रें नहीं मिला सकता, मैं अपनी पीड़ा को बयाँ नहीं कर सकता, मेरा दिल टूट चुका है। मैंने इतने समय तक तेरा अनुसरण किया, लेकिन मैंने कभी तेरी इच्छा की परवाह नहीं की। मुझे सिद्धांतों और शब्दों का ज्ञान है, फिर भी मेरा स्वभाव नहीं बदला। तेरे वचनों ने सब-कुछ स्पष्ट कर दिया, लेकिन मैंने ही अपने दिल को खोजने में नहीं लगाया।
2 तेरे वचनों के न्याय और ताड़ना से गुज़रते हुए, आखिरकार मैं जाग गया हूँ। अब मैं तेरे खिलाफ़ विद्रोह नहीं करूंगा, अब मुझमें ज़मीर का अभाव नहीं होगा। तूने इंसान को बचाने के लिए, दीन बनकर देहधारण किया है। मैं मलिन और नीच हूँ, मेरा क्या सम्मान है? अहंकार करके मैंने अपनी मानवता और विवेक गँवा दिए, मैं वास्तव में इंसान कहलाने लायक नहीं हूँ। तेरे वचनों ने मेरे दिल के तारों को छू लिया, तेरे वचनों ने मुझे जगा दिया। तेरे महान प्रेम ने मेरे दिल को जीत लिया, अब मैं कभी शोहरत और फ़ायदों के पीछे नहीं भागूँगा। मैं केवल तेरे प्रेम का प्रतिदान देने के लिए अपना कर्तव्य निभाना चाहता हूँ। मैं स्वयं को तेरे लिए खपाऊँगा, तेरे दिल को सुकून देने के लिए मैं एक नया इंसान बनूंगा। मैं सत्य का अभ्यास करूंगा, तेरे वचनों के सहारे जिऊंगा, और जीवन में प्रकाश-मार्ग पर चलूँगा।