279 तेरे द्वारा सृजित, मैं हूँ तेरी
1
कई उतार-चढ़ावों और अनगिन बदलावों से होकर।
मैं चलती हूँ तेरे पीछे-पीछे, बारिश में पूरी तरह भीगकर।
खतरे और मुश्किलें हैं भट्टी, सच्चे प्यार और उत्साह की।
प्यार में पागल दिल मेरा, बहुत चाहता है तुझे, तुझे।
कितनी ही बार कटु सर्दी बन गयी सुंदर बसंत?
कड़वा फिर मीठा, चखा सब एक-एक कर।
पतझड़ बीत गया, अब स्वागत करती मैं बसंती बहारों का।
अनिश्चितताएं एक योद्धा के जीवन की, तेरे दिल को मैं जानती हूँ।
जब विनम्रता से आया तू इस दुनिया में, कष्ट सहा तूने।
बारिश तूफ़ान झेले तूने, पर किसी को तरस ना आया।
कईयों ने ठुकराया तुझे, दुखदायी इतना कि शब्दों में बयाँ न हो सके।
फिर भी तेरे दिल की इच्छा तेरे वचनों से झलकती है।
जीवन के तेरे वचन मेरे दिल को सींचते हैं,
अंतरतम गहराई से।
अच्छा बनकर दिल मेरा, तुझे चाहता है।
कब होगा मेरा दिल एक तेरे दिल के साथ?
तेरे द्वारा सृजित, तेरी हूँ मैं।
विश्वास तोड़ना होगा एक अनादि पाप।
तेरे चोट खाए दिल के आँसू पोछूँगी मैं।
तेरे दिल की इच्छा पूरी करने, अपना दिल देती हूँ मैं।
2
जब तू चला गया, तो कठिन है जानना तू कब वापस आएगा,
तू कब वापस आएगा।
मौत जैसी चुभती है ये जुदाई, दुःख भरे आँसू झरते हैं।
इंतजार करती, जाना नहीं चाहती, मेरे दिल के टुकड़े हज़ार हुए हैं।
पलकें बिछाए, तेरी वापसी के लिए तड़प रही हूँ मैं।
सूनी है आत्मा मेरी इतनी कि छिप नहीं सकती मैं।
घुटने टेकती हूँ जब, महसूस होता है मलाल बेधता है आत्मा मेरी।
दूर हैं बहुत, लेकिन दोस्त हैं नज़दीकी।
छोटा-सा चढ़ावा रखती हूँ तेरे सामने।
जब हम मिलते हैं, तू मुझ पर मुस्कुराता है।